
गाजियाबाद की आन्या 13 साल की हैं. अपनी छह अन्य सहेलियों के साथ उन्होंने अपनी बीटीएस आर्मी बनाई है. बीटीएस अपने फैन्स को 'आर्मी' नाम देता है जिसका फुल फॉर्म 'अडॉरेबल रिप्रेजेंटेटिव एमसी फॉर यूथ' है. सात सदस्यों वाले कोरियन बॉय बैंड बीटीएस (बांगतान सोन्योन्दान या बैंगटैन बॉयज) में तीन रैपर—आरएम, शुगा, जे-होप और चार वोकलिस्ट-जिन, जिमिन, वी और जंगकुक हैं.
आन्या अपनी बीटीएस स्क्रैपबुक दिखाते हुए बताती हैं, "उन्होंने हमें संदेश दिया है कि हम फैन्स को एकजुट होकर रहना है." 12-13 साल की ये लड़कियां करोड़ों अन्य टीनेजर्स की तरह ऐसी संवेदनशील उम्र में हैं जब दुनिया सबसे खूबसूरत के साथ-साथ सबसे अंधकारमय भी हो सकती है. आन्या की सहेली, 13 साल की देवांशी बताती हैं, "जब मैंने उन्हें पहली बार सुना, मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं कर रही थी. उन्हें सुनने के बाद मुझे यकीन हुआ कि मैं भी अच्छा कर सकती हूं."
देवांशी की छोटी बहन देवांगी बातचीत में जोड़ती हैं, "उन्होंने बहुत संघर्ष के बाद यह मुकाम हासिल किया है. उन्हें बहुत नफरत का सामना भी करना पड़ता है. मगर वे रुकते नहीं. हमें उनसे ताकत मिलती है." आन्या और उनकी सहेलियों की डायरियां, उनके पास मौजूद बीटीएस के मग, स्टेशनरी, टी-शर्ट और अन्य चीजें देखकर यकीन नहीं होता कि इन किशोरियों के लिए भाषा और भूगोल की दूरियां कोई बड़ा मसला हैं.
आन्या और उनकी सहेलियों जैसे भारत में बीटीएस 'आर्मी' के कुल कितने सदस्य हैं, इस बारे में तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता. लेकिन भारत में इस बैंड की दीवानगी की तस्दीक अगस्त 2022 में हुआ एक वाकया करता है. एडटेक कंपनी फिजिक्सवाला के टीचर सिद्धार्थ मिश्र ने उस रोज एक ऑनलाइन क्लास के दौरान अपना आपा खो दिया: "ऐ बीटीएस फैन, तुम्हारे घर में खाना नहीं होगा तो बीटीएस खाना बनाने नहीं आएगा. लिपस्टिक लगाके नाचने आ गए लड़के, गाना गा दिए, उसी में तुम लोग खुश हो गए... तुम कन्या नहीं होती तो कॉलर पकड़के थप्पड़ लगाते..."
गुस्से की वजह: एक स्टूडेंट कमेंट बॉक्स में लगातार 'बीटीएस आर्मी' लिख रही थी. इस क्लास के एक हफ्ते के भीतर ही ये टीचर एक अन्य वीडियो में माफी मांगते दिख रहे थे. पढ़ाई में मन न लगने पर मास्टरजी के हाथों कुटाई हो जाना पिछली पीढ़ियों को जितना भी नॉस्टैलजिक लगे, कानूनन यह अपराध है. इस वीडियो का क्लिप वायरल होते ही ट्विटर पर युवा, खासकर बीटीएस फैन पिल पड़े. क्या लिपस्टिक लगाना हास्यास्पद है?
क्या पुरुष के लिए पौरुष की चादर ओढ़े रहना जरूरी है? क्या नाचने वाले पुरुषों पर हंसना चाहिए? क्या एक टीचर, जिसे स्टूडेंट अपना आदर्श मानते हैं, इस तरह की पिछड़ी और सेक्सिस्ट बातें बोलकर यूं ही निकल जाएगा? नहीं. उसे माफी मांगनी होगी. लाइव वीडियो में आकर टीचर ने माना कि वे गुस्से में बहक गए थे. और आगे से ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करेंगे. यह वाकया इस बात का प्रमाण है कि आज ’70, ’80 या ’90 का दशक नहीं है और इस बात का भी कि भारतीय अब के-कल्चर काल में प्रवेश कर चुके हैं.
के-कल्चर की आमद
बीटीएस की प्रसिद्धि अप्रासंगिक नहीं. बल्कि एक बड़ी लहर, जिसे एक्सपर्ट 'हाल्यू' (कोरियन संस्कृति का बहाव) कहते हैं, का हिस्सा है. इसमें कोरियन सिनेमा, टीवी शो, ओटीटी कॉन्टेंट, खाना, ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ-साथ अन्य सांस्कृतिक निर्यात शामिल हैं, जिनका लेखा-जोखा रुपयों में नहीं किया जा सकता.
इस निर्यात की शुरुआत भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में ’90 के दशक के अंत तक हो चुकी थी. इसकी मुख्य वजह थी 1998 में पूर्वोत्तर में आरीरांग ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन का चालू होना. उन दिनों म्यांमार चीन से कोरियन कॉन्टेंट निर्यात कर रहा था. यही कॉन्टेंट गैर-कानूनी तरीके से इंडिया में नॉर्थ-ईस्ट की सीमा से अपनी जगह बना रहा था.
उस वक्त पूर्वोत्तर में भारत और हिंदी विरोधी भावनाएं पूरे जोर पर थीं. सितंबर 2000 में मणिपुर में रेवोल्यूशनरी पीपल्स फ्रंट ने मणिपुर को भारत से अलग करने के अपने मोर्चे के तहत एक नोटिस इशू किया. इससे मणिपुर में हिंदी के इस्तेमाल, खासकर बॉलीवुड फिल्मों और हिंदी टीवी शोज के प्रसारण पर संपूर्ण रोक लगा दी गई.

लोगों में मनोरंजन की जरूरत की इस खाई को कोरियन चैनल आरीरांग ने भरा और घर-घर का हिस्सा बन गया. हालांकि दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों ने कोरियन शोज को क्षेत्रों के हिसाब से हिंदी और तमिल में डब कर दिखाना शुरू कर दिया था. लेकिन नॉर्थ-ईस्ट के लोगों ने इसे आरीरांग चैनल, लोकल केबल वालों और पाइरेटेड सीडी-डीवीडी के जरिए अपनाया.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में कोरियन भाषा पढ़ाने वाले सत्यांशु श्रीवास्तव बताते हैं, "नॉर्थ-ईस्ट, जो 220 से भी अधिक जातीय समूहों का घर है, खुद को मुख्यधारा की भारतीय संस्कृति से अधिक कोरियन संस्कृति के करीब पाता है. यह कहना न होगा कि नॉर्थ-ईस्ट के भारतीयों के तिब्बती-मोंगोलॉइड फीचर, खान-पान और पारंपरिक मान्यताओं में समानताएं इसमें अहम भूमिका निभाती हैं."
इस बात से नगालैंड की निकिता एंघीपी भी इत्तेफाक रखती हैं. निकिता 'नमस्ते हाल्यू' नाम की वेबसाइट की संस्थापक हैं. 50 लाख यूजर वाली यह वेबसाइट केवल कोरियन कल्चर और के-पॉप से जुड़ी खबरें करती है. साथ ही वे पिंकबॉक्स एंटरटेनमेंट नाम की इवेंट कंपनी भी चलाती हैं जो इंडिया में के-पॉप कॉन्सर्ट करवाती है. निकिता कहती हैं, "इस बात को कहने का कोई और तरीका नहीं है कि बॉलीवुड भी हमारे लिए उतना ही फॉरेन रहा जितना कोरियन सिनेमा और ड्रामा. कम से कम कोरियन सिनेमा में दिखने वाले लोगों से हमारे फीचर्स मिलते हैं."
2006 में दूरदर्शन ने दो कोरियन ड्रामा 'एम्परर ऑफ द सी' (समुद्र का बादशाह) और 'लैंप ऑफ द हाउस' (घर का चिराग) आधे-आधे घंटे के एपिसोड्स के तौर पर प्रसारित करने शुरू किए. अगले 10 साल भारत में हिंदी, ओड़िया और तमिल डबिंग मिलाकर 20 से ज्यादा कोरियन ड्रामा प्रसारित किए गए. मगर ये तमाम कोरियन ड्रामा भारत में कोरियन लहर को लाने के लिए कुछ खास नहीं कर पाए.
जबकि इस दौरान अन्य एशियाई देश जैसे चीन, जापान, म्यांमार, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया वगैरह के-पॉप और के-ड्रामा की गिरफ्त में आ चुके थे. यह कहा जा सकता था कि भारत में बॉलीवुड, रीजनल सिनेमा और टीवी शोज के बीच कोरियन कॉन्टेंट देखने-दिखाने की जगह थी ही नहीं. इस बीच 2012 में आया 'साय' का गीत 'गंगनम स्टाइल', हनी सिंह के 'ब्राउन रंग' के बाद साल का दूसरा सबसे देखा जाना वाला वीडियो बना. इस गीत के वायरल होने के बाद इंडिया में के-पॉप और के-ड्रामा का नाम पहली बार सुना गया.
कोरोना की आपदा, कोरिया का अवसर
दिल्ली में रहने वाली रिया ठक्कर बताती हैं, "जब मैंने के-ड्रामा देखने शुरू किए, मुझे इस बात ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया कि कोरिया और इंडिया का कल्चर कितना एक जैसा है. वहां भी लोग बड़ी उम्र तक अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, दुनिया-समाज की फिक्र करते हैं और (जैसा कि अमेरिकी शोज में दिखाया जाता है) कम से कम वीकेंड पर अपने स्कूल में पार्टी करते नहीं दिखते, देर रात तक शराब पीकर नहीं पड़े रहते. कोरियन परिवार बिल्कुल हमारे परिवारों जैसे हैं."
रिया सिर्फ के-ड्रामा फैन ही नहीं, दिल्ली के लाजपत नगर में मौजूद कोरियन एम्बेसी के कोरियन कल्चर सेंटर इंडिया की पीआर और स्ट्रेटेजी ऑफिसर भी हैं. कल्चर सेंटर का टूर कराते हुए वे कहती हैं, "मैं जिस नौकरी में हूं, असल में मुझे के-ड्रामा देखने की वजह से ही मिली है. के-ड्रामा की वजह से कोरियन भाषा में मेरी रुचि हुई. मैंने इसे सीखना शुरू किया. फिर पता चला कि कोरियन कल्चर सेंटर में वेकेंसी है तो झट से अप्लाई कर दिया."

रिया जैसे हजारों लोग संजय रामजी के के-वेव फैन ग्रुप का हिस्सा हैं. इस ग्रुप को अब कोरियन सरकार से मान्यता और समर्थन मिला हुआ है. संजय इस बढ़ती दीवानगी के बारे में कहते हैं, "कोविड के दौरान लोगों ने नए कॉन्टेंट की ओर रुख किया. इसी दौरान कोरियन इंडस्ट्री ने भी क्रैश लैंडिंग ऑन यू जैसे हाई क्वालिटी ड्रामा प्रोड्यूस किए. 2000 के शुरुआती दशक में टीवी पर आने वाले कोरियन ड्रामा की डबिंग अझेल और हास्यास्पद होती थी. लेकिन नेटफ्लिक्स की अच्छी इंग्लिश डबिंग की वजह से इंडिया ने इसे खूब देखा. कुल मिलाकर इंडिया में टाइमिंग सही बैठ गई और कोरियन लहर, जो इतने दिनों से रुकी हुई थी, अंतत: आ ही गई."
लंबे समय तक भारतीयों ने कोरियन फिल्मों से प्रेरित कई बॉलीवुड फिल्में देखीं जो आधिकारिक रीमेक नहीं थीं. रॉक ऑन (2008, कोरियन: द हैपी लाइफ), मर्डर-2 (2011, कोरियन: द चेजर), एक विलेन (2014, कोरियन: आई सॉ द डेविल) और प्रेम रतन धन पायो (2015, कोरियन: मास्करेड) जैसी फिल्में भी इस छोटी लेकिन अहम फेहरिस्त में शामिल रहीं.
भारत में कोरियन सिनेमा को बिना क्रेडिट के कॉपी कर रहे बाजार को देखते हुए इसमें कोरियन कंपनी क्रॉस पिक्चर्स ने एंट्री ली. क्रॉस पिक्चर्स के सीईओ ह्युन्वू थॉमस बताते हैं, "इंडिया में कई 'अनऑफिशियल’ रीमेक्स बने लेकिन उन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता. ये फिल्में बिना कॉन्टेक्स्ट और समझ के बनाई जा रही थीं. हमने 2015 में भारतीय मार्केट में कदम रखा क्योंकि हम इसे ऑफिशियल करना चाहते थे."
क्रॉस पिक्चर्स ने तीन (2016), ओह! बेबी (2019), नेत्रिकन (2021), साकिनी डाकिनी (2022) जैसी फिल्में भारत में बनाईं और आगे भी आधिकारिक रीमेक्स बनाने को लेकर आश्वस्त है. फिलहाल वे इंडिया में 15 रीमेक्स पर काम कर रहे हैं, जिनमें सबसे पहले कोरियन शो बिजनेस प्रपोजल का रीमेक देखा जा सकेगा.
भारत में कोरियन कॉन्टेंट के प्रति बढ़ती दीवानगी के बारे में किम कहते हैं, "जब मैं यहां पहली बार आया तो देखा कि दोनों देश एक से ही हैं—परिवार-प्रधान, बड़ों की इज्जत करने वाले और समाज में महिलाओं और पुरुषों की भूमिकाएं तय मानने वाले. यह संयोग नहीं है कि भारतीय लोग कोरियन सिनेमा और ओटीटी पसंद करते हैं."
बात ओटीटी की करें तो साल 2021 में कोरियन शो स्क्विड गेम 28 हफ्तों तक नेटफ्लिक्स पर भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शोज की लिस्ट में शीर्ष पर बना रहा. भारत में इस सीरीज की सफलता एक ऐसे साल में आई जिसमें सभी प्लेटफॉर्म्स मिलाकर 400 ओरिजिनल शोज रिलीज हुए. इनमें कोटा फैक्ट्री, द फैमिली मैन सीजन-2, हॉस्टल डेज, गुल्लक सीजन-2 और बिग बॉस ओटीटी शामिल थे.
2021 ही वह साल था जब नेटफ्लिक्स ने अपने यूजर इंटरफेस में 'टॉप 10' की सूची जोड़ी. यह बताती है कि किसी भी देश में किस वक्त सबसे ज्यादा किस शो को देखा जा रहा है. जुलाई 2021 से लेकर आज तक 36 कोरियन टाइटल इस पंक्ति में फीचर कर चुके हैं जिसमें स्क्विड गेम, ऑल ऑफ अस आर डेड, बिजनेस प्रपोजल और ट्रू ब्यूटी जैसे सुपरहिट कोरियन टाइटल्स शामिल हैं.

वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो नेटफ्लिक्स ने 2016 में कुछ अलग करने की चाह के साथ कोरियन ड्रामा में निवेश करना शुरू किया था. इसके बाद से यह ओटीटी प्लेटफॉर्म खुद 130 ओरिजिनल कोरियन टाइटल निकाल चुका है. स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म से जुड़े सूत्रों की मानें तो इस कंपनी ने साल 2021 में कोरियन कॉन्टेंट में 50 करोड़ डॉलर (41,618 करोड़ रुपए) निवेश किए हैं. साथ ही अंग्रेजी के अलावा कोरियन कॉन्टेंट को 36 अन्य भाषाओं में डब किया है, जिनमें जर्मन, फ्रेंच, स्वीडिश, हिंदी और पुर्तगाली शामिल हैं.
हालांकि भारत में के-ड्रामा की बढ़ती मांग में एक पैटर्न देखा गया है और के-पॉप फैन ग्रुप्स चलाने वाले इससे सहमति भी जताते हैं. के-पॉप और के-ड्रामा के फैन्स में एक भारी जेंडर गैप दिखाई देता है, जिसमें पुरुषों की संख्या नगण्य है. सत्यांशु श्रीवास्तव कहते हैं, "के-पॉप और के-ड्रामा आज भी पुरुषों में पॉपुलर नहीं है लेकिन महिलाओं ने इसे हाथों-हाथ लिया है. इसकी मुख्य वजह यही है कि भारतीय पुरुष को आज भी भारी-भरकम, माचो दिखने वाले पुरुष पसंद हैं, जबकि महिलाओं को सेंसिटिव और रोमैंटिक कॉन्टेंट पसंद आता है. के-पॉप महिलाओं के लिए एंटरटेनमेंट में वह गैप भरता है जो भारतीय मेनस्ट्रीम सिनेमा नहीं कर पा रहा है." के-ड्रामा के केंद्र में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं की मौजूदगी ने भारत की महिला फैन्स के बीच मानो उम्र का भेद मिटा दिया है. बीटीएस भी ऐसा ही कुछ असर डालता दिखता है.
'हमने बीटीएस को समझा और बीटीएस ने हमें'
वह 12 जून की रात थी. 24 साल का एक बेचैन लड़का सो नहीं पा रहा था. कुछ समझ न आने की सूरत में उसने सोशल मीडिया का रुख किया और सुबह 7 बजे लाइव वीडियो स्ट्रीम करना शुरू कर दिया. उसे लाइव के बीच कुछ ही मिनटों में नींद आ गई. 21 मिनट तक उस लड़के को 60 लाख लोग सोते हुए देखते रहे. अगले कुछ ही घंटों में उसके नाम से ट्विटर (अब एक्स) पर 9 लाख ट्वीट किए जा चुके थे और वह लड़का दुनियाभर में ट्रेंड कर रहा था.
लाइव वीडियो के बीच सो जाने वाले जेयांग जंगकुक बीटीएस के सदस्य हैं. उनको लाइव सोते हुए देखने वाले एक फैन ने लिखा, "यह आदमी अपने लाखों फैन्स के साथ अपने बिस्तर पर है. यह हमारे बीच कैसा रिश्ता है! कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा!" ऐसी ही दो किशोर बीटीएस फैन बेटियों की मां हैं 45 साल की तमन्ना. वे दिल्ली में रहती हैं. उनके शरीर पर एकाधिक टैटू और रंगे हुए बाल उन्हें अपनी उम्र की अधिकतर महिलाओं से अलग बनाते और दिखाते हैं. वे बताती हैं, "साल 2019 में मैंने अपने पिता को खोया. हम साथ में गजलें और पुराने गीत सुना करते थे. पिताजी गए तो मानो जीवन से संगीत ही गायब हो गया."

कुछ समय बाद जब तमन्ना की बेटी ने उन्हें बीटीएस का एक गीत सुनने को कहा तो उनका जवाब था, "यह तो कोरियन में है, समझ में कैसे आएगा? फिर उसने मुझे सबटाइटल दिखाए. एक के बाद एक मैंने कई गीत सुने. उन्हें सुनने के बाद जाने कितने दिनों के बाद मैं रोई. जैसे दिल में जमी काई धुल गई हो." बीटीएस बैंड का पहला गीत 2013 में आया जब बैंड के सदस्यों की उम्र 17 से 21 साल के बीच थी. बीटीएस के गीत उनकी उम्र की कहानी कहते थे. उनके पहले गीत 'नो मोर ड्रीम' में पढ़ाई की दौड़ में अपने सपने भूलते युवा की बात की गई थी. बीटीएस के पहले तीन एल्बम स्कूल और स्टूडेंट उम्र की कहानी कहते रहे, जिसने इन्हें दुनिया भर के युवाओं में मशहूर करना शुरू कर दिया.
2019 में इनकी 'लव योरसेल्फ' सीरीज की शुरुआत हुई, जिसने समाज की ओर देखने के बजाय खुद की ओर देखने और खुद से प्रेम करने की बात कही. यहां समझना जरूरी है कि कोविड के दौर में मानव इतिहास में पहली बार मेंटल हेल्थ पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई. एंजाइटी और डिप्रेशन के दौर में खुद से प्रेम करने की सीख देने वाले बोलों को दुनिया ने दिल से अपनाया.
बीटीएस ने 2018 में 'लव योरसेल्फ' नाम के एल्बम को तीन भागों, 'हर', 'टियर' और 'आंसर' में निकाला. जहां पहले दो भागों के गीत प्रेम और उससे उपजी उलझनों के ऊपर रहे, तीसरे भाग के गीतों में इन उलझनों के जवाब खुद में खोजे गए. उदाहरण के लिए, बीटीएस के गीत 'एपिफेनी' की कुछ पक्तियों का अनुवाद देखिए:
"इस पूरी दुनिया में वो मैं ही हूं/ जिससे मुझे प्यार होना चाहिए/ मेरे अंदर एक चमक है/ मेरी आत्मा अनमोल है/ ये बात मैंने अब जानी है/ इसलिए मैं खुद से प्रेम करता हूं/ मैं परफेक्ट नहीं/ लेकिन मैं खूबसूरत हूं." इसी एल्बम के एक अन्य गीत 'लव माइसेल्फ' में बीटीएस कहते हैं: "खुद से प्रेम करना/ किसी और से प्रेम करने से कहीं मुश्किल है/ ये बात मान लो/ कि खुद को परखते हुए हम हो जाते हैं सबसे सख्त/ जीवन का इतिहास ऐसा ही है/ हम ऐसे ही हैं/ पर चलो आज खुद को माफ कर देते हैं."
एक गीत सुनकर पूरे जीवन के लिए बीटीएस की फैन बन जाने वाली तमन्ना कहती हैं, "इंडिया में कितने थर्ड क्लास रैप बनते हैं, जिनमें महिलाओं को स्टीरियोटाइप किया जाता है, दौलत दिखाई जाती है, सारी रात पार्टी और दारू की बात होती है. जबकि ये युवा लड़के, जो मुझसे उम्र में कितने छोटे हैं, कितनी गहरी बातें लिख रहे थे."

बीटीएस की दीवानगी भारतीय युवा में किस कदर पसरी है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बैंड का गीत 'बटर' (2021) म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप स्पॉटिफाई पर देश में सबसे बड़ी ओपनिंग वाला गीत बना. यानी ऐप के इतिहास में रिलीज के दिन ही सबसे ज्यादा बार सुना जाने वाला गीत बन गया. आंकड़ों का हिसाब-किताब रखने वाली वेबसाइट स्टेटिस्टा की मानें तो साल 2022 में बीटीएस के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर आने वाले व्यूज में से 77.8 करोड़ व्यूज भारत से थे. लेकिन भारत बीटीएस को देखने वालों की इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर था. पहले स्थान पर जापान 91.8 करोड़ व्यूज के साथ बना हुआ था.
कुल मिलकर इंडिया के पॉपुलर म्यूजिक के इतिहास में बीटीएस वह दिन लेकर आया जिसमें युवाओं ने विदेशी संगीत को बॉलीवुड से आ रहे गीतों की अपेक्षा बेहतर माना. एंटरप्रेन्योर और इन्वेस्टर रजत सेठी की मानें तो बीटीएस के इंडिया के युवाओं के बीच मशहूर होने की वजह एक गहरी खाई है जो म्यूजिक इंडस्ट्री ने छोड़ी है. वे कहते हैं, "आज भी आप कोई सिंगिंग कॉन्टेस्ट देखें तो पाएंगे कि लोग लता, रफी या सोनू निगम के गाए गीत गा रहे हैं जो कई साल पहले आए थे. वजह साफ है कि बॉलीवुड नया और अच्छा संगीत बना ही नहीं रहा है जो युवाओं को रास आए. युवाओं के पास आइकॉन नहीं हैं और ये ट्रेंड तब तक नहीं बदलेगा जब तक म्यूजिक इंडस्ट्री में बड़े कॉर्पोरेट मोनॉपली में रहेंगे, जिनकी इजाजत के बिना नया टैलेंट अपने पांव नहीं जामा पाता है."
भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री में छूटी इस खाली जगह को बीटीएस कैसे भर पा रहा है, इस पर सेठी कहते हैं, "बीटीएस का स्टारडम भारतीय स्टार्स से बिल्कुल अलग है. वे एक स्ट्रक्चर और सिस्टम के तहत काम करते हैं. वे एक कल्ट का निर्माण करते हैं, फैन्स के बीच एक भाषा का निर्माण करते हैं. वे एक बड़ा-सा बबल क्रिएट करते हैं, जिसमें अपने फैन्स को रखते हैं और उन्हें महत्वपूर्ण महसूस करवाते हैं."
केरल से आने वाली 21 साल की आरिया भारत में बीटीएस के प्रभाव का सबसे सटीक उदाहरण हैं. वे अपनी टीनेज में ही थीं, जब एक दिन स्कूल से लौटीं और टीवी पर बीटीएस का कोई गाना चल रहा था. बीटीएस ने उन पर ऐसा असर छोड़ा कि उन्होंने के-पॉप आइडल बनने की ठान ली. आज आरिया एक्स-इन नाम के कोरियन गर्ल-बैंड की सदस्य हैं और कोरिया को ही अपनी कर्मभूमि मान चुकी हैं.

बाजार की ओर
ग्रेटर नोएडा में गांवों की कतारों और बड़ी-बड़ी कंपनियों के दफ्तरों के बीच एक ऐसी दुकान भी मिलती है जो केवल कोरियन प्रोडक्ट्स बेचती है. तेज गिरती बारिश के बीच एक युवा कपल 'के फ्रेंड्स' स्टोर में घुसता है और रामन वाले रैक से दो कप-रामन चुनकर लाता है. माइक्रोवेव में उनका चुना हुआ रामन बनाते हुए स्टोर की मैनेजर पुनपुन बताती हैं, "यह स्टोर तो कोरिया के लोगों के लिए खोला गया था. एलजी और सैमसंग की फैक्ट्रीज नजदीक होने की वजह से यहां कई कोरियन बसे हुए हैं. लेकिन हमने पाया कि यहां भारतीय ज्यादा आते हैं." मणिपुर से आने वाली पुनपुन का पूरा नाम पुनरेचॉन खामरांग है.
वे बताती हैं, "आसपास ढेरों कॉलेज होने के चलते कई स्टूडेंट्स यहां रामन खाने आते हैं. सेल्फी खींचते हैं, वीडियोज बनाते हैं. भारतीयों को लगता है जैसे वे कुछ पल के लिए अपनी के-ड्रामा की दुनिया में आ गए हैं. जबकि कोरियन कस्टमर आते हैं, सामान चुपचाप खरीदकर निकल जाते हैं." के फ्रेंड्स में नूडल्स के अलावा कोरियन फ्रोजेन फूड, स्नैक्स, ब्यूटी प्रोडक्ट और जरूरत की छोटी-मोटी चीजें मिलती हैं.
कोरियन ड्रामा और फिल्मों में खाना पकाना और खाना एक विस्तृत प्रक्रिया है. अधिकतर ड्रामा जिनके केंद्र में परिवार होते हैं, माएं अधिकतर खाना बनातीं और अपने बच्चों को खिलाती देखी जाती हैं. खाने को एक काम नहीं बल्कि एक अनुभव की तरह देखा जाता है जिसमें प्रेम, आत्मीयता और वात्सल्य दिखाई पड़ते हैं. 2016 से 2021 तक सीबीसी चैनल पर आने वाले कैनेडियन कॉमेडी शो किम्स कनवीनीयंस पश्चिमी ऑडिअंस के लिए बनाया गया एक अंग्रेजी भाषा का शो है, जिसके केंद्र में एक कोरियन परिवार है. इस सीरीज में परिवार की मां को हर दिन खाना पकाते और घर से अलग रहते अपने बेटे के फ्लैट में पहुंचाते देखा जाता है. इस बीच पश्चिमी ऑडियंस का वास्ता विभिन्न कोरियन व्यंजनों से पड़ता है. शो में एक पूरा एपिसोड बिंदेतोक (साबुत मूंग से बनने वाली कोरियन डिश) को समर्पित देखा गया.
भारत और पूरे विश्व में देखी गई नामी कोरियन फिल्म बॉयज ओवर फ्लावर्स में किमची बनाने को लेकर एक सीन है. किमची असल में फरमेंट की हुई पत्ता गोभी है, जिसका काम अचार या सिरके की तरह खाने के जायके को बढ़ाना है. अक्सर इसे कोरिया का राष्ट्रीय व्यंजन भी कहते हैं. वहीं इंडिया में खूब देखे गए शो एक्स्ट्राऑर्डिनरी अटर्नी वू के एक सीन में नायिका को 'गिंबाप' खाते हुए दिखाया गया है जो चावल, सब्जियों या मछली और बीफ से बनाया जाता है.
इसके अलावा 'बिबिंबाप' (चावल और मीट से बनने वाला) या 'सोजू' (कोरियन शराब) को अधिकतर शोज में देखा जाता है. कोटा में कोरियन भाषा सिखाने वाली 'गा लिंगुआ अकैडमी' की संस्थापक गगनप्रीत कहती हैं, "कोरियन शोज में ये खाने-पीने से जुड़े सीन सोच-समझकर डाले जाते हैं क्योंकि इससे उनका कल्चर आगे बढ़ता है." बचपन के दिनों में इंडिया आए सांग हून ली आज दिल्ली में अपनी कोरियन रेस्तरां चेन के मालिक हैं. वे बताते हैं, "भारतीयों की बाइंग कैपेसिटी भी बढ़ गई है. अब लोग पहले के मुकाबले बाहर ज्यादा खाते हैं. जाहिर है, उन्हें बाहर खाने के लिए ज्यादा विकल्प भी चाहिए. ऐसे में ईस्टर्न क्यूजीन का एक दिन भारत आना लाजमी था. 2012 में जब ली ने 'कोरीज' की पहली ब्रांच खोली, उन्होंने शुरुआत फ्राइड चिकेन और बर्गर से की.
लेकिन कुछ मुश्किलों के चलते उन्हें अपने सभी छह आउटलेट बंद करने पड़े. चार साल के संघर्ष के बाद उन्होंने कोरियन खाने से वापसी की. वे बताते हैं कि कोविड के बाद से उन्होंने 10 गुना ज्यादा ग्रोथ देखी है. वे इसका क्रेडिट भारत में बढ़ती के-पॉप और के-ड्रामा की दीवानगी को देते हुए कहते हैं, "टीवी में कोरियन खाने का सेकंड हैंड एक्सपीरियंस पाने के बाद लोग फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस भी चाहते हैं. हम भी उनके हिसाब से ज्यादा शाकाहारी विकल्प रखते हैं और उनके स्वाद के लिए अपनी रेसिपी में बदलाव कर लेते हैं."
सभी कोरियन खाने से इतर कोरियन राम्यन या रामन (कोरियन नूडल्स) आम भारतीय युवा में सबसे ज्यादा मशहूर हुआ. अमेजॉन इंडिया के कोर कन्ज्यूमेबल्स डिपार्टमेंट के डायरेक्टर निशांत रमण इंडिया टुडे को बताते हैं, "हमने साल-दर-साल कोरियन नूडल की बिक्री में 150 फीसद ग्रोथ देखी है. कोविड के दौर में 'हाल्यू' ने के-ड्रामा और के-पॉप कॉन्टेंट को बढ़ावा दिया, जिसने इंडिया में सामयंग और नोंगशिम जैसे कोरियन नूडल ब्रैंड्स को मशहूर कर दिया."
कोरियन नूडल कंपनी नोंगशिम के निर्यातक और डिस्ट्रीब्यूटर रामा विजन लिमिटेड के फूड डिविजन के सेल्स मैनेजर रवि अरोड़ा बताते हैं, "किसी भी नूडल के लिए इंडिया जैसे देश में जगह बनाना बेहद मुश्किल है. सबसे बड़ी वजह है कि यहां इंस्टैंट नूडल का पर्याय ही मैगी है." हालांकि नई पीढ़ी ’90 के दशक की पीढ़ी की तरह मैगी के नॉस्टैल्जिया के आगे बेबस नहीं है. उसने नए नूडल्स को मौका दिया और कोरियन नूडल को अपनाया. यह बात और है कि मैगी के कारोबार में कोरियन कंपनियां कोई बड़ी सेंध नहीं लगा सकीं लेकिन रामा विजन के डायरेक्टर उदित जैन की मानें तो कोरियन नूडल की जितनी बिक्री देखी जा रही है वह अपने आप में इन कोरियन ब्रांड्स की जीत है. उदित जैन बताते हैं, "पैकेट खास इंडिया के लिए ही डिजाइन होते हैं. पैकेजिंग में नाम अंग्रेजी में बदले जाते हैं, भारतीय न्यूट्रिशनल मानकों के हिसाब से चीजें बदली जाती हैं. सबसे बड़ी बात, नॉर्थ-ईस्ट को छोड़ दें तो उत्तर और दक्षिण इंडिया में मीट वाले नूडल की इतनी खपत नहीं है. ऐसे में वेजीटेरियन रेंज निकालना आवश्यक हो जाता है."
नोंगशिम नूडल्स ने इंडिया में 2019 से लेकर 2022 तक हर साल 50 फीसद की ग्रोथ देखी है, ऐसा उदित जैन का दावा है. वहीं रवि अरोड़ा बताते हैं कि उनकी कंपनी जिन भी देशों से फूड्स इंपोर्ट करती है उनमें पहले नंबर पर कोरिया और दूसरे पर थाईलैंड है. मगर कोरियन की मात्रा थाई से तीन गुना है. उनकी मानें तो कोरियन लहर टिकने के लिए आई है और नूडल्स के साथ कई तरह के और प्रोडक्ट्स भी लेकर आई है.
अरोड़ा की इस बात का प्रमाण भारत में खास कोरियन प्रोडक्ट्स को समर्पित ई-कॉमर्स प्लेटफार्म कोरीकार्ट के डायरेक्टर मंजीत सिंह वाही से मिलता है. वे बताते हैं, "कोरियन प्रोडक्ट्स का इंपोर्ट हम साल 2007 से कर रहे हैं. उस वक्त भी कई लोग कोरियन स्किनकेयर प्रोडक्ट्स खरीदते थे. लेकिन 2018 के बाद से हमने इसे ऑनलाइन बेचना शुरू किया और इसी तरह हमारे प्लेटफॉर्म कोरीकार्ट की शुरुआत हुई."
मंजीत के मुताबिक, 2020 के बाद से उनके व्यापार ने 300 फीसद की ग्रोथ देखी. वे मानते हैं कि इस उछाल की सबसे बड़ी वजह महामारी के दौरान लोगों का के-ड्रामा और के-पॉप की तरफ रुझान बढ़ना है. कोरीकार्ट के डायरेक्टर बताते हैं कि सबसे ज्यादा नूडल्स और ब्यूटी प्रोडक्ट बिकते हैं. इसके अलावा जिन्सेंग टी और किमची जैसे प्रोडक्ट भी खूब खरीदे जाते हैं.
रामा फूड्स के डायरेक्टर उदित जैन का मानना है कि बरसों तक हम विदेशी खाना ट्राई नहीं करते थे क्योंकि हमें लगता था कि इससे हमारा टेस्ट मैच नहीं होता. मगर इस नए बाजार और नई पीढ़ी में पहनने-ओढ़ने और देखने-सुनने के साथ-साथ युवाओं की जुबान भी बदल रही है. यह जुबान औसत भारतीय मिर्च से तीन गुना तीखे मसाले खाने लगी है, कोरियन खाने के प्रेम में. दिलचस्प है कि जुबानों के सिर्फ स्वाद ही नहीं बदल रहे बल्कि, हाल्यू की बदौलत, जुबानें भी बदल रही हैं.

कोरियन भाषा
बिहार में पले-बढ़े कोरियन नागरिक ईचान ली एक इन्फ्लूएंसर हैं जो चार्ली के नाम से मशहूर हैं. कुछ महीनों पहले उनका वीडियो खूब वायरल हुआ जिसमें वे अमेरिका से लौटकर कहते हैं, "बाप रे बाप, पटना कितना बदल गया है." भारतीयों ने ये वीडियो खूब शेयर किया. मगर पटापट हिंदी बोल रहे इस कोरियन को क्या मालूम था कि एक दिन भारतीय भी पटापट कोरियन बोलेंगे! इंडिया टुडे के साथ हुई जूम कॉल पर अमेरिका में बैठे हुए ईचान साफ हिंदी में बताते हैं, "नहीं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि इंडिया में कोरिया की इतनी दीवानगी होगी. सोशल मीडिया का भला हो, पहले तो भारतीय यह भी नहीं जानते थे कि कोरिया कोई देश है. पूरे बचपन मुझे चीनी, जापानी, नेपाली समझा गया. लेकिन कुछ साल पहले इंडिया में घूमते हुए एक बिहारी ने मुझसे कहा, 'आन्योंग'. मतलब कोरियन में हेलो. तब मुझे लगा कि यह देश सचमुच बदल गया है."
भारत में कोरियन कल्चर सेंटर के डायरेक्टर ह्वांग इल यंग बताते हैं, "कोरियन एम्बेसी की अपनी कोरियन क्लासेज के साथ-साथ हम 19 यूनिवर्सिटी, 127 स्कूल और छह किंग सेजोंग इंस्टीट्यूट से जुड़े हुए हैं. हमने पाया है कि इंडिया में कोरियन भाषा के प्रति प्रेम लगातार बढ़ा ही है. साल 2020 में हमारे पास 2,264 स्टूडेंट थे जो कोरियन भाषा सीख रहे थे. आज 9,000 से ज्यादा हैं." इल यंग की बताई हुई संख्या सिर्फ उन लोगों की है जो एम्बेसी के कल्चर सेंटर से भाषा सीख रहे हैं. कॉलेज, यूनिवर्सिटी, स्कूल और प्राइवेट ट्यूटर्स को मिला दें तो मालूम नहीं यह संख्या कहां ठहरेगी.
कोटा में कोरियन भाषा सिखाने वाली 'गा लिंगुआ अकैडमी' की संस्थापक गगनप्रीत बताती हैं, "मेरे स्टूडेंट्स में आठ साल के बच्चे भी रहे हैं और 85 साल की एक महिला भी. जिन 85 साल की महिला की मैं बात कर रही हूं, उन्होंने मेरी क्लास सिर्फ इसलिए जॉइन की थी कि वे अपने फेवरेट बीटीएस सदस्य जिमिन के इंस्टाग्राम पोस्ट्स को समझ सकें." गगनप्रीत बताती हैं कि वे आज तक लगभग 4,000 स्टूडेंट्स को कोरियन सिखा चुकी हैं. उनके मुताबिक, वजह के-पॉप और के-ड्रामा की दीवानगी तो है ही, साथ ही लगातार बढ़ते करियर के मौके भी हैं. कोरियन भाषा में इंटरप्रेटर, ट्रांसलेटर और अन्य बिजनेस के मौके उतनी ही गति से बढ़ रही हैं, जितनी गति से भारत पर कोरियन कल्चर का प्रभाव बढ़ रहा है. गगनप्रीत की स्टूडेंट अंजलि पटना में रहती हैं.
18 साल की ये यूपीएससी एस्पिरेंट कहती हैं कि उनकी पढ़ाई का मकसद ही कोरिया में भारतीय एम्बेसी में काम करना है. वहीं जयपुर में रहने वाली 23 बरस की पारुल सक्सेना पर के-ड्रामा का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने तय कर लिया कि अब वे के-ड्रामा में एक्टिंग करेंगी. पारुल फिलहाल मॉडलिंग करती हैं, साथ ही कोरियन भाषा सीख रही हैं.
भूत और भविष्य
चार्ली के कोरिया से भारत आने या आरिया के भारत से कोरिया जाने जैसी घटनाएं तब उतनी अलहदा नहीं लगतीं जब हम दोनों देशों के संबंधों पर नजर डालते हैं. 1990 में भारत ने 'लुक ईस्ट पॉलिसी' के तहत हुंडई और एलजी जैसे बड़े कोरियन ब्रांड्स को अपनाया और बाद के दिनों में सैमसंग भी घर-घर का हिस्सा बन गया. हालांकि इतिहास में जाएं तो भारत और कोरिया के संबंध कोरिया के युद्ध के समय से ही मैत्रीपूर्ण रहे हैं.
कोरिया का युद्ध 1950 में शुरू हुआ जब सोवियत के समर्थन वाले उत्तर कोरिया ने अमेरिका के समर्थन वाले दक्षिण कोरिया पर चढ़ाई कर दी. उत्तर कोरिया का लक्ष्य था कोरिया को एक कम्युनिस्ट तंत्र में बांधना. अमेरिका ने दक्षिण कोरिया को समर्थन दिया. कुछ महीनों बाद चीन ने उत्तर कोरिया को सैन्य समर्थन देना शुरू कर दिया और संयुक्त राष्ट्र को दक्षिण कोरिया के समर्थन में सेनाएं भेजनी पड़ीं. देखते ही देखते युद्ध ने इतना बड़ा रूप ले लिया जिसका प्रभाव पूरे विश्व में कई दिनों तक दिखता रहा. जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चल रहा शीत युद्ध और गहरा गया वहीं उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा के लिए बंट गए. आम नागरिकों पर युद्ध का असर और बिखरे परिवारों का दर्द आज भी ताजा है.

नया-नया आजाद हुआ भारत जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में किसी भी धड़े के पक्ष में नहीं था. इसी बीच 1953 में उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच समझौता हुआ. लेकिन युद्ध पर विराम लगने के बावजूद एक बड़ी समस्या विश्व के आगे मुंह बाए खड़ी थी. वह थी प्रिजनर्स ऑफ वॉर यानी युद्धबंदी. संयुक्त राष्ट्र में इंडिया के तत्कालीन प्रतिनिधि वी.के. कृष्ण मेनन ने उस वक्त न्यूट्रल नेशन्स रीपैट्रिएशन कमिशन (एनएनआरसी) बनाने का प्रस्ताव रखा.
भारत का कहना था कि जेनेवा कन्वेंशन के मुताबिक, किसी भी युद्धबंदी को उनके वतन लौटने से न ही रोका जा सकता है, न जबरन उन्हें उनके वतन भेजा जा सकता है. चीन और रूस के विरोध के बावजूद दिसंबर 1952 में यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र ने मान लिया. इस तरह स्विट्जरलैंड, पोलैंड, स्वीडन और तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया समेत इंडिया के नेतृत्व में एनएनआरसी की स्थापना हुई. भारत का काम था बिना किसी का पक्ष लिए युद्धबंदियों को सुरक्षित लौटाना. इसके लिए कस्टोडियन फोर्सेज ऑफ इंडिया का निर्माण हुआ. इसके अलावा भारत ने युद्ध से तबाह हुए इलाकों में मेडिकल सपोर्ट और जरूरत की अन्य चीजें मुहैया कराने का काम किया. कोरियन कल्चर सेंटर से मिले आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय 60 पैरा फील्ड एम्बुलेंस ने युद्ध के दौरान दो लाख से ज्यादा घायलों का इलाज किया, जिनमें 2,300 से ज्यादा फील्ड सर्जरी शामिल थीं.
इसके अलावा भारत ने डीमिलिट्राइज्ड जोन में आने वाले पांमुन्जोम गांव में दोनों पक्षों के बीच शांति बनाए रखने के लिए मध्यस्थता की. इंडिया टुडे से हुई बातचीत में कोरियन कल्चर सेंटर के डायरेक्टर ह्वांग इल योंग कहते हैं, "पिछले 50 वर्ष में हम दो देशों ने मिलकर भरोसे, समझदारी और परस्पर सम्मान से भरे रिश्तों की नींव रखी है. चाहे व्यापार हो, निवेश हो या संस्कृति, हर पहलू में हमने भौगोलिक सीमाओं को बीच में नहीं आने दिया."
रिश्तों की सॉफ्ट पावर
इंस्टाग्राम पर के-पॉप रील्स बनाने वाले इन्फ्लूएंसर अक्ष बाघला के 6 लाख से ज्यादा फॉलोवर हैं. हर तरह के कॉन्टेंट की बाढ़ के बीच उन्होंने के-पॉप का चुनाव ही क्यों किया, पूछे जाने पर वे बताते हैं, "बीटीएस की सफलता के बाद पता लगा कि लोगों से ग्लोबली कनेक्ट करने के लिए अंग्रेजी जरूरी नहीं है. के-ड्रामा का कॉन्टेंट बिल्कुल वही है जो मैंने हिमाचल प्रदेश में बड़े होते हुए सीखा—बड़ों का सम्मान, अपने कल्चर का सम्मान, और रिश्तों की अहमियत पहचानना." अक्ष कोरियन कंपनियों के लिए अपने संगीत के जरिए प्रमोशन करते देखे जाते हैं.
के-ड्रामा से प्रेरित रील्स बनाना अलग-अलग भारतीय इन्फ्लूएंसर्स के लिए बिजनेस लेकर आया है. राधिका बांगिया भी उनमें से एक हैं. 10 लाख से ज्यादा फॉलोवर्स वाली राधिका ने ब्यूटी, एंटरटेनमेंट और खाने से लेकर ट्रेवल तक कोरियन कंपनियों और सरकार के साथ कोलैबोरेट किया है. उन्होंने नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम और डिज्नी प्लस हॉटस्टार के लिए के-ड्रामा प्रमोट किए हैं और कोरियन सरकार की ओर से टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए उन्हें कोरिया भी बुलाया गया. के-कल्चर के चुनाव को लेकर वे कहती हैं, "मैंने कॉमेडी रील्स से शुरुआत की. फिर कोरियन ड्रामा में रुचि हुई तो एक्सपेरिमेंट के तौर पर उससे जुड़े रील्स बनाए. लोगों की प्रतिक्रिया देखकर समझ आ गया कि इसी में आगे बढ़ना है."
भारतीयों के साथ विभिन्न देशों में बढ़ती के-कॉन्टेंट की मांग का फायदा कोरियन अर्थव्यवस्था को मिलता है. यही वजह थी कि 12 जून, 2023 को बीटीएस के 10 साल पूरे होने पर कोरिया की राजधानी सिओल को बैंगनी (बीटीएस के रंग) लाइट्स से रंग दिया गया था. फिलहाल 30 देशों में कोरिया ने 35 कल्चर सेंटर बनाए हुए हैं जो इस देश की संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करते हैं. इन सेंटरों में कोरियन लैंग्वेज क्लास, हॉबी क्लास, म्यूजिक क्लास, टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम, लाइब्रेरी, कैफे जैसी तमाम चीजें हैं. डायरेक्टर ह्वांग इल योंग बताते हैं, "इस साल हमने इंडिया में ऐसी स्पेशल क्लास भी करवाईं जिनमें के-पॉप गीतों की मदद से कोरियन कहावतें और मुहावरे समझाए गए."
दुनिया भर में ये कल्चर सेंटर तरह-तरह के कॉन्टेस्ट, इवेंट, प्रदर्शनी करवाते रहते हैं और ऐसे कई कॉन्टेस्ट जीतने वालों को कोरिया की सैर भी करवाई जाती है. इसी तरह तमाम कोरियन के-पॉप कंपनियां दुनिया भर में ऑडिशन कर रही हैं और गैर-कोरियन के-पॉप आइडल चुन रही हैं. भारत कई संस्कृतियों का देश है. एक लंबे समय तक कोरिया के जानकारों को लगता रहा कि इस बहुसांस्कृतिक परिवेश में शायद एक और संस्कृति की जगह न हो. मगर आज जब चेन्नई के एक्सप्रेस ऐवेन्यू मॉल में कोरियन मेला लगता है तो लाखों लोग उमड़ पड़ते हैं. आयोजक संजय रामजी बताते हैं, "उस दिन (20 नवंबर, 2022) आठ लाख लोग आए थे. उस दिन ट्रैफिक को नियंत्रित करना असंभव लग रहा था."
कोरियन कल्चर सेंटर की ओर से आयोजित के-पॉप कॉन्टेस्ट 2023 कई महीनों तक चल सितंबर में खत्म हुआ. इसमें 11,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया. वहीं पिछले साल आयोजित 'रंग दे कोरिया' इवेंट जिसमें कोरियन विवाह और फैशन शो रखा गया था, में करीब 1,20,000 लोग मौजूद थे. जब भी हम इस तरह की संख्याओं की बात करेंगे, इनमें कोई 8 तो कोई 12 साल की लड़की, कोई 45 साल की मां, कोई 85 साल की बुजुर्ग होगी. इन संख्याओं में प्रेम करना सीख रहे किशोरों से लेकर खोए प्रेम को भूल पाने की कोशिश कर रहे अधेड़ शामिल होंगे और ऐसे जाने कितने लोग होंगे जिन्हें भाषा और भौगोलिक सीमाओं से परे चंद गीतों में अपना घर मिल गया. जो लोग अपने सबसे उदास दिनों को भी मुस्कुराकर काट लेते हैं जब उनके कानों में लगे ईयरफोन से आवाज आती है: "आज रात मैं सितारों में हूं/ देखो, मैं अपने अंदर जो आग लेकर आया हूं/ उससे ये रात रौशन कर दूंगा."