अब बताइए भला! क्या कभी किसी को हमें यह सिखाने की जरूरत पड़ी कि सोएं कैसे? भूख, प्यास और सांसों की तरह यह जरूरत भी एक कुदरती व्यवस्था के तहत इंसानी शरीर के साथ गुंथी-बिंधी आई है. पर हां, भूख, प्यास और सांसों के उलट, नींद ऐसी चीज है जिसके बिना भी हम थोड़ा अधिक अरसे तक जिंदा रह सकते हैं. तभी तो दिल्ली में इंजीनियरिंग के छात्र 21 वर्षीय दिनेश बत्रा को नींद से कुछ घंटे का समझौता करने में रत्ती भर भी झिझक न हुई.
बत्रा बताते हैं, "पढ़ाई, रिलेशनशिप, परिवार के मसले और कम होता वजन, सब एक साथ संभालना पड़ रहा था. नींद में कुछ घंटों की कटौती करके मैंने संभाला." सूजी आंखें, उनके नीचे काले घेरे, पीली पड़ती त्वचा सुबह उठने पर उनके लिए आम बात हो गई. उन्हें ख्याल ही न आया कि दो साल तक इस तरह से वक्त-बेवक्त और कम सोने का किसी और चीज पर असर पड़ सकता है. शरीर के भीतर भी एक तरह की घड़ी होती है जो दिन और रात के चक्र से स्वाभाविक रूप से जुड़ी रहती है. इसे सर्केडियन रिद्म कहते हैं. बत्रा ने इसे पूरी तरह से बिगाड़ लिया. अब उन्हें सोने के लिए भी अक्सर दवाई लेनी पड़ती है.
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पहले राष्ट्रीय निद्रा क्लिनिक के संस्थापक और भारतीय निद्रा चिकित्सा के जनक माने जाने वाले डॉ. जे.सी. सूरी कहते हैं, "हम इंसानों ने अपने शरीर की सोने और अच्छी तरह सोने की क्षमता का सत्यानाश कर डाला है. अच्छी नींद अब लग्जरी की चीज बन गई है." नींद की अलग-अलग परेशानियां लेकर बड़े पैमाने पर लोग आ रहे हैं. पर दिक्कत यह है कि हृदय रोग, कैंसर या डायबिटीज की तरह इसके बारे में वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हैं.
यह कितनी गंभीर बीमारी है, इसका पता लगाने को राष्ट्रीय स्तर का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इसकी थाह लेने के लिए व्यावसायिक अध्ययनों, एनजीओ और ऑनलाइन फोरमों का सहारा लेना पड़ता है. इसी संदर्भ में एक फिटनेस ऐप फिटबिट ने 10.5 अरब रातों की नींद का दुनिया भर का डाटा खंगालकर नतीजा निकाला कि "भारत जापान के बाद दूसरा सबसे ज्यादा नींद से वंचित देश है. यहां रात की नींद का औसत 7 घंटे 1 मिनट है."
इसका विश्लेषण भारत समेत 18 देशों में फैले यूजर्स की नींद के पैटर्न पर आधारित था. 2023 में 20 राज्यों के 5,000 से ज्यादा लोगों पर सिविल सोसाइटी संगठन एजवेल फाउंडेशन के अध्ययन से पता चला कि आधे से ज्यादा लोग (52 फीसद) गहरी नींद के लिए जूझते हैं. 2024 में 12 महीनों के दौरान 309 जिलों में 41,000 लोगों पर किए गए मीडिया प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स के अध्ययन से पता चला कि 61 फीसद लोग बीते साल छह घंटे से भी कम सोए. 2022-23 के मुकाबले यह संख्या 6 फीसद ज्यादा थी.
वैज्ञानिकों के लिए शोधपत्र साझा करने वाली व्यावसायिक सोशल नेटवर्किंग साइट रिसर्चगेट पर उपलब्ध 2023 के एक अप्रकाशित शोधपत्र ने भारत में नींद के 100 अध्ययनों की समीक्षा की. वह इस नतीजे पर पहुंचा कि 4 में से 1 भारतीय अनिद्रा और भारत की करीब आधी आबादी नींद की दूसरी समस्याओं से जूझ रही है.
पर अच्छी नींद है क्या बला? अमेरिका के नेशनल स्लीप फाउंडेशन के दिशानिर्देशों के मुताबिक अच्छी नींद तब होती है जब आप सबको गुडनाइट कहने के बाद 30 मिनट के भीतर नींद में जा सकें, रात में पांच मिनट से ज्यादा जागें नहीं, और जागे भी हैं तो फिर तुरत नींद में चले जाएं, और सुबह उठकर तरोताजा महसूस करें. अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन (एएएसएम) और स्लीप रिसर्च सोसाइटी (एसआरएस) के मुताबिक वयस्कों को रात में कम से कम सात या उससे ज्यादा घंटे सोना चाहिए.
जागने और सोने के इस चक्र में जरा-सा भी असंतुलन शरीर के रीसेट तंत्र में खलल डालता है और कई तरह के मसले पैदा कर देता है. डॉ. सूरी बताते हैं, "नींद आराम करना भर नहीं है. यह ऊर्जा भंडार को दुरुस्त करती है, भीतरी भरपाई/मरम्मत में मददगार है (इसीलिए बीमारों को अच्छे से सोने की सलाह दी जाती है), और याददाश्त को दुरुस्त रखती है. आप शरीर को यह सब नहीं करने देते हैं तो धीरे-धीरे यह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होगा ही." और नींद के विकार भी कई तरह के हो सकते हैं.
बेंगलुरु के डॉक्टर सतीश रामैया मनोवैज्ञानिक होने के साथ नींद चिकित्सा के विशेषज्ञ हैं और फिलहाल मानसिक स्वास्थ्य अस्पताल शृंखला सुकून हेल्थ में मनोचिकित्सा सेवा के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं. अपने रोगियों में पाए गए नींद के सामान्य मसलों के बारे में वे समझाते हुए कहते हैं, "नींद का सबसे आम विकार अनिद्रा (नींद की गुणवत्ता और/या मात्रा में कमी) है, जो 30-40 फीसद लोग जिंदगी में कभी न कभी अनुभव करते हैं. इनमें से 10 फीसद मामले गंभीर हो सकते हैं."
इसके अलावा, करीब 10 फीसद को पैरासोम्निया हो जाता है, यानी नींद के दौरान किसी न किसी रूप में असामान्य व्यवहार, मसलन बड़बड़ाना, चल पड़ना या दहशतजदा होना. अन्य 10 फीसद सर्केडियन रिद्म की शिकायत करते हैं. यह व्यक्ति की जरूरी मनोवैज्ञानिक दिनचर्या और नींद के पैटर्न के बीच तालमेल टूटने से होता है. 2-4 फीसद लोगों को ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया होता है, यानी खर्राटे और सांस लेने में परेशानी. फिर नार्कोप्लेसी (ऊंघना) और हाइपरइनसोम्निया (अति निद्रा) सरीखी कुछेक विरली स्थितियां होती हैं.
नींद की कमी, जिसे 'नींद का घाटा' भी कहते हैं, में व्यक्ति शरीर की आराम की जरूरत पूरी करने से चूक जाता है. यह हर अंग पर विपरीत असर डाल सकता है. नींद पूरी न होने से त्वचा, हृदय, पाचन, प्रजनन, याददाश्त और भावनाओं से जुड़ी परेशानियों के अलावा डायबिटीज तक होना बताया जाता है. इसका असर आपके चलने के ढंग पर भी पड़ सकता है. खराब नींद आपके अकादमिक प्रदर्शन और दफ्तर में काम पर असर डाल सकती है. ड्राइव करते हुए सो जाने पर हादसा भी मुमकिन है.
सोने के दौरान आखिर होता क्या है?
हमारी नींद आम तौर पर सर्केडियन रिद्म से नियंत्रित होती है, जो प्रकाश के संकेतों के हिसाब से काम करती है. ज्यों-ज्यों रात होती है और शरीर को भनक लगती है कि रोशनी कम हो रही है, यह मेलाटोनिन नाम का हॉर्मोन ज्यादा पैदा करने लगता है, जो आपको सोने में मदद करता है. रिसर्च से पता चलता है कि इंसानों में 'स्लीप ड्राइव' या नींद की सहज प्रवृत्ति होती है, जो बहुत कुछ पानी या भोजन की इच्छा की तरह होती है. इसके एक निश्चित स्तर पर पहुंचने पर आपको नींद आने लगती है.
बेंगलुरु के कनिंघम रोड स्थित फोर्टिस अस्पताल में पल्मोनोलॉजिस्ट और नींद विशेषज्ञ डॉ पद्मा सुंदरम कहती हैं, "नींद निष्क्रिय प्रक्रिया नहीं है, जैसा हम पहले सोचते थे. हमारा शरीर भले निश्चल दिखाई दे, पर भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है. नींद भी कई चरणों से मिलकर बनती है और आराम करके तरोताजा होकर उठने के लिए हमें इन सभी चरणों से गुजरना होता है." जब आप सो जाते हैं तो नींद के पूरे एक चक्र में प्रवेश करते हैं, जो नॉन-रैपिड आई मूवमेंट (एनआरईएम) के चरण एक से शुरू होता है.
नींद का यह सबसे हल्का रूप सामान्यत: कुछ मिनट रहता है. एनआरईएम के चरण दो को अभी भी हल्की नींद की श्रेणी में रखा जाता है, पर अध्ययनों से पता चलता है कि दिमाग की गतिविधि धीमी होने लगती है, बस न्यूरो सिस्टम की छोटी-छोटी गतिविधियों को छोड़कर, जिनमें माना जाता है कि आपका मस्तिष्क बीते दिन की यादों और विचारों को संयोजित करता है. यही चरण नींद का सबसे लंबा वक्त होता है और व्यक्ति इसके कई दौरों से गुजरता है.
सबसे गहरा चरण एनआरईएम का चरण 3 है, जिसमें कई बार इतनी गहरी नींद आती है कि व्यक्ति को जगाना मुश्किल होता है या वह हड़बड़ाकर जागता है. इस गहरी नींद में शरीर घावों को पूरने, इक्वयुनिटी गढ़ने और पहचानने तथा याद करने की क्षमता को दुरुस्त करता है. डॉ. सुंदरम कहती हैं, ''आपको पर्याप्त मात्रा में गहरी नींद की जरूरत होती है ताकि उठने पर आराम किया महसूस हो.’’
शरीर रैपिड आई मूवमेंट या आरईएम वाली नींद में प्रवेश करने से पहले एनआरईएम नींद के चरण 2 में लौटता है. यह वह अवस्था है जिसमें इंसान सपने देखता है और उसके मस्तिष्क के स्कैन में गतिविधि वैसी ही दिखाई देती है जैसी जागते वक्त दिखती है. एनआरईएम के चरण 3 और आरईएम की नींद आम तौर पर हमारे सोने के समय का 25-25 फीसद होती है. एनआरईएम और आरईएम के इन तीन चरणों का यह चक्र रात भर कई बार चलता है. हर चक्र में 90-120 मिनट लगते हैं.
तो हमारी नींद में खलल कौन डाल रहा है?
दरअसल जल्दी सोना और जल्दी जागना उतना जरूरी नहीं है जितना सोने के समय के बारे में नियमित रहना और नींद का कोटा पूरा करना. ऑस्ट्रेलियाई सरकार से प्रमाणित शिशु और बाल नींद विशेषज्ञ और स्लीपिंग लाइक अ बेबी किताब की सह-लेखिका हिमानी डालमिया कहती हैं, "आप रात में जागने वाले हों या सुबह जल्दी उठने वाले, आपको अपने शरीर की प्राकृतिक लय को बनाए रखने की जरूरत होती है. बार-बार सोने का समय बदलने से आपकी घड़ी गड़बड़ा जाती है."
हम जितने घंटे सोते हैं, उसमें कटौती न करना भी इतना ही जरूरी है. डॉ. सूरी बताते हैं कि बदकिस्मती से ऐसा करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है. उनके शब्दों में, "हम स्कूल या दफ्तर जाने के लिए लगातार सुबह जल्दी जागते हैं. लेकिन काम के लंबे घंटों, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर दिल बहलाव के चलते देर से सोते हैं. नतीजा? नींद की मात्रा में कमी. कई लोग सप्ताह में काम के दिनों में कम सोते हैं और सप्ताहांत में ज्यादा सोकर भरपाई करने की कोशिश करते हैं. मगर रिसर्च से पता चला कि नींद के इस अनियमित पैटर्न की वजह से आप तरोताजा महसूस नहीं करते."
मुंबई के 47 वर्षीय रोहन शर्मा ठीक यही शिकायत करते हैं: "मेरी सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि मैं नींद नियमित नहीं रख पाता. नतीजा यह होता है कि कभी-कभार ही सुबह महूसस करता हूं कि अच्छी तरह आराम किया है. अधूरी नींद पूरी करने की कोशिश के लिए मुझे वीकएंड की दोपहर का इस्तेमाल करना पड़ता है. यह भी लगता है कि जागने पर मुझे लगा कि ज्यादा आराम किया है, तो दफ्तर में ज्यादा काम कर सकता हूं."
यह बात 2024 के उस अध्ययन से भी सामने आई जो देश में ही विकसित डी2सी नींद और घरेलू समाधान प्रदाता वेकफिट ने विभिन्न भारतीय शहरों के 10,000 से ज्यादा लोगों की सोने की आदतों पर किया—करीब आधे लोग जागने पर थका महसूस करते थे.
इसी अध्ययन से आपकी नींद के एक और लुटेरे का पता चला—स्क्रीन टाइम. अध्ययन में शामिल 54 फीसद लोग सोशल मीडिया और ओटीटी की वजह से देर तक जागते थे; 88 फीसद ने बिस्तर पर जाने से ठीक पहले फोन का इस्तेमाल किया था. इससे दोहरी मार पड़ी—नींद देर से आई और उचटी रही. डॉ. सुंदरम कहती हैं, "नीली रोशनी से आपका दिमाग चकमा खाकर सोचने लगता है कि यह दिन का समय है और शरीर मेलाटोनिन छोड़ना बंद कर देता है. इससे आराम की मुद्रा में आने की हमारी स्वाभाविक प्रक्रिया रुक जाती है और नींद देर से आती है."
फोन या मीडिया का बहुत ज्यादा और देर तक इस्तेमाल करने वालों को नींद में जाने के बाद भी हल्की ही नींद आती है. मेदांता गुरुग्राम में श्वसन और निद्रा चिकित्सा के कंसल्टेंट डॉ. आशीष कुमार प्रकाश कहते हैं, "फोन आपके दिमाग को लगातार उत्तेजित करके जगाए रखता है. सो जाने के बाद भी नींद में खलल पड़ने की यह सबसे आम वजह है." वेकफिट का अध्ययन इसकी तस्दीक करता है—88 फीसद लोगों ने बताया कि वे रात में कई-कई बार जागते थे.
तनाव भी हमारी नींद की मात्रा और गुणवत्ता को तय करने वाला कारक है. डॉ. सूरी कहते हैं, "हमें रात में आराम करने और तनावमुक्त होने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता. दिमाग काम या मनोरंजन या भविष्य की चिंताओं से काफी उत्तेजित होता है, जिससे नींद आने में मुश्किल होती है. तनाव का संबंध खासकर नींद की शुरुआत से होता है. कुछ लोग सोने के लिए शराब का सहारा लेते हैं. मगर इससे उन्हें नींद में जाने में भले मदद मिले, यह नींद की गहराई और गुणवत्ता को बिगाड़ देती है."
इन सबके अलावा बिगड़े खान-पान और आरामतलब जीवनशैली की वजह से मोटापे की दर में इजाफा हुआ है, जो ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया नामक नींद के विकार की प्रमुख वजह बन गया है. मेडिकल जर्नल द लांसेट में छपे 2024 के एक वैश्विक विश्लेषण से भारत में 20 से ऊपर की उम्र की 4.4 करोड़ महिलाओं और 2.6 करोड़ पुरुषों के मोटे होने का पता चला, जबकि 1990 में 23 लाख महिलाएं और 11 लाख आदमी मोटे थे. श्वासतंत्र के ऊपरी हिस्से के आसपास जमा चर्बी सांस लेने में रुकावट डालती है और स्लीप एप्निया यानी नींद में खलल की वजह बनती है.
केवल वयस्क ही इससे पीड़ित नहीं. पुणे की निद्रा विशेषज्ञ डॉ. अमृता जैन के मुताबिक, "मोटापे के कारण बच्चे भी मेरे मरीज बन गए हैं. फिर भी इलाज के लिए आने वालों की संख्या अब भी बहुत कम है." इस विकार के चलते दिन में नींद आ सकती है और समय के साथ दिमागी क्षमता पर भी असर पड़ सकता है. खराब नींद की दूसरी वजहों में नींद में चलना, बुरे सपने देखना, नींद से जुड़े खानपान के विकार, दांत पीसना, जेट लैग और देर रात तक काम करना शामिल हैं.
अधूरी नींद आपकी सेहत पर क्या असर डालती है?
शरीर के हर अंग ठीक से काम करें इसके लिए नींद पूरी होना सबसे जरूरी है. डॉ. सूरी कहते हैं, "अपर्याप्त नींद या छह घंटे से भी कम सोने पर किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने से होने वाले हृदय रोग, हृदयाघात, अवसाद जैसी बीमारियों का खतरा हो सकता है. वह असमय मौत का भी शिकार हो सकता है. अपर्याप्त नींद हमारे मानसिक सजगता, आर्थिक उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता को भी खराब करती है." नए शोध कुछ असामान्य प्रभावों को भी रेखांकित कर रहे हैं.
साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में छपे 2021 के एक शोध में पाया गया कि नींद की कमी से चलने-फिरने और शारीरिक संतुलन साधने में दिक्कत हो सकती है. न्यूरोलॉजी जर्नल में 2024 के एक अन्य अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि तीस और चालीसेक साल वाली उम्र के पड़ाव में आपकी नींद में खलल पड़ता है तो एक दशक बाद ही याददाश्त और सोचने की आपकी क्षमता पर दोगुना असर पड़ सकता है.
डॉ. रामैया के मुताबिक, "जिस तरह खराब मानसिक स्वास्थ्य नींद पर असर डालता है, उसी तरह खराब नींद चिंता, अवसाद, एकाग्रता के अभाव और याददाश्त कमजोर होने जैसी समस्याओं के साथ खराब मानसिक स्वास्थ्य जैसी स्थितियों को जन्म दे सकती है. यह मनोविकृति का भी कारण बन सकती है."
इस पर कई शोध जारी हैं कि कैसे अधूरी नींद शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर बनाती है और वजन बढ़ने, पुरुष और महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने का भी कारण बनती है. नोवा आईवीएफ में प्रजनन विशेषज्ञ डॉ. संदीप तलवार कहते हैं, "अनियमित नींद की आदत पुरुषों में शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा पर खराब असर डालती है. महिलाओं में कुछ अच्छे हॉर्मोन के स्राव के लिए सर्केडियन रिद्म का संतुलित होना जरूरी होता है. अनियमित नींद के कारण अगर यह बंद हो जाए तो एलएच, ओव्यूलेशन, प्रोजेस्टेरोन जैसे हॉर्मोन गड़बड़ा जाते हैं."
अधूरी नींद दुर्घटनाओं का भी अंदेशा बढ़ाती है. डॉ. सूरी कहते हैं, "आखिरकार, आप खुद को जगाए रखने के लिए कितना भी जोर क्यों न लगा लें, थकान आपको जकड़ ही लेती है. ड्राइवरों में माइक्रोस्लीप की अवस्था असामान्य नहीं है, जिसमें आपको कुछ सेकंड के लिए एकदम झपकी आ जाती है, और यह कई बार घातक हादसों का सबब भी बनती है."
2021 में नेशनल सेक्रटी काउंसिल की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हर साल भारत में नींद में गाड़ी चलाने के कारण यही कोई 1,00,000 हादसे होते हैं जिसमें 71,000 लोग घायल होते हैं और कम से कम 1,550 जानें जाती हैं.
अधूरी नींद की समस्या से पार कैसे पाएं?
नींद एक जटिल मनोवैज्ञानिक-शारीरिक प्रक्रिया है, इसलिए इसमें किसी भी तरह की कमी को दूर करने का सीधा-सरल इलाज नहीं है. इसके लिए संबंधित व्यक्ति के जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं के मद्देनजर व्यापक दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है. अच्छी बात यह है कि भारत में नींद की दवाएं एक लंबा सफर तय कर चुकी हैं.
डॉ. सूरी कहते हैं, "मैंने करीब चार दशक पहले जब करियर शुरू किया था तब नींद की दवाओं का इस्तेमाल न के बराबर होता था. आज स्लीप एप्निया का इलाज मशीनों, दंत उपकरणों और सर्जरी से किया जा सकता है. नई दवाएं भी आई हैं."
देश के अधिकांश शहरी मल्टी-स्पेशिएलिटी अस्पतालों में स्लीप लैब और स्पेशलिस्ट उपलब्ध हैं. स्लीप स्पेशलिस्ट सबसे पहले इसकी पूरी पड़ताल करते हैं कि आपकी अधूरी नींद का सटीक कारण क्या है. डॉ. प्रकाश कहते हैं, "नींद पूरी न होने की समस्या दूर करने के लिए सबसे पहले इसका सही कारण जानना जरूरी है. यह पता लगाने के लिए उसकी पूरी जीवनचर्या जानना जरूरी होता है—मसलन, क्या वह खर्राटे लेता है, उसका काम किस तरह का है, उसकी जीवनशैली कैसी है, सोने की दिनचर्या, वगैरह. कभी-कभार मरीज अपने घर पर या अस्पताल में स्लीप लैब में रात भर पॉलीसोनोग्राफी करा सकता है जिससे पता चलता है कि नींद में खलल डालने वाली कोई बीमारी तो नहीं."
इन सबके आधार पर इलाज की सलाह दी जाती है. इसमें मनोवैज्ञानिक मदद से लेकर बेहतर स्लीप हाइजीन तक शामिल है. डॉ. रामैया के मुताबिक, "स्लीप सेंटर में पारंपरिक नींद की गोलियों के इस्तेमाल के अलावा मस्तिष्क की जागृत कोशिकाओं के अवरोध का पता लगाने जैसे कुछ नए उपचार आजमाए जाते हैं. सर्केडियन रिद्म टूटने जैसी समस्याओं के लिए हॉर्मोनल ट्रीटमेंट और लाइट थेरेपी भी काफी उपयोगी साबित होती है."
समस्या यह है कि व्यापक इलाज मौजूद होने के बावजूद बहुत कम लोग नींद संबंधी विकारों के इलाज के लिए विशेषज्ञ के पास जाते हैं. 2015 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेडिसिन ऐंड पब्लिक हेल्थ में छपे पश्चिम बंगाल के 1,185 प्रतिभागियों पर हुए एक शोध में पाया गया कि अनिद्रा से पीडि़त करीब आधे लोगों ने कभी डॉक्टरी सलाह नहीं ली और केवल 15.3 फीसद ने निद्रा विकारों पर डॉक्टर से परामर्श किया.
स्लीप एप्निया एक और आम समस्या है जिस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता. खर्राटे इसका पहला लक्षण हैं लेकिन शायद ही कोई व्यक्ति अपने स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को गंभीरता से लेता हो. डॉ. सूरी कहते हैं, "अगर कोई जोर-जोर से खर्राटे लेता है, नींद आने में दिक्कत है या बार-बार पेशाब जाने के लिए उठता है तो उसे नींद विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए. दिन में ज्यादा नींद आने या दवा खाने के बावजूद उच्च रक्तचाप अनियंत्रित रहने पर भी विशेषज्ञ से परामर्श लेने पर विचार करना चाहिए."
2019 में नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया ने अधूरी नींद के प्रतिकूल प्रभावों को रेखांकित किया और इसके साथ ही जागरूकता फैलाने, अच्छी नींद के लिए हाइजीन को बढ़ावा देने और नींद की दवा तक पहुंच में सुधार के लिए एक राष्ट्रीय निद्रा नीति की सिफारिश भी की.
कई लोग स्लीप ऐप्स की मदद से अपने निद्रा विकार पहचानते हैं और फिर हल्के-फुल्के कपड़े पहनकर सोने, भारी कंबल ओढ़ने, नींद और आराम के लिए छुट्टियां बिताने, मेलाटोनिन गमीज़ और योग के जरिए इसके इलाज का विकल्प अपनाते हैं. डाटा कलेक्टिंग पोर्टल स्टैटिस्टा के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर स्लीप इकोनॉमी 2019 में 432 अरब डॉलर से बढ़कर 2024 में 585 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. भारत में फ्यूचर मार्केट इनसाइट्स का अनुमान है कि केवल मेलाटोनिन सप्लीमेंट बाजार 2033 तक एक करोड़ डॉलर से ऊपर पहुंच जाएगा और नींद में सहायक उपकरणों का बाजार 2029 तक 45.5 करोड़ डॉलर का होगा.
गद्दा कंपनियां भी उन ग्राहकों को आकृष्ट करने के लिए कई तरह की पेशकश कर रही हैं जो अच्छी नींद लेना चाहते हैं. यही वजह है कि वेकफिट की तरफ से 100-दिन की रिटर्न पॉलिसी की पेशकश की जा रही है क्योंकि कंपनी को पता है कि किसी नए गद्दे पर सोने पर शरीर को सामंजस्य बैठाने में समय लगता है और एक समय के बाद ही उपभोक्ता तय कर पाएगा कि गद्दा शरीर के लिए उपयुक्त है या नहीं.
वेकफिट.को के सीईओ और सह-संस्थापक अंकित गर्ग कहते हैं, "मोटे-थुलथुले गद्दे नींद पर खासा असर डालते हैं, जिससे असुविधा होती है. नींद का पैटर्न बाधित होता है और दबाव बिंदु दर्द और अकड़न की वजह बनते हैं. नतीजतन, लोग पूरी रात बेचैनी से गुजारते हैं, करवटें बदलते हैं. रीढ़ की हड्डी सीधी न रह पाने से पीठ और गर्दन में दर्द भी हो सकता है."
प्राकृतिक या वैकल्पिक इलाज दूसरे तरीके हैं जिन्हें लोग अपने निद्रा विकार दूर करने में आजमा रहे हैं. घरेलू ब्रांड कॉस्मिक्स ने अपना स्लीप सप्लीमेंट स्लीप लाइक अ बेबी जारी करने के कुछ महीनों के भीतर 15,000 का कस्टमर बेस हासिल कर लिया. इस मिश्रण में एडाप्टोजेन्स (शारीरिक संतुलन बनाने वाले प्राकृतिक पदार्थ) जैसे सिसांद्रा बेरी और अश्वगंधा शामिल हैं. दिल्ली की बैंककर्मी 38 वर्षीया नीति चड्ढा को अच्छी नींद लेने के लिए कई तरह की हर्बल चाय पर भरोसा है.
वे कहती हैं, "भले ही यह मनोवैज्ञानिक असर करता हो पर मुझे बेहतर नींद में मदद मिल रही है, और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं." हालांकि, डॉ. सूरी इस बारे में आगाह करते हैं, "हर्बल टी या सप्लीमेंट सीमित मात्रा में लेने में कोई बुराई नहीं. फिर भी अगर इससे आपकी नींद में सुधार नहीं हो रहा तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए. सप्लीमेंट को इलाज के साथ उपयोग के लिए बनाया गया है, यह अपने आप में कोई उपचार नहीं होता. मैं मेलाटोनिन के साथ खुद अपना डॉक्टर बनने के एकदम खिलाफ हूं. यह आपके शरीर की प्राकृतिक लय बिगाड़ सकता है."
इसलिए, मन कर रहा है तो एक लग्जरी होटल में आराम के कुछ पल बिताइए, निश्चिंत होकर झपकी लीजिए या फिर सोने से पहले खुद को रिलैक्स करने के लिए सांसों को नियंत्रित करने वाली ऐप का इस्तेमाल कीजिए. लेकिन निद्रा विशेषज्ञ या डॉक्टर से मिलना मत भूलिए क्योंकि वही आपकी नींद पूरी न हो पाने की समस्या को सही ढंग से दूर कर सकते हैं.