मिजोरम में 4 दिसंबर को घोषित विधानसभा चुनाव के नतीजों को इस पूर्वोत्तर राज्य में सत्ता की राजनीति के एक नए युग की शुरुआत कहा जा सकता है. जोरम पीपल्स मूवमेंट (जेडपीएम) पार्टी 40 सदस्यीय विधानसभा में 27 सीटें जीतकर सत्ता में आ गई. यह पहला मौका है जब न तो मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) की सरकार बनेगी और न ही कांग्रेस की. 1987 में मिजोरम को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से सत्ता इन दोनों राजनैतिक दलों के हाथ में आती-जाती रही है.
जेडपीएम की जीत दर्शाती है कि मिजोरम के मतदाता, खासकर युवा, मौजूदा राजनैतिक ताकतों के बीच इसे विश्वसनीय विकल्प के तौर पर देखते हैं. 2017 में छह छोटे क्षेत्रीय दलों मिजोरम पीपल्स कॉन्फ्रेंस, जोरम नेशनलिस्ट पार्टी, जोरम एक्सोडस मूवमेंट, जोरम डिसेंट्रलाइजेशन फ्रंट, जोरम रिफॉर्मेशन फ्रंट और मिजोरम पीपल्स पार्टी को मिलाकर बनी जेडपीएम को 2019 में चुनाव आयोग से मान्यता मिली. पिछले विधानसभा चुनाव में जेडपीएम नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवारों के तौर पर आठ सीटें जीती थीं.
जेडपीएम के एक मजबूत राजनैतिक ताकत के तौर पर उभरने के संकेत इस अप्रैल में तभी मिल गए थे जब उसने मिजोरम के दूसरे सबसे बड़े शहर लुंगलेई में नगरपालिका परिषद की सभी 11 सीटें कब्जा ली थीं. फिर, उसी महीने उसने निवर्तमान मुख्यमंत्री जोरमथांगा के निर्वाचन क्षेत्र आईजोल ईस्ट-1 के तहत आने वाले जेमाबॉक के स्थानीय निकाय उपचुनावों में सभी सात सीटें जीत लीं.
इसके बाद भी जेडपीएम को एक ऐसी पार्टी के तौर पर देखे जाने की चुनौती से उबरना था जो केवल शहरी आबादी को लुभाती करती है. ग्रामीण मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए उसने एमएनएफ की नई आर्थिक विकास नीति (एनईडीपी) में कथित भ्रष्टाचार से निबटने के लिए प्रशासनिक सुधारों का वादा किया.
चार स्थानीय फसलों—अदरक, हल्दी, मिर्च और झाड़ू घास—के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के जेडपीएम के वादे ने भी लोगों को खूब लुभाया. हालांकि, आर्थिक प्रगति और समाज को मादक पदार्थों से मुक्त करने के उद्देश्य से काम करने वाली साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त एक 'नई प्रणाली' के वादे ने संभवत: लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया. तकरीबन 75 फीसद आबादी के पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध होने का नतीजा यह रहा कि जेडपीएम की बात दूरदराज के गांवों तक आसानी से पहुंच पाई.
भाई-भतीजावाद की राजनीति से दूरी बनाकर उसने नए चेहरों को मैदान में उतारा, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के सदस्य रह चुके जेजे लालपेखलुआ, अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के कार्यकारी सदस्य टेटिया ह्मार और रेडियो जॉकी वन्नेईसांगी जैसी स्थानीय हस्तियां शामिल थीं. असल में, जेडपीएम की तरफ से मैदान में उतारे गए 40 उम्मीदवारों में से 33 ऐसे हैं जिन्होंने राजनीति में अभी कदम ही रखा है.
पार्टी इसे लेकर भी खासी सतर्क रही कि एमएनएफ मिजो राष्ट्रवाद के मुद्दे को हाइजैक न कर पाए. एमएनएफ ने म्यांमार में सैन्य सरकार के सताए चिन शरणार्थियों, और जातीय संघर्ष के कारण मणिपुर से भागने को विवश कुकी समुदायों का मुद्दा उछालकर चुनावी लाभ उठाने की कोशिश की. इन दोनों ही समुदायों की जड़ें जातीय तौर पर मिजो से जुड़ी हैं.
जेडपीएम ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि शरणार्थी संकट सुलझाने के मामले में उसकी नीति एमएनएफ की जैसी है. हालांकि, असम के साथ सीमा विवाद, समान नागरिक संहिता और नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 का विरोध जैसे अन्य मुद्दों पर इन पार्टियों का रुख समान नहीं है. चुनाव में एमएनएफ का सूपड़ा साफ होना इस बात का संकेत है कि लोगों ने बदलाव के नाम पर वोट दिया है.
चुनावी नतीजा एक तरह से मुख्यमंत्री कार्यालय में जेडपीएम नेता लालदुहोमा की वापसी का प्रतीक भी है. 1972 से 1977 के बीच वे तत्कालीन मुख्यमंत्री सी. चुंगा के प्रधान सहायक के तौर पर कार्यरत रहे थे. बाद में आइपीएस अधिकारी बने और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा बेड़े का हिस्सा रहे.
राजनीति में आने की प्रेरणा उन्हें इंदिरा गांधी से ही मिली थी. उन्होंने 1984 में अपना पहला चुनाव जीता और कांग्रेस सदस्य के तौर पर लोकसभा पहुंचे. लेकिन 1986 में उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया, जिसे 1985 के दल-बदल विरोधी कानून के उल्लंघन के तौर पर देखा गया. दो साल बाद उन्हें इस कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया
1997 में जोरम नेशनलिस्ट पार्टी गठित की और 2003 में राज्य विधानसभा के लिए चुने गए. 2018 में उन्होंने सेरचिप निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री ललथनहवला को हराया. 2020 में एक बार फिर इतिहास दोहराया गया और वे दलबदल कानून के तहत विधायक पद के अयोग्य घोषित कर दिए गए.
बतौर मुख्यमंत्री 74 वर्षीय लालदुहोमा की पहली प्राथमिकता मिजोरम में आर्थिक सुधार की शुरुआत करना है, जो गंभीर वित्तीय दबाव की स्थिति से जूझ रहा है. उन्हें अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए कृषि से इतर पर्यटन जैसे क्षेत्रों का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, "कौशल विकास और उद्यमशीलता बढ़ाना हमारी सरकार की प्राथमिकताओं में शुमार होगा. हम एक हैंड-होल्डिंग नीति बनाएंगे जिसके माध्यम से युवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी. हम केंद्र की योजनाओं का लाभ उठाने में उनकी मदद करेंगे."
लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती सियासी स्तर पर होगी. भाजपा मिजोरम की अगली सरकार का हिस्सा बनने का इरादा जता चुकी है. लालदुहोमा को केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ किसी भी तरह के टकराव से बचना होगा. क्योंकि अधिकांश मिजोरम के पास संसाधन जुटाने के साधन सीमित हैं; इसका लगभग 85 फीसद राजस्व केंद्र की तरफ से आता है. राज्य की सूरत बदलने के अपने वादे को पूरा करने के लिए लालदुहोमा को अपने खजाने पर ध्यान देना होगा.