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स्टार्ट-अप : औंधे मुंह जमीन पर

फंड मुंह मोड़ने लगे और ब्रांड वैल्यू जमीन चूमने लगी तो भारतीय स्टार्ट-अप की दुनिया की उधड़ गई कलई

भारतीय स्टार्ट-अप
भारतीय स्टार्ट-अप
अपडेटेड 4 अगस्त , 2023

इस साल फरवरी में हर्षद पूनिया की तो जैसे दुनिया ही लुट गई. हरियाणा के रोहतक का यह 28 वर्षीय नौजवान (जिसका नाम हमने उन्हीं के कहने पर बदल दिया है) डिजिटल मार्केटिंग में एमबीए की डिग्री के साथ बेंगलूरू के एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में दो साल पूरे करने वाला था. तभी एकाएक उसे और दूसरे 600 लोगों को निकाल दिया गया. पूनिया कहते हैं, ''संस्थापक-सीईओ की ओर से एक ई-मेल आया कि कंपनी 20 फीसद कर्मचारियों की छंटनी कर रही है क्योंकि नया फंड जुटाना मुश्किल हो रहा है.

हमारी आइडी लॉक कर दी गई और हमें एक महीने का नोटिस और एक महीने का वेतन दिया गया.’’ दिसंबर, 2022 में ही पूनिया की शादी हुई थी. उनकी पत्नी की भी उसी दिन छुट्टी कर दी गई थी, जो उसी कंपनी की एक छोटी वीडियो ऐप इकाई में काम कर रही थीं. पूनिया कहते हैं, ''उस लम्हे की याद आते ही कंपकंपी छूटती है. मुझे हमेशा हैरत होती थी कि जिसमें मैं काम कर रहा था, उन जैसे स्टार्ट-अप दुनिया भर के भत्तों पर मनमाना पैसा क्यों खर्च करते हैं.

मसलन, जोमैटो कूपन, अवकाश भत्ते, नए लोगों को भी ऊंची-ऊंची तनख्वाहें वगैरह. इसके मुकाबले एक टिकाऊ नौकरी कहीं बेहतर होती है.’’ पूनिया खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें महीने भर बाद ही दूसरी नौकरी मिल गई (उनके कुछ दोस्त अब भी बेरोजगार हैं). हालांकि उनकी पत्नी एक बार कॉर्पोरेट नौकरी में हाथ जलने के बाद घर से फ्रीलांसिंग में हाथ आजमा रही हैं.

अभी साल भर पहले तक पूनिया जैसे स्टार्ट-अप प्रोफेशनल भारतीय कंपनियों में हाथोहाथ लिए जाते थे. उनकी काफी मांग थी और जिनके पास बड़ी जिम्मेदारियां (यहां तक कि छोटी कंपनियों में भी) संभालने का अनुभव था, उन्हें काफी ऊंचे वेतन का लालच दिया जाता था.

सूत्रों के मुताबिक, एडुटेक क्षेत्र में पढ़ाने वालों को कभी-कभी उनके पुराने वेतन से दोगुने पर रखा जाता था और कई तरह के अन्य भत्ते दिए जाते थे, जिससे कर्मचारियों के बीच भारी गैर-बराबरी पैदा होती थी. लेकिन यह सब अब एक सपना लगता है क्योंकि भारतीय स्टार्ट-अप का माहौल बड़ी चुनौतियों से दो-चार है. भारतीय स्टार्ट-अप कथित तौर पर नवंबर, 2022 तक (सरकारी अनुमान के अनुसार) 84,012 'मान्यता प्राप्त’ फर्मों के साथ अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे सबसे बड़े थे और 8,60,000 लाख लोगों को नौकरी दे रहे थे.

कमाई घटी, मुनाफे की कोई साफ उम्मीद नहीं; दूसरी ओर फंड के स्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं. इस दोहरी मार ने भारतीय स्टार्ट-अप को खासे दबाव में डाल दिया है. लिहाजा, उसके पास कर्मचारियों की छंटनी और गैर-जरूरी खर्चों में कटौती के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. स्टार्ट-अप क्षेत्र पर नजर रखने वाली एजेंसियों का कहना है कि 2023 के पहले तीन महीनों में 88 स्टार्ट-अप ने 25,000 से ज्यादा कर्मचारियों को निकाल दिया.

टेक मीडिया प्लेटफॉर्म इंक42 के मुताबिक, इसमें बायजूज, कार्स24, डुंजो, ओला, ओयो, मीशो, अनएकेडमी और वेदांतु जैसे यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर [8,200 करोड़ रुपए] या अधिक के मूल्यांकन वाले स्टार्ट-अप) शामिल हैं (देखें चार्ट, स्टार्ट-अप छंटनी). एडुटेक सेगमेंट सबसे खराब रहा है, जिसमें 19 स्टार्ट-अप ने 9,000 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी की.

पिछले साल डेकाकॉर्न (10 अरब डॉलर या 82,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनी) बायजूज ने ऐलान किया था कि मार्च, 2023 तक लाभदायक बनने के लिए अक्तूबर, 2022 से लगभग 5 प्रतिशत या 2,500 कर्मचारियों को निकाल दिया जाएगा. जून में, उसने 'पुनर्गठन प्रक्रिया’ में 1,000 और कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया. इस कंपनी में 50,000 लोग काम करते हैं.

इस बीच मूल्यांकन में भारी गिरावट आई है. इस साल जून में बायजूज के सबसे बड़े निवेशक शेयरधारक प्रोसस ने अपने मूल्यांकन में 75 प्रतिशत से अधिक की कटौती की, यानी $22 अरब डॉलर से $5.1 अरब डॉलर (1.8 लाख करोड़ रुपए से 41,820 करोड़ रुपए). मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इनवेस्को ने स्विगी का मूल्यांकन 10.7 अरब डॉलर से घटाकर 5.5 अरब डॉलर (45,105 करोड़ रुपए) कर दिया है.

अमेरिका के वैनगार्ड ने राइड-हेलिंग स्टार्ट-अप ओला का मूल्यांकन लगभग 35 फीसद घटाकर 4.8 अरब डॉलर (39,365 करोड़ रुपए) कर दिया, जबकि एक और अमेरिकी निवेश प्रबंधक न्यूबर्गर बर्मन ने वित्तीय सेवा स्टार्ट-अप पाइन लैब्स का मूल्यांकन 40 फीसद घटाकर 3.1 अरब डॉलर (25,423 करोड़ रुपए) कर दिया. ब्रिटिश-अमेरिकी परिसंपत्ति प्रबंधन फर्म जैनस हेंडरसन ने हेल्थकेयर स्टार्ट-अप फार्मईजी का मूल्यांकन आधा घटाकर 2.8 अरब डॉलर (22,963 करोड़ रुपए) कर दिया.

बुलंदी और ढलान

इतनी उम्मीदों भरी बुलंदी से स्टार्ट-अप कैसे धड़ाम से जमीन पर आ गिरे? 2020-21 में कोविड महामारी के चरम वाले दिनों में स्टार्ट-अप बूम आया जब शिक्षा, भोजन, मनोरंजन, जीवन शैली और स्वास्थ्य और स्वच्छता समेत कई सेवाओं में ऑनलाइन फर्मों की मांग में अभूतपूर्व उछाल आया था.

उसी दौरान कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन से बाजारों में इफरात नकदी आ गई. अमेरिका में 50 खरब डॉलर से अधिक और यूरोप में 875 अरब डॉलर से अधिक डाले गए. वहीं से उफनकर पूंजी स्टार्ट-अप उद्यमों के वित्त पोषण के लिए आई. भारतीय स्टार्ट-अप को 2020 में 10.9 अरब डॉलर (89,436 करोड़ रुपए) प्राप्त हुए, 2021 में यह फंडिंग बढ़कर 35.2 अरब डॉलर (2.9 लाख करोड़ रुपए) हो गई (देखें, पहला चार्ट).

महामारी के वर्षों में दुनिया भर में कई यूनिकॉर्न का जन्म हुआ. भारत में 108 स्टार्ट-अप (31 मई, 2023 तक) अब यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हैं, जिनमें से कई अप्रैल 2020 से इस क्लब में हैं. सरकार की निवेश प्रोत्साहन एजेंसी इन्वेस्ट इंडिया के मुताबिक, इन यूनिकॉर्न का कुल सामूहिक मूल्यांकन 340.8 अरब डॉलर (28 लाख करोड़ रुपए) किया गया था, जो 35 खरब डॉलर (311 लाख करोड़ रु.) की अर्थव्यवस्था का तकरीबन 10 फीसद है. उनमें से कुछ के ऑनलाइन ग्राहकों में भारी उछाल आया. लोगों के घर के अंदर रहने के कारण जोमैटो और स्विगी जैसे फूड स्टार्ट-अप के ऑर्डर में वृद्धि देखी गई. बंद स्कूलों ने छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं की ओर आकर्षित किया, तो एडुटेक में उछाल और भी अधिक खास था.

हालांकि महामारी के बाद हालात में भारी बदलाव आया. जिन देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में कोविड के लिए राहत के रूप में अरबों डॉलर का निवेश किया, उन्हें सरप्लस मनी के सबसे बड़ी दुश्मन यानी महंगाई से निबटना पड़ा. जैसे ही मुद्रास्फीति बढ़ी (जून 2022 तक यह 9 फीसद से ऊपर निकल गई), अमेरिका के केंद्रीय बैंक अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी, और वृद्धि का सिलसिला मई, 2022 तक शून्य से लगभग 5 फीसद तक ले जाया गया.

ऊंची ब्याज दरों ने सरप्लस मनी को देश से बाहर जाने से रोक दिया क्योंकि वित्तीय कंपनियों को अन्य जगहों की तुलना में अमेरिकी बाजार में काम करना अधिक मुनाफे वाला लगा. नतीजतन, धन की कमी से वेंचर कैपिटलिस्ट और निजी इक्विटी फर्मों को दुनिया भर में स्टार्ट-अप को तरजीह देना बंद करना पड़ा. 

भारतीय स्टार्ट-अप में फंडिंग 2022 में गिरकर 24 अरब डॉलर (करीब दो लाख करोड़ रु.) पर आ गई. पीडब्ल्यूसी की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कैलेंडर वर्ष 2023 की पहली छमाही में भारतीय स्टार्ट-अप में निवेश पिछले चार वर्षों में सबस कम रहा है. कैलेंडर वर्ष 2022 की पहली छमाही के दौरान 5.9 अरब डॉलर (48,410 करोड़ रुपए) की फंडिंग के मुकाबले इस वर्ष उसी अवधि में फंडिंग 36 फीसद गिरकर 3.8 अरब डॉलर (31,179 करोड़ रुपए) रह गई. एडुटेक और फूड टेक सेक्टर पिछड़ गए, फिनटेक, सास (एक सेवा के रूप में सॉफ्टवेयर), और डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (डी2सी) सेक्टर सबसे अधिक वित्त पोषित थे.

कारोबार के लिए बाहरी फंडिंग के आसरे रहने वाले स्टार्ट-अप अब अधर में लटक गए हैं. यूट्रेड सॉल्यूशंस के सह-संस्थापक और सीईओ कुणाल नंदवानी कहते हैं, ''जब आपको मुफ्त में पैसा मिलता है, तो आप शाहखर्ची पर उतर आते हैं. स्टार्ट-अप मुगालते में आ गए लेकिन असलियत यह है कि जब आपको पैसा मिलता है तो आप छोटे दायरे में होते हैं...आखिरकार, अपने बिजनेस मॉडल को चलाना होता है.’’

वे आगे जोड़ते हैं कि स्टार्ट-अप को मार्क-टु-मार्केट वैल्यूएशन (खातों के उचित मूल्य को मापने की एक विधि जिसमें समय के साथ उतार-चढ़ाव हो सकता है) के आधार पर पैसा पाने की आदत थी. और यह सब असल कारोबारी प्रदर्शन पर आधारित नहीं था. दूसरी तरफ कमाई कम हो रही थी. महामारी के बाद जैसे ही भारतीय अर्थव्यवस्था खुली, स्कूल तथा दुकानें खुलीं और यात्राएं फिर से शुरू हुईं, ऑनलाइन कारोबार में गिरावट देखी गई.

बायजूज की समस्याएं खास चिंता का विषय रही हैं. उसने वित्त वर्ष ’21 और वित्त वर्ष ’22 के लिए ऑडिट वित्तीय रिपोर्ट दाखिल करने में देरी की. 2020-21 के आंकड़े आखिरकार जब सामने आए, तो 4,588 करोड़ रुपए का घाटा उजागर हुआ, जो पिछले वित्त वर्ष में केवल 262 करोड़ रुपए था. वित्त वर्ष 21 में कमाई 2,280 करोड़ रुपए रही.

कंपनी ने अभी तक अपने 2021-22 के नतीजे दाखिल नहीं किए हैं, हालांकि मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि कंपनी ने उस साल 10,000 करोड़ रुपए की कमाई की. पिछले वर्ष बायजूज में छंटनी का दौर चला और विदेशी फंडिंग के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत जांच के दायरे में है, जबकि उसके शिक्षण कार्यक्रम से दुनिया भर में 15 करोड़ छात्र जुड़े हैं और 70 लाख वार्षिक सब्सक्राइबर हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने अप्रैल में फर्म से जुड़े कई परिसरों की तलाशी ली थी.

कंपनी नवंबर 2021 में लिए गए कर्ज पर लगभग 4 करोड़ डॉलर का तिमाही ब्याज भुगतान भी नहीं दे पाई है. टर्म लोन बी या टीएलबी पर ब्याज भुगतान 5 जून को देय था लेकिन बायजूज ने उसका भुगतान नहीं किया. वह ऋणदाताओं के साथ अदालती लड़ाई में फंसी हुई है. बायजू रवींद्रन और दिव्या गोकुलनाथ की बनाई स्टार्ट-अप ने एक अमेरिकी निवेश फर्म रेडवुड पर मुकदमा दायर किया है, जिसने कथित तौर पर ऋण सुविधा की शर्तों के विपरीत इसका एक महत्वपूर्ण शेयर हिस्सा खरीद लिया था.

एक बयान में बायजू ने कहा कि ''कर्जदाताओं के साथ असहमति का उसके कामकाज पर कोई खास असर नहीं पड़ा है.’’ लेकिन जून के अंत में एक और झटका लगा. डेलॉइट हास्किन्स ऐंड सेल्स ने वित्तीय दस्तावेज जमा करने में देरी का हवाला देकर बायजूज के ऑडिटर की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिया. उसके फौरन बाद, बोर्ड के तीन सदस्यों पीक एक्सवी पार्टनर्स (सिकोइया कैपिटल इंडिया और एसईए) के जी.वी. रविशंकर, चान जुकरबर्ग इनिशिएटिव के विवियन वू और प्रोसस के रसेल ड्रेसेनस्टॉक ने संस्थापकों के साथ कथित झड़प के बाद इस्तीफा दे दिया.

बायजूज के प्रवक्ता ने इंडिया टुडे के ईमेल के जवाब में कहा कि कंपनी अपने बोर्ड के पुनर्गठन की प्रक्रिया में है. उसने यह भी बताया कि कुछ निवेशकों को अपनी शेयर होल्डिंग न्यूनतम आवश्यक सीमा से नीचे जाने के कारण बोर्ड की सीटें खाली करनी पड़ीं. हाल के टाउन हॉल भाषण में रवींद्रन ने इस बात पर जोर दिया कि एडुटेक महज 'महामारी की परिघटना’ नहीं है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में एक स्थायी पहल है. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बायजूज विज जैसे उन्नत एआइ-आधारित शैक्षिक उपायों के साथ बायजूज लंबे समय से मौजूद है और इस उभरती दुनिया में मजबूती से खड़ा है.

गुब्बारे की हवा

नंदवानी कहते हैं, ''पूरी तरह वीसी (वेंचर कैपिटल)-वित्त पोषित एसेट क्लास सवालों के घेरे में आ गया है. भारत में किसी भी व्यवसाय को खड़ा करने में 8-10 साल लगते हैं. आप दो साल में अरबों डॉलर की कंपनी नहीं बना सकते.’’ लेकिन स्टार्ट-अप की दुनिया में यही हो रहा था, जहां मूल्यांकन के दम पर सब कुछ चला रहा था. और ये मूल्यांकन उन निवेशकों ने दिए जो कंपनियों की फंडिंग कर रहे थे.

नंदवानी कहते हैं, ''आप अभी-अभी आइआइटी से निकले हैं, कोई आपको 10 करोड़ डॉलर दे देता है और कहता है कि आपकी कीमत 1 अरब डॉलर है, यह कैसा मजाक है! जब आप किसी कंपनी का अधिक मूल्यांकन करते हैं, तो आप उसके लिए उसी मूल्यांकन पर अगले निवेशक से धन जुटाना कठिन बना देते हैं. तब विकास प्रभावित होता है. बेहिसाब मूल्यांकन कारोबार को खत्म कर देता है और वेंचर कैपिटल ने यही किया है. कारोबार में उनके पास कभी अपना पैसा नहीं था और उसके बाद कुप्रबंधन और गलत ढंग से कामकाज किया गया.’’

इस बीच, अधिकांश यूनिकॉर्न को भारी नुक्सान हो रहा है और कुछ लिस्टेड कंपनियों को शेयर बाजारों में भारी नुक्सान उठाना पड़ा है. 2021 में पब्लिक इश्यू जारी करने वाले पेटीएम, जोमैटो और नायका जैसे स्टार्ट-अप की शेयर कीमतें उनके सूचीबद्ध मूल्य से काफी नीचे गिर गईं, जिससे निवेशकों के लाखों डॉलर स्वाहा हो गए (देखें चार्ट: शेयरों का प्रदर्शन कैसा). 2022 में, फार्मईजी, मोबिक्विक और ड्रूम जैसे कई स्टार्ट-अप के आइपीओ बंद कर दिए गए. इंक42 के अनुसार, वित्त वर्ष 22 में 55 यूनिकॉर्न को कुल मिलाकर 5.9 अरब डॉलर (48,400 करोड़ रुपए) का घाटा हुआ.

वेंचर कैपिटल फर्म लाइटस्पीड इंडिया पार्टनर्स के पार्टनर राहुल तनेजा कहते हैं, ''कम लागत की पूंजी के दौर में बाजारों में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों तरह की कंपनियों के लिए निश्चित प्रकार का गणित निर्धारित किया गया है. जैसे-जैसे ब्याज दरें बढ़ीं, भारत और अमेरिका दोनों में सार्वजनिक बाजार के आकलन में सुधार हुआ है. इसका असर स्टार्ट-अप में भी दिखने लगा है.’’
तेजी के दिनों में निवेशक 'भीड़ वाली मानसिकता’ के तहत जरूरी सोच-विचार और आकलन किए बिना फर्मों पर दांव लगा रहे थे, पैसा खर्च कर रहे थे. अब वे ज्यादा सुर्खरू, ज्यादा होशियार बन गए है.

तो अब आगे क्या?

तनेजा कहते हैं, ''अच्छी कंपनियों ने इस बदलाव के मुताबिक खुद को ठीक से बदला, लेकिन कुछ ने उसी में रास्ता तलाशना जारी रखा या कुछ मामलों में प्रोडक्ट-मार्केट फिट वाला रवैया अपनाया. अच्छे संस्थापक तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं, अपनी कॉस्ट बेस को दुरुस्त कर रहे हैं, कामकाज के अर्थशास्त्र में सुधार ला रहे हैं और ऐसा कारोबार बना रहे हैं जो अपना खर्च खुद उठा सके.’’ कभी भी सीधी रेखा में ऊपर चढ़ने की राह नहीं मिलती है.

इस सफर में अक्सर मुश्किलें आती हैं और सुधार करना पड़ता है. वे यह भी कहते हैं, ''बेहतर संस्थापक मजबूती से इस ओर रुख करते हैं और बेहतर बनकर उभरते हैं.’’ अब आगे कमर और कसनी होगी. छंटनी अगले आठेक महीनों से साल भर तक चलेगी. पर मामला सिर्फ छंटनी का नहीं है. कर्मचारियों को इफरात दिए जाने वाले इंसेंटिव पर मुट्ठी कसनी होगी, वह फ्री गिफ्ट हों या क्लब मेंबरशिप या छुट्टियों के भत्ते. वैसे, कई स्टार्ट-अप में नियुक्ति पर रोक लगी हुई है, लेकिन जो कंपनियां भर्ती करना चाहती हैं, वे तनख्वाह बढ़ाने के ऑफर के वक्त ज्यादा व्यावहारिक नजरिया अपनाएंगी.

एडुटेक फर्म अनएकाडेमी के सह-संस्थापक गौरव मुंजाल ने हाल में एक पॉडकास्ट में कहा, ''हमारे लिए यह बात खास थी कि वेंचर कैपिटल क्षेत्र में किसने इसे बड़ा बनाया है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि यूनिकॉर्न बनाना उन लक्ष्यों में से एक था जिसे वे हासिल करना चाहते थे. मुंजाल मानते हैं, ''जब हम 25 साल के थे—रोमन (सैनी), हेमेश (सिंह) और मैं, तो एक ही लक्ष्य था कि क्या हम 30 साल की उम्र से पहले यूनिकॉर्न बना सकते हैं?

हमने बनाया.’’ तीनों ने 2015 में ऑनलाइन टेस्ट तैयारी कंपनी शुरू की. अनएकेडमी 2020 में यूनिकॉर्न बन गई और इसे टेमासेक, फेसबुक और सॉफ्टबैंक जैसे प्रमुख निवेशकों की मदद हासिल है. वे बताते हैं, ''पीछे मुड़कर देखने पर भीतर एक सवाल उठता है कि क्या मुझे वैल्युएशन के पीछे उसी तरह पड़ना चाहिए था, जैसे मैं पड़ा था? शायद नहीं. लेकिन उससे मुझे बहुत-सी चीजें सिखने को मिलीं.’’ अब कंपनी कारोबार और मुनाफे के बुनियादी सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करती दिख रही है.

इन्फोसिस के सह-संस्थापक और एक्सिलॉर वेंचर्स के चेयरमैन क्रिस गोपालकृष्णन का मानना है कि स्टार्ट-अप फंडिंग में मंदी अस्थायी है. वे कहते हैं, ''यह आर्थिक चक्रों का एक हिस्सा है...दुनिया आर्थिक मंदी से गुजर रही है. ब्याज दरें बढ़ गई हैं और निवेशकों के पास जब निवेश के लिए कई रास्ते होते हैं, तो वे यह देखते हैं कि क्या सुरक्षित है. तो अब पैसा कर्ज में जा रहा है.’’ लेकिन भारत की 35 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक संभावनाएं परिवर्तनकारी टेक्नोलॉजी के लिए लुभावने अवसर तैयार करती हैं. हाल ही में तिरुवनंतपुरम में इंडिया टुडे साउथ कॉनक्लेव में उन्होंने कहा, ''मैं मध्यम से लंबी अवधि में भारत के स्टार्ट-अप माहौल को लेकर बहुत उत्साहित हूं.’’

फूंक-फूंक कर बढ़ाएं कदम

शुरुआती चरण के उद्यमों के लिए निजी निवेश प्लेटफॉर्म मुंबई एंजल्स के सह-संस्थापक प्रशांत चौकसे कहते हैं, ''स्टार्ट-अप माहौल अब बदलने जा रहा है.’’ उनके मुताबिक, सौदे 40 फीसद तक कम हो गए हैं. सौदे सीड फंड क्षेत्र में हो रहे हैं (जिसमें अपेक्षाकृत कम धन की आवश्यकता होती है), जबकि विकास सौदे (करोड़ों डॉलर वाले) मिलना मुश्किल है. प्रारंभिक चरण वाली कंपनियां शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी अनुदान से शुरुआती फंडिंग के साथ एक या दो साल तक काम चला सकती हैं.

तिरुवनंतपुरम स्थित टेक्नोपार्क में एक स्टार्ट-अप एम्ब्राइट इन्फोटेक ने विकलांग बच्चों के लिए एक वर्चुअल रियल्टी (वीआर)-आधारित प्रशिक्षण उपकरण विकसित किया है, और उसका कहना है कि उसे 1.17 करोड़ रुपए हासिल हुए. आइआइएम कोझिकोड और आइआइटी मंडी से 50 लाख रुपए, केंद्र की स्टार्ट-अप इंडिया योजना से 60 लाख रुपए और राज्य के केरल स्टार्ट-अप मिशन से 7 लाख रुपए मिले.

एम्ब्राइट की ऑपरेशंस मैनेजर टीना जी.एम. कहती हैं, ''अगले दौर की फंडिंग एंजेल निवेशकों से आनी चाहिए और हम इस पर काम कर रहे हैं. निवेशक हमारी जैसी कंपनियों में निवेश का निर्णय लेते समय उत्पाद की खासियत, पेटेंट की संख्या, ग्राहक आधार और कमाई पर गौर कर रहे हैं.’’ हालांकि बड़ी धनराशि जुटाने की चाहत रखने वालों के लिए मुश्किल हो सकती है. चौकसे कहते हैं, ''वी-सी फैसले करने में अधिक समय ले रहे हैं, सख्ती काफी है और कई मामलों में मूल्यांकन काफी कम हो गया है.’’ अब यह भी एक अलिखित नियम है कि धन जुटाने के लिए पूंजी बाजार में जाने से पहले कंपनियों के पास मुनाफा कमाने का स्पष्ट रास्ता होना चाहिए.

कुछ प्रमोटर फंड की कमी से बचने के लिए वेंचर डेट फंड से ब्रिज लोन लेने का वैकल्पिक रास्ता अपना रहे हैं. ब्रिज लोन एक अंतरिम वित्तपोषण विकल्प है जिसका उपयोग कंपनियां और अन्य संस्थाएं फौरी तौर पर तभी तक करती हैं, जब तक दीर्घकालिक वित्तपोषण की व्यवस्था न हो जाए. ब्रिज फाइनेंसिंग आम तौर पर किसी निवेश बैंक या उद्यम पूंजी फर्म से कर्ज या इक्विटी निवेश के रूप में आती है. हालांकि, विशेषज्ञ सावधानी बरतने की सलाह देते हैं क्योंकि इन कर्जों को चुकाने में मुश्किलें प्रमोटरों को और अधिक परेशानी में डाल सकती हैं.

चौकसे कहते हैं, ''अब ख्वाहिश दीर्घकालिक टिकाऊपन की है.’’ स्टार्ट-अप के मूल्यांकन में 'ग्राहक बनाने की लागत’ और 'ग्राहक की ताउम्र कीमत’ जैसे पद महत्वपूर्ण हो चले हैं. यह अच्छा संकेत है. सुधार वाले इस दौर से स्टार्ट-अप की दुनिया में और अधिक संयम आ सकता है. यह समझ में आ रहा है कि अंतत: ग्राहक ही स्टार्ट-अप का वित्त पोषण करें. वेंचर कैपिटल जरूरी प्रारंभिक प्रोत्साहन दे सकते हैं, लेकिन अंतत: ग्राहकों की मदद से ही स्टार्ट-अप को रफ्तार मिलेगी.

गोपालकृष्णन का कहना है कि 'महामारी से मिला उछाल’ अहम सबक मुहैया कराता है. यानी एक अस्थायी घटना का दोहन करने और दीर्घकालिक मूल्य के साथ संस्थान कायम करने में काफी फर्क है. वे बताते हैं कि आइटी सेवा उद्योग शुरू हुआ तो कंपनियां मेनफ्रेम कंप्यूटर पर काम कर रही थीं और सीओबीओएल प्रोग्रामिंग भाषा थी.

आज मोबाइल फोन और पायथन जैसी प्रोग्रामिंग भाषाओं के साथ परिदृश्य बदल गया है. वे कहते हैं, ''लेकिन ये कंपनियां मौजूं बनी हुई हैं. उन्होंने यह तय किया कि ये सभी तकनीकी बदलाव ग्राहकों के लिए मुफीद हों. स्टार्ट-अप संस्थापकों को भी मैराथन दौड़ के लिए तैयार रहना चाहिए. एक प्रमुख चुनौती यह है कि आप कम बजट में कम से कम पांच साल तक टिके रह सकें.’’

स्टार्ट-अप क्षेत्र में सुधार को कई मायनों में वरदान के रूप में देखा जा रहा है ताकि वे और उनके निवेशक अपना फोकस सही दिशा में बनाए रख सकें. लेकिन यह तो केवल शुरुआत है. ऐसी आशंकाएं हैं कि मौजूदा गिरावट सुधर जाए तो फिर वही फिजूलखर्ची न शुरू हो जाए. यह वास्तविक खतरा है जिससे स्टार्ट-अप और उनके प्रमोटरों के बचे रहने में ही भलाई होगी.

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