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यौन सुख की असमानता

तनाव, लांछन और अज्ञान भारतीयों से सेक्स जीवन का आनंद छीन रहे हैं, और अपूरित इच्छाओं के कुहासे में भटकने को छोड़ दे रहे हैं

यौवन सुख
यौवन सुख
अपडेटेड 7 अप्रैल , 2023

आवरण कथाः सेक्स सर्वे / आलेख

एक वक्त था जब अमृता पिल्लै (बदला हुआ नाम) शुक्रवार की रातें डिजिटल चैट के अपने जिगरी दोस्तों के साथ यौन मौज-मस्ती के लिए रखती थीं. यह पांच साल पहले की बात है जब 29 बरस की पिल्लै निवेश बैंकिंग क्षेत्र में मिड-करियर पेशेवर थीं. अब 34 वर्षीया, मुंबई में रह रही पिल्लै के पास इतने ढेरों काम हैं कि उन्हीं में सारा वक्त चला जाता है. शुक्रवार की पसंदीदा रातों तक के लिए वक्त नहीं होता.

उन पर दो युवा इंटर्न की जिम्मेदारी है, काम का बोझ दोगुना हो गया है, घर का लोन चुकाना है, लोकल ट्रेन के बजाए अपनी कार से चलने लगी हैं तो घर से दफ्तर आने-जाने में ज्यादा वक्त लगता है और गर्भाशय के अंदर कैंसर से उबर रर्ही बुजुर्ग मां हैं. वे पूछती हैं, ''सुख (सेक्स) के लिए समय कहां है? थोड़ा-बहुत वक्त होता भी है तो मैं बस सोना और अकेले रहना चाहती हूं. डेटिंग, सेक्स, मास्टरबेशन, रोमांस... अब मजे से ज्यादा काम लगते हैं.’’

वे कहती हैं कि जब उन्हें डेट पर जाने का वक्त मिला भी, तो आदमी बुरी तरह नाकाम रहे. पिल्लै अफसोस के साथ कहती हैं, ''मैं जिन लोगों से मिलती हूं, वे भी थके होते हैं. उनकी दिलचस्पी बस खुद में होती है और औरत की देह को समझने का कोई जतन नहीं करते. यह दोहरा झटका होता है—एक तो सेक्स के लिए कम वक्त और जब वक्त मिले भी तो सेक्स बुरा हो.’’

इंडिया टुडे के सेक्स सर्वे 2023 से सुख की इस खाई की झलक मिलती है, वह खाई जो लोगों व सेक्स और आदमियों व औरतों के बीच है. एक तरफ बहुत सारे उत्तरदाता—57 फीसद या आधे से ज्यादा—जितना मिल रहा है उससे ज्यादा सेक्स चाहते हैं, यह बताता है कि सुख की जरूरत तो पक्के तौर पर है. इस नतीजे की तस्दीक दूसरे नतीजे से होती है. वह यह कि महज पांच साल पहले के मुकाबले आज चार गुना तादाद में लोग अपनी सेक्स जिंदगी से नाखुश हैं.

2018 में महज 5.5 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि वे अपने सेक्स जीवन में असंतोष महसूस करते थे. आज यह आंकड़ा बढ़कर 19 फीसद है. विशेषज्ञों का कहना है कि तनाव और जीवनशैली रिश्तों में तनाव पैदा करने वाले मुख्य खलनायक हैं. दिल्ली में साकेत स्थित मैक्स हॉस्पिटल में मानसिक स्वास्थ्य विभाग के डायरेक्टर डॉ. समीर मल्होत्रा कहते हैं, ''आज ज्यादातर लोग भौतिक और लाक्षणिक तौर पर कहीं पहुंचने की हड़बड़ी में हैं. तनाव से ऐसे मजबूत हॉर्मोन निकलते हैं जिनसे हमारी कामवासना सीधे कम हो सकती है. काम के बोझ से हो सकता है एक साथी सेक्स करना न चाहे, जिससे रिश्ता और दूसरा साथी तनाव में आ जाता है.’’

अगर आपको लगे कि इससे लोग आत्मसुख की तरफ चले जाएंगे, तो सर्वे के नतीजे एक और आश्चर्य लेकर आए हैं. हस्तमैथुन करने और उसकी जानकारी दोनों में कमी आई है. 2017 के सर्वे से पता चला कि 26.5 फीसद लोग अक्सर हस्तमैथुन करते थे. यह आंकड़ा इस सर्वे में घटकर 19 फीसद पर आ गया है. दरअसल, कई भारतीयों ने 'नोफैप’ (हस्तमैथुन और पोर्न विरोधी आंदोलन) चैलेंज में हिस्सा लिया, जो एक तरह की ऑनलाइन कसम है.

इसमें प्रतिभागी, जिन्हें फैपस्ट्रोनॉट भी कहा जाता है, ज्यादा स्वस्थ सेक्स जीवन की उम्मीद में हस्तमैथुन और पोर्न से दिमाग हटाकर खुद को नए सिरे से तैयार करने की कोशिश करते हैं. कई वेबसाइट इसे पूरा करने का रास्ता दिखाने में प्रतिभागियों की मदद करती हैं: नो फैप एलएलसी, योर ब्रेन नो पोर्न, रीबूट नेशन और मिस्टर माइंड ब्लोइंग. हालांकि अध्ययनों से पता चला कि हस्तमैथुन करना सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है और परहेज से जरूरी नहीं कि सेक्स जीवन सेहतमंद हो.

हस्तमैथुन से न केवल डोपामाइन, एंडोर्फिस और ऑक्सीटोसिन सरीखे खुशी और सुख के हॉर्मोन निकलते हैं, बल्कि यह नींद, आत्मछवि और शादी को बेहतर बनाने में भी मदद करता है. जर्नल ऑफ सेक्स एजुकेशन ऐंड थेरैपी के 2017 के अध्ययन के मुताबिक, हस्तमैथुन करने वाली महिलाओं में सेक्स की इच्छा और आत्मबल ज्यादा था, यौन उत्तेजना पाने में कम वक्त लगता था और उनका वैवाहिक और सेक्स जीवन ज्यादा संतोषप्रद था.

ऋषि कुलकर्णी (बदला हुआ नाम) से पूछिए. हाल में मुंबई हाइ स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वाले 17 वर्षीय ऋषि खुद पहले फैपस्ट्रोनॉट थे. उनका कहना है कि चैलेंज छोडऩे के बाद जिंदगी बेहतर हुई. उन्होंने नोफैप चैलेंज लिया ही इसलिए था क्योंकि उन्हें लगता था कि हस्तमैथुन से उन्हें सेक्स की लत लग जाएगी. लत का कोई और लक्षण उनमें नहीं था सिवाय इसके कि उन्हें हफ्ते में एक या दो बार खुद को राहत देने की जरूरत महसूस होती थी.

न माता-पिता का मार्गदर्शन था और न यौन शिक्षा. ऐसे में नोफैप चैलेंज के फायदों पर एक लेख पढ़कर उन्होंने मान लिया कि उन्हें सेक्सुअल डीटॉक्स की जरूरत थी. कुलकर्णी कहते हैं, ''शुरू में आसान था मगर हस्तमैथुन नहीं करने के चार महीने बाद मैं कुंठित और चिड़चिड़ा महसूस करता. एक दिन मैंने इत्तेफाकन हस्तमैथुन किया और फौरन बेहतर महसूस करने लगा.’’ स्कूल काउंसलर से मिला तो पता चला कि उन्हें सेक्स की लत दूर-दूर तक नहीं है, तो उन्होंने नोफैप चैलेंज छोड़ दिया.

क्लिनिकल सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी कहते हैं, ''ढेर सारे युवा इंटरनेट, सोशल मीडिया फॉरवर्ड और पोर्नोग्राफी से सीख रहे हैं. इससे सेक्स और यौन आदतों के बारे में अवास्तविक और अज्ञानी नजरिया विकसित हो सकता है. ऑनलाइन से ऑफलाइन बहुत अलग है.’’ यौन अज्ञानता के और भी नतीजे हो सकते हैं. सर्वे के नतीजे सेक्स के प्रति स्त्री-पुरुषों की सहजता और संतोष को भी मापते हैं.

चरम आनंद का झूठा ढोंग करने की बात आने पर 45 फीसद महिला उत्तरदाताओं ने माना कि उन्होंने ऐसा किया, जबकि ऐसा मानने वाले पुरुष 17 फीसद थे. अपनी यौन जरूरतें और कल्पनाएं साझा करने में पुरुष ज्यादा सहज दिखते हैं. औरतों (65 फीसद) के मुकाबले ज्यादा आदमियों (73 फीसद) ने कहा कि उनके साथी अपनी यौन जरूरतों के बारे में बात करते थे.

वहीं औरतों (63 फीसद) के मुकाबले ज्यादा आदमियों (67 फीसद) ने कहा कि उनके साथी ने अपनी यौन कल्पनाएं साझा कीं. दूसरी तरफ औरतें ज्यादा प्रयोगशील थीं—आदमियों के मुकाबले उन्होंने ज्यादा बड़ी संख्या में कहा कि उन्होंने मुख और गुदा मैथुन आजमाया. अलबत्ता जब आदमियों और औरतों के यौन सुख में खाई या फर्क मानने की बात आई, तो उत्तरदाताओं के पांचवें हिस्से ने कहा कि वे पक्के तौर पर नहीं कह सकते, 36 फीसद सहमत थे कि फर्क था और 44 फीसद ने कहा कि फर्क नहीं था. जवाब सभी लैंगिक और आयु समूहों में काफी समान थे. मगर अलग हो चुके या तलाकशुदा उत्तरदाताओं में आधे से ज्यादा सहमत थे कि स्त्री-पुरुष के यौन सुख में फर्क या खाई थी.

बुरे सेक्स को रिश्ते में अक्सर सामान्य मानकर स्वीकार कर लिया जाता है क्योंकि कई लोगों को इससे बेहतर सेक्स का पता ही नहीं. कोलकाता की 42 वर्षीया गृहिणी नीलांजना बसु कहती हैं, ''जब मेरी शादी हुई, मुझे शक था कि हमारी सेक्स लाइफ खराब थी, पर कभी समझ नहीं पाई कि क्या गलत था. मेरी देह की कुछ निश्चित जरूरतें थीं जिनके बारे में मुझे पता तक नहीं था. अब जब मैं तलाकशुदा हूं और फिर डेट कर रही हूं, मैं देखती हूं कि मैं कितने कुछ से वंचित थी.

अगर बंधन का मतलब पुरुष अहं को तुष्ट करने की खातिर अपनी खुशी कुर्बान करना है तो मैं वाकई बंधना नहीं चाहती.’’ बसु कहती हैं कि महिला हस्तमैथुन के बारे में पहली बार उन्होंने तब सुना जब 38 की थीं और नेटफ्लिक्स का शो लस्ट स्टोरीज देखा. वे कहती हैं, ''यह जबरदस्त, आंख खोल देने वाला था.’’ पीछे मुड़कर देखने पर बसु को एहसास होता है कि उनकी शादी टूटने में सेक्स ने भी उतनी ही भूमिका अदा की जितनी बातचीत न होने ने.

वे याद करती हैं प्यार करने के दौरान वे ज्यादातर निष्क्रिय रहती थीं और उनकी दिलचस्पी न हो या थकीं हों तो इनकार तक नहीं कर पाती थीं. वे ख्यालों में डूबे-डूबे कहती हैं, ''अगर आप शारीरिक या मानसिक उत्तेजनाएं साथी से साझा न कर सकें, तो बेहद उदास, अतृप्त और कटुता से भरे शख्स बन जाते हैं.’’ आज उन्हें न केवल उन तमाम साथियों में सुख मिलता है जिनसे वे दोस्तों और सहयोगियों के जरिए मिलती हैं, बल्कि यौन मामलों में बराबरी के हक की मांग करने में भी.

यही रुझान डेटिंग ऐप के आंकड़ों में भी दिखाई देता है, क्योंकि औरतें शादीशुदा होते हुए भी ज्यादा विकल्प तलाशने और अपनी खुशी को ज्यादा तवज्जो देने की ज्यादा प्रबल इच्छा जाहिर कर रही हैं. मसलन, फ्रांस स्थित एक्स्ट्रामैरिटल डेटिंग ऐप ग्लीडन ने ऐलान किया कि दुनिया भर में फिलहाल उसके 1 करोड़ यूजर हैं. भारतीय यूजर में करीब दस लाख औरतें हैं. पूरी तरह औरतों के डेटिंग ऐप बम्बल के करीब 43 फीसद यूजर हैं.

डेटिंग ऐप क्वैक-क्वैक ने पिछले साल अपने महिला आधार में 12 फीसद की बढ़ोतरी बताई. ग्लीडन की इंडिया मैनेजर सिबिल शिडल कहती हैं, ''हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे, उम्मीदों और मूल्यों की जड़ें इस कदर गहरी हैं कि लोग दूसरी तरफ झांककर इनसानों और उनकी इच्छाओं को नहीं समझ पाते. तो ऐसा क्या है जिससे आधुनिक युगल सामाजिक पूर्वाग्रहों के कायम रहने के बावजूद दूसरे पक्ष का विकल्प चुन रहे हैं?

इसका एक और केवल एक जवाब है—टेक्नोलॉजी. जानकारियों, निजी विश्वासों और अनुभवों का फैलाव टेक्नोलॉजी के जरिए बेहद आसान और सुलभ है, जिससे लोगों को विभिन्न मूल्य प्रणालियां समझने में मदद मिलती है.’’ खुली शादियां नई अवधारणा नहीं हैं, पर शिडल कहती हैं कि यह विकल्प अब औरतों को ज्यादा सुलभ है. इसका फायदा शादियों को भी होता है, क्योंकि यौन कुंठाएं रिश्ते से बाहर चली जाती हैं.

औरतों का सुख बढ़ाने में मददगार और भी साधन मौजूद हैं. भारत के सेक्सुअल वेलनेस मार्केट में महिलाओं के लिए बने उत्पादों का विस्फोट-सा हुआ है—चाहे वह सुगंधित और उत्तेजना बढ़ाने वाले चिकने पदार्थ हों, ई-कॉमर्स साइटों पर आसानी से उपलब्ध डॉटेड कंडोम, पर्सनल प्लेजर मसाजर या अन्य किस्म के सेक्स खिलौने हों. 

हालांकि ज्यादातर लोग अब भी उनका इस्तेमाल करने से कतराते हैं. सर्वे के नतीजे बताते हैं कि स्त्री-पुरुषों दोनों को ऐसे उत्पादों के बारे में पता है जो स्त्री के सुख में इजाफा करते हैं, पर आधे से भी कम लोग वाकई उनका इस्तेमाल करने को तैयार होंगे, भले ही इससे उन्हें ज्यादा सुख मिले. यौन सुख की खाई यहां भी आ जाती है. औरतों के मुकाबले ज्यादा आदमी अपना सुख बढ़ाने के लिए सेक्स खिलौनों का इस्तेमाल करने को तैयार दिखते हैं—36 फीसद औरतों के मुकाबले 38.5 फीसद आदमी.

पारंपरिक मानसिकता भी मजा बिगाड़ती है. अपनी महिला समकक्षों (37 फीसद) के मुकाबले ज्यादा पुरुष उत्तरदाता (42 फीसद) औरतों के सेक्स खिलौने इस्तेमाल करने के बारे में मीनमेख निकालने को आतुर थे. दिल्ली की 24 वर्षीया छात्रा नेहा कुमार (बदला हुआ नाम) कहती हैं, ''मैं सेक्स टॉय का इस्तेमाल करने से डरूंगी, महज इसलिए नहीं कि दूसरे मेरे बारे में क्या सोचेंगे बल्कि इसलिए भी कि मैं अपने बारे में क्या सोचूंगी.’’

उनके लिए सेक्स अपने आप में बुरा या शर्मनाक नहीं, पर हस्तमैथुन या सेक्स खिलौने का इस्तेमाल करना? यह विचार तक वे मन में नहीं आने देतीं. उनकी धारणा के विपरीत उनका मंगेतर उनके सेक्स खिलौने इस्तेमाल करने को असामान्य बात नहीं मानता. वे कहती हैं, ''मुझे नहीं लगता कि मैं अभी केवल अपने सुख पर ध्यान देने के लिए तैयार हूं. इस मानसिकता को बदलने के लिए और वक्त चाहिए. फिलहाल यह बहुत सेल्फ-इंडलजेंट (आत्म-आसक्त) लगता है. मैं यह मानते हुए पली-बढ़ी कि खुद पर ध्यान देना सही नहीं है.’’

नेहा सरीखे लोग अपनी यौनिकता को गले लगाने से अभी भले हिचकें, पर बहुत सारे भारतीय अपने और दूसरों के लिए सेक्स के प्रति खुली और उदार मानसिकता की दिशा में बढ़ने पर काम कर रहे हैं. ऑनलाइन कई सेक्स इन्फ्लुएन्सर आदमी और औरतों दोनों को यौन मामलों में ज्यादा मुखर, जागरूक और स्वीकार करने वाला बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. मसलन, मिलेनियल डॉक्टर तनाया इंस्टाग्राम पर डॉ. क्यूटरस नाम का एक पेज चलाती हैं, जहां वे सेक्स और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में लोकप्रिय गलत धारणाओं को तोड़ने की कोशिश करती हैं.

'सेक्सुअलिटी एजुकेटर’ करिश्मा टॉक यू नेवर गॉट पर कंडोम से लेकर चिकनाई तक, यौन शर्मिंदगी से लेकर यौन उम्मीदों तक अनेक विषयों पर किस्म-किस्म की जानकारियां पोस्ट करती हैं. एक और सेक्स डॉक्टर सिमरन बालार जैन असहज यौन विषयों को सुलझाती हैं और इस तरह उन्हें सामान्य बनाने और सुरक्षित सेक्स के तौर-तरीकों को बढ़ावा देने का जतन करती हैं. डॉ. कोठारी कहते हैं, ''सेक्स हमारी जिंदगी का हिस्सा है और यौन सेहत हमारे भले-चंगे होने में योगदान देती है. ऐसी विचार प्रक्रिया को सभी लिंग, उम्र और भूगोलों में सामान्य बनाने की जरूरत है.’’

सुख की खाई तब पैदा होती है जब जरूरतें और उम्मीदें पूरी नहीं होतीं. अज्ञान, तनाव से भरी जीवनशैली, खुद अपने पर थोपी गई सामाजिक रूढिय़ां उन वजहों में से कुछ हैं जिनके चलते भारतीय सेक्स से वह हासिल नहीं कर पाते जिसकी उन्हें जरूरत है. सेक्स को खास और अनोखा काम मानने के बजाए उसे सामान्य बनाना ज्यादा जागरूकता की दिशा में पहला अहम कदम है. इसके लिए वक्त निकालें (वैसे ही जैसे कोई जिम के लिए निकालता है), इसके बारे में ज्यादा बातचीत और बहस करें, और अलग-अलग समस्याओं के समाधान तलाशने के लिए खुला रवैया अपनाएं. जिसकी हमें कम जरूरत है, वह है लांछन.

सर्वे का तरीका

इंडिया टुडे सेक्स सर्वे मार्केटिंग ऐंड डेवलपमेंट रिसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) ने दिसंबर, 2022 और जनवरी, 2023 के बीच किया, जिसमें देश के सभी क्षेत्रों में फैले 19 शहरों के यौन लिहाज से सक्रिय 3,032 वयस्क शामिल थे.

उत्तरदाता रैंडमली या बेतरतीब ढंग से चुने गए ताकि नमूनों में कोई पूर्वाग्रह न आने पाए. हमने कई चरणों की नमूने एकत्र करने की प्रक्रिया अपनाई: पहले चरण में समुचित चयन प्रक्रिया (पुरुषों, महिलाओं, सभी भौगोलिक क्षेत्रों के लोग, यौनिकता, उम्र आदि) के जरिए ऐसे किन्हीं भी बड़े कारकों को नियंत्रित किया गया जो नमूना संग्रह में गड़बड़ी पैदा कर सकते थे.

दूसरे चरण में उत्तरादाताओं के साथ संपर्क बिंदु कॉलेज/ विश्वविद्यालय, शॉपिंग मॉल/ मल्टीप्लेक्स, होस्टल/ लॉज, रेस्तरां आदि का मिश्रण हैं. यह उस क्यूइंग थ्योरी को अपने हिसाब से ढालना है, जिसमें बेतरतीब चयन इस प्रणाली के भीतर ही निर्मित होता है. विश्वास का स्तर 1.78 फीसद गलती की गुंजाइश के साथ 95 फीसद है.

एमडीएमआर के अनुभवी और प्रशिक्षित जांचकर्ताओं की तरफ से एक संरचित प्रश्नावली आमने-सामने इंटरव्यू के जरिए उत्तरदाताओं को दी गई. गौरतलब है कि विषय और प्रश्नों की संवेदनशीलता को देखते हुए सर्वे स्व-प्रशासित प्रश्नावली के माध्यम से आयोजित किया गया, यानी उत्तरदाताओं ने प्रश्नावली खुद भरी.

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