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छत्तीसगढ़ में भाजपा ने ऐसे पलटी हारी हुई चुनावी बाजी

भूपेश बघेल के स्थापित चेहरे के मुकाबले प्रदेश भाजपा में था नेतृत्व का संकट. इसके बावजूद महज चार महीने में छत्तीसगढ़ में भाजपा की हारी हुई बाजी जीतने और कांग्रेस की जीती हुई बाजी हारने की कहानी.

विजेता टीमः केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 3 नवंबर को पंडरिया में छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष अरुण साव के साथ
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 3 नवंबर को पंडरिया में छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष अरुण साव के साथ
अपडेटेड 29 दिसंबर , 2023

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 7 नवंबर को हुआ. इसके ठीक चार महीने पहले यानी 7 जुलाई को केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने इस राज्य के लिए चुनाव प्रभारियों के नियुक्ति की घोषणा की. पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर को चुनाव प्रभारी और केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण एवं रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया को सह चुनाव प्रभारी बनाया गया.

इस घोषणा के अगले ही दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों चुनाव प्रभारियों को अपने साथ लेकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचे और विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश भाजपा के प्रमुख नेताओं के साथ मैराथन बैठक की. वे जब छत्तीसगढ़ पहुंचे तो उनकी सबसे बड़ी चुनौती इस नैरेटिव से मुकाबला करना था कि इस प्रदेश में कांग्रेस की जीत पक्की है.

दरअसल, कांग्रेस के पास भूपेश बघेल के रूप में स्थानीय स्तर पर एक मजबूत चेहरा था, जबकि भाजपा ने किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं घोषित किया था. 2018 में भाजपा को प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 15 सीटें मिली थीं. सरकार बनाने के लिए 46 विधायक चाहिए थे. दिल्ली से जो नेता छत्तीसगढ़ का चुनाव संभालने गए, उन्होंने स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं पर इस चुनौती का स्पष्ट असर देखा.

इन नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में यह यकीन पैदा करें कि भाजपा चुनाव जीत सकती है. इसके लिए प्रदेश की राजधानी के अलावा दूसरे स्थानों पर भी कई बैठकें हुईं. इसी क्रम में कार्यकर्ताओं को 'अउर नहीं सहिबो, बदल के रहिबो' का नारा दिया गया और कहा गया कि इसे जमीनी स्तर पर लोगों के बीच लेकर जाएं. भाजपा ने अपना पूरा चुनाव अभियान इस नारे और 'मोदी की गारंटी' के आसपास गढ़ा.

राष्ट्रीय नेताओं की रणनीतियों से स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास पैदा हुआ. एक बार जब यह स्थिति बन गई तो फिर पार्टी की चुनावी संभावनाओं को मजबूत करने वाली रणनीतियों पर अमल करने की शुरुआत की गई. इस बारे में छत्तीसगढ़ में भाजपा के चुनाव सह प्रभारी मनसुख मांडविया कहते हैं, "जब हम छत्तीसगढ़ में अलग-अलग जगहों पर गए तो हर जगह भ्रष्टाचार का मुद्दा और 'मोदी की गारंटी' में विश्वास एक समान रूप से दिखा.

हमने तय किया कि एक तरफ हमें कांग्रेस की बघेल सरकार का यह असली भ्रष्ट चेहरा जनता के सामने बेनकाब करना है तो दूसरी तरफ भाजपा को जनता के सामने एक सशक्त विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना है. हमने बघेल सरकार के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया. 104 पन्नों की इस चार्ज शीट में बघेल सरकार का पूरा काला चिट्ठा था. इसके आधार पर पार्टी ने गांव से लेकर प्रदेश की राजधानी तक प्रचार अभियान चलाया."

भाजपा के चुनाव प्रभारी ओमप्रकाश माथुर कहते हैं, "हमने पूरे राज्य का दौरा करके यह तय किया कि हमें डिफेंसिव होकर चुनाव नहीं लड़ना है. प्रदेश की टीम और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं ने हमारा पूरा साथ दिया और हर रणनीति को जमीन पर उतारा."

छत्तीसगढ़ चुनाव में भाजपा की जीत के बारे में मांडविया बताते हैं, "अमित शाह ने ही 'मोदी की गारंटी 2023' के नाम से भाजपा का घोषणा पत्र जारी किया. हमने कांग्रेस के मुकाबले वैसी घोषणाएं कीं जिससे जनता को अधिक लाभ हो. हमारे लिए गेमचेंजर रही महतारी वंदन योजना की घोषणा. इसके तहत हर महिला को 1,000 रुपए प्रति महीने देने की घोषणा की गई. 'मोदी की गारंटी' वाली भाजपा की इन घोषणाओं पर लोगों ने इसलिए अधिक भरोसा किया क्योंकि वे देख रहे थे कि केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ उन्हें मिल रहा है."

महतारी वंदन की महत्ता

महतारी वंदन योजना की सिर्फ घोषणा करके भाजपा नहीं रुकी बल्कि इसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक रणनीति बनाई गई. पार्टी को छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में इसी तरह की लाडली बहना योजना की लोकप्रियता का अंदाजा था. पार्टी ने एक पंजीयन फॉर्म तैयार किया. इस फॉर्म में विधानसभा चुनाव का कहीं जिक्र नहीं किया गया.

इसका शीर्षक दिया गया—महतारी वंदन योजना में पंजीयन हेतु फॉर्म. इसके बाद लिखा गया मोदी की गारंटी—हर विवाहित महिला को हर वर्ष मिलेंगे 12,000 रुपए. भले ही भाजपा की सरकार नहीं बनी थी लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर यह कहकर फॉर्म भरवाना शुरू किया कि जैसे ही सरकार बनेगी, इसी फॉर्म के आधार पर उनका रजिस्ट्रेशन हो जाएगा.

मांडविया बताते हैं, "जैसे-जैसे फॉर्म भरने के काम में तेजी आई भूपेश बघेल परेशान होने लगे. उन्होंने प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू किया और उन्हें कहा कि भाजपा जो कर रही है, वह अवैध है. फॉर्म भरवाने में लगे हमारे 22 कार्यकर्ताओं को गिरक्रतार कर लिया गया." जिन पुलिस थानों में इन कार्यकर्ताओं को रखा गया था, वैसे हर थाने का घेराव भाजपा की कम से कम एक हजार महिला कार्यकर्ताओं ने किया और ये नारे लगाए कि भूपेश बघेल महिला विरोधी हैं.

इससे पूरे प्रदेश में भाजपा ने जो नैरेटिव बनाया, उसका फायदा पार्टी को चुनाव में मिला. जब फॉर्म भरवाने के काम में प्रशासन की तरफ से आपत्ति की गई तो भाजपा ने छत्तीसगढ़ के सारे अखबारों के पहले पन्ने पर महतारी वंदन योजना का विज्ञापन छपवाया और इसके साथ ही रजिस्ट्रेशन फॉर्म भी छपवा दिया. इसमें पार्टी ने कहा कि आप अखबार के इस फॉर्म को भरकर, इसकी कतरन काटकर मंडल भाजपा अध्यक्ष को दे दें, सरकार बनते ही आपको इस योजना का लाभ मिलने लगेगा.

भाजपा ने महतारी वंदन योजना के तहत कुल 53 लाख रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरवाए. चुनाव आयोग के मुताबिक, प्रदेश में मतदाताओं की संख्या 2.03 करोड़ है. इनमें से अगर महिलाओं की संख्या एक करोड़ के आसपास होगी तो इनमें से आधी से अधिक महिलाओं ने भाजपा का यह फॉर्म भरा. प्रदेश की 90 में से 51 सीटों पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का मत प्रतिशत अधिक रहा. भाजपा के चुनावी रणनीतिकार इसी आधार पर दावा कर रहे हैं कि चुनाव में छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने उनके पक्ष में बढ़-चढ़कर मतदान किया.

शह-मात का खेल

चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भूपेश बघेल सरकार पर भाजपा ने यह आरोप लगाया कि वह प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर रही है. पार्टी ने चुनाव आयोग से शिकायत की और आयोग ने प्रदेश के आठ वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला कर दिया. भाजपा की एक और शिकायत पर चुनाव आयोग ने 11 जिलाधिकारियों को नोटिस दिया.

अब शिकायत करने की बारी कांग्रेस की थी. कांग्रेस ने यह शिकायत की कि अमित शाह और मनसुख मांडविया जैसे केंद्रीय मंत्री चुनाव में केंद्र सरकार की मशीनरी का इस्तेमाल करके चुनावों को प्रभावित कर रहे हैं. कांग्रेस ने मतदान के दिन छत्तीसगढ़ में मांडविया की मौजूदगी पर भी सवाल उठाए. इस बारे में मांडविया कहते हैं, "मैं आयोग के पास गया और मैंने उन्हें प्रमाण के साथ यह बताया कि मुझे राष्ट्रीय पार्टी ने चुनाव सह-प्रभारी बनाया है, इसलिए मैं यहां रहने के लिए अधिकृत हूं और इससे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होता."

चुनावों के माइक्रो मैनेजमेंट के लिए भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों ने और भी कई रणनीतियां बनाईं. माथुर और मांडविया ने कहीं साथ में तो कहीं अलग-अलग जाकर लगातार बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं की बैठकें ली. मांडविया 50 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचे. केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद मांडविया 1 नवंबर से लेकर दूसरे चरण का मतदान होने के दिन 17 नवंबर तक लगातार छत्तीसगढ़ में रहे.

चुनावों का माइक्रो मैनेजमेंट करने के लिए राज्यव्यापी रणनीति के साथ-साथ हर विधानसभा क्षेत्र के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई गई. भाजपा ने बघेल के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर हुए भ्रष्टाचार के मामलों को भी उठाया. प्रदेश भाजपा के महासचिव और पूर्व आइएएस अधिकारी ओ.पी. चौधरी ने इन रणनीतियों को तैयार करने और इनके क्रियान्वयन में प्रमुख भूमिका निभाई.

हर विधानसभा क्षेत्र की रोज रिपोर्ट तैयार की गई और इसे पार्टी के केंद्रीय नेताओं तक रोज पहुंचाया गया. इस रिपोर्ट में बताया जाता था कि भाजपा ने आज क्या किया, कांग्रेस ने क्या किया और वहां आज के मुद्दे क्या रहे. इस आधार पर हर सीट पर पार्टी ने जरूरत के हिसाब से तुरंत अपनी रणनीतियों में बदलाव किया और हर सीट की चुनावी जरूरतों के हिसाब से वहां मुद्दे उठाए.

छत्तीसगढ़ में 54 सीटें जीतकर भाजपा ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन की एक वजह उम्मीदवारों के चयन को भी बताया जा रहा है. एक तरफ जहां पार्टी ने कुछ केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव में उतारा तो दूसरी तरफ 47 नए चेहरों को अपना उम्मीदवार बनाया. इसमें पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग का खास ध्यान रखा. प्रदेश में साहू समाज की संख्या सबसे अधिक है, जिसके 11 उम्मीदवार उतारे गए. इससे 2018 में भाजपा से छिटके साहू समाज के मतदाता भाजपा के साथ जुड़े और पार्टी के मत प्रतिशत को तकरीबन 13 फीसद बढ़ाकर 46.27 पर ले जाने में प्रमुख भूमिका निभाई.

ढहा कांग्रेस का किला

वहीं, कांग्रेस को 2018 की 68 सीटों की तुलना में महज 35 पर संतोष करना पड़ा. हालांकि वोट शेयर में सिर्फ 0.7 फीसद की ही कमी आई. बघेल मंत्रिमंडल के 12 मंत्रियों में से केवल तीन (एक चौथाई) ही जीते. आखिर कांग्रेस का किला किन कारणों से ढहा? सीधी-सी बात है कि वह न तो सियासी हवा का रुख भांप पाई और और न ही उसने समय रहते खुद को भाजपा की आक्रामकता से बचाने के पुख्ता उपाय ही किए. वैसे तो, छत्तीसगढ़ का चुनावी एजेंडा सबसे पहले कांग्रेस ने ही तय किया था.

बघेल ने अपनी चुनावी रणनीति में मुख्यत: ओबीसी और ग्रामीण छत्तीसगढ़ पर फोकस किया. उनके दिमाग में यही था कि कांटे की टक्कर ओबीसी बहुल मध्य क्षेत्र अथवा मैदानी इलाकों में होने वाली है, जहां कृषि ही आर्थिक गतिविधियों का प्रमुख साधन है और सबसे अधिक 64 सीटें भी इसी क्षेत्र से आती हैं. भाजपा के हिंदुत्व मुद्दे को ध्यान में रखते हुए बघेल ने "नरम हिंदुत्व' और छत्तीसगढ़ियत' पर भी दांव लगाया. हालांकि, यह भाजपा से मुकाबले के लिए पर्याप्त नहीं था, क्योंकि उसके तरकश में तो और भी कई तीर बाकी थे.

सॉफ्ट हिंदुत्व बेअसर

कांग्रेस भाजपा पर बढ़त हासिल कर सकती थी,  लेकिन वह अपने 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की धुन में बेखबर थी. अपने राम वन गमन पथ और छत्तीसगढ़ियत के आह्वान के साथ, बघेल ने शुरू में भाजपा के हिंदुत्व कार्ड को बेअसर कर दिया था, लेकिन कांग्रेस उस दांव का फायदा उठाने में विफल रही और भाजपा अन्य तरकीबों के साथ वापस आ आई.

भाजपा ने राज्य में दो हिंदू-मुस्लिम दंगों को भुनाया, एक अक्तूबर 2021 में कवर्धा में और दूसरा इसी साल अप्रैल में  बेमेतरा में. कवर्धा में पार्टी ने घटना के आरोपी विजय शर्मा को राज्य के वन मंत्री और निवर्तमान विधानसभा के एकमात्र मुस्लिम विधायक मोहम्मद अकबर के खिलाफ मैदान में उतारा, जिन्होंने 2018 का चुनाव लगभग 60,000 मतों से जीता था.

इस बार सांप्रदायिक भावनाओं का ऐसा खिंचाव था कि शर्मा ने न केवल अकबर को हराया, बल्कि उन्होंने 40,000 वोटों के अंतर से ऐसा किया. इसी तरह साजा में भाजपा ने अप्रैल के दंगों में मारे गए भुनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को मैदान में उतारा. ईश्वर का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं है, फिर भी उन्होंने सात बार के विधायक और कांग्रेस के दिग्गज नेता रवींद्र चौबे को हराया. राजनैतिक विश्लेषक सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "हिंदुत्व का मुद्दा एक अंतर्धारा के रूप में चल रहा था, जिसे कांग्रेस पहचानने में विफल रही."

कांग्रेस ने अपनी ओर से जहां अतिरिक्त रियायतों की भी घोषणा की, वहीं दूसरी ओर कृषि ऋण माफी, भाजपा की महतारी योजना का मुकाबला करने के लिए महिलाओं को सालाना 15,000 रुपए और 3,200 रुपए प्रति क्विंटल की संशोधित धान खरीद दर का वादा किया गया, लेकिन उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा.

दरअसल, यह चुनाव कांग्रेस की राजनैतिक अदूरदर्शिता के खिलाफ एक सबक था. आदिवासियों, कृषि मुद्दों और पार्टी के भीतर आंतरिक टकराव को नजरअंदाज करना और अपनी सारी ऊर्जा को ओबीसी वोट पर केंद्रित करना जैसी गलतियां राज्य में अग्रणी स्थिति में होने के बावजूद देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को महंगी पड़ीं.

चुनावों के माइक्रो मैनेजमेंट से छत्तीसगढ़ में अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल करने वाली भाजपा के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपने घोषणापत्र के जरिए दी गई 'मोदी की गारंटी' को पूरा करना है.

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