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मिजोरम : जेडपीएम की एकजुटता और भाजपा को साधना लालदुहोमा के लिए एक बड़ी चुनौती

निजी तौर पर गर्मजोश और सार्वजनिक तौर पर कड़ाई से काम लेने वाले लालदुहोमा को जेडपीएम को एकजुट रखने के साथ केंद्र में भाजपा को खुश रखना होगा.

आवरण कथाः मिजोरम के सीएम
नई भूमिका लालदुहोमा को जेडपीएम की सभी पार्टियों के नेताओं को साथ लेकर चलना होगा
अपडेटेड 27 दिसंबर , 2023

मिजोरम के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद 8 दिसंबर को लालदुहोमा ने पहला काम यह किया कि वे नशा पुनर्वास केंद्र गए. राज्य में नशे की लत पर लगाम कसना छह दलों के उनके गठबंधन जोरम पीपल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के अव्वल चुनावी वादों में से एक था. महज दस लाख से ज्यादा की आबादी वाले मिजोरम में इस साल जनवरी से नवंबर के बीच 68 लोग नशे की लत से मारे गए.

राज्य म्यांमार से नशीले पदार्थों की तस्करी का मुख्य मार्ग है और यहां हर साल नशे से औसतन 40 मौतें होती हैं. वहीं, 1976 बैच के आइपीएस अफसर लालदुहोमा गोवा में ड्रग नेटवर्क का भंडाफोड़ करके ही सबसे पहले चर्चा में आए थे. चार दशक के बाद 74 साल की उम्र में वे मिजोरम के सबसे अधिक उम्र के नवोदित मुख्यमंत्री हैं.

शपथ लेने के फौरन बाद लालदुहोमा ने 12 कार्यक्रमों का ऐलान किया, जिन्हें अगले 100 दिनों में पूरा करने का उनकी सरकार का इरादा है. कई लोग जेडपीएम की जीत का श्रेय जिस एक वादे को देते हैं, उसे पूरा करते हुए उन्होंने अदरक, हल्दी, मिर्ची और झाड़ू-पौधे के किसानों से सीधे खरीदने के लिए 110 करोड़ रुपए अलग रखे. विकास परियोजनाओं पर नजर रखने के लिए उनकी सरकार निगरानी समिति बनाएगी.

उसमें सियासी दलों, एनजीओ, मिजोरम ह्रुऐतुते कमेटी (प्रमुख चर्चों का संघ) और चर्च समर्थित चुनावी वॉचडॉग मिजोरम पीपल्स फोरम (एमपीएफ) के नुमाइंदे होंगे. भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का वादा पूरा करने के लिए लालदुहोमा सरकार राज्य में घूस के मामलों की जांच के लिए सीबीआइ को बुलाएगी और जरूरत पड़ी तो लोकायुक्त को मजबूत करेगी. वीआइपी संस्कृति से भी पिंड छुड़ाया गया है - हवाई अड्डे पर वीआइपी ड्रॉपिंग एनक्लोजर हटा दिए गए और मंत्रियों को बड़े काफिलों में चलने की मंजूरी नहीं है.

मुख्यमंत्री जानते हैं कि उनकी मुख्य चुनौती राज्य के वित्तीय संकट से निबटना है. राज्य का 90 फीसद राजस्व केंद्रीय मदद से आता है और पिछले वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 7 फीसद (बजट अनुमान से दोगुना) था. शायद यही वजह है कि वित्त मंत्रालय को अपने पास रखने वाले लालदुहोमा ने लोगों से पहले बजट में किसी बड़ी परियोजना की उम्मीद न रखने को कहा है. इसके बजाए उन्होंने खर्च घटाने के उपायों का ऐलान किया. इनमें खुद उनके सहित मंत्रियों के स्टाफ में 50 फीसद की कटौती, नई कारें नहीं खरीदना या सरकारी आवासों की साज-सज्जा नहीं करना शामिल है. उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकारी दफ्तरों में बायोमीट्रिक प्रणाली लगाई गई है.

राजस्व बढ़ाने की खातिर संसाधन जुटाने की भी एक समिति होगी. पिछली एमएनएफ सरकार ने शराबबंदी लागू की थी, जिससे आबकारी राजस्व के स्रोत सूख गए. तभी से मिजोरम संकट से गुजर रहा है. लगता नहीं कि लालदुहोमा चर्च-समर्थित उस फैसले को उलटेंगे. ईसाई बहुल मिजोरम में उनका समर्थन सियासी अस्तित्व के लिए बेहद अहम है.

राह नहीं आसान

लालदुहोमा को जेडपीएम की सभी पार्टियों के नेताओं को साथ लेकर चलना होगा, जिनमें कई मुद्दों पर अक्सर मतभेद उभर आते हैं. लालदुहोमा अपनी राह चलने वाले नेता माने जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इसी कारण वे किसी पार्टी में लंबे वक्त नहीं टिके. युवा अफसर के तौर पर वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा दस्ते का हिस्सा थे, जिन्होंने उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया. उन्होंने बागी मिजो नेता और मिजो नेशनल फ्रंट के प्रमुख लालडेंगा के साथ शांति कायम करने और 1986 का मिजो शांति समझौता करवाने में अहम भूमिका अदा की थी.

वे 1984 में निर्वासित लालडेंगा से मिलने लंदन गए और वहां उनका एक संदेश रिकॉर्ड किया जिसमें वे कांग्रेस को वोट देने का आग्रह कर रहे थे. वह संदेश राज्यभर में फैलाया गया और कांग्रेस की भारी जीत हुई. लालदुहोमा 1984 का विधानसभा चुनाव हार गए, पर उसी साल लोकसभा का चुनाव निर्विरोध जीते. पर दो साल बाद वे कांग्रेस से अलग हो गए और मिजोरम कांग्रेस फॉर पीस बनाई.

बाद में इसका नाम बदलकर मिजो नेशनल यूनियन रखा गया. अंतत: पीपल्स कॉन्फ्रेंस में इसका विलय करके डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई गई. थोड़े वक्त वे एमएनएफ में रहे, फिर उससे टूटकर एमएनएफ (नेशनलिस्ट) बनाया. 1997 में इसका नाम बदलकर जोरम नेशनलिस्ट पार्टी रखा गया, और अंतत: 2017 में जेडपीएम में इसका विलय कर दिया गया.

लालदुहोमा को बाहरी चुनौतियों से भी जूझना होगा. इनमें केंद्र की भाजपा भी है, जो राज्य में प्रभाव बढ़ाने की आस लगाए है. उसने अपनी सीटें 2018 में एक से बढ़ाकर इस बार दो कर ली हैं. मिजोरम केंद्रीय मदद पर जितना ज्यादा निर्भर है, उसको देखते हुए लालदुहोमा को भाजपा के साथ महीन रिश्ता कायम करना होगा, जिसके बारे में मिजोरम की बहुसंख्यक ईसाई जनसंख्या का नजरिया बहुत सकारात्मक नहीं है.

ऐसे रिश्ते को संभालने के लिए दक्ष सियासी हुनर की जरूरत होगी. उनके सहयोगियों का कहना है कि लालदुहोमा भले ही सख्त टास्कमास्टर दिखाई देते हों, पर निजी तौर पर वे बेहद गर्मजोश हैं. एक अफसर कहते हैं, ''हमारे विभाग की बैठक में वे पहुंच से बाहर दिखाई दिए. मगर व्हाट्सऐप पर सीधी बातचीत में वे गर्मजोश और हंसमुख थे.’’

उनकी यह गर्मजोशी 12 दिसंबर को भी दिखी जब वे राज्य के पहले मुख्यमंत्री दिवंगत सी. छुंगा की पत्नी से मिलने गए. पांच दशक पहले उन्होंने मुख्यमंत्री के दफ्तर में पहला कदम छुंगा के प्रिंसिपल असिस्टेंट के रूप में रखा था. आज जब वे उस दफ्तर की शीर्ष कुर्सी पर बैठकर सफर शुरू कर रहे हैं, उनकी जिंदगी मानो पूरा एक चक्कर घूम चुकी है.

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