पिछले साल जब 38 वर्षीय ड्यू डिलिजेंस एक्सपर्ट प्रफुल्ल शर्मा अपने दो लोगों के परिवार के लिए नई कार खरीदने निकले, तो हैचबैक कार शायद उनकी सारी जरूरतें अच्छी तरह पूरा करती. मगर कोविड महामारी के दो साल उनके ऊपर अमिट छाप छोड़कर गुजरे. उन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया, जिनमें कुछ तो उनसे छोटे थे.
शर्मा की तरह ऐसी ही स्थिति से दो-चार कई दूसरों ने अपने को अजीब-सी भावना में डूबते-उतराते पाया: वाईओएलओ, या योलो, यानी यू ओनली लिव वंस (जिंदगी बस एक बार मिलती है) के पहले अक्षरों से बना छोटा शब्द. इसी भावना के चलते वे बेहतर कल के लिए बचत करने के मध्यवर्गीय स्वभाव के खिलाफ चले गए और उसके बजाय उन्होंने बेहतर आज के लिए खर्च करने का विकल्प चुना. शर्मा ने छह लाख रुपए में होंडा की नई लॉन्च कार एलीवेट का ऑटोमेटिक संस्करण खरीदा. यह रकम उससे कहीं ज्यादा थी जो उन्होंने हैचबैक के लिए चुकाई होती.
योलो की इस तड़प को पूरा करना 'प्रीमियमाइजेशन’ या प्रीमियमीकरण का रुझान है, जो पिछले कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था में दिख रहा है, हालांकि हाल के दिनों में इसमें काफी तेजी आई है. दौलतमंदों के विलासित की वस्तुएं खरीदने पर तो कभी कोई हैरानी नहीं रही. बदलाव यह आया है कि भारतीय मध्यम वर्ग अपनी बढ़ती आकांक्षाओं के आगे घुटने टेक रहा है और मौजूदा पल में जी रहा है.
इसकी वजह से उस चीज में जबरदस्त इजाफा हुआ है जिसे 'मास्टिज’ सेक्शन कहा जाता है, यानी मिड-मार्केट और सुपर प्रीमियम श्रेणियों के बीच की जगह घेरने वाले उत्पाद. इसलिए मकान हो या कार, रेफ्रिजरेटर या टेलीविजन, छुट्टियां या बाहर खाना, भारतीय उपभोक्ता आम ढर्रे की चीजों से मानने को तैयार नहीं है.
कोविड के वर्षों के दौरान बचत, शेयरों की बढ़ती कीमतें, कुछ निश्चित और खासकर संगठित क्षेत्रों में वापस उछाल, और पश्चिमी बाजारों में मंदी के बावजूद भारत के चार ट्रिलियन (चालिस खरब) की अर्थव्यवस्था का निशान पार करने से देश की ग्रोथ स्टोरी को लेकर भारतीयों के मन में विश्वास पैदा हुआ.
इसलिए भारतीय उपभोक्ता अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि चीन के लोगों के मुकाबले वित्तीय तौर पर ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है, जैसा कि डेलॉइट के वित्तीय खुशहाली सूचकांक में दिखाई देता है. भारतीय अर्थव्यवस्था में जो लचीलापन देखा जाता है, उसने भी मध्यवर्ग के उन युवाओं में उम्मीद का संचार किया है जिन्होंने महामारी के दौरान पहली बार पूंजी बाजारों में प्रवेश किया और जिन्हें लगता है कि अपनी कमाई आकांक्षी उत्पादों पर खर्च करना ठीक है.
आमदनियां भी बढ़ी हैं. यह रुझान एसबीआई की एक रिपोर्ट ने भी पकड़ा, जिसका शीर्षक है 'डेसिफरिंग इमर्जिंग ट्रेंड्स इन आईटीआर फाइलिंग: द एसेंट ऑफ द न्यू मिडिल क्लास इन सर्कुलर माइग्रेशन’. इसके आंकड़ों के मुताबिक, करदाताओं की औसत आमदनी वित्त वर्ष 2013 में 4.4 लाख रु. से तकरीबन तीन गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 13 लाख रु. हो गई, जिसमें कर भरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी और निम्न आय समूह के कई करदाताओं के उच्च आय समूह में आ जाने का योगदान है.
यही नहीं, अपने बच्चों की खातिर बचत को तरजीह देने वाले अपने मां-बाप के विपरीत, मिलेनियल और ज़ी पीढ़ी के और खासकर 1990 के दशक के बाद जन्मे बच्चों की खाने, रहने और स्वास्थ्य सरीखी बुनियादी जरूरतें उनके माता-पिता से पूरी हो जाती हैं. डेलॉइट एशिया पैसिफिक के पार्टनर और कंज्यूमर इंडस्ट्री लीडर राजीव सिंह कहते हैं, "सुरक्षा का यह एहसास बहुत अहम मानदंड है जो पहले ज्यादातर व्यक्तियों को नहीं मिल पाता था. उसने बचतकर्ता के बजाय सोचा-समझा खर्चीला बना दिया है." इसलिए वे ऐसे खर्च कर रहे हैं मानो कल आएगा ही नहीं.
आखिरकार, जैसा मैनेजमेंट कंसल्टेंसी वजीर एडवाइजर्स के संस्थापक हरमिंदर साहनी कहते हैं, "आकांक्षा ऊपर है." इसी भावना के आगे न सिर्फ देश के शीर्ष 20-25 शहरों बल्कि कस्बों और गैर-शहरी ठिकानों के लोग भी घुटने टेक रहे हैं.
उपभोक्ताओं में बड़े और बेहतर की इस भूख को भांपकर मैन्युफैक्चरर में तरह-तरह की चीजों की दावत पेश करनी होड़ मच गई है. ऑटोमोबाइल से लेकर रियल एस्टेट, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर तेज बढ़ते उपभोक्ता सामान, और ट्रैवल और हॉस्पिटैलिटी में भी तरह-तरह की पेशकश से अब उपभोक्ता मनचला बन गया है.
कार: चलता-फिरता उत्सव
कारें हमेशा हैसियत में ऊपर चढ़ने का प्रतीक रही हैं और वाहनों की पसंद में उपयोगिता हमेशा प्राथमिक सोच-विचार नहीं होती. कंसल्टेंसी जेएटीओ डायनेमिक्स की तरफ से जुटाए आंकड़ों के मुताबिक 7.5 लाख रु. से 22.5 लाख रु. कीमत के बीच की कारों की बिक्री 2021 में 44.2 फीसद से बढ़कर 2022 में 53.4 फीसद पर पहुंच गई, और पिछले साल नवंबर तक यह 62.4 फीसद के आसपास थी. दूसरी तरफ छोटी कारों (7.5 लाख रु. की कीमत तक की) में वृद्धि 2021 में 55.8 फीसद से गिरकर 2022 में 46.4 फीसद पर आ गई, और पिछले साल नवंबर तक और भी गिरकर 36.5 फीसद पर थी.
जेएटीओ डायनेमिक्स के प्रेसिडेंट तथा डायरेक्टर रवि जी. भाटिया कहते हैं, "नए और खूबियों से भरे उत्पाद बाजार में आए हैं." इन्हीं उत्पादों की बिक्री अहम बढ़ोतरी दर्ज कर रही है. 2021 में बिकी एसयूवी में से महज 6 फीसद में 360 डिग्री वाले कैमरा, महज एक फीसद में एडैप्टिव क्रूज कंट्रोल, 49 फीसद में "हिल होल्डर" का विकल्प, 35 फीसद में लो टायर प्रेशर इंडिकेटर, 14.6 फीसद में एपलकारप्ले या एंड्रॉयड ऑटो सरीखे मोबाइल वायरलेस कनेक्शन, 31.3 फीसद में रिमोट सेवाएं और 20 फीसद में वायरलेस चार्जिंग पैड थे.
2023 में नवंबर तक 360 डिग्री कैमरा वाली एसयूवी में 13 फीसद, एडैप्टिव क्रूज कंट्रोल वाली में 3.6 फीसद, "हिल होल्डर" वाली कारों में 74.7 फीसद, लो टायर प्रेशर इंडिकेटर वाली में 52.4 फीसद, मोबाइल वायरलेस कनेक्शन वाली में 35.6 फीसद, रिमोट सेवाओं वाली में 40 फीसद से ज्यादा और वायरलेस चार्जिंग पैड वाली में 26.6 फीसद की वृद्धि हुई.
उपभोक्ता भी अब सुरक्षा खूबियों और टेक्नोलॉजी के ताजातरीन रुझानों से कहीं ज्यादा वाकिफ हैं. महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की एक्सयूवी 700 एडीएएस या एडवांस्ड ड्राइवर एसिस्टेंस सिस्टम से लैस है, जिसकी बदौलत आप लॉन्ग ड्राइव पर ऑटो पायलट मोड पर चल पाते हैं. एयर बैग तो इन दिनों कारों में अनिवार्य हो गए हैं. इस सबकी वजह से कीमतों में इजाफा हुआ है. भाटिया का अनुमान है कि 2020 से अब तक कारों की कीमतों में 23 फीसद की बढ़ोतरी हुई है. यह बढ़ोतरी मिड और अपर एंड की कारों में सबसे ज्यादा है.
मल्टीपरपस वेहिकल (एमपीवी) के मामले में यह सबसे ज्यादा है, जहां कीमतों में 2021 से मौजूदा साल तक करीब 2.4 लाख रु. की बढ़ोतर हुई है, जिसके बाद सेडान (1.8 लाख रु.) और एसयूवी (1.5 लाख रु.) हैं. इसी अवधि में निचले सेगमेंट की हैचबैक कारों की खुदरा कीमतों में भी करीब 1.16 लाख रु. की बढ़ोतरी हुई है.
मगर, जैसा कि एसऐंडपी ग्लोबल मोबिलिटी के विश्लेषक गौरव वांगल कहते हैं, "उपभोक्ता को आज कुछ ज्यादा दाम चुकाने से गुरेज नहीं है जब तक कि उन्हें अपना पैसा वसूल होता लगता है और कीमतों में बढ़ोतरी को जज्ब करते लगते हैं." यह बाजार और उपभोक्ता के परिपक्व होने का संकेत है. भाटिया को और कुछ वक्त इस रुझान के जारी रहने की उम्मीद करते हैं और यह भी कि डीलर डिस्काउंट, धन का आसानी से मिलना, और सड़कों का बेहतर बुनियादी ढांचा प्रीमियम उत्पादों की तरफ बढ़ने में लोगों की मदद करते रहेंगे.
मांग को भांपते हुए ऑटो कंपनियों ने उपभोक्ता के सामने बढ़ते विकल्पों की भरमार कर दी है और प्रीमियम श्रेणियों के और ज्यादा उत्पाद लॉन्च कर रही हैं. 10 लाख रु. से कम और 10-15 लाख रु. कीमत वाली कारों में निर्विवाद अगुआ मारुति 20 लाख रु. से ऊपर की श्रेणी में अच्छी-खासी हिस्सेदारी पर नजर गड़ाने लगी है, और इसीलिए उसने हाल में अपनी एमवीपी इनविक्टो लॉन्च की है.
मारुति सुजुकी के सीनियर एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, मार्केटिंग ऐंड सेल्स शशांक श्रीवास्तव ने मीडिया से एक बातचीत में कहा, "परंपरा से लोग थ्री-रो एसयूवी और थ्री-रो एमवीपी पर अलग-अलग सेगमेंट के तौर पर विचार करते हैं. आंकड़े देखने पर हमें एहसास हुआ कि यह वास्तव में एक ही सेगमेंट है. हमने देखा कि यह बाजार दरअसल बहुत तेजी से बढ़ा है." अपनी एमवीपी की बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनी बेड़ा मालिकों के बजाय व्यक्तिगत और प्राइवेट खरीदारों पर ज्यादा ध्यान दे रही है.
उन्होंने कहा, "लक्ष्य 35-45 वर्षीय ऐसे युवा दंपती होंगे जिनकी घरेलू औसत आय ज्यादा है." सितंबर 2022 में लॉन्च कंपनी की एसयूवी ग्रैंड विटारा, जिसके टॉप वैरिएंट की कीमत (एक्स-शोरूम) 20 लाख रु. है, अपनी पहली वर्षगांठ पर 1,20,000 इकाइयों की बिक्री के मील के पत्थर पर पहुंच गई और इसने एसयूवी सेगमेंट में 20 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर पहुंचने में कंपनी की मदद की.
बेहतर टेक्नोलॉजी और ट्रेंडी डिजाइनों के उत्पादों की चाहत रखने वाले खरीदारों की जरूरत पूरी करने के लिए टाटा मोटर्स ने पिछले साल अक्तूबर में अपनी सफारी और हैरियर एसयूवी के नए संस्करण लॉन्च किए, जिनकी कीमत क्रमश: 16.19 लाख रु. और 15.49 लाख रु. थी. इन कारों की खूबियों में सभी मॉडलों में दूसरी चीजों के अलावा मानक छह के साथ सात एयरबैग, 31.24 सेंमी का हरमन टचस्क्रीन इन्फोटेनमेंट सिस्टम और नेविगेशन डिस्प्ले के साथ 26.3 सेंमी का कनफिगरल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर शामिल है. कंपनी इन एसयूवी के लिए पेट्रोल इंजन बनाने का मंसूबा बनाती बताई जाती है.
जब दोपहिया वाहनों की बात आती है, कृषि अर्थव्यवस्था में लगातार जारी संकट की वजह से छोटे इंजन वाले दोपहिया वाहनों की बहाली अनिश्चित बनी हुई है, पर प्रीमियम श्रेणी—150 सीसी से ऊपर की बाइक—में बिक्री ने सुस्ती के रुझान को उलट दिया. सियाम के आंकड़ों के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष ’23 में वृद्धि दहाई अंकों में रही और उस साल दोहपिया वाहनों की कुल बिक्री की 18 फीसद थी, जबकि इसके मुकाबले पांच साल पहले (वित्त वर्ष ’18) यह 14 फीसद थी. दूसरी तरफ इसी अवधि में एंट्री-लेवल की बाइक (76-100 सीसी) और कम्यूटर बाइक (110-150 सीसी) की बिक्री में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई.
एफएमसीजी: एक से बढ़कर एक सुविधाएं
चाहे पर्सनल केयर से जुड़े उत्पाद हों या फिर खाद्य और पोषण से जुड़ी वस्तुएं भारतीय उपभोक्ता काफी सोच-समझकर उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. महामारी के दौरान बढ़ी ऑनलाइन शॉपिंग और डिलिवरी की सुविधा ने मनमाफिक विकल्प चुनने का दायरा बेहद व्यापक कर दिया है, और साथ आम दैनिक जीवनचर्या में भी जागरूकता काफी बढ़ी है.
वर्ल्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआइ) इंडिया में कम्युनिकेशन कंसल्टेंट 55 वर्षीय उमा आशेर पिछले चार-पांच साल से खानपान और पर्सनल केयर से जुड़े उत्पाद कोयंबत्तूर स्थित ब्रांड बायो बेसिक्स से ही खरीद रही हैं, जो ऑर्गेनिक उत्पाद आधारित जीवन, साफ-सुथरे कारोबार और जैव विविधता के संरक्षण की धारणा पर चलता है. वे कहती हैं, "मेरे लिए इसमें माथापच्ची करने जैसी कोई बात ही नहीं है. मुझे लगता है कि यह सिर्फ मेरे व्यक्तिगत स्वास्थ्य से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि सजीव और जीवंत प्राणियों यानी पृथ्वी और इस पर बसे अन्य निवासियों की भलाई इसी में निहित है." उन्हें अपनी पसंदीदा चीजों के लिए कुछ अतिरिक्त भुगतान करने में भी कोई आपत्ति नहीं है, खासकर जब वे अपने घर में रहने वाली अकेली हैं.
मार्केट रिसर्च कंपनी कंटार्स वर्ल्डपैनल डिविजन की वर्ष 2022 की रिपोर्ट बताती है कि छोटे परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ना भी एफएमसीजी उत्पादों पर घरेलू खर्च में खासी वृद्धि की बड़ी वजह है. दरअसल, ऐसे भारतीय परिवार—जो 2008 में 37 फीसद की तुलना में बढ़कर अब करीब 50 फीसद हो गए हैं—अपनी सुविधा और बेहतर अनुभव के लिए अधिक भुगतान में जरा भी संकोच नहीं करते.
आंकड़ों की बात करें तो एफएमसीजी उत्पादों पर उनका औसत खर्च 15,200 रु. है जो सात लोगों के संयुक्त परिवारों के एफएमसीजी उत्पादों पर मासिक खर्च 15,100 रु. की तुलना में कहीं ज्यादा है. छोटे परिवार उत्पादों के विभिन्न सेगमेंट के मामले में भी संयुक्त परिवारों से आगे हैं और उनके मुकाबले औसतन 20 एफएमसीजी सेगमेंट की तुलना में 21 सेगमेंट पर खर्च करते हैं.
लगता है कि लोगों के खर्चीले स्वभाव पर न तो महंगाई का असर पड़ा और न ही महामारी ने कोई लगाम लगाई है. क्योंकि साल-दर-साल के आधार पर घरेलू खर्च 8 फीसद बढ़कर 2023 में औसतन 17,792 रु. तक पहुंच गया है. महामारी के बाद से औसत खर्च में 3,403 रु. की वृद्धि हुई है और, 50 ब्रांडेड और गैर-ब्रांडेड श्रेणियों में बिक्री के आंकड़ों को दर्शाने वाली कंटार वर्ल्डपैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 के अंत तक यह 20,000 रु. पर पहुंच सकता है.
अपनी तरफ से ब्रांड नई पीढ़ी के उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए क्या कर रहे हैं? एफएमसीजी दिग्गज आइटीसी फूड्स के मुख्य डिजिटल मार्केटिंग अधिकारी शुभदीप बनर्जी के मुताबिक, यह बेहतर मूल्यों की पेशकश के साथ, ज्यादा लाभकारी होने का वादा और रोचक पैकेजिंग तथा आश्चर्यजनक फ्लेवर मुहैया कराकर किया जाता है.
यही वजह है कि आइटीसी अपने ब्रांड आशीर्वाद के तहत साधारण आटे को भी विभिन्न संस्करणों में बेचती है, चाहे ग्लूटेन-फ्री हो या फिर फोर्टिफाइड, मल्टीग्रेन या शुगर रिलीज कंट्रोल. ताकि लोग प्रीमियम उत्पाद चुनने के प्रति आकृष्ट हों. बनर्जी कहते हैं, "पिछले 12 महीनों में आटे के हेल्थ पोर्टफोलियो में 1.3 गुना वृद्धि दिखी है." आइटीसी अपनी पैकेजिंग का यूनीक क्यूआर कोड मुहैया कराकर उपभोक्ताओं का भरोसा भी जीत रही है, जो उपभोक्ताओं को उस खेत के बारे में जानने का मौका देता है जहां से अनाज लिया गया हो.
प्रीमियम पसंद सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, विलासिता की चीजों में भी उपभोक्ता अच्छे उत्पाद ही चुन रहे हैं. आइटीसी की तरफ से 2016 में लॉन्च लग्जरी चॉकलेट रेंज फैबेल की बिक्री पिछले वर्ष 40 फीसद बढ़ी है. बनर्जी कहते हैं, "कोई उपभोक्ता एक ही दिन या एक ही हफ्ते में दोनों मामले में खर्चीला रवैया दिखा सकता है. सेहत को लेकर उसका पूरा जोर पोषक उत्पादों पर रहता है तो दूसरे मामलों में विलासिता पसंद होता है."
यह बात पानी जैसी चीज पर भी लागू होती है. शायद यही वजह है कि स्पार्कलिंग वाटर की बिक्री सामान्य मिनरल वाटर से आगे निकलने लगी है. बिसलेरी ने पाया कि अब फिजी, नॉन-कैलोरी पेय की उपभोक्ता मांग बढ़ रही है और उसने त्योहारी सीजन में अपने प्रीमियम नेचुरल स्प्रिंग वॉटर ब्रांड वेदिका के तहत हिमालयन स्पार्कलिंग वॉटर लॉन्च किया. बिसलेरी इंटरनेशनल की वाइस चेयरपर्सन जयंती खान चौहान कहती हैं, "कमाई के मामले में हमारा लक्ष्य वेदिका ब्रांड के साथ पूरे बाजार में 5 फीसद हिस्सेदारी हासिल करना है."
डियाजियो में चीफ बिजनेस ऑफिसर, लग्जरी, रिजर्व ऐंड क्राफ्ट, भारत और दक्षिण एशिया, श्वेता जैन कहती हैं, "प्रीमियम उत्पाद अपनाने का ट्रेंड जानने का सबसे आसान तरीका यह है कि भारतीय उपभोक्ता किसी एक ट्रेडमार्क के अलग-अलग मूल्य वाले उत्पादों को चुनने में क्या रुख अपना रहे हैं." वे शराब के संदर्भ में बात कर रही थीं.
क्रिसिल रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संगठित शराब उद्योग की कमाई इस वित्त वर्ष में 12-13 फीसद बढ़कर करीब 4.45 लाख करोड़ रु. तक पहुंच जाएगी. डायरेक्टर राहुल गुहा कहते हैं कि उपभोक्ता देसी शराब से ब्रांडेड शराब की ओर रुख कर रहे हैं और ब्रांडेड सेगमेंट में भी अधिक कीमत वाली बोतलों चुन रहे हैं. यह वृद्धि व्हिस्की और बीयर में ही नहीं, बल्कि वोदका, जिन, वाइन आदि श्रेणियों में भी नजर आई है, भले ही आधार छोटा है.
प्रीमियम सेगमेंट में फिर निचले आधार पर ही सही लेकिन 20 फीसद से अधिक वृद्धि की उम्मीद है, जिसमें 750 मिलीलीटर की बोतल की कीमत 1,000 रु. से अधिक है. डियाजियो ने प्रतिष्ठित और उसके उससे ऊपर के सेगमेंट में साल-दर-साल आधार पर 12.8 फीसद की दोहरे अंक की वृद्धि दर्ज की है, जिसमें ब्लू लेबल, डबल ब्लैक और अन्य शामिल हैं. जैन कहती हैं, "अमूमन लोग अपनी स्कॉच व्हिस्की यात्रा रेड लेबल के साथ शुरू करते हैं. लेकिन अब हम देख रहे हैं कि ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है जो प्रीमियम वैरिएंट चुनते हैं." वे यह भी कहती हैं कि युवा अपनी पसंद की शराब को लेकर अधिक बोल्ड हैं. उनके मां-बाप भले जीवनभर व्हिस्की के एक ही ब्रांड पर टिके रहे हों लेकिन वे तीन महीने में अलग-अलग मौकों पर सात अलग-अलग ब्रांड का लुत्फ उठा सकते हैं. अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए डियाजियो ने टेकीला के अपने वैश्विक ब्रांड डॉन जूलियो को पिछले साल भारतीय बाजार में भी उतार दिया है.
उपभोक्ता सामान: बड़ा और बेहतर की मांग
टिकाऊ उपभोक्ता सामान यानी कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के सेगमेंट में किसी अन्य श्रेणी की तुलना में प्रीमियम उत्पाद अपनाने की बढ़ी प्रवृत्ति सबसे साफ नजर आती है. गोदरेज एप्लायंसेज के बिजनेस हेड और एग्जीक्यूटिव वाइस-प्रेसिडेंट कमल नंदी कहते हैं कि महामारी की वजह से लॉकडाउन के दौरान जब लोगों को रोजमर्रा के काम खुद करने पड़े, तभी इस ट्रेंड ने जोर पकड़ा, क्योंकि लोगों ने ऐसे उपकरणों पर ज्यादा खर्च किया जो उनके जीवन को आसान बना सकते हों. देश के सभी क्षेत्रों में खुदरा विक्रेताओं की रिपोर्ट बताती है कि टॉप-लोडिंग वॉशिंग मशीन, डिशवॉशर, फ्रॉस्ट-फ्री रेफ्रिजरेटर, ग्लास स्क्रीन टेलीविजन और इन्वर्टर एयर कंडिशनर जैसे सामान की बिक्री बढ़ी है.
उस समय से बढ़ी मांग कायम है. नंदी के मुताबिक, पहली बार खरीदारी करने वाले और युवा कामकाजी जोड़े टिकाऊ उपभोक्ता सामान की इस मांग को बढ़ा ही रहे हैं, हाइ-एंड वैरिएंट की खरीददारी में भी आगे हैं. गुरुग्राम में पेस्ट्री शेफ 26 वर्षीया शुभी कुमार और रोड रिपेयर बिजनेस से जुड़े 31 वर्षीय अर्चित उप्पल ऐसे ही उपभोक्ताओं में हैं. दिसंबर में शादी करने वाले इस जोड़े ने अपने नए घर में चिमनी, डिशवॉशर, हॉब, वर्कस्टेशन सिंक—सभी बॉस के—लगाने में अच्छा-खासा खर्च किया.
शुभी कहती हैं, "हमें खाना बनाना और अपने घर में पार्टियां करना पसंद है. इसलिए यही चाहते थे कि हमारा ओपन किचन काम करने के लिहाज से सुविधाजनक और देखने में खूबसूरत भी हो, क्योंकि सभी उपकरण हमारे मेहमानों को नजर आएंगे." उन्होंने एक बिल्ट-इन डिशवॉशर चुना जो किचन कैबिनेट से मेल खाता है. वे कहती हैं कि एक ही ब्रांड के उत्पाद खरीदने से किचन का पूरा लुक एक जैसा तो होता ही है, डीलर से मोलभाव भी अच्छा हो जाता है.
दूसरी तरफ, रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन की बढ़ी बिक्री में 50 फीसद हिस्सा घरेलू उपकरणों को बदलने या अपग्रेड करने की चाहत का रहा. इनमें भी उच्च क्षमता, बेहतर तकनीक और शानदार लुक को सबसे ज्यादा तरजीह दी गई. मसलन, रेफ्रिजरेटर में सबसे ज्यादा मांग 550 और 670 लीटर क्षमता वाले मॉडल की रही. गोदरेज के नंदी कहते हैं, "वित्त वर्ष 20 से वित्त वर्ष 23 के बीच फ्रॉस्ट-फ्री रेफ्रिजरेटर की बिक्री 35-40 फीसद बढ़ी, जबकि सिंगल-डोर रेफ्रिजरेटर की बिक्री सिर्फ 7-8 फीसद बढ़ी. वॉशिंग मशीनों की बिक्री में भी कुछ ऐसा ही ट्रेंड दिखा, पूरी तरह ऑटोमैटिक और फ्रंट-लोडिंग मशीनों की बिक्री 39 फीसद बढ़ी है."
हाल में समाप्त त्योहारी सीजन में प्रीमियम उत्पादों की बिक्री चरम पर रही. पैनासोनिक लाइफ सॉल्यूशंस इंडिया में डायरेक्टर, होम एप्लायंसेज, संदीप सहगल के मुताबिक, पैनासोनिक के रेफ्रिजरेटर ने साइड-बाइ-साइड श्रेणी (550+ लीटर) में 53 फीसद की वृद्धि दिखी है, जबकि कुछ ही समय पहले लॉन्च उसके बॉटम-माउंटेड रेफ्रिजरेटर (357-401 लीटर) के 350+ लीटर सेगमेंट में पिछले त्योहारी सीजन की तुलना में 126 फीसद वृद्धि हुई.
प्रीमियम ग्लास लिड वाली सेमी-ऑटोमैटिक मशीनों में भी पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 45 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है. जैसा कि गोदरेज के नंदी बताते हैं, डिशवॉशर और हाइ-एंड माइक्रोवेव जैसे नए जमाने के सेगमेंट में भी बिक्री काफी बढ़ी है, खासकर उसकी वजह बेस छोटा होना है. युवाओं के रहन-सहन और उनकी पसंद को ध्यान में रखकर ही गोदरेज ने 2019 में 30 लीटर वाला छोटा फ्रिज और क्यूब पर्सनल कूलिंग सॉल्यूशन लॉन्च किया था.
इंटरनेट और स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच भी उपभोक्ताओं को स्मार्ट टेक्नोलॉजी वाले उपकरण खरीदने को लुभा रही है. पैनासोनिक के सहगल बताते हैं कि स्मार्टफोन पर एक ऐप के तौर पर उपलब्ध उनका आइओटी प्लेटफॉर्म मिराई उपभोक्ताओं को अपने एसी, टीवी, वॉशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, होम ऑटोमेशन सिस्टम, पावर प्लग, पंखे और डोरबेल तक कहीं से भी चलाने या बंद करने की सुविधा देता है. 2020 में लॉन्च होने के बाद से अब तक 3,50,000 से अधिक उपभोक्ताओं ने यह ऐप डाउनलोड की है और 72 फीसद इसका इस्तेमाल एसी के तापमान को कम-बेशी करने में करते हैं, जबकि 17 फीसद इसकी मदद से अपनी वॉशिंग मशीन चलाते हैं.
ऑडियो उपकरण निर्माता जेबीएल की रिपोर्ट बताती है कि उसके साउंडबार, पार्टीबॉक्स और स्पीकर जैसे अत्याधुनिक उत्पादों की मांग काफी बढ़ी है, जिनकी मदद से लोग घर पर ही थिएटर जैसा अनुभव चाहते हैं. लाइफस्टाइल, हरमन इंडिया में वाइस प्रेसिडेंट विक्रम खेर कहते हैं, "हरमन के कुल उपभोक्ता ऑडियो पोर्टफोलियो में करीब पांच फीसद हिस्सेदारी लग्जरी ऑडियो बिजनेस की है."
ग्रूमिंग और सेल्फ-केयर एक और ऐसा सेगमेंट है, जिसमें महामारी की वजह से लॉकडाउन के दौरान तेजी आई और उसकी बढ़त बदस्तूर बरकरार है. फिलिप्स इंडियन सबकॉन्टीनेंट में बिजनेस हेड, पर्सनल हेल्थ दीपाली अग्रवाल कहती हैं, "कोविड के दौरान सजने-संवरने और अपनी खूबसूरती निखारने का काम सैलून की जगह घर तक सीमित हो गया. ऐसे में लोगों को इसका एहसास हुआ कि तकनीकी सुलभता के साथ बहुत हद तक ग्रूमिंग और स्टाइलिंग घर पर ही मुमकिन है."
कामकाजी महिलाओं का काफी समय बचाने के उद्देश्य से डिजाइन किए गए उनके हीटेड स्ट्रेटनिंग ब्रश की बिक्री साल दर साल आधार पर 50 फीसद से अधिक बढ़ी है. इसी तरह, पिछले कुछ वर्षों में पुरुषों में ग्रूमिंग का चलन भी बढ़ा है, जिसमें दाढ़ी और त्वचा के साथ पूरे शरीर की देखभाल शामिल है. लड़कों के जल्दी युवा होने का ही नतीजा है कि अब वह 15-16 साल की उम्र में दाढ़ी बनाना शुरू कर रहे हैं. और पहले जहां आम तौर पर ये युवा ग्रूमिंग के लिए 1,000 रु. वाला ट्रिमर इस्तेमाल करते थे वहीं अब चेहरे, सिर और शरीर के अन्य हिस्सों के लिए ऑल-इन-वन ट्रिमर का विकल्प चुनते हैं, जिसकी कीमत लगभग 4,500 रु. है.
टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के सेगमेंट में प्रीमियम उत्पादों के चलन के तेजी से बढ़ने की एक और महत्वपूर्ण वजह यह है कि फिनटेक और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों जैसे बजाज फाइनेंस और कोटक आदि से उन्हें आसानी से फाइनेंस कराना मुमकिन है. कंपनियां इंटरेस्ट-फ्री ईएमआइ स्कीम और क्रेडिट कार्ड ऑफर पेश करती हैं और उपभोक्ता अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और बेहतर क्षमता वाले उत्पाद खरीदने में सक्षम हो पाते हैं. नंदी इसकी पुष्टि करते हैं, "उद्योग स्तर पर बात करें तो एसी, रेफ्रिजरेटर और टॉप-लोड वॉशिंग मशीन जैसे करीब 40 फीसद हाइ-एंड उत्पाद फाइनेंस कराकर ही खरीदे जा रहे हैं."
स्मार्टफोन: प्रचार पर टिका बाजार
कौतूहल मनोवैज्ञानिक फैक्टर है जो किसी भी व्यक्ति में महंगे स्मार्टफोन की चाहत जगाता है और इसलिए इस सेगमेंट में लोगों की व्यक्तिगत जरूरतों पर खास ध्यान दिया जाता है. लोग आसानी से यह तर्क दे सकते हैं कि यह विलासिता नहीं बल्कि जरूरत है. मुंबई की 23 वर्षीया मीरा कामथ के मामले में यह कुछ हद तक ठीक भी है, जो फिल्म निर्देशन में स्नातकोत्तर कर रही हैं और अंतिम वर्ष की छात्रा हैं.
पिछले वर्ष अप्रैल में उन्होंने अपने पिता को शून्य ब्याज पर छह माह की किस्तों के जरिए करीब 80,000 रु. में आइफोन-14 प्लस खरीदने को राजी कर लिया. वे कहती हैं, "फिल्म स्कूल में पढ़ने की वजह से हमें उन प्रोजेक्ट के लिए शूट करने की जरूरत पड़ती है जिनमें वृत्तचित्र और लघु फिल्में शामिल होती हैं. हमारे जैसे छात्रों के लिए फिल्म कैमरा किराए पर लेना महंगा होता है, लेकिन ऐसे अधिकांश प्रोजेक्ट के लिए हाइ-एंड फोन से शूट करना आसान होता है और पिक्चर क्वालिटी भी अच्छी रहती है."
आंकड़े ट्रेंड की गवाही देने के लिए काफी हैं. हालांकि, 2023 (जनवरी-अक्टूबर) में भारतीय स्मार्टफोन बाजार स्थिर रहा लेकिन 4.4 करोड़ के कुल शिपमेंट साइज के साथ प्रीमियम स्मार्टफोन (50,000 रु. से 70,000 रु. कीमत वाले) की बिक्री पिछले वर्ष की तुलना में 52 फीसद बढ़ी है.
आइफोन 13/14, गैलेक्सी एस23/एस23-एफई और मोटो रेजर 40 सबसे ज्यादा खरीदे गए. मिड-प्रीमियम (33,000 रु. से 50,000 रु. कीमत वाले) सेगमेंट में साल-दर-साल आधार पर 37 फीसद की बढ़ोतरी हुई और पूरे स्मार्टफोन बाजार में इसकी हिस्सेदारी पांच फीसद रही. आम बजट सेगमेंट (8,000 से 16,000 रु. तक) में साल-दर-साल आधार पर 14 फीसद की गिरावट दर्ज की गई, जिसकी 44 फीसद हिस्सेदारी है.
प्रीमियम का ट्रेंड बढ़ने के साथ एंड्रॉयड फोन निर्माताओं ने भी रणनीति कुछ बदली है. सैमसंग, श्याओमी और ओप्पो अब दो-वर्जन अपग्रेड करने की मानक व्यवस्था के बजाय चार साल तक एंड्रॉयड अपडेट और एक साल सिक्योरिटी अपडेट की पेशकश कर रहे हैं. वजह यह है कि प्रीमियम स्मार्टफोन यूजर फोन का इस्तेमाल 40-44 महीनों तक करते हैं, जबकि बजट स्मार्टफोन यूजर 36 महीने तक.
रियल एस्टेट: बढ़ती अपेक्षाएं
एक लंबे ठहराव के बाद आखिरकार रियल एस्टेट की किस्मत बदल रही है. कोविड ने बेहतर सुविधाओं की अहमियत को अच्छी तरह समझा दिया है, शायद यही वजह है कि महामारी के बाद इस ब्रैकेट में महत्वपूर्ण उछाल नजर आया. प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म नाइट फ्रैंक की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, आठ प्रमुख संपत्ति बाजारों मुंबई, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, बेंगलूरू, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, कोलकाता और चेन्नै में कैलेंडर वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में घरों की मांग बढ़कर 82,612 इकाई हो गई, जो एक साल पहले इसी अवधि की तुलना में 12 फीसद अधिक है.
हालांकि, अपर सेगमेंट वाले घरों (कीमत 1 करोड़ रु. से ऊपर) की हिस्सेदारी वित्त वर्ष ’22 की तीसरी तिमाही में कुल आवासीय बिक्री में 28 फीसद से बढ़कर वित्त वर्ष ’23 की तीसरी तिमाही में 35 फीसद हो गई. वहीं मिड-लेवल सेगमेंट (कीमत 50 लाख रु. से 1 करोड़ रु.) की हिस्सेदारी 36 फीसद के साथ स्थिर रही. लेकिन 50 लाख रु. से कम कीमत वाले घरों (संपत्ति बाजार का 'लोअर सेगमेंट’) की हिस्सेदारी 36 फीसद से घटकर 29 फीसद हो गई. रिपोर्ट कहती है, "बाजार का पूरा तानाबाना ही काफी बदल गया है. मिडिल और प्रीमियम सेगमेंट की बिक्री बढ़ने से किफायती घरों की मांग में आई कमी की भरपाई हो रही है."
लोकेशन और कनेक्टिविटी उपभोक्ता की पसंद-नापसंद में एक अहम फैक्टर निभाती है, लेकिन नए खरीदार बेहतर सुरक्षा व्यवस्था, पर्यावरण-अनुकूल बिजली उत्पादन, जल संचय और कचरा प्रबंधन प्रणाली, पार्किंग सुविधाओं के अलावा होम ऑटोमेशन सिस्टम और वॉयस-कंट्रोल असिस्टेंट जैसी स्मार्ट होम टेक्नोलॉजी को भी पसंद कर रहे हैं और उसी के मुताबिक घर तलाश कर रहे हैं.
विशेषज्ञ इस उछाल की वजह बेहतर आर्थिक स्थितियों को नहीं, बल्कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में स्टांप शुल्क में कटौती और कोविड के दौरान होम लोन पर ब्याज दरें कम होना मानते हैं. नाइट फ्रैंक के कार्यकारी निदेशक जिया गुलाम कहते हैं, "कोविड के पहले अच्छे आर्थिक हालात के बावजूद घरेलू मांग में गिरावट दिखाई दे रही थी."
लोगों ने अपना पैसा कहीं और लगाना पसंद किया और दफ्तरों की जगह का इस्तेमाल बढ़ने से आर्थिक सुधार साफ नजर आया. गुलाम यह भी कहते हैं, "फिर दो बातें हुईं, कई राज्य सरकारों ने स्टांप शुल्क पर छूट शुरू कर दी. मुंबई में स्टांप शुल्क में 60 फीसद की कटौती देखी गई, जो 5 से घटकर 2 फीसद पर आ गई. इसके अलावा, आरबीआइ के ब्याज दरें घटाने के बाद होम लोन की दरें 6.3 फीसद पर आ गईं. बदलाव 2021 के अंत से शुरू हुआ. तब तक, देश में यह माहौल बन चुका था कि कोविड से अब कोई फर्क नहीं पड़ेगा."
स्टांप शुल्क में राहत की वजह से लग्जरी घर खरीदने में तेजी दिखी. महाराष्ट्र सरकार के स्टांप शुल्क घटाने के एक महीने बाद अक्टूबर 2020 में अभिनेता ह्रितिक रोशन ने मुंबई के जुहू-वर्सोवा लिंक रोड पर 97.5 करोड़ रु. में दो अपार्टमेंट खरीदे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अभिनेता अमिताभ बच्चन ने मई 2021 में अंधेरी में 31 करोड़ रु. में एक डुप्लेक्स अपार्टमेंट खरीदा था. कंसल्टेंसी फर्म एनरॉक रिसर्च के ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि 2023 के पहले नौ महीनों में इन शहरों में बिकी 3,49,000 संपत्तियों में करीब 24 फीसद यानी करीब 84,400 घरों की कीमत 1.5 करोड़ रु. से ज्यादा थी.
हालांकि, एक रियल एस्टेट डेवलपर पूर्वांकरा के ग्रुप सीईओ अभिषेक कपूर का कहना है कि सिर्फ प्रीमियम ही नहीं, सभी श्रेणियों में घरों की बिक्री बढ़ी है. उनके मुताबिक, कई मायनों में लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं. कपूर कहते हैं, "खासकर कोविड के बाद टेक्नोलॉजी, सामुदायिक पसंद और सामान्य सुविधाओं पर काफी जोर दिया जाने लगा है. खरीदार अपने सामुदायिक और रहन-सहन के अनुभव को बेहतर बनाना चाहते हैं." वे कहते हैं कि प्रीमियम सेगमेंट में बड़ा या दूसरा-तीसरा घर खरीदने का चलन है. लेकिन लंबे समय तक यह मांग बरकरार रहे इसके लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत रहे और लोगों की आय में वृद्धि होती रहे.
आरबीआई कोविड के बाद से ब्याज दरों में काफी इजाफा कर चुका है, जो 2020 में 6.25 फीसद की तुलना में बढ़कर 9.25 फीसद हो गई है. महाराष्ट्र ने स्टांप शुल्क में कटौती वापस लेने के साथ इसमें एक फीसद बुनियादी ढांचा उपकर लगा दिया है. गुलाम कहते हैं, "अगले कुछ वर्षों में मध्य से ऊपरी तबके तक दबाव बढ़ेगा और आपको निचले स्तर पर विकास की जरूरत पड़ेगी. यह बढ़ोतरी हमेशा जारी नहीं रहने वाली है."
ट्रैवल: नई जगहों की तलाश
अब छुट्टियों के मायने एकदम बदल गए हैं. लोग घूमने-फिरने के लिए लंबे वीकेंड का इंतजार करते हैं और कभी-कभी तो सप्ताहांत में ही आसपास घूमने निकल जाते हैं. इसने माइक्रो-ट्रिप्स यानी तुरत-फुरत वाली छोटी यात्राओं को बढ़ावा दिया है. दिल्ली स्थित एक कंसल्टेंसी फर्म की सीनियर एडमिन 40 वर्षीया भावना कल्याणी और एक ई-टेलर में जनरल मैनेजर 42 वर्षीय विजय गणेश अपनी आठ साल की बेटी ताशवी के साथ हर साल एक-दो बार लंबी छुट्टियां बिताने के अलावा 8-10 छोटी ट्रिप पर जाते हैं. भावना कहती हैं, "हम साल के शुरू में छुट्टियों की सूची आते ही ट्रिप प्लान कर लेते हैं, जिससे राष्ट्रीय अवकाशों और लंबे सप्ताहांतों का इस्तेमाल करना संभव हो जाता है."
सोशल मीडिया पर अक्सर इस्तेमाल होने वाले शब्द योलो यानी जिंदगी ना मिलेगी दोबारा की तर्ज पर लोग छोटी-छोटी छुट्टियों में ही जिंदगी पूरी तरह जी लेना चाहते हैं. इसलिए नई-नई चीजें तलाशते रहते हैं, और छुट्टियों के दौरान स्थानीय व्यंजन, सामुदायिक रहन-सहन, सांस्कृतिक पहचान आदि सब कुछ जानना-समझना चाहते हैं.
कोविड के दौरान सुरक्षा और स्वच्छता एक प्रमुख चिंता बनकर उभरी थी, जिससे लोगों का रुझान ऐसे प्रीमियम जगहों के प्रति बढ़ा, जहां सुरक्षा प्रोटोकॉल का सही तरह से पालन किया जाता हो. इसीलिए, हेल्थ ऐंड वेलनेस, वन्य जीवन या प्रकृति पर केंद्रित यात्राओं का चलन बढ़ा. एसओटीसी ट्रैवल के प्रेसिडेंट और कंट्री हेड हॉलीडेज डेनियल डि’सूजा कहते हैं, "संपन्न पर्यटक अपने खास रुझान के लिहाज से प्रीमियम भुगतान करने को तैयार हैं, और हम कोविड-पूर्व की तुलना में लग्जरी यात्रा की मांग में 25 फीसद की वृद्धि देख रहे हैं."
मेकमायट्रिप का डेटा दर्शाता है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में हॉलिडे पैकेज के लिए औसत टिकट की कीमत क्रमश: 10-15 फीसद और 20-25 फीसद बढ़ चुकी है. इसके सह-संस्थापक और सीईओ राजेश मागो के मुताबिक, ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग पहले की तुलना में चार-पांच सितारा जगहों का विकल्प ज्यादा अपना रहे हैं. वे कहते हैं, "पहले, करीब 30 फीसद उपभोक्ता तीन-सितारा जगहों का विकल्प चुनते थे. यह आंकड़ा अब बढ़कर 40 फीसद हो गया है. वहीं, चार-पांच सितारा होटलों में कमरे बुक कराने वालों का आंकड़ा 50 फीसद से बढ़कर 60 फीसद हो गया है."
तो, क्या प्रीमियम का यह दौर बरकरार रहेगा? आकांक्षाएं इतनी ही दूर ला सकती हैं लेकिन यह ट्रेंड कायम रहे, इसके लिए एक मजबूत वित्तीय आधार की भी जरूरत होगी. कोविड के दौर के बाद देश की अर्थव्यवस्था अंग्रेजी के 'के’ अक्षर के आकार में बढ़ी है. मतलब यह कि शहरी इलाकों में बहाली तेज हुई है, जबकि ग्रामीण इलाकों में मंदी है, जहां बड़ा बाजार है.
फिच ग्रुप कंपनी इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के डायरेक्टर सुनील कुमार सिन्हा इसकी वजह बताते हैं कि "संगठित क्षेत्र के खिलाड़ियों ने असंगठित क्षेत्र से खाली हुई जगह को हथिया लिया है, जो ईपीएफओ और जीएसटी के बढ़े हुए आंकड़ों से जाहिर होता है." इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के एक विश्लेषण से पता चलता है कि कॉर्पोरेट तनख्वाहों में पिछले दो साल में 10 फीसद का इजाफा हुआ है, जो आय वर्ग में शीर्ष 50 फीसद होता है.
हालांकि, निचले आय वर्ग में आमदनी घटी है या कोई वेतन वृद्धि नहीं हुई, जिसमें ग्रामीण मजदूर या शहरों में अकुशल मजदूर आते हैं. वित्त वर्ष 23 में शहरी इलाकों में न्यूनतम मेहनताना में 0.55 फीसद की गिरावट आई है और कृषि आय बमुश्किल 1 फीसद बढ़ी है. यह देश में खपत के रुझान में भी दिखता है. जैसा कि ऊपर इस रिपोर्ट में दिखा है, प्रीमियर उपभोक्ता सामान की बिक्री में बढ़ोतरी दहाई अंकों में है, जबकि आम सामान की बिक्री मंद है या कोई बढ़ोतरी नहीं है. उत्साह की बात यही है कि टेक्नोलॉजी से हर सेगमेंट के उत्पाद बेहतर हुए हैं. तो, चाहे क्षणभंगुर हो या दीर्घकालिक प्रीमियम दौर का स्वागत करें. योलो!