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हर तरफ मोदी

बतौर प्रधानमंत्री नौ साल बिता चुके मोदी का जलवा, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के बावजूद कायम है. भाजपा 2024 में रिकॉर्ड तीसरी जीत की ओर बढ़ती नजर आती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अपडेटेड 6 फ़रवरी , 2023

टेस्ट क्रिकेट करियर चरम पर होने के दौरान भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बटोरने वाले शानदार बल्लेबाजों—सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ दोनों ने बल्लेबाजी के दौरान अपने 'जोन’ में पहुंचने की बात कही. आखिर ये जोन होता क्या है? तेंडुलकर के शब्दों में, ''मैं बल्लेबाजी करते समय गेंद के सिवाय कुछ भी नहीं देखता.

एकाग्रता ऐसी कि आप बाकी सारी चीजों से बेपरवाह हो जाएं.’’ कुछ इसी तरह की बात द्रविड़ ने भी कही और साथ ही जोड़ा कि जब वे जोन में होते तो साइट स्क्रीन, नॉन-स्ट्राइकर, अंपायर और यहां तक कि इस पर भी ध्यान नहीं देते कि गेंदबाजी कौन कर रहा है. क्रिकेट के सबसे गैर-परंपरागत बल्लेबाजों में से एक वीरेंद्र सहवाग का मानना है कि किसी बल्लेबाज के बहुत सारे रन बनाने का कौशल इसमें निहित है कि उसका सिर तना हुआ हो और शरीर संतुलन में हो.

अगर राजनीति में भी ऐसा कोई जोन होता है तो बतौर प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल के नौवें वर्ष में नरेंद्र मोदी उसमें दाखिल हो चुके हैं. आखिरकार महंगाई और बेरोजगारी दोनों ही संदर्भों में एक बड़े आर्थिक संकट के बीच जनवरी 2023 में आयोजित नवीनतम इंडिया टुडे-सीवोटर देश का मिजाज सर्वेक्षण में उनकी रेटिंग जिस तरह एक नए मुकाम पर पहुंची है, उसकी व्याख्या के लिए इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है? प्रधानमंत्री के तौर पर उनके प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कहे जाने पर 72 फीसद उत्तरदाताओं ने इसे उत्कृष्ट से अच्छे के बीच रखा, जिसमें जनवरी 2022 के निष्कर्षों की तुलना में नौ फीसद अंक का अच्छा-खासा उछाल दर्ज किया गया है.

राजनीति के मैदान में मोदी हमेशा फ्रंट फुट पर खेलते रहे हैं. यह कहना शायद कोई अतिशयोक्ति न होगी कि उनमें सचिन जैसी काबिलियत के साथ द्रविड़ जैसा धैर्य और सहवाग जैसी चपलता भी है. उनमें कपिल देव जैसे महान ऑलराउंडर के गुण भी हैं, जो गेंद को हवा में दोनों तरफ स्विंग कराने में माहिर थे, यहां तक कि सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों को भी भ्रमित कर देते थे, और फिर उनके बल्ले से निकले तूफानी शतकों के बारे में कौन नहीं जानता.

2015 के बाद यह चौथा मौका है जब मोदी की लोकप्रियता 70 फीसद के आंकड़े को पार कर गई है—इन सात साल में उनकी सबसे कम रेटिंग अगस्त 2021 में रही जो 54 फीसद थी. अपने कामकाज के बलबूते मोदी अपनी पूरी टीम का प्रदर्शन उच्च स्तर पर पहुंचाने में सफल रहे हैं. यही वजह है कि एनडीए सरकार को लेकर संतुष्टि का स्तर जनवरी 2022 के 58.7 फीसद की तुलना में इस बार 67.1 फीसद रहा है, जिसमें 9 फीसद की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है. यह स्थिति उन 'तमाम संकटों’ के बावजूद है, खासकर आर्थिक मोर्चे पर, जिनका सरकार को सामना करना पड़ रहा है.

इसके विपरीत, बतौर प्रधानमंत्री अपने नौवें वर्ष में स्वीकार्यता को लेकर डॉ. मनमोहन सिंह की रेटिंग गिर गई थी, जनवरी 2013 के देश का मिजाज सर्वे में केवल 29 फीसद उत्तरदाताओं ने उनके प्रदर्शन को अच्छे से उत्कृष्ट के बीच आंका था. 2014 के आम चुनाव से डेढ़ साल पहले सीटों के मामले में यूपीए-2 महज 152 से 162 सीटों पर सिमटता नजर आया जिसने 2009 के चुनाव में कुल 262 सीटों पर सफलता हासिल की थी.

ये दोनों निष्कर्ष अगले साल मनमोहन सिंह और कांग्रेस पर टूटे राजनैतिक कहर का पूर्वाभास दे रहे थे. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सियासी आंधी ने यूपीए-2 के स्टंप ही उखाड़ दिए. भाजपा न केवल अपने दम पर साधारण बहुमत हासिल करने में सफल रही बल्कि उसने कांग्रेस को 543 सदस्यीय सदन में 44 सीटों पर समेटकर खात्मे के कगार पर ला दिया.

2013 में यूपीए-2 के उलट, देश के मिजाज का ताजा सर्वेक्षण एनडीए-2 के लिए ऐसी कोई बुरी खबर नहीं दे रहा. कुछ भी हो, मोदी के नेतृत्व वाला गठबंधन 2024 के आम चुनाव जीतने की स्थिति में ही नजर आ रहा है. अगर संसदीय चुनाव अभी हों, तो सर्वे के पूर्वानुमान के मुताबिक एनडीए 298 सीटें जीतेगा, जो आंकड़ा छह महीने पहले के 'देश का मिजाज’ अनुमान की तुलना में नौ कम है और यह 2019 के लोकसभा चुनावों में सत्ता में लौटने के दौरान हासिल सीटों की तुलना में 54 सीटें घटने को दर्शाता है.

हालांकि घटती सीट संख्या एनडीए के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए, लेकिन अहम बात यह है कि भाजपा अपने दम पर 284 के आंकड़े पर टिकी है. हालांकि, यह 2019 में उसे मिली 303 सीटों के वास्तविक आंकड़े की तुलना में 19 कम है, फिर भी यह सर्वे भाजपा को अपने दम पर सरकार बनाने के लिए आवश्यक 272 सीटों के स्पष्ट बहुमत की तुलना में 12 सीटें अधिक मिलती दिखा रहा है. इसे मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक बड़ा लाभ माना जा सकता है क्योंकि इससे पता चलता है कि पार्टी अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में भी विपक्ष के साथ एक बड़ा अंतराल बनाए रखने की स्थिति में है.

भाजपा की लोकप्रियता इसके बावजूद बनी हुई है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर एनडीए सरकार के प्रदर्शन ने उत्तरदाताओं को थोड़ा नाखुश कर रखा है. यह पूछे जाने पर कि उनकी नजर में एनडीए सरकार की सबसे बड़ी विफलताएं क्या हैं, 55 फीसद उत्तरदाताओं ने महंगाई, बेरोजगारी, धीमी आर्थिक वृद्धि और नोटबंदी जैसे कई आर्थिक मुद्दे गिनाए.

सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों ने यह भी कहा कि 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से उनकी आर्थिक स्थिति या तो वैसी ही बनी है या फिर बिगड़ी ही है. करीब 60 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि सरकार 'अच्छे दिन’ लाने के वादे पर खरी नहीं उतरी है, जिसका वादा मोदी ने पहली बार सत्ता में आने के दौरान किया था. वैसे तो, इस तरह की बातें संभवत: किसी भी सरकार पर भारी पड़ सकती हैं लेकिन मोदी और उनकी सरकार के मामले में ऐसी गुंजाइश नजर नहीं आती.

तो फिर, आर्थिक अनिश्चितता के बीच मोदी और एनडीए-2 की लोकप्रियता बढ़ने का यह विरोधाभास आखिर क्यों है? कुछ हद तक इसका कारण पिछले साढ़े आठ साल के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में सरकार की सफलता को माना जा सकता है. कोविड-19 से कारगर ढंग से निबटना इसकी शीर्ष उपलब्धि रही है, क्योंकि दूसरी लहर के दौरान लगे झटकों की तुलना में स्थिति उल्लेखनीय रूप से बदली है, जब ऑक्सीजन की कमी और मौतों के लगातार बढ़ते आंकड़े को लेकर सरकार को काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी.

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाना और अयोध्या में राम मंदिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ गलियारे का निर्माण सरकार की सफलताओं की सूची में क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहा. ये दोनों ही मुद्दे हिंदुत्व समर्थक जनाधार के लिए काफी मायने रखते हैं, इसलिए इन्हें लेकर सरकार को व्यापक समर्थन मिला है.

सर्वे में शामिल लोगों ने यह भी स्वीकारा कि सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं, अपेक्षाकृत भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने और बुनियादी ढांचे के विकास के मामले में भी अच्छा काम किया है. हालांकि, सबसे ज्यादा अचरज की बात यह है कि इन सारी उपलब्धियों में से किसी को भी समर्थन का फीसद दोहरे अंक तक नहीं पहुंच पाया है.

मोदी और उनकी सरकार के 2024 में रिकॉर्ड तीसरी जीत की ओर अग्रसर होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री को एक ईमानदार, विश्वसनीय, दिन-रात सक्रिय नेता माना जाता है और मनमोहन सिंह के विपरीत उनकी सरकार किसी बड़े घोटाले के मामले में भी एकदम बेदाग है. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री लगातार अपने 'जोन’ में बने हुए हैं, और उन प्रमुख संकटों और विकास से जुड़े मुद्दों को सुलझाने पर ध्यान दे रहे हैं जो उनके शासनकाल में सामने आए. गेंद की तरह अपने लक्ष्यों से उनका ध्यान कभी-कभार ही भटका और समस्याओं पर काबू पाने के लिए वे साहसिक और नए कदम उठाने से नहीं चूकते हैं.

2016 में उड़ी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा बम धमाकों के बाद हवाई हमला उनकी लोकप्रियता का आंकड़ा और बढ़ाने वाले कदम ही साबित हुए हैं. यहां तक कि एलएसी पर चीनी घुसपैठ के खिलाफ उनकी सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों को भी संतोषजनक माना जा रहा है, जिसे लेकर कांग्रेस ने उनकी कड़ी आलोचना तक की थी. नोटबंदी जैसी पहल भले ही लोगों को पसंद न आई हो लेकिन उसे लेकर यह आम धारणा कतई नहीं बदली है कि इसके पीछे इरादा तो नेक ही था.

वैसे तो, मोदी और उनकी सरकार के पास खुश होने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस बार उनकी जीत दूसरी पारी की तरह एकदम पक्की नहीं है. जनवरी 2023 का देश का मिजाज सर्वे उनका बहुमत लगातार घटता दिखा रहा है. इस साल के सर्वे में भाजपा को मुख्य रूप से चार राज्यों असम, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में फायदा होता नजर आ रहा है, जिसमें उसे कुल मिलाकर 13 सीटों के फायदे का अनुमान है.

हालांकि, पश्चिम बंगाल में भाजपा की सीटों की संख्या अभी अनुमानित 20 सीटों (42 में से) की तुलना में घट सकती है, अगर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद की दावेदार बनें और बंगाली गौरव को चुनावी मुद्दा बनाएं... वहीं, तेलंगाना में भी कुछ ऐसी ही सूरत उभर सकती है, बशर्ते मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव प्रधानमंत्री पद की रेस में उतरें. ऐसे में भाजपा को अभी अनुमानित छह सीटें (राज्य के 17 निर्वाचन क्षेत्रों में) मिलना मुश्किल होगा.

उत्तर प्रदेश में भी 80 में से 70 सीटों पर जीत हासिल करना मुश्किल हो सकता है, अगर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी राज्य के सियासी परिदृश्य में फिर से उभरकर अपनी सीट संख्या बढ़ाने में सफल रहे, जिस तरह का प्रदर्शन उनकी पार्टी ने 2022 के राज्य विधानसभा चुनावों में किया था.

मोदी और भाजपा को दो अन्य बड़े राज्यों महाराष्ट्र (48 सीटें) और बिहार (40 सीटों) में भी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के बागी धड़े से हाथ मिलाने के बाद फिलहाल भले ही सरकार चलाने में भाजपा का पलड़ा भारी हो. लेकिन महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए)—जिसमें शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल हैं—अगर गठबंधन के तौर पर लोकसभा चुनाव में उतरा तो भाजपा को सीटों का खासा नुक्सान उठाना पड़ सकता है.

2019 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 41 पर जीत हासिल की थी, इसमें 25 सीटों पर प्रत्याशी उतारने वाली भाजपा ने 23 पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार गठबंधन और अकेले दोनों स्तर पर पार्टी को सीटों का नुक्सान हो सकता है. देश का मिजाज सर्वे कहता है कि एनडीए को केवल 14 सीटें मिल सकती हैं, जिनमें भाजपा 11 सीटें जीत रही है. इसके अलावा, साल के अंत में मुंबई और ठाणे नगरपालिका के चुनावों से ही तय होगा कि सेना का कौन-सा गुट दमदार है.

बिहार में भी भाजपा को 2019 के मुकाबले संसदीय सीटें गंवानी पड़ सकती हैं. तब जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) एनडीए में शामिल थी और उसने कुल 40 में से 39 सीटें जीत ली थीं. भाजपा 17, जदयू 16 और लोजपा 6 सीटें जीती थीं. सिर्फ एक सीट कांग्रेस के पाले में गई थी. हालांकि, इस बार एनडीए में जदयू नहीं होगा, क्योंकि राज्य में भाजपा की मुख्य सहयोगी तथा उसके नेता नीतीश कुमार अगस्त 2022 में अलग हो गए और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव के साथ हाथ मिला लिया.

जदयू और राजद की संयुक्त वोट हिस्सेदारी बिहार में भाजपा के अकेले दम पर जीतने की उम्मीदों पर पानी फेर सकती है, खासकर जब लोजपा भी उसका साथ छोड़ गई है. देश का मिजाज जनमत सर्वेक्षण का अनुमान है कि बिहार में भाजपा सिर्फ 14 सीटें जीत सकती है.

भाजपा ने 2019 में दूसरे राज्य कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल की थी, जहां उसे कुल 28 में से 25 सीटें मिल गई थीं. वहां इस मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी पहले ही बैकफुट पर है, और अगर वह कांग्रेस से हार जाती है, तो अगले साल लोकसभा चुनाव में इसकी सीटें घट सकती है. देश का मिजाज सर्वेक्षण में कर्नाटक, महाराष्ट्र और बिहार में यूपीए की सीटें 76 होने का अनुमान है, जिसे 2019 की नौ सीटों की तुलना में 67 सीटों का पर्याप्त लाभ होता दिख रहा है.

भाजपा अगर विधानसभा चुनाव हार भी जाती है तो उसे राज्यों में लोकसभा सीटें जीतने के लिए मोदी के करिश्मे और लोकप्रियता का भरोसा है, जैसा कि 2019 में हुआ था. 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में राज्य चुनाव जीत गई थी, लेकिन 2019 के संसदीय चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों ने इन राज्यों की कुल 65 में से 62 सीटें जीत ली थीं. मोदी और भाजपा को दूसरा फायदा यह है कि विपक्ष बंटा हुआ है, और अब तक कोई स्पष्ट ध्रुव नहीं बन रहा है जो व्यावहारिक विकल्प हो सकता हो.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने भले ही उनकी छवि को निखारा हो, लेकिन देश का मिजाज सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि ज्यादातर लोगों का मानना है कि कांग्रेस के पास न नेतृत्व है और न ही भाजपा के रथ को रोकने के लिए संगठनात्मक ताकत है. देश का मिजाज सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी और राहुल गांधी की लोकप्रियता में 39 फीसद का भारी अंतर है.

इसके बावजूद भाजपा के सामने दूसरी दिक्कतें हैं. एक तो यही कि उसकी कामयाबियों का उसे खास फायदा नहीं मिल सकता है, जो रुझान देश का मिजाज सर्वेक्षण में दिखाई देता है. मसलन, कोविड-19 से निबटना सरकार की प्रमुख उपलब्धि है, लेकिन एक साल बाद इसके फायदे शायद ही हासिल हों.

इसी तरह अनुच्छेद 370 रद्द करना पक्के हिंदुत्व समर्थकों को छोड़कर बाकी लोगों के लिए खास दिलचस्पी का नहीं हो सकता है, बशर्ते मोदी सरकार इस साल के अंत तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का फैसला नहीं करती. इसके अलावा, भाजपा ने अयोध्या में शानदार राम मंदिर बनाने का वादा पूरा कर दिया है, लेकिन योजना के अनुसार चुनाव से ठीक पहले नए मंदिर के उद्घाटन के बाद ही उसे अतिरिक्त लाभ मिलेगा.

इन दो मुद्दों से भाजपा को करीब 20 से 25 फीसद अपने मूल वोट बैंक को बनाए रखने में मदद मिल सकती है. लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण से पार्टी को सीमित लाभ ही मिलेगा. कुछ लोग भले अतीत में मुसलमानों के प्रति कथित तुष्टीकरण की नीतियों के खिलाफ हो सकते हैं, लेकिन वे नहीं चाहते कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण खतरनाक स्तर तक पहुंचे और बड़े पैमाने पर सामुदायिक टकराव हो. व्यापक समर्थन के बावजूद, समान नागरिक संहिता पर जोर देने का नतीजा उल्टा साबित हो सकता है.

फिर, देश का मिजाज सर्वेक्षण में इस प्रश्न पर लोगों की राय बंटी हुई थी कि क्या लोकतंत्र खतरे में है? 43.2 फीसद लोगों ने हां कहा तो 42.6 फीसद ऐसा नहीं मानते. क्या भाजपा सरकार राजनैतिक विरोधियों पर वार के लिए केंद्रीय प्रवर्तन एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है? 44.2 फीसद लोगों की राय हां में थी जबकि 42.4 फीसद ऐसा नहीं मानते.

देश का मिजाज सर्वेक्षण के नतीजे लोगों में इस धारणा का भी अंदाजा देते हैं कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से अमीरों को फायदा होता है (57.7 फीसद ने हां कहा), जबकि गरीबों और मध्यम वर्ग की उपेक्षा की जाती है. इन्हीं मुद्दों यानी कथित राजनैतिक तानाशाही, बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी और सामाजिक ध्रुवीकरण को राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उठाया है. यह धारणा बनी रहती है, तो भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ सकता है, बशर्ते, पार्टी इन मामलों में सुधार के लिए कोई कदम न उठाए. 

भाजपा को गरीबों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से वोट हासिल करने की उम्मीद है, जिसे वह लाभार्थी वर्ग कहती है और उन्हें उनके लाभ के लिए शुरू की गई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की याद दिलाती है. खासकर हर घर में पीने योग्य नल का पानी उपलब्ध कराने के लिए नल-से-जल कार्यक्रम हर जाति, संप्रदाय के महिला वोटरों को मोदी के समर्थन में खड़ा कर सकता है. अगले डेढ़ साल में मोदी सरकार को प्राथमिकता के आधार पर यह आश्वस्त करना होगा कि उसकी सभी कल्याणकारी योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू हों और उनका लाभ आम आदमी तक पहुंचे.

आखिरकार, इस देश का मिजाज सर्वेक्षण में मोदी सरकार को कोविड और अर्थव्यवस्था से निबटने के मामले में जो सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, वह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत वितरित मुफ्त राशन के कारण हो सकती है, जिससे लगभग 80 करोड़ लोग लाभान्वित हुए हैं और कोविड के कारण बढ़ती बेरोजगारी के दंश को कम किया है. हालांकि, हर कल्याणकारी योजना की एक उम्र होती है और युवा हमेशा सरकारी खैरात पर जीना पसंद नहीं करते. वे आत्मसम्मान के साथ जीना चाहते हैं और मोदी सरकार को इस वर्ष इस विशाल आकांक्षी वर्ग के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के उपाय करने चाहिए.

और आखिर में, अभी मोदी के उत्तराधिकारी की बात चर्चा में नहीं है, लेकिन देश का मिजाज सर्वेक्षण में अमित शाह उनके तार्किक उत्तराधिकारी के तौर पर उभरते रहे हैं. हालांकि हाल के वर्षों में योगी आदित्यनाथ कुछ ऊपर चढ़े हैं. नितिन गडकरी भी दौड़ में हैं, जिनके देश में राजमार्गों के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के काम की सराहना होती हैं. लेकिन, जैसा कि न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने दूसरे कार्यकाल के बाद कुर्सी से हटते हुए कहा, ''मेरे पास और कुछ देने को नहीं है’’, ऐसा मोदी शायद न कहें. उनके पास अभी बहुत कुछ है और जनता का समर्थन भी हासिल है, जो बात देश का मिजाज सर्वेक्षण में भी खुलकर दिखती है. 

सर्वेक्षण का तरीका

इंडिया टुडे देश का मिजाज सर्वेक्षण का आयोजन सामाजिक-आर्थिक शोध के क्षेत्र में विश्वस्तरीय संस्था सीवोटर की तरफ से 15 दिसंबर, 2022 से 15 जनवरी, 2023 के बीच किया गया और इसमें सभी राज्यों के सभी लोकसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए 35,909 उत्तदाताओं की राय जानी गई. सीट और वोट शेयर अनुमानों की गणना के दीर्घकालिक रुझान के विश्लेषण में इस नमूना सर्वेक्षण के अलावा 16 अगस्त, 2022 और 15 जनवरी, 2023 के बीच सीवोटर के नियमित ट्रैकर डेटा के 1,05,008 साक्षात्कारों का भी इस्तेमाल किया.

इस तरह से यह सर्वेक्षण निष्कर्ष कुल मिलाकर 1,40,917 उत्तरदाताओं की राय पर आधारित हैं. 95 फीसद विश्वास स्तर के साथ रिपोर्टिंग के मामले में संभावित त्रुटि मैक्रो लेवल पर +/-3 प्रतिशत और माइक्रो लेवल पर +/-5 प्रतिशत हो सकती है.

मई 2009 के बाद से सीवोटर ट्रैकर भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्रत्येक तिमाही में 30,000 के लक्षित नमूना आकार के साथ आंकड़े जुटा रहा है और इसके लिए एक कैलेंडर वर्ष में 52 बार के हिसाब से हर हफ्ते 11 राष्ट्रीय भाषाओं में डेटा ट्रैक किया जाता है. इस पर आने वाली प्रतिक्रिया की औसत दर 55 फीसद है. 1 जनवरी, 2019 से सीवोटर ट्रैकर विश्लेषण के लिए सात दिनों के रोल ओवर सैंपल का उपयोग करके दैनिक आधार पर डेटा ट्रैक कर रहा है.

ये सभी सर्वेक्षण रैंडम यानी क्रमरहित संभावना नमूने पर आधारित हैं, और हर भौगोलिक और जनसांख्यिकी क्षेत्र में प्रशिक्षित शोधकर्ता विश्वस्तरीय मानक वाली यही पद्धति अपनाते हैं. सर्वेक्षण सभी वर्गों के वयस्क उत्तरदाताओं के सीएटीआइ साक्षात्कारों पर आधारित है. भारत के हर टेलीकॉम सर्किल में सभी ऑपरेटर्स को आवंटित हर फ्रीक्वेंसी सीरीज को कवर करते हुए बिना क्रम कोई नंबर चुनने के लिए मानक आरडीडी का उपयोग किया जाता है.

सर्वेक्षण में स्थानीय आबादी के लिहाज से हर क्षेत्र के उचित प्रतिनिधित्व वाला विश्लेषण सुनिश्चित करने के लिए सीवोटर सांख्यिकीय गणना के लिए नवीनतम जनगणना आंकड़ों का भी इस्तेमाल करता है. डेटा में लिंग, आयु, शिक्षा, आय, धर्म, जाति, शहरी/ग्रामीण और पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पड़े वोटों के साथ ज्ञात जनगणना प्रोफाइल का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. विश्लेषण के दौरान सीवोटर स्प्लिट-वोटर फेनॉमिना के आधार पर प्रांतीय और क्षेत्रीय वोट शेयर की गणना के लिए अपने खुद के एल्गोरिद्म का उपयोग करता है.

सीवोटर पेशेवर नैतिकता और प्रक्रियाओं के मामले में वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ पब्लिक ओपिनियन रिसर्च की तरफ से निर्धारित आचार संहिता और ओपिनियन पोल पर भारतीय प्रेस परिषद के आधिकारिक दिशानिर्देशों का विधिवत पालन करता है.

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