
सोनाली आचार्जी
3.1 करोड़ कुत्ते इस साल देश के लोग घरों में पाल सकते हैं, जबकि 2019 में यह संख्या 2 करोड़ थी
74,000 करोड़ रु. का पेटकेयर बाजार देश में 2022 में था, मार्केट रिसर्च फर्म मार्केट डेसिफर के इस अनुमान के मुताबिक 2032 तक 2,10,000 करोड़ रु. का होगा ये चलेगा!
राम और श्याम का दिन अपने खुद के निजी पूल में उछल-कूद के साथ शुरू होता है. उसके गुनगुने पानी से उनके निकलते ही, एक नौकर उन्हें पोछने के लिए मिस्री कपास से बना तौलिया लिए खड़ा रहता है. उनके नाखून विशेष आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से घिसे जाते हैं, ताकि कीटों और संक्रमण से बचाया जा सके. उसके बाद वे दिल्ली के सैनिक फार्म में आराम से टहलने जाते हैं. नाश्ते में जस्मीन चावल के साथ उबली हुई सालमन (मछली) या जायकेदार लैंब स्टू (भेड़ का गोश्त) होता है.
फिर वे अपनी खुद की बालकनी में लंबी झपकी लेते हैं. बेशक, दिल्ली में जब कड़ाके की ठंड पड़ती है तो वे घर के भीतर मोमी के डुवेट (बत्तख के रोओं से बनी रजाई) में दुबक कर सोते हैं. एक झपकी लेने के बाद वे घंटे भर बेबीसिटर के साथ खेलते-कूदते हैं. उनका दिन डिनर में ब्लूबेरी ओटमील, एस्परागस सूप या नानी की विशेष खिचड़ी का स्वाद उड़ाकर खत्म होता है. लाडले हैं न? जी नहीं. राम और श्याम दो देसी नस्ल के कुत्ते हैं, जिन्हें 33 वर्षीय ध्रुव भसीन और उनका परिवार 2020 में दिल्ली की सड़कों से उठा लाया था.
जाहिर है, कुत्तों की जिंदगी वैसी नहीं रही, जैसी हुआ करती थी. यानी घर की रखवाली करो, मालिकों पर प्यार बरसाओ, या एकाध डॉग शो में अपने करतब दिखाओ. बदले में शायद अपने नाम एक खिताब का तमगा, शायद नाम लिखा एक पट्टा, हाथ से बुना स्वेटर या फिर चबाने को हड्डी जैसा टुकड़ा, बशर्ते घर के टूटे-फटे चप्पल वगैरह न मिल जाएं. घूमना-फिरना किसी पार्क में या फिर वेटरिनरी डॉक्टर के यहां जाने तक ही होता.
अब तक करीब 20 कुत्ते पाल चुकीं बेंगलूरू की 66 वर्षीया शालू के. याद करती हैं, ''डेटॉल साबुन की एक टिक्की से लॉन में होजपाइप से ही नहलाया जाता था. हम अपने कुत्तों को सर्दियों में पहाड़ पर भी कोट और टी-शर्ट नहीं पहनाते थे. उन्हें खाने में ब्रेड और दूध ही दिया जाता था, न कि ब्लूबेरी और ग्लूटोन रहित विशेष खाद्य दिया जाता, जो आप आज देखते हैं.’’
आज, पेटा आपकी हवा निकाल सकता है. आधुनिक परिवार में पालतू पशुओं के पास वे सभी सुख-सुविधाएं हैं जो आदमी के पास होते हैं. वे परिवार में बच्चे की तरह, बीमार या बुजुर्गों के साथी की तरह हैं. फिर, आदमी, औरत या बच्चे के बेस्ट फ्रेंड तो वे हैं ही. स्वाभाविक रूप से, उनके परिवार उन्हें सबसे अच्छी सहूलत मुहैया कराते हैं, और खर्च करने में कंजूसी नहीं बरतते. किसी नए पेट के मालिक को टीकाकरण, बिस्तर, दवा, पट्टे, कॉलर और कटोरे जैसी बुनियादी चीजों पर औसतन 20,000 रुपए से 50,000 रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं. बाकी इस पर निर्भर करता है कि आप कितना लाड़ लुटाते हैं और आपकी जेब में कितनी गुंजाइश है.
देश में लोग हमेशा ही पालतू पशु रखने के शौकीन रहे हैं, लेकिन कोविड-19 के दिनों में समाज से अलग-थलग एकाकी रहने के दौरान भावनात्मक रूप से कैनाइन/फेलाइन के साथ की आवश्यकता कुछ ज्यादा ही हो गई. ऑनलाइन डेटा एजेंसी स्टैटिस्टा के मुताबिक, देश में लोगों के पास 2019 में 2 करोड़ कुत्ते थे, मगर इस साल यह संख्या 3.1 करोड़ तक पहुंच सकती है. बेशक, कुत्ते पालतू पशुओं के रूप में पसंदीदा हैं, मगर बिल्लियों, मछलियों और पक्षियों के भी पर्याप्त खरीदार हैं.
देश की सबसे बड़ी पेटकेयर कंपनी हेड्स अप फॉर टेल्स (एचयूएफटी) के सीओओ तथा खुद कुत्तों के शौकीन समृद्ध दासगुप्ता कहते हैं, ''यह पाया गया है कि कुत्तों और बिल्लियों की संगत से अकेलापन दूर होता है और तनाव घटता है. महामारी के दौरान पालतू पशुओं को रखने का शौक बढ़ा है क्योंकि लोग खुद को घर के अंदर और अक्सर अकेला पाते थे.’’
नोएडा स्थित आर्ट एचआर पेशेवर 37 वर्षीया धृति गुरुदंती ने महामारी के दौरान खुद को बहुत अकेला महसूस किया. उनके पास रखने की जगह नहीं थी तो उन्होंने एक कुत्ते को ऑनलाइन गोद लिया. वे कहती हैं, ''मैंने एक एनजीओ में एक कुत्ते का प्रबंध किया क्योंकि मैं अपने अपार्टमेंट में उसे नहीं रख सकती थी. मैं उसे वीडियो कॉल पर देखती थी और उसकी हरकतों से मुझे खुशी मिलती थी.’’
मौका भांपकर पालतू पशुओं के इर्द-गिर्द एक पूरा उद्योग खड़ा हो गया है. उनके भोजन से लेकर फैशन तक, पेट उत्पादों से लेकर पेट होटल, छुट्टियों में उनके सैर-सपाटे, पेट प्रशिक्षण स्कूलों, पेट मनोवैज्ञानिकों, पेट के जन्मदिन और यहां तक कि फोटो-शूट तक का कारोबार फैलने लगा है.


मार्केट रिसर्च फर्म मार्केट डेसिफर की सितंबर 2022 की रिपोर्ट का अनुमान है कि 2022 में भारतीय पेटकेयर बाजार का आकार 74,000 करोड़ रुपए का था और यह 2032 तक 2,10,000 करोड़ रुपए तक का हो जाएगा, जो 19.2 फीसद सीएजीआर की दर से बढ़ोतरी है. मार्केट रिसर्च फर्म यूरोमॉनिटर के अनुसार, पेट खाद्य उद्योग फिलहाल 4,000 करोड़ रुपए का है, जो 2025 तक 10,000 करोड़ रुपए का हो जा सकता है.
पूरी थाली
भारत में पेट खाद्य बाजार में इतनी संभावना है कि पैकेज्ड फूड और बेवरेज की दिग्गज कंपनी नेस्ले इंडिया ने पिछले साल 123.5 करोड़ रुपए में पुरीना पेटकेयर इंडिया से पेट खाद्य व्यवसाय खरीद लिया, और पहली बार इस क्षेत्र में प्रवेश किया. ब्यूटी ऐंड हेल्थकेयर एफएमसीजी इमामी ने भी पिछले साल पेटकेयर स्टार्ट-अप कैनिस ल्यूपस सर्विसेज इंडिया में निवेश करने का फैसला किया और अब वह फर बॉल स्टोरी ब्रांड नाम के तहत पालतू पशुओं के लिए आयुर्वेदिक औषधियां बाजार में उतारेगी.
पेटकेयर उद्योग में सबसे कामयाब हेड्स अप फॉर टेल्स (एचयूएफटी) की शुरुआत भी ऐसे ही हुई थी. सीओओ दासगुप्ता कहते हैं, ''हमारा ब्रांड पेट खाद्य का था. पिछले कुछ वर्षों में ही हमारे पोर्टफोलियो का विस्तार हुआ है. 14 साल पहले गुणवत्ता वाले पेट खाद्य बेचने का यह इकलौता उद्यम था. हम चाहते थे कि लोग अपने पेट की चीजें खरीदने में कीमत के बदले गुणवत्ता को तरजीह दें.’’
आज, एचयूएफटी के 15 शहरों में 75 स्टोर और 1,100 कर्मचारी हैं. उसकी वेबसाइट पर 5,000 से अधिक पालतू पशु उत्पाद हैं. फिर भी, पेट खाद्य ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. हालांकि उनके डिजाइनर रेनकोट, जूते और बिस्तरों की भी पर्याप्त मांग है. खुद एचयूएफटी का पेट फूड प्लैटर तो अनोखा है—बकरी के दूध में बनी कद्दू कुकीज से लेकर चबाने के लिए याक चीज और चिकन नगेट्स तक.
एचयूएफटी को सफलता सिर्फ उपभोक्ताओं की ओर से ही नहीं, बल्कि निवेशकों से भी मिल रही है. वर्लिनवेस्ट और सेक्युइआ कैपिटल ने 2021 में $3.7 करोड़ डॉलर (लगभग 300 करोड़ रुपए) का निवेश किया, जिसका एचयूएफटी ने अच्छा इस्तेमाल किया है. दासगुप्ता कहते हैं, ''पेट पोषण पर शोध और नवाचार के लिए हमारे पास बेंगलूरू में 45,000 वर्ग फुट की इकाई है. हमारे सभी खाद्य पदार्थों पर काफी शोध किया जाता है. वहीं हमारे सभी खाद्य उत्पाद पर शोध होता है और उसके बाद तैयार किए जाते हैं.’’
एचयूएफटी के सीओओ स्वीकार करते हैं कि उनके पेट खाद्य की मांग सिर्फ पालतू पशुओं की दिलचस्पी से ही नहीं पैदा होती है, बल्कि पालतू पशुओं के पालन-पोषण में सांस्कृतिक बदलाव भी इसकी वजह है. दासगुप्ता कहते हैं, ''आज लोग ज्यादा जानकार हैं और अपने पालतू पशुओं के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला उत्पाद चाहते हैं. गुणवत्ता की वजह से हमारे ब्रांड की मांग है. हम विज्ञापन करना बंद कर दें, तब भी हमारा ब्रांड वैल्यू और ग्राहक बने रहेंगे.’’
अगर आप जानदार कुत्ता या बिल्ली चाहते हैं तो उनके पोषण पर खर्च करें. यही सलाह पेट मालिकों को गुरुग्राम स्थित कुत्ते-बिल्ली की पोषण विशेषज्ञ राशि कचरू देती हैं. वे कहती हैं कि पेट भोजन में ये छह बुनियादी पोषक तत्व होते हैं—पानी, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज और विटामिन. खासकर बिल्लियों को शोरबेदार ताजा भोजन चाहिए क्योंकि वे उम्र बढ़ने पर पानी कम पीती हैं.
शाकाहारी मालिक अक्सर अनजाने में अपने पालतू पशुओं को आवश्यक उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन से वंचित कर देते हैं, जो उनकी सेहत के लिए जरूरी है. कचरू कहती हैं कि सामान्य तौर पर शरीर के वजन के प्रत्येक किलो के लिए लगभग 2-3 ग्राम प्रोटीन चाहिए. वे कहती हैं, ''प्रोटीन न केवल मांसपेशियों का निर्माण करता है बल्कि उसमें पशुओं के लिए कई आवश्यक अमीनो एसिड भी होते हैं. पोषण की कमी फर की गुणवत्ता, पशु की मनोदशा, लंबी उम्र और उसकी सेहत पर असर डालती है.’’


अधिक जागरूक लोग अब अपने पशुओं को भांग के बीज के तेल के साथ-साथ कैल्शियम, प्रीबायोटिक और प्रोबायोटिक जैसे पोषक तत्वों की खुराक दे रहे हैं. कचरू ने खुद पिछले एक दशक में चीजों को बदलते हुए देखा है. वे कहती हैं, ''हम डॉग पिज्जा और कपकेक बेचते थे, और ताजा भोजन डब्बा सेवा भी मुहैया करते थे. फिर हमने डब्बा सेवा में ही जुटने का निर्णय लिया.’’ उनका ब्रांड डॉगी डब्बा कुत्तों के लिए छह प्रकार के भोजन पैक प्रदान करता है और मेव चाउ में बिल्लियों के लिए तीन प्रकार के भोजन पैक हैं. बिना किसी विशेष इलाज की आवश्यकता वाले मझोले कुत्ते के भोजन पर मासिक 8,000 से 10,000 रुपए खर्च हो सकते हैं.
भोजन के साथ-साथ, पालतू पशुओं के सैर-सपाटे की जगहें भी मिल रही हैं जहां वे अपने मालिकों के साथ अच्छा वक्त गुजार सकते हैं. जी नहीं, हम पशुओं की मुफीद जगहों की बात नहीं कर रहे हैं. ये जगहें खासकर उन्हीं के लिए बनाई गई हैं. बुटीक डॉग रिजॉर्ट्स की शृंखला ए डॉग्स स्टोरी में कुत्तों का स्वागत गेंदे के फूलों की मालाओं से किया जाता है, और उनके मालिकों का भी. उसके मालिक हिम्मत आनंद मजाक में कहते हैं, ''हमने कुत्तों की जरूरतों और सुरक्षा को ध्यान में रखकर ये जगहें बनाई हैं. यहां उनके दौड़ने, आराम करने और मजा करने की खूब जगह है. उनके मालिकों के लिए भी सुकून की जगह है.’’
तीन साल का लैब्राडोर-भारतीय कुत्ता मिक्स ब्रुनो, दिल्ली के जनकपुरी वेस्ट में पप्पीचिनो कैफे में जाना इतना पसंद करता है कि उसके मालिक कहते हैं कि उसे पता है कि कार दुकान के बाहर कब रुकती है. उसके पसंदीदा खाद्य में स्नूपी स्पागेटी, चिकन वूफसम वैफल्स विद सनी साइड अप एग, ब्लूबेरी बेकन आइसक्रीम और केला कपकेक वगैरह है. उसकी मालकिन 36 वर्षीया गृहिणी साक्षी कुकरेजा कहती हैं, ''मैं उसे तबसे कैफे ले जा रही हूं जब वह लगभग छह महीने का था क्योंकि वहां दूसरे कुत्ते होते हैं जिससे मेलजोल का मौका मिलता है.’’
नोएडा के डॉग कैफे बार्क स्ट्रीट में मालिक और पालतू पशु एक साथ घूम सकते हैं और अपने और अपने कुत्तों के लिए खाना ऑर्डर कर सकते हैं. कुत्तों के मीनू में सूप, कपकेक और ऑमलेट वगैरह होता है. उसके सह-मालिक राहुल नारंग कहते हैं, ''कुत्ते बच्चों की तरह होते हैं और उन्हें घर पर छोड़ना कभी-कभी मुश्किल होता है. उनके मालिकों को उनके साथ बाहर जाना अच्छा लगता है इसलिए पालतू पशुओं के अनुकूल स्थानों की मांग है.’’ नोएडा में कुत्तों के लिए एक विशेष बेकरी यम्मर्स बार्करी उस जरूरत को भी पूरा करती है, जो कुत्तों के लिए डोनट्स, कपकेक, कुकीज, पिज्जा, जन्मदिन केक और आइसक्रीम मुहैया कराती है.
ऐसी जगहों की कोई कमी नहीं है. पालतू पशुओं के लिए या उनके मुफीद कैफे, पार्क, शॉपिंग आउटलेट, रेस्तरां और डे आउटिंग स्पॉट देश भर में उभर रहे हैं, मुंबई में विशाल जिओ वर्ल्ड ड्राइव हो, या दिल्ली में शानदार कैफे डोरी, नोएडा में पेटस्ट्रीट रिजॉर्ट के मूवी थिएटर से लेकर बेंगलूरू के कब्बन पार्क में विशेष डॉग स्पॉट तक ढेरों जगहें तैयार हैं.
पालतू पशुओं की विलासिता
जिस गार्डन पाइप से कार की धुलाई होती थी, कभी उसी से पालतू पशुओं को नहला देना काफी होता था. नहलाने के बाद आप उन्हें स्वाभाविक रूप से सूखने के लिए छोड़ देते थे. आज, पालतू पशुओं की देखभाल के व्यवसाय में जितना आडंबर है वह आपको चौंका सकता है क्योंकि पालने वाले अपने पालतू पशुओं के साथ वैसा ही लाड़-प्यार दिखाते हैं जैसा वे इनसानों के साथ दर्शा सकते हैं. चाहे वह डीप टिश्यू मसाज हो या फिर उनके पंजों को नम और मुलायम रखने के लिए पॉ बटर मसाज, कुत्तों और बिल्लियों की देखभाल और दुलार का तरीका शायद ही कुछ और हो. उनके हेयरकट 2,400 रु. से और स्पा 1,900 रु. से शुरू होते हैं. कुत्ते के आकार और नस्ल के साथ कीमतें बदलती रहती हैं.
मुंबई स्थित पेटगास्कर की मालिक लीशा मोटवानी का कहना है कि यह गलत धारणा है कि केवल अमीर ग्राहकों के पेट या फिर कुत्तों की श्रेष्ठ नस्लों को ही पेट स्पा की विलासिता मिलती है. मोटवानी कहती हैं, ''चाहे वह इंडी हो या हस्की, सभी स्पा में आते हैं. पालतू पशुओं की देखभाल मालिकों को अच्छी लगती है.’’
पालतू पशुओं को स्पा ट्रीटमेंट की आदत डालना महत्वपूर्ण है. चौंतीस वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रशांत सहगल अपने छह साल की पर्शियन बिल्ला व्हिस्की के साथ बेंगलूरू के एचयूएफटी स्पा में अपने कुछ शुरुआती अनुभवों को याद करते हैं. व्हिस्की को उसके पहले मालिक ने दो साल की उम्र में छोड़ दिया था और फिर सहगल ने उसे गोद ले लिया था. उन्हें उसे दो महीने तक हर हफ्ते स्पा में ब्लोड्रायर के लिए लेकर जाना पड़ा जब तक कि उसने डरना बंद नहीं किया
जिस कुत्ते या बिल्ली को कभी ब्लो ड्राई नहीं किया गया हो या कभी उसके नाखून नहीं काटे गए हों, उसे स्पा के लिए तैयार करना मुश्किल होता है. व्हिस्की को अब अपना साप्ताहिक स्पा ट्रीटमेंट लेने की आदत हो चुकी है. वे कहते हैं, ''जैसे ही उसे शैंपू की गंध मिलती है, वह गुर्राना शुरू कर देता है. वह अभी नाखून काटने नहीं देता है, लेकिन हम वह भी जल्द करेंगे. यह सब आसान नहीं है, जब वे बड़े हो गए हों और उनकी कुछ आदतें बन गई हों. आपको बहुत धैर्य के साथ उन्हें अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने के लिए काफी वक्त देना होगा.’’
चाहे पालतू पशु हों या उन्हें पालने वाले, तड़क-भड़क और शोशेबाजी दोनों को एक जैसे आकर्षित करते हैं. 26 वर्षीया प्रतिमा पिंगली ने पालतू पशुओं और फोटोग्राफी के लिए अपने जुनून को मिलाकर 2018 में पॉवपाराजी शुरू किया. शुरुआत में उन्हें हैदराबाद से मुंबई जाना पड़ा क्योंकि उन्हें अपने गृहनगर में पालतू पशुओं के लिए फोटोशूट कराने की इच्छा रखने वाले पर्याप्त ग्राहक नहीं मिल रहे थे. मुंबई में उनके आइडिया को बहुत पसंद किया गया और उन्हें फलता-फूलता व्यवसाय मिला.
अपने पेशे के लिए देश भर में जाने वालीं पिंगली बताती हैं, ''पालतू पशुओं के जन्मदिन, मैटरनिटी शूट या फिर नवजात बच्चे की तस्वीरें निकालने के लिए मैं एक महीने में 12-15 आउटडोर शूट करती हूं.’’ पालतू पशु के साथ डेढ़ घंटे की शूटिंग पर 17,500 रु. खर्च हो सकते हैं. पेट पेरेंट्स को उनके साथ दिक्कतें नहीं आतीं क्योंकि पिंगली ने विभिन्न नस्लों, स्वभाव और स्थितियों को संभालने के लिए खुद को प्रशिक्षित किया है. वे अपने प्रयासों के बारे में कहती हैं, ''लोग सिर्फ मामूली मददगार हो सकते हैं, कुत्ता हमेशा हीरो होता है.’’
किसी-किसी कुत्ते के ऐसे दिन भी आते हैं
पेट पेरेंट्स द्वारा अपने पेट्स के लिए पैसे खर्चने को तैयार रहने की इच्छा को भुनाने के लिए कई होटल चेन अब पालतू पशुओं के होटल में ठहरने के लिए विशेष पैकेज की पेशकश कर रहे हैं. दिल्ली के 42 वर्षीय कपड़ा निर्यातक शंकर चौधरी बताते हैं कि उनका छह साल का कुत्ता खुशी देहरादून स्थित हयात की उनकी लगातार यात्राओं को कितना पसंद करता है. चौधरी कहते हैं, ''इससे मुझे खुशी होती है कि मैं यात्रा के अनुभव उसके साथ साझा करता हूं.’’ होटल के ट्री ऑफ लाइफ में उसे खाने के कटोरे, लजीज चिकन, कीट-पतंगों से मुक्त कमरा और साफ कपड़ा मिलता है. चौधरी कहते हैं, ''उसकी नाक-त्वचा संवेदनशील है.’’
पुणे में स्व-वित्तपोषित डॉग हॉस्टल डॉगगोटेल, कुत्तों और उनके पालकों को एक साथ रखने की कोशिश कर रहा है. 34 साल के उद्यमी आदित्य धुरिए इसे एक व्यवसाय की तरह खड़ा करने में जुटे हैं और तीन तरह से प्रयास कर रहे हैं. वे बताते हैं, ''सबसे पहले, हम ऐसी सुविधाएं बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे पेट पेरेंट्स के लिए घर से बाहर जाने पर अंकुश न लगे; पेट पेरेंट्स के लिए अपने पालतू पशुओं के साथ आनंद लेने के लिए सुरक्षित सुलभ स्थान हो.’’ डॉगगोटेल 30 से 35 कुत्तों को लंबे समय तक ठहरा सकता है, और उनके मस्ती करने को गुनगुना पूल और कई गतिविधियां भी उपलब्ध हैं.
कुत्तों की पाठशाला
वह समय बीत गया जब पालतू पशु कुछ 'लेकर आने’, 'बैठने’ या 'मांगना’ सीख जाए तो पर्याप्त माना जाता था. उसके मालिकों को उनसे इससे ज्यादा कुछ अपेक्षा होती नहीं थी. आज के पेट पेरेंट्स अपने पेट की स्कूली शिक्षा को लेकर अधिक महत्वाकांक्षी हैं, जहां शिक्षक ज्यादा मानवीय संवेदनाएं रखते हों. आठ साल पहले मुंबई में 33 वर्षीया देवांशी देसाई ने वैग टू स्कूल की शुरुआत की थी, जिसमें अन्य लोगों के अलावा सेलेब्रिटी के पालतू पशु आते हैं.
यहां आने वालों में पेट पेरेंट्स में ह्रितिक रोशन, माधुरी दीक्षित-नेने, दिशा पाटनी और कृति सैनन जैसी स्टार शामिल हैं. यहां एक घंटे के प्रशिक्षण सत्र का शुल्क 2,500 रु. है, और अब यहां पालतू पशुओं को सहज आचरण प्रशिक्षण की पेशकश की जा रही है. पालतू जानवरों को करतब या शरारत सिखाने के लिए उन्हें कोई लालच नहीं दिया जाता या फिर कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की जाती. देसाई मानव और कुत्ते के बीच उत्तेजना और गहरे बंधन को उभारने के विचार के साथ काम करती हैं.
वे कहती हैं, ''हम पारंपरिक प्रशिक्षण की तरह जंजीरों या अखबारों का उपयोग नहीं करते. हम नियंत्रण हटा देते हैं और कुत्ते को सिखाते हैं कि उसे इनसान से क्या उम्मीद करनी चाहिए और किसी इनसान के साथ रिश्ते पर कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए. हर कुत्ते का प्रशिक्षण सत्र अलग होता है, जो कुत्ते के व्यक्तित्व, उसके साथ रहने वाले इनसान के व्यक्तित्व और घर के माहौल के आधार पर निर्धारित होता है.’’
अपने पालतू पशुओं को पालने के बारे में शिक्षित करने में मदद के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं. देसाई कहती हैं, ''आप कुत्ते की जरूरतों को पूरा नहीं करते हैं, तो आप यह कैसे सोच सकते हैं कि वे आपकी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे?’’ वैग टु स्कूल अपने ग्राहकों की मदद के लिए पेट सिटर, उनके साथ खेलने वाले और पोषण विशेषज्ञ भी उपलब्ध कराता है.
सही देखभाल
पशु चिकित्सकों के लिए अब बात पहले जैसी ही नहीं रही. दूसरी पीढ़ी के पशु चिकित्सक बनने के लिए अध्ययन कर रहे बेंगलूरू के 24 वर्षीय डॉ. एम. श्रेयस कहते हैं, ''वे दिन लद गए जब पशु चिकित्सक को केवल पेट्स को रेबीज के लिए टीके लगाने और कीड़ों के उपचार के लिए याद किया जाता था.
आज पशु चिकित्सक बनने का एक बड़ा ही रोमांचक समय है क्योंकि आप बहुत सारे नए क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकते हैं और नौकरी के पर्याप्त अवसर हैं जो मेरे पिता के समय में नहीं थे.’’ दो भाई कुणाल और भानु शर्मा जो क्रमश: पालतू पशुओं के हड्डी रोग विशेषज्ञ और हृदय रोग विशेषज्ञ हैं, दिल्ली में मैक्स वेट्स चलाते हैं.
उनके पिता एस.डी. शर्मा ने 1959 में क्लिनिक की शुरुआत की थी, तो यह ग्रेटर कैलाश-1 इलाके की एक बिल्डिंग के बेसमेंट में चलता था. आज, यह एक शानदार तीन मंजिला छोटा पशु अस्पताल है, जिसमें पेट आइसीयू, एक्स-रे और एमआरआइ स्कैनर, ऑपरेटिंग यूनिट और 24 घंटे की आपातकालीन हेल्पलाइन है.
यहां, पालतू ऌपशुओं की मोतियाबिंद सर्जरी, रीढ़ की हड्डी का इलाज, हृदय के ऑपरेशन, कैविटिज हटाना, कीमोथेरेपी यहां तक कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन की सुविधा भी मिल सकती है. एक टिक-क्लीनिंग सेशन के लिए कीमत 1,000 रु. से लेकर विशेष एमआरआइ स्कैन के लिए 5,000 रु. और ऑपरेशन के लिए 20,000 रु. तक चुकानी होती है.
आपका पालतू अकेला या उदास महसूस कर रहा है तो क्या हो? उस स्थिति में, आपको कोई मनोचिकित्सक के पास जाने का सुझाव दे तो उसे अतिशयोक्ति पूर्ण न समझें. चेन्नै में किसी के सामने ऐसी स्थिति खड़ी होती है तो वह 44 वर्षीया पूर्णिमा राव से संपर्क कर सकता है. राव बिहेवियरल थेरेपी, रेकी, एक्यूपंक्चर और मसाज थेरेपी के मिलेजुले इलाज से अपने ग्राहकों के अवसाद और उदासी को दूर करती हैं. उनका सबसे हालिया रोगी एक 10 वर्षीय रूसी ब्लू कैट था जो अकेलेपन से पीड़ित था. राव कहती हैं, ''मैंने उसके दर्द से जुड़कर उसे ठीक किया.
उसने एक महीने पहले अपने भाई को खो दिया था. मैंने उसके अभिभावकों को उसे एक नया साथी दिलाने की सलाह दी. वह अब खुश है क्योंकि कुछ बिल्ले कई की संगति में बेहतर रहते हैं.’’ राव हर सेशन के 5,000 रु. लेती हैं. वे उपचार तभी करती हैं जब उनके किसी पिछले ग्राहक ने उसकी सिफारिश की हो. पेट साइकोलॉजी या पालतू पशु मनोविज्ञान में ऑनलाइन पाठ्यक्रम करने के बाद, उनका व्यवसाय बढ़ रहा है.
वे बताती है, ''2010 में बस दो ग्राहकों से, आज मुझे सप्ताह में दो से तीन मिल जाते हैं. लेकिन मैं उन सभी को स्वीकार नहीं करती क्योंकि मेरी चिकित्सा ऊर्जा स्पंदनों पर आधारित है. अगर मैं हर जानवर को ठीक करना शुरू कर दूं, तो मेरी सारी ऊर्जा खत्म हो जाएगी. मैं अपनी सेवाओं को केवल उन खास लोगों के लिए रखती हूं जिन पर मुझे भरोसा है.’’ राव का कहना है कि वे यह काम प्यार और जुड़ाव से करती हैं, पैसे या प्रसिद्धि के लिए नहीं.
धंधे को चाहिए प्यार, बेशुमार
आप जानवरों के लिए प्यार और करुणा नहीं रखते हैं तो आप पालतू पशुओं से जुड़े व्यवसाय में नहीं हो सकते. एचयूएफटी के दासगुप्ता कहते हैं, ''पेट इकोनॉमी के क्षेत्र में अलग दिखने के लिए, आपको पालतू पशुओं की देखभाल करने की जरूरत है. आखिरकार, पेट मालिक ऐसे ब्रांड पर भरोसा करेंगे जो पालतू पशुओं के लिए विशेष देखभाल और सोच दर्शाता हो.’’
कंपनी, अपने फाउंडेशन के जरिए बच्चों को यह सिखाती है कि सड़कों पर दिखने वाले हर पशु के लिए प्रेम और सम्मान कैसे दर्शाया जाए, देश भर के पब्लिक स्कूलों में शैक्षिक कार्यक्रम चलाती है. वे स्ट्रीट डॉग्स के लिए खाना भी तैयार करते हैं और विभिन्न चैरिटी के साथ साझेदारी के माध्यम से अब तक 10-15 लाख कुत्तों को खाना खिला चुके हैं.
व्यवसाय और परोपकार दोनों एक साथ करना हमेशा आसान नहीं होता. मुंबई के कैट कैफे की मालिक चारु खोसला कहती हैं, ''यह जापान जैसा व्यवसाय नहीं है, जहां लोग सिर्फ बिल्लियों के साथ खेलने आते हैं. हम ऐसी बिल्लियों को रखते हैं जिन्हें बचाया गया है. इसे चलाना आसान नहीं है, लेकिन मुझे बदलाव के संकेत दिखाई दे रहे हैं—उन्हें खाना खिलाने वाले और बचावकर्मी खुद आज सशक्त हैं. युवा पीढ़ी से भी काफी समर्थन मिलता है.’’
उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि पालतू पशुओं के लिए खास तौर से बने उत्पादों और सेवाओं की मांग आज जैसी पहले कभी नहीं रही. सोशल मीडिया रील कुत्तों और बिल्लियों पर लुटाई जा रही विलासिता से भरे पड़े हैं. अब कुत्ते-बिल्ली पालना गंभीर किस्म का काम है, और पालतू पशुओं के कारोबार से जुड़े लोगों से बेहतर इसे कोई और नहीं जानता.
—साथ में सुहानी सिंह