प्रदीप आर. सागर
यूक्रेन में चल रही लड़ाई दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप की सबसे गहन पारंपरिक लड़ाई मानी जा रही है जिसमें अब तक करीब 13,000 नागरिक मारे जा चुके हैं और तकरीबन 80,000 रूसी सैनिक मारे गए या घायल हुए हैं. भारत ने इस मसले पर बहुत फूंक-फूंककर कदम रखे—अपने पुराने रणनीतिक सहयोगी रूस का नाम लिए बिना नागरिक मौतों की भर्त्सना की और टकराव पर संयुक्त राष्ट्र में वोट के दौरान तटस्थ रुख अपनाया. अब भी यह दुधारी तलवार पर चल रहा है: भारत चाहता है कि रूस और यूक्रेन संकट का हल निकालें, पर अपने (रणनीतिक) हितों के चलते उसने रूस की निंदा नहीं की. ऊर्जा जरूरतों और 70 फीसद सैन्य साजो-सामान के लिए वह उस पर निर्भर है. देश का मिज़ाज सर्वे में शामिल 48 फीसद से ज्यादा लोग मानते हैं कि यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई गलत थी.
श्रीलंका को लेकर भी भारत खासा फिक्रमंद है, जिसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. भारत उसका नजदीकी पड़ोसी देश होने के अलावा उसकी रणनीतिक स्थिति की वजह से चिंतित है. यह पूछने पर कि क्या भारत का भी यही हाल हो सकता है, 57 फीसद से ज्यादा उत्तरदाताओं ने इस अंदेशे को खारिज किया और कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत है.
श्रीलंका को खराब फैसलों और अप्रत्याशित भूराजनीतिक बदलावों के मिले-जुले असर ने मौजूद संकट में धकेला—खेती में जैविक खाद अपनाना, श्रीलंकाई नेताओं की घटिया राजकोषीय समझदारी, महामारी से तहस-नहस पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था और डीजल से चलने वाले बिजलीघरों को झुलसाती तेल की ऊंची कीमतें. भारत के हालात पर इनमें से एक भी अंदेशा फिट नहीं बैठता.
पूर्वी लद्दाख की बर्फीली ऊंचाइयों के कई ठिकानों पर भारतीय सेना और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी पिछले दो साल से ज्यादा समय से सरहदी टकराव में मुब्तिला हैं. चीनी सेना की मौजूदगी के बराबर तैनाती में करीब एक लाख भारतीय जवान वहां डेरा डाले हैं. कोर कमांडर स्तर की सोलह दौर की बातचीत और कूटनीतिक वार्ताएं सेनाओं को पूरी तरह पीछे हटाने में नाकाम रहीं.
केंद्र ने सरहद पर चीनी घुसपैठ को कैसे संभाला? इस पर 44 फीसद का जवाब था कि 'बहुत अच्छे ढंग से', जबकि 30 फीसद ने इसे 'संतोषजनक' बताया. 14 फीसद से ज्यादा का कहना है कि खराब ढंग से संभाला गया. क्या इसे और बेहतर किया जा सकता है? लड़ाकू रवैया विकल्प नहीं है, पर चीन की और घुसपैठ रोकने के लिए भारत बुनियादी ढांचा मजबूत करता रहा है. 2020 के बाद भारत ने सीमा से सटे अग्रिम इलाकों में हर मौसम में कारगर 2,088 किमी सड़कें बनाईं.
पाकिस्तान से बातचीत और दूसरी ओर उसकी ओर से प्रायोजित आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते. भारत का यही रुख है पश्चिमी पड़ोसी के साथ बातचीत के मामले में. देश का मिज़ाज सर्वे में शामिल 56 फीसद लोगों को लगता है कि भारत को पाकिस्तान से बात नहीं करनी चाहिए, जनवरी 2022 में भी इतने ही लोग ऐसा मानते थे. उनके पास वाजिब वजहें भी हैं. शहबाज शरीफ की अगुआई वाली नई सरकार की कोई नई भारत नीति नहीं है. अनुच्छेद 370 के खात्मे और जम्मू-कश्मीर पर उनके विचार बदले नहीं हैं. नई दिल्ली के सुरक्षा योजनाकारों का मानना है कि इस्लामाबाद में कोई विश्वसनीय चुनी हुई सत्ता नहीं है जिससे बात की जा सके, जबकि मौजूदा सरकार ज्यादा वक्त शायद ही टिके.

