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देश का मिज़ाज सर्वे-2024: मोदी बनाम राहुल में कौन कहां खड़ा?

देश का मिज़ाज सर्वे-2024 अलबत्ता फलक पर एक चैलेंजर की तरफ इशारा जरूर करता है, खासकर राहुल गांधी अपनी पिछली नाकामियों की छाया से उबरते दिखाई देते हैं. जब पूछा गया कि अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए कौन सबसे उपयुक्त है, तो नरेंद्र मोदी की रेटिंग अब भी 49.1 फीसद है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी/फाइल फोटो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी/फाइल फोटो
अपडेटेड 2 सितंबर , 2024

भारत के केवल तीन प्रधानमंत्री माउंट 3.0—यानी सत्ता में तीसरे कार्यकाल के दुर्लभ शिखर—की ऊंचाई पर पहुंचे. पहले दो जवाहरलाल नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा गांधी को अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान भारी उथल-पुथल का सामना करना पड़ा और वे अपना तीसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. नेहरू तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही गंभीर भूल कर बैठे जब भारतीय सशस्त्र बलों को 1962 में सरहद पर चीन के हाथों अपमानजनक हार झेलनी पड़ी.

उनकी छवि और विश्वसनीयता को जबरदस्त चोट पहुंची और कार्यकाल खत्म होने से तीन साल पहले 1964 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी जीवनलीला का अंत हुआ. उनके विपरीत इंदिरा लगातार तीसरा कार्यकाल नहीं जीत पाईं; दो कार्यकाल पूरे करने के बाद 1977 के आम चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा, जबकि उनके दूसरे कार्यकाल पर 1975 में उन्हीं के हाथों थोपी गई इमरजेंसी की कालिख पुती थी.

अलबत्ता, जनता पार्टी का प्रयोग नाकाम होने के बाद 1980 में वे फिर धमाके के साथ सत्ता में लौटीं, लेकिन जल्द ही पंजाब में उग्रवाद से निबटते वक्त फिर जबरदस्त दुश्वारियों से घिर गईं. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे उग्रवादियों को खदेड़ने के लिए जून 1984 में उन्होंने ऑपरेशन ब्लूस्टार शुरू किया और उनके नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले को खत्म करवा दिया. मगर इसकी कीमत अपनी जान से चुकाई जब चार महीने बाद उनके अपने सिख पहरेदारों ने उनकी हत्या कर दी.

संसद के बाहर एलओपी राहुल गांधी/फाइल फोटो
संसद के बाहर एलओपी राहुल गांधी/फाइल फोटो

लिहाजा, लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री के रूप में काम कर रहे नरेंद्र मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि उस मुकाम पर पहुंचे उनके पूर्ववर्ती किस तरह लडख़ड़ाकर गिरे थे. हाल में हुए आम चुनाव ने उन्हें समुचित चेतावनी भी दे दी, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा में अपने दम पर वैसा पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई जैसा पिछले दो कार्यकालों में उनकी मदद से पार्टी ने जुटाया था. भाजपा ने 543 सदस्यों के निचले सदन में 240 सीटें जीतीं, जो साधारण बहुमत से 32 कम थीं.

सरकार बनाने के लिए उसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के चुनाव-पूर्व सहयोगी दलों—नीतीश कुमार की अगुआई वाले जनता दल (यूनाइटेड) और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी)—का समर्थन लेना पड़ा. वह भी तब जब मोदी ने भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 से ज्यादा सीटों का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया था, ताकि राजीव गांधी का अपनी मां की मृत्यु के बाद 1984 में हुए चुनाव में बनाया गया 414 सीटों का रिकॉर्ड तोड़ सकें.

मई 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हुआ पहला इंडिया टुडे-सी-वोटर छमाही देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण मोदी के लिए कुछ अहम संकेत लेकर आया है कि अपने तीसरे कार्यकाल में उन्हें किस तरह आगे बढ़ना चाहिए, किन चीजों को प्राथमिकता देनी चाहिए और अपने पूर्ववर्तियों के हाथों हुई गलतियों से कैसे बचना चाहिए.

देश का मिज़ाज सर्वे का सबसे बड़ा निष्कर्ष शायद यह है कि जून, 2024 के नतीजे कोई अपवाद या सामान्य से हटकर नहीं थे—उन्होंने न तो भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया और न ही भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक और समावेशी गठबंधन (आईएनडीआईए या इंडिया) को इतनी पर्याप्त सीटें दीं कि मोदी और भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सके.

कैसे लोगों के रुझान में आए बदलाव

इस साल 15 जुलाई और 10 अगस्त के बीच हुए इस सर्वे से पता चलता है कि अगर अभी आम चुनाव हों तो नतीजे कमोबेश वैसे ही आएंगे जो दो महीने पहले हुए आम चुनाव में मिले थे. भाजपा को वास्तविक नतीजों से चार ज्यादा 244 सीटें मिलेंगी और एनडीए की सीटें मौजूदा 293 से बढ़कर 299 हो जाएंगी. इंडिया ब्लॉक की सीटें मामूली घटकर 234 से 232 हो जाएंगी, लेकिन कांग्रेस की अपनी सीटें 99 से बढ़कर 106 पर पहुंच जाएंगी.

इस तरह अगस्त, 2024 का देश का मिज़ाज सर्वे फिर इस बात पर बल देता है कि देश के मतदाताओं ने मोदी की अगुआई वाली सरकार को बनाए रखने के पक्ष में वोट दिया है, लेकिन कुछ शर्तों और चेतावनियों के साथ. सर्वे में शामिल एक-तिहाई से ज्यादा लोगों ने कहा कि वे मानते हैं कि यह जनादेश उनकी सत्ता को बनाए रखने के पक्ष में था.

लेकिन कई लोग संतुलन भी चाहते हैं.12.5 फीसद से ज्यादा लोगों ने कहा कि जनादेश मजबूत विपक्ष के लिए है. यह पूछे जाने पर कि वे प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कामकाज को कैसे आंकते हैं, 58.6 फीसद लोगों ने इसे असाधारण या अच्छा बताया, जो फरवरी, 2024 के देश का मिज़ाज सर्वे से महज दो फीसद अंक कम हैं.

देश के अगले प्रधानमंत्री के लिए कौन सबसे उपयुक्त

हालांकि यह रेटिंग प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल जीतने के लगभग फौरन बाद अगस्त, 2019 के देश का मिज़ाज सर्वे में मोदी को मिली 71 फीसद की बेहद ऊंची रेटिंग के आसपास भी नहीं है और उससे छह महीने पहले हुए सर्वे से 17 फीसद अंक ज्यादा था.

मौजूदा देश का मिज़ाज सर्वे का एक और साफ रुझान यह है कि मोदी के कामकाज को असाधारण मानने वाले लोगों का प्रतिशत 7.5 फीसद गिरकर 41.8 फीसद से 34.3 फीसद पर आ गया है, जबकि इसे अच्छा आंकने वालों की तादाद 18.7 फीसद से बढ़कर 24.3 फीसद पर पहुंच गई है. ये दोनों आंकड़े मिलकर उनकी चमक फीकी पड़ने का अंदाजा देते हैं. हालांकि अब भी उन्हें कद्दावर माना जाता है, जिसका कोई साफ विकल्प नहीं है.

यह देश का मिज़ाज सर्वे अलबत्ता फलक पर एक चैलेंजर की तरफ इशारा जरूर करता है, खासकर राहुल गांधी अपनी पिछली नाकामियों की छाया से उबरते दिखाई देते हैं. जब पूछा गया कि अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए कौन सबसे उपयुक्त है, तो मोदी की रेटिंग अब भी 49.1 फीसद है, जो पिछले देश का मिज़ाज सर्वे में उन्हें मिली रेटिंग से पांच फीसद अंक कम है. मगर इसी अवधि में राहुल की रेटिंग 8.6 फीसद अंकों की छलांग लगाकर 13.8 फीसद से 22.4 फीसद पर पहुंच गई है.

हालांकि मोदी और राहुल के बीच अब भी 26.7 फीसद अंकों का जबरदस्त फासला है, जिससे यह साफ हो जाता है कि राजनैतिक अखाड़े में मोदी के दबदबे को कांग्रेस नेता से तत्काल कोई खतरा नहीं है. जब पूछा गया कि मोदी के बाद प्रधानमंत्री बनने के लिए कौन सबसे ज्यादा उपयुक्त है, तो राहुल को भाजपा के अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और नितिन गडकरी सरीखे दूसरे नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा वोट मिले. विपक्ष की दौड़ में भी राहुल 32.3 फीसद के साथ बहुत आगे निकल गए हैं, जहां उनके और ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल तथा अखिलेश यादव के बीच फासला बढ़कर 25 फीसद अंकों से भी ज्यादा का हो गया है.

अलबत्ता, मोदी की तरह राहुल के उभार के साथ भी एक चेतावनी जुड़ी है—भाजपा के लिए कांग्रेस अब भी दूरदराज की चैलेंजर है, और विपक्ष के संख्याबल में इजाफा हुआ है तो वह पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी और तमिलनाडु के द्रविड़ मुनेत्र कड़गम सरीखे इंडिया ब्लॉक के क्षेत्रीय साझीदारों की बदौलत हुआ है. जहां तक भाजपा के नेताओं की बात है, तो पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के मामले में शाह को योगी आदित्यनाथ के ऊपर साफ बढ़त हासिल है.

योगी आदित्यनाथ को हालांकि इस बात का श्रेय जाता है कि वे एक बार फिर देश भर में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री बनकर उभरे हैं. अपने गृह-राज्य में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग हैं, जिनकी पार्टी एसकेएम को हाल के विधानसभा चुनाव में भारी जीत मिली. दिलचस्प बात यह कि राष्ट्रीय स्तर पर 10 सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में कांग्रेस का कोई भी मौजूदा मुख्यमंत्री नहीं है.

ईडी-सीबीआई का दुरुप्रयोग

देश का मिज़ाज सर्वे में भाजपा को बड़े राज्यों में नुक्सान की भरपाई होती नहीं दिख रही, जिसकी वजह से लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली कुल सीटों की संख्या साधारण बहुमत के आंकड़े से नीचे पहुंच गई थी. 80 लोकसभा सीटों वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटें 2019 में 62 से घटकर 2024 में 33 रह गईं. ताजा देश का मिज़ाज सर्वे में इसे केवल दो सीटें और सहयोगी को एक सीट का ही फायदा दिख रहा. बहरहाल, राज्य में 2024 की हार के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, इस पर खुलेआम जारी विवाद से भाजपा की स्थिति संभलने के संकेत नहीं हैं.

48 सीटों वाले महाराष्ट्र में 30 सीटों के साथ इंडिया ब्लॉक ने अपनी बढ़त कायम रखी है. वहीं, भाजपा और उसके सहयोगियों के खाते में 18 सीटें ही हैं. अगले कुछ ही महीनों में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन इसमें भाजपा के उबरने के कोई संकेत नहीं मिल रहे. पश्चिम बंगाल में भाजपा की स्थिति और खराब दिख रही है, देश का मिज़ाज सर्वे के निष्कर्षों में पार्टी को गर्मियों में जीती 12 सीटों में से चार का नुक्सान होने का अनुमान लगाया गया है. इनमें से तीन सीटें तृणमूल कांग्रेस और एक कांग्रेस के खाते में जाती दिख रही हैं.

कुल 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में जरूर इंडिया ब्लॉक को नुक्सान की कीमत पर भाजपा की किस्मत बुलंद नजर आ रही है. सर्वे में एनडीए को पांच सीटों के फायदे के साथ उसकी संख्या 35 पर पहुंचने का अनुमान है. उधर, तमिलनाडु में एनडीए राज्य की 39 सीटों पर इंडिया ब्लॉक के कब्जे में कोई सेंध नहीं लगा पाया है. इस प्रकार, कुल 249 सीटों वाले पांच बड़े राज्यों में भाजपा को बस मामूली बढ़त ही मिल पाई है. हरियाणा, जहां अगले महीने चुनाव होने वाले हैं, में सत्ता पर दावेदारी बरकरार रखने की भाजपा की कोशिश चुनौतियों भरी नजर आ रही है, क्योंकि सर्वे दर्शाता है कि कांग्रेस लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रही है.

मोदी की लोकप्रियता अब भी शीर्ष पर है और उन पर मतदाताओं का भरोसा बरकरार है, इसके बावजूद भाजपा और एनडीए के प्रति लोगों का उदासीन रवैया क्या इंगित करता है? दरअसल, देश का मिज़ाज सर्वे मोदी 3.0 की प्राथमिकताओं की दशा-दिशा निर्धारित करता और स्पष्ट तौर पर असल मुद्दा आर्थिक स्थिति से जुड़ा है. जैसा यह सर्वे दर्शाता है, एनडीए की तीन बड़ी उपलब्धियां यानी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना और कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत, चुनावी फायदे के लिहाज से अब बेमानी हो चुकी हैं.

इसके विपरीत, मोदी सरकार की तीन सबसे बड़ी नाकामियां अर्थव्यवस्था से जुड़ी हैं, जिसमें बढ़ती बेरोजगारी शीर्ष पर है. इसके बाद महंगाई और फिर आर्थिक विकास में कमी का नंबर आता है. सर्वे के निष्कर्ष इसकी पुष्टि करते नजर आते हैं. यह पूछे जाने पर कि देश में सबसे बड़ी समस्या क्या है, 28.5 फीसद का जवाब था बेरोजगारी. यह आंकड़ा फरवरी के देश का मिज़ाज सर्वे की तुलना में तीन फीसद अधिक है. महंगाई लोगों की दूसरी सबसे बड़ी चिंता है, फिर उन्हें पारिवारिक आय में कमी भी परेशान कर रही है.

मोदी सरकार भले ही यह दावा कर रही हो कि उसने अकेले पिछले तीन साल में आठ करोड़ नौकरियां सृजित की है, लेकिन 78.2 फीसद लोगों का कहना है कि देश में बेरोजगारी की स्थिति गंभीर हो गई है. असल में सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों को सरकारी दावों पर कोई भरोसा नहीं है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि 60 फीसद से अधिक लोगों का मानना है कि उनके लिए अपने मौजूदा खर्चों का वहन करना मुश्किल हो गया है और 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी आर्थिक स्थिति या तो जस की तस है या फिर और खराब हो गई है.

यह धारणा अब भी कायम है कि एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों से व्यापक स्तर पर बड़े कारोबारी घरानों को फायदा होता है और यह राय रखने वालों की तादाद अब 58.3 फीसद हो गई है. मोदी सरकार के लिए एकमात्र राहत की बात यही है कि मतदाताओं ने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा है और मानते हैं कि अगले छह महीनों में आर्थिक स्थिति सुधरेगी. उन्हें भरोसा है कि एनडीए सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने में सक्षम रहेगी, जिसे अच्छा और असाधारण मानने वालों का आंकड़ा 52 फीसद है. हालांकि, सरकार के अर्थव्यवस्था संभालने को असाधारण कहने वालों की संख्या में 12.4 फीसद की गिरावट आई है, जो 32.4 फीसद से घटकर 20.1 फीसद रह गई है.

ताजा सर्वे में कई अन्य मोर्चों पर भी लोगों की राय नकारात्मक दिखी, जो मोदी और भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित हो सकती है. मसलन, लगभग आधे लोगों ने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए होने वाली राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं में गड़बड़ियों के लिए केंद्र सरकार और उसके परीक्षा निकायों को जिम्मेदार माना. सशस्त्र बलों में भर्ती की विवादास्पद अग्निवीर योजना पर 38.3 फीसद लोगों का मानना है कि इसमें सुधार जरूरी है. वहीं, एक-चौथाई से अधिक लोग चाहते हैं कि इसे पूरी तरह बंद कर दिया जाए.

वहीं, तीन नए आपराधिक कानूनों को लेकर भी लोगों की आपत्तियां साफ नजर आ रही हैं. राजनैतिक फायदे के लिए केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर सरकार की आलोचना की जा रही है. देश का मिज़ाज सर्वे में 36 फीसद लोगों की राय यही है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ईडी और सीबीआई के हाथों गिरफ्तारी पूरी तरह अनुचित थी और यह सत्तारूढ़ दल की तरफ से विपक्ष के प्रति राजनैतिक बदले की भावना से की गई कार्रवाई है.

वहीं, एक अलग सवाल के जवाब में 46.3 फीसद लोगों ने कहा कि भाजपा ने पिछली सरकारों की तुलना में इन जांच एजेंसियों का अधिक दुरुपयोग किया है.

कृषि उपज के लिए एमएसपी या न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी और पूरे देश में जाति जनगणना कराने जैसे दो विवादास्पद मुद्दों को मोदी सरकार जहां ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही, वहीं सर्वे में इन्हें लोगों का पूरा समर्थन मिलता दिखा. हालिया रेल हादसों के मद्देनजर 43 फीसद से अधिक लोगों का मानना है कि भारतीय रेलवे ने रेल यात्रा सुरक्षित बनाने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया. महिला सुरक्षा भी चिंता का विषय बनी हुई है. सर्वे में 37.9 फीसद लोगों ने कहा कि भारत महिलाओं के लिए कम सुरक्षित हो गया है.

यह कोलकाता में बलात्कार और हत्या की घटना के सामने आने से पहले का आंकड़ा है. सांप्रदायिक सद्भाव की बात करें तो 28.1 फीसद की राय है कि यह पहले से बिगड़ा है और बहुमत इसके लिए भाजपा-आरएसएस को जिम्मेदार ठहराता है. हालांकि, एनडीए सरकार की दो पसंदीदा पहल यानी समान नागरिक संहिता और एक राष्ट्र, एक चुनाव लागू करने के विचार को लोगों का भारी समर्थन मिला. ऐसे लोगों का आंकड़ा भी उल्लेखनीय रूप से बड़ा है, जिनका मानना है कि लोकतंत्र खतरे में नहीं है. हालांकि, इसकी वजह कुछ हद तक यह भी हो सकती है कि इस बार लोकसभा चुनाव में विपक्ष एक मजबूत ताकत बनकर उभरा है.

तो, आखिर अगस्त के देश का मिज़ाज सर्वे से क्या बड़े संदेश मिलते हैं? सत्तारूढ़ पार्टी की बात करें तो मोदी की लोकप्रियता बरकरार है लेकिन बेरोजगारी और महंगाई ने मतदाताओं का उत्साह ठंडा कर दिया है. टीम मोदी को इन प्रमुख मुद्दों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करना होगा, वरना कुछ राज्यों के आगामी चुनाव में इसका साफ असर दिख सकता है. खासकर, महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण बड़े राज्य में, जिसे जीतना भाजपा के लिए जरूरी हो गया है. ऐसा लगता है कि अब तक अपने बलबूते स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में रहे मोदी और भाजपा को गठबंधन के साथ काम करना असहज करता है.

सरकारी सेवाओं में लेटरल एंट्री मामले में सहयोगियों की तरफ से विरोध जताए जाने पर जल्दबाजी में इस पर कदम वापस खींचना एक तरह से सरकार की मजबूरी को ही दर्शाता है. सरकार को वक्फ बोर्ड पुनर्गठन और प्रसारण संबंधी नए विधेयक को भी संसद में टालना पड़ा क्योंकि गठबंधन सहयोगियों ने उन्हें जल्दबाजी में लागू न करने को कहा. अब अगर आगामी राज्य चुनावों में हार का सामना करना पड़ा तो मोदी का कद और भी घट जाएगा. नतीजतन, पार्टी के भीतर आमूलचूल बदलावों का दबाव भी बढ़ सकता है.

अपने सहयोगियों की दया का पात्र बनने से बचने के लिए भाजपा अपने सांसदों की संख्या को साधारण बहुमत के आंकड़े तक पहुंचाने के लिए अन्य दलों के सांसदों को पार्टी में शामिल करने का एक और दौर शुरू कर सकती है, जिसे विशेषज्ञ 'विलय और अधिग्रहण’ की संज्ञा देते हैं. इस क्रम में बैकडोर से तमिलनाडु में डीएमके नेता स्टालिन और पश्चिम बंगाल में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी को साधने के प्रयास भी किए जा रहे हैं, ताकि टीडीपी या जद (यू) के पाला बदलने की स्थिति में सरकार के लिए कोई मुश्किल खड़ी न हो.

राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए देश का मिज़ाज सर्वे में यही संदेश छिपा है कि मौजूदा लोकसभा में उन्होंने लाभ की जो स्थिति हासिल की है, उसे और मजबूत करें और भाजपा के साथ बढ़ते अंतर को पाटने की दिशा में भी काम करें ताकि पार्टी मौजूदा राजनैतिक व्यवस्था में एक विश्वसनीय विकल्प के तौर पर उभर सके. मोदी के लिए, यह पूरी मुस्तैदी से फिर मोर्चा संभालने का वक्त है.

वैसे पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में वे हमेशा मजबूत होकर उभरते रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को बताया, "मेरे तीसरे कार्यकाल में देश तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, और मैं तीन गुना अधिक मेहनत करूंगा, तीन गुना अधिक गति से और तीन गुना अधिक व्यापक स्तर पर काम करूंगा ताकि राष्ट्र के लिए हमारे सपने जल्द से जल्द साकार हो सकें." 

मोदी यह साबित करने को दृढ़ संकल्पित दिखे हैं कि न सिर्फ तीसरा कार्यकाल पूरा करेंगे बल्कि तेज आर्थिक और सामाजिक विकास भी आश्वस्त करेंगे. मौजूदा समय में यकीनन समूचे देश को इसी तरह के सकारात्मक दृष्टिकोण की जरूरत भी है.

सर्वे की कुछ प्रमुख बातें

देश का मिज़ाज सर्वेक्षण मोदी 3.0 का एजेंडा तय करता है और वह अर्थव्यवस्था ही है. बेरोजगारी और ऊंची कीमतें चिंता का विषय हैं, जबकि प्रधानमंत्री के लिए युद्ध का मैदान खुला हुआ है.

मोदी के लिए राहुल गांधी मुख्य चुनौती के रूप में उभरे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री को कांग्रेस नेता से 27 फीसद अंक की भारी बढ़त हासिल है.

लोगों ने दक्षिण में कहा कि भाजपा में प्रधानमंत्री के पद पर मोदी के उत्तराधिकारी के लिए अमित शाह सबसे उपयुक्त हैं. यह बाकी सभी क्षेत्रों के मुकाबले सबसे ज्यादा है.

मोदी के कामकाज को असाधारण मानने वालों में 7.3 फीसद की गिरावट आई है. मोदी की चमक यकीनन फीकी पड़ी है, लेकिन उन्हें आज भी बतौर प्रधानमंत्री सबसे उपयुक्त माना जाता है.

हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव सिर पर हैं तो मोदी को देश के लोगों की आर्थिक चिंताओं पर गौर करना होगा, वरना प्रधानमंत्री की कद्दावर नेता की छवि को काफी नुक्सान होगा.

25 फीसद अनुसूचित जाति के लोग अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और काशी विश्वनाथ कॉरीडोर को मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं. यह सभी जातियों में सर्वाधिक है.

एनडीए की पहले की तीन सबसे बड़ी उपलब्धियों—राम मंदिर, कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना और कल्याणकारी योजनाओं के चुनावी फायदे घटते जा रहे हैं.

33 फीसद शहरी लोगों ने एनडीए सरकार के कामकाज के प्रति काफी संतोष जाहिर किया, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 28 फीसद था.

सर्वेक्षण का तरीका

इंडिया टुडे देश का मिजाज जनमत सर्वेक्षण सी-वोटर की तरफ से किया गया जो सामाजिक-आर्थिक शोध के क्षेत्र में दुनियाभर में ख्यात है. 15 जुलाई, 2024 से 10 अगस्त, 2024 के बीच किए गए इस सर्वेक्षण में सभी राज्यों के सभी लोकसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए 40,591 लोगों से बातचीत की गई.

इसके अलावा, वोटों और सीटों संबंधी अनुमानों के दीर्घकालिक ट्रेंड को समझने के लिए सी-वोटर के पिछले 24 हफ्तों के नियमित ट्रैकर डेटा से प्राप्त 95,872 लोगों से अतिरिक्त बातचीत का भी विश्लेषण किया गया. कुल मिलाकर, देश का मिजाज जानने के लिए कुल 1,36,463 लोगों की राय का विश्लेषण किया गया. इसमें 95 फीसद विश्वास के साथ दीर्घ स्तर पर +/- 3 फीसद और लघु स्तर पर +/- 5 फीसद त्रुटि की संभावना है.

आम तौर पर हम अनुमानों की गणना के लिए अपने ट्रैकिंग नमूने इस्तेमाल करते हैं, जिसमें तुलनात्मक तौर पर पिछले देश कामिजाज सर्वेक्षणों के निष्कर्षों को आधार माना जाता है. लेकिन यह वर्ष चुनावी वर्ष था और इस विश्लेषण का आधार 26 जनवरी, 2024 को नहीं बनाया गया, जब हमने अपना पिछला देश का मिजाज सर्वेक्षण किया था. नया आधार 5 जून, 2024 से शुरू हुआ, जब लोकसभा के नतीजे घोषित हुए थे. यही वजह है कि हमने अपनी सभी गणनाओं के लिए 5 जून, 2024 के बाद लिए गए नमूनों का ही इस्तेमाल किया.

मई 2009 के बाद से सी-वोटर ट्रैकर हर हफ्ते यानी एक कैलेंडर वर्ष में कुल 52 बार और 11 राष्ट्रीय भाषाओं में देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हर तिमाही 60,000 के लक्षित नमूना आकार के साथ सर्वे करता आ रहा है. इसमें औसत प्रतिक्रिया दर 55 फीसद है. 1 जनवरी, 2019 से सी-वोटर की तरफ से विश्लेषण के लिए सात दिनों के रोलओवर नमूने का इस्तेमाल करते हुए प्रतिदिन ट्रैकर चलाया जा रहा है.

ये सभी सर्वेक्षण विश्यस्तरीय मानकीकृत पद्धति में इस्तेमाल होने वाले बेतरतीब नमूना संकलन पद्घति पर आधारित हैं, जो सभी भौगोलिक और जनसांख्यिकीय क्षेत्रों में प्रशिक्षित शोधकर्ताओं की तरफ से किए जाते हैं. यह सर्वे सभी खंडों के वयस्क लोगों के सीएटीआइ बातचीत पर आधारित है. सर्वे के लिए बेतरतीब आधार पर नंबरों के चयन के लिए मानक आरडीडी का इस्तेमाल कर भारत में सभी दूरसंचार सॢकल में सभी ऑपरेटर को आवंटित सभी फ्रीक्वेंसी सीरिज को कवर किया गया.

सी-वोटर ने नवीनतम जनगणना आंकड़ों के आधार पर सांक्चियकीय को पूरी अहमियत देते हुए यह तय किया कि स्थानीय आबादी को पूरी तरह उचित प्रतिनिधित्व मिले. डेटा विश्लेषण में ज्ञात जनगणना प्रोफाइल का पूरा क्चयाल रखा गया जिसमें लिंग, आयु, शिक्षा, आय, धर्म, जाति, शहरी/ग्रामीण के अलावा पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों का वोट रिकॉल शामिल है. विश्लेषण के दौरान सी-वोटर ने अपने एल्गोरिदम का इस्तेमाल किया, जिसे खास तौर पर स्पिल्ट वोट फिनॉमिनान के आधार पर प्रांतीय और क्षेत्रीय वोट शेयर की गणना करने के लिए विकसित किया गया है.

सी-वोटर वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ पब्लिक ओपिनियन रिसर्च की तरफ से तैयार पेशेवर नैतिकता और प्रक्रिया संहिता के साथ जनमत सर्वेक्षण पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के आधिकारिक दिशानिर्देशों का पालन करता है.

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