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जाति जनगणना की मुहिम का अकेला अभियानी

बिहार के राजनारायण 2008 से ही जाति जनगणना के पक्ष में देश भर में मुहिम चला रहे हैं. उन्होंने लालू, मुलायम और शरद यादव जैसे दो सौ के करीब सांसदों से मिलकर उन्हें जनगणना की जरूरत के बारे में बताया. 2010 में संसद में लंबी बहस के पीछे उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी

एकला चलो जनहित अभियान के राष्ट्रीय संयोजक राजनारायण
एकला चलो जनहित अभियान के राष्ट्रीय संयोजक राजनारायण
अपडेटेड 12 अक्टूबर , 2023

दो अक्तूबर को जब बिहार सरकार जाति आधारित गणना के शुरुआती आंकड़े जारी कर रही थी तो राजनारायण बिहार के वैशाली जिले के गोरीगामा पंचायत के मठ टोला में लोगों को जाति जनगणना की जरूरत और उसके फायदों के बारे में बता रहे थे. यह काम वे 2008 से कर रहे हैं. जनहित अभियान के बैनर तले बिहार के राजनारायण पिछले 15 साल से नेताओं, बुद्धिजीवियों और मतदाताओं को यह बता रहे हैं कि बेहतर राष्ट्र के निर्माण के लिए जाति जनगणना क्यों जरूरी है. 

लोकतंत्र की धरती कहे जाने वाले वैशाली जिले में पिछले दो महीने से वोट जागरूकता अभियान चलाने वाले राजनारायण इस अभियान के तीसरे चरण को समाप्त कर चुके हैं. वे देश के उन चंद लोगों में से हैं, जिन्होंने काफी पहले जाति जनगणना की जरूरत समझ ली थी.

वे कहते हैं, ''2005-06 की बात है, उन दिनों मैं नवयुवक ही था. मैंने देश के कई संस्थानों में आरक्षण को ठीक से लागू नहीं होता देखा था. खास तौर पर दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में देखा कि वहां आरक्षण का अनुपालन ठीक से नहीं हो रहा है. इसके लिए मैंने वहां लंबी लड़ाई लड़ी और सफलता भी मिली. मगर मैंने वहां यह सीखा कि लोग बार-बार आंकड़े मांगते हैं.

अदालतें भी आरक्षण और जातियों के पिछड़ेपन के आंकड़ों की मांग करती हैं. फिर समझ आया कि आंकड़े जाति जनगणना से ही मिलेंगे. 2007 में मैंने कुछ साथियों के साथ मिलकर अपने संगठन जनहित अभियान की शुरुआत की और 2008 में जाति जनगणना को लेकर अपना पहला पर्चा छापा और वितरित किया.’’

राजनारायण ने संकल्प लिया कि अब वे तब तक इस अभियान को चलाएंगे जब तक केंद्र सरकार जाति जनगणना नहीं कराती. उन्होंने अभियान की शुरुआत दिल्ली के बुद्धिजीवियों को इस मुद्दे के बारे में समझाने से की. वे कहते हैं, ''2009 में कांस्टीट्यूशन क्लब में दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू वगैरह के प्रोफेसरों और रिटायर जजों को बुलाया.’’

इस मुहिम के बाद बिहार के राज्यसभा सांसद अली अनवर, जो पसमांदा आरक्षण की मुहिम चलाते रहे हैं, राजी हुए और उन्होंने 2009 में संसद में इस मुद्दे को उठाया.

फिर राजनारायण ने सांसदों के आवास पर जाकर उन्हें इस बारे में समझाना शुरू किया. वे हर पार्टी के सांसदों से मिले. राजनारायण कहते हैं, ''उस वक्त 187 सांसद मेरी बात से सहमत हुए और इसका असर तब दिखा जब 2010 में बजट सत्र के दौरान शरद यादव ने इस मुद्दे को उठाया. तब कई सांसदों ने जाति जनगणना कराए जाने का समर्थन किया. लालू और मुलायम जैसे समाजवादी विचार वाले सांसदों के अलावा भाजपा के गोपीनाथ मुंडे और कांग्रेस के राजाराम पाल जैसे सांसदों ने भी समर्थन किया. आखिरकार सरकार ने इस मांग को मान लिया.’’

वे कहते हैं, ''मगर उस वन्न्त बड़ी चूक यह हुई कि जनगणना कराने के बदले सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराया गया. हमने उसी वक्त इसका विरोध किया. मगर भाजपा और कांग्रेस दोनों इस पर सहमत हो गए. आखिरकार वह सर्वेक्षण किसी काम का साबित नहीं हुआ.’’ 

2014 में सरकार बदल गई. 2015 में फिर दिल्ली में बड़ी बैठक आयोजित हुई. उसमें पीएम मोदी के करीबी लोगों को भी आमंत्रित किया गया. सरकार के मुताबिक, 2011 के सर्वेक्षण में नौ करोड़ से अधिक गलतियां हैं. अरविंद पानगढ़िया के नेतृत्व में इसमें सुधार के लिए कमेटी भी बनी, मगर वे भी असफल रहे. 
राजनारायण ने अपनी मुहिम को 2013 में बिहार पर केंद्रित कर दिया था.

उन्हें लगता था कि राजनैतिक रूप से जागरूक इस प्रदेश में अधिक संभावनाएं हैं. वे कहते हैं, ''5 अक्तूबर, 2019 को हमारी टीम ने तय किया कि अब इस मुद्दे को जनता के बीच लेकर जाना चाहिए.’’ मगर फिर कोविड का वक्त आ गया. फिर 15 जनवरी, 2021 से बिहार के चंपारण के भितिहरवा आश्रम से जाति जनगणना अभियान रथ यात्रा की शुरुआत की.

राजनारायण ने अभी राज्य के दस जिलों की ही यात्रा की थी कि नीतीश ने जाति जनगणना की मांग को ठीक से उठाना शुरू कर दिया. वे कहते हैं, ''जब फरवरी, 2021 में नीतीश सक्रिय हो गए तो मैंने अपनी यात्रा बंद कर दी. मगर फिर तरह-तरह की बाधाएं आने लगीं. ऐसे में फिर से हमने तय किया कि हम वैशाली से वोटर जागरूकता अभियान चलाएंगे. यह अभियान आज भी चल रहा है और हमारा लक्ष्य है, वैशाली में एक लाख वोटरों को जागरूक करना.’’

राजनारायण 2008 से अब तक जाति जनगणना के पक्ष में सौ से अधिक सभाएं कर चुके हैं. वे एक तरह से वन मैन आर्मी की तरह काम करते हैं. सांसदों-विधायकों से लेकर आम लोगों तक से मिलना. रथ यात्रा, सभाएं करते हैं, पर्चे छपवाते है. वे कहते हैं, ''2008 में जब मैं जाति जनगणना की बात करता था तो लोग मुझ पर हंसते थे. और आज इसका समर्थन या विरोध जो भी हो, मगर हर कोई अब इसे गंभीरता से ले रहा है.’’ राजनारायण बिहार की जाति गणना से खुश हैं, मगर बहुत उत्साहित नहीं हैं. वे कहते हैं, ''यह अच्छी शुरुआत है, मगर जब तक देश के स्तर पर जाति जनगणना नहीं होती, पिछड़ों-दलितों के चेहरे पर मुस्कान नहीं आएगी.’’

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