तकरीबन सात महीने से दक्षिण भारत के दो तस्करों ने देश भर के दर्शकों को दीवाना बना रखा है. उनके गैर-कानूनी धंधे अलग-अलग हैं—पुष्पा का लाल चंदन, रॉकी का सोना—लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि और हावभाव एक जैसे हैं: मां के बेटे पुलिस, नेता या अपराधियों और उनके गुर्गों से मुठभेड़ के दौरान अनायास स्वैग (लड़खड़ाते डोलने की खास अदा) में झूमने लगते हैं.
पुष्पा कंधा हल्का-सा झुकाए एक हाथ दाढ़ी पर खास अंदाज में फेरता है, तो रॉकी छैल-छबीले लिबास (डैपर सूट) में सिगरेट और ड्रिंक मोहक अंदाज में पीता है. इन फिल्मों से दो प्रमुख ऐक्टर: तेलुगु सिनेमा के 'आइकन स्टार’ अल्लू अर्जुन और कन्नड़ सिनेमा के 'चमकते सितारे’ यश देश के हर घर में जाने-पहचाने नाम हो गए हैं.
जितना दबंग हीरो, सिनेमा हॉल में उतना बेहतर प्रदर्शन. पुष्पा: द राइज 2021 की सबसे हिट फिल्म बनी. उसकी देश भर में 323 करोड़ रु. की कुल कमाई में उसके हिंदी में डब वर्जन का कारोबार 108 करोड़ रु. था. उसके बाद 2022 में केजीएफ: चैप्टर 2 भारतीय सिनेमा के इतिहास में देश भर में भारी-भरकम 992 करोड़ रु. की कमाई के साथ दूसरी सबसे बड़ी फिल्म बनी, जिसमें 427 करोड़ रु. उसके हिंदी वर्जन से आए.
दक्षिणी सूनामी का सैलाब पुष्पा और केजीएफ पर ही नहीं रुका, एस.एस. राजमौलि की आरआरआर-राइज रोर रिवोल्ट भी उतनी ही ब्लॉकबस्टर साबित हुई. अंग्रेजों के खिलाफ दो स्वतंत्रता सेनानी नायकों के नाचने की कला और हैरान करने वाले असंभव-से स्टंट ने देश और विदेश में दर्शकों को समान रूप से खींचा.
उनके फैन में सिर्फ उत्तर भारत के सिनेमा दर्शक ही नहीं, बल्कि हिंदी फिल्मोद्योग के महारथी भी शामिल हैं. अल्लू अर्जुन के फैन आलिया भट्ट और रणबीर कपूर हैं तथा आर. माधवन भी. माधवन कहते हैं, ''अल्लू अर्जुन खूबसूरत हैं मगर वे मैला-कुचैला चोंगा ओढ़कर भी पुष्पा को आकर्षक बनाने में कामयाब रहे. जरा गौर कीजिए कि जूनियर एनटीआर और राम चरण ने आरआरआर में कैसी जीवंतता और ऊर्जा भर दी.’’
यह आसानी से नहीं आता, ऐक्टर इन प्रोजेक्ट पर काफी वक्त बिताते हैं. मसलन, अल्लू अर्जुन ने चित्तूर तेलुगु उच्चारण सीखने और महारत हासिल करने के लिए 2020 में वीडियो कॉल के सहारे चार महीने बिताए. उनकी इठलाती चाल निर्देशक सुकुमार की देन थी. अल्लू अर्जुन याद करते हैं, ''सुकुमार गारु (बड़े भाई) ने कहा, 'मुझे नहीं मालूम तुम क्या करते हो, मगर हर किसी को तुम्हारी तरह चलना आना चाहिए.’’’
वे झुके हुए कंधे से चले और यकीन हो गया कि इसकी ''नकल आसान’’ होगी. यश ने केजीएफ का हावभाव पाने पर छह साल लगाए. 2017 में जब उन्होंने शुरू किया तो उनके लंबे बाल और दाढ़ी से उनकी पत्नी लगातार चिढ़ती रहीं.
टॉलीवुड, मॉलीवुड या कॉलीवुड के रूप में खास इलाके की पहचान वाला कभी क्षेत्रीय उपक्रम रहा दक्षिण भारतीय फिल्म उपक्रम अब अखिल भारतीय घटनाक्रम बन गया है. इसकी शुरुआत राजमौलि की बाहुबली से हुई. भव्य विराट बुनावट वाली यह फिल्म सभी भाषाई हदें लांघ गई, सिनेमाई भव्यता की दर्शकों की भूख को तृप्त कर दिया और एक बराय नाम हीरो प्रभाष को सितारा बना दिया, जिसने दो-फिल्मों के इस प्रोजेक्ट पर चार साल लगाए.
महामारी के दो साल तमिल, तेलंगाना या आंध्र के दर्शकों की बड़े परदे पर देखने की भूख नहीं मिटा पाए. मीडिया एनालिटिक्स कंपनी कॉमस्कोर ने पाया कि दक्षिण की फिल्मों ने 2021 में हिंदी फिल्मों के मुकाबले बॉक्स ऑफिस पर तीन गुना ज्यादा कमाई की. इसमें तेलुगु का योगदान सबसे ज्यादा है, जिसने पहली बार हिंदी को पीछे छोड़ दिया. 2020 और 2021 में बॉक्स ऑफिस पर एक अरब की कमाई करने वाली दस में से छह फिल्में दक्षिण की थीं.
इनमें चार तेलुगु की थीं, जिसमें अल्लू अर्जुन अभिनीत पुष्पा (2021) और अला वैकुंठपुर्रामुलू समेतसरिलंरु नीकेव्वारु और वकील साब हैं. दक्षिण भारतीय फिल्मों की पहुंच अब पांच दक्षिण भारतीय राज्यों के 4,441 परदों तक सीमित नहीं रही, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में फैले 4,982 परदों तक भी हो गई है.
लगातार ऊपर उठते अल्लू अर्जुन
अल्लू अर्जुन और पुष्पा के लेखक-निर्देशक सुकुमार तो मनोरंजक तेलुगु फिल्में ही बनाना चाहते थे. अल्लू अर्जुन कहते हैं, ''आइडिया पूरे देश पर जादू बिखेरने का नहीं था, लेकिन यह तो महान बाइ-प्रोडक्ट था. अगर आपके स्थानीय दर्शक मुग्ध हो जाते हैं तो वह ऊर्जा स्वाभाविक तौर पर फैल जाती है.’’ लेकिन हिंदी क्षेत्र में पुष्पा का जादू फैलने के बहुत पहले ही सिनेमा के दर्शक अल्लू अर्जुन के काम से परिचित हो गए थे.
उनकी फिल्मों के डब वर्जन मूवी चैनलों—स्टार गोल्ड और सेट मैक्स पर काफी लोकप्रिय हो गए थे. इसी वजह से मनीष शाह की मुंबई स्थित कंपनी गोल्डमाइन्स फिल्म्स ने पुष्पा के थिएटर, सैटेलाइट और डिजिटल अधिकार खरीदने के लिए बोली लगाई. शाह ने देखा कि अल्लू अर्जून की फिल्मों ने यूट्यूब पर कुल मिलाकर 1.2 अरब व्यूज हासिल किए, जो दक्षिण के कई दूसरे सितारों के मुकाबले दोगुना थे.
शाह कहते हैं, ''उनमें अखिल भारतीय स्टार बनने की क्षमता है. सवाल यह है कि क्या वे हिंदी फिल्मकारों के साथ काम करना चाहेंगे?’’ हाल में ऐसा करने में कोई दिलचस्पी न होने का ऐलान करने वाले उन जैसे ही दूसरे सितारे महेश बाबू के उलट अल्लू अर्जुन इस अवसर के लिए खुले हैं. वे कहते हैं, ''हिंदी में ऐक्टिंग फिलहाल मेरे लिए थोड़ा असहज है, लेकिन जरूरत पड़ने पर मैं आगे बढ़ जाऊंगा.’’ संयोगवश, अल्लू अर्जुन का मुंबई में एक अपार्टमेंट भी है.
चेन्नै में जन्मे और पले-बढ़े अर्जुन का परिवार 2000 में ही हैदराबाद आया. उनके दादा अल्लू रामलिंगैया किसान से ऐक्टर बन गए थे और करीब एक हजार फिल्मों में उतरे. उनकी प्रसिद्धि कॉमेडियन की भूमिकाओं के लिए थी. अर्जुन कहते हैं, ''उन्होंने लगभग नौ साल तक संघर्ष किया, फिर उन्हें 1962 में पहचान मिली.’’ अर्जुन के पिता अल्लू अरविंद तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के प्रमुख प्रोड्यूसर हैं. अरविंद की बहन सुरेखा का विवाह तेलुगु सुपरस्टार चिरंजीवी से हुआ है. दादा की 99वीं सालगिरह 1 अक्तूबर, 2020 को परिवार ने पश्चिम हैदराबाद में अल्लू स्टूडियोज शुरू करने का ऐलान किया.
अल्लू अर्जुन के अपने सिनेमाई सफर की शुरुआत 2003 में गंगोत्री के साथ हुई, लेकिन उन्हें बतौर ऐक्टर पहचान नहीं मिली. ये तो सुकुमार ही थे, जिन्होंने देखा कि 20 साल के ''जिंदादिल’’ अर्जुन एक तेलुगु फिल्म दिल की स्क्रीनिंग में हर किसी से मजे से घुल-मिल रहे हैं. फिल्मकार को यकीन हो गया कि उन्हें अपना आर्या मिल गया.
इसी नाम की फिल्म ने अल्लू अर्जुन को केरल में भी लोकप्रिय बना दिया, जहां उन्हें 'मल्लू अर्जुन’ नाम से जाना जाता है और उनके कई फैन क्लब हैं. सुकुमार ने ही अर्जुन को 'आइकन स्टार’ की उपाधि दी. 52 वर्षीय फिल्मकार के लिए अर्जुन कहते हैं, ''वे मेरे करीबी दोस्तों में हैं. मैं उनसे अपनी ढेरों ख्वाहिशें और फंतासियां साझा करता रहता हूं कि मैं परदे पर क्या करना चाहता हूं. वे बताएंगे कि क्या जरूरी है और उसे प्रोजेक्ट करेंगे. वे मुझे ऐसे देखते हैं, जैसा कोई दूसरा नहीं देखता.’’ पुष्पा के संगीत निर्देशक देवी श्री प्रसाद भी अर्जुन के बचपन के दोस्त हैं.
प्रभाष, महेश बाबू, राम चरण, जूनियर एनटीआर, पवन कल्याण, ननी और बुजुर्ग दिग्गज चिरंजीवी और नागार्जुन जैसे सितारों से जगमग फिल्म इंडस्ट्री में अल्लू अर्जुन को अपने ''अर्बन स्वैग’’ और ''बुट्टा बोम्मा’’ जैसे वायरल गीत के चलते ''स्टाइलिश स्टार’’ भी कहा जाता है. अर्जुन कहते हैं, ''मैं चेन्नै में अपने पालन-पोषण और एमटीवी को इसका श्रेय देता हूं.’’ वे हर फिल्म में अपना लुक बदल देते हैं और आर्या 2 (2009), सन ऑफ सत्यमूर्ति और रुद्रमादेवी (2015), सरैनोडू (2016), डीजे: दुव्वदा जगन्नाथन (2017) और अला वैकुंठपुर्रामुलू (2020) जैसी हिट फिल्में भी दीं.
लेकिन अल्लू अर्जुन की आज तक की शानदार फिल्मोग्राफी में भारत के सबसे प्रतिष्ठित पॉप लीजेंड एस.एस. राजमौलि के साथ काम नहीं है. वे कहते हैं, ''तेलुगु इंडस्ट्री में हर ऐक्टर राजमौलि के साथ काम करना चाहता है. उम्मीद है, इंशाअल्ला, यह होगा.’’ अपने नए काम में राजमौलि ने दिखाया है कि तेलुगु सिनेमा के दो सितारों को एक साथ लाना संभव है.
ये हैं चिरंजीवी के बेटे राम चरण और दिग्गज अभिनेता तथा आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन.टी. रामराव के पोते जूनियर एनटीआर. चरण और जूनियर एनटीआर ने हंगामेदार ड्रामे में दो स्वतंत्रता सेनानी दोस्तों के रूप में गजब का प्रदर्शन किया. नाटु नाटु गाने में उनकी गजब की धमाचौकड़ी मजेदार थी.
सपने देखना, उन्हें साकार करना
प्रतिष्ठित फिल्मी परिवार से आने वाले अल्लू अर्जुन के उलट यश उर्फ नवीन कुमार गौड़ा बाहरी हैं, जिन्हें प्रवेश पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. वे मैसूरू में पले-बढ़े. उनके पिता सरकारी बस सेवा बीएमटीसी में बस ड्राइवर थे. किशोरावस्था में वे परिवार की किराने की दुकान में बैठे. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें बचपन से ही लोगों का ध्यान खींचने और वाहवाही लूटने का शौक रहा है.
यह शौक उन्हें बड़े शहर बेंगलूरू ले गया. अभी 18 वर्ष के भी नहीं हुए थे कि बेंगलूरू नगर कलाविदारु की थिएटर रेपटरी में पहुंचे, जिसे बेनका नाम से जाना जाता है. यश ने अप्रैल में इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में याद किया कि शो बिजनेस में करियर बनाने की बात उनके मां-बाप को मंजूर नहीं थी. मुझसे दो-टूक कहा गया, ''अगर लौट रहे हो तो अब कभी कुछ और न सोचो....जाओ पढ़ाई करो और फिर कोई नौकरी तलाशो.’’ मैंने कहा, ''ठीक है, लेकिन मुझे एक मौका दीजिए....मैं जाऊंगा और कुछ करूंगा. उन लोगों ने सोचा कि मैं जल्दी ही लौट आऊंगा, मगर वही कभी नहीं हुआ.’’
घटनाओं का सिलसिला आसान नहीं रहा. अगस्त 2014 में लोकप्रिय कन्नड़ सेलेब्रिटी टॉक शो वीकेंड विद रमेश में यश ने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया. एक रात विशाल बस टर्मिनल पर मैसूरू के लिए बस पकड़ने की उधेड़बुन में बिताई, हालांकि आखिरकार बस पकड़ने का विचार छोड़ने का फैसला किया. वह लगन काम कर गई. उन्हें टेलीविजन सीरियल नंदा गोकुल में भूमिका मिल गई और फिर जल्दी ही दूसरा सीरियल मिल गया. रोजाना की आमदनी 500 रु. से 1,500 रु. हो गई.
उसे नए कपड़ों पर खर्च करने लगे, साथी टीवी ऐक्टरों से ज्यादा क्योंकि उन दिनों उन्हें अपनी वेशभूषा पर खर्च करना पड़ता था. वे कहते हैं, उनकी नजर आखिरकार स्टार बनने पर थी. चार सीरियलों में काम करने के बाद यश को बड़े परदे पर 2007 में रोमांस ड्रामा जंबदा हुडुगी में एक छोटी-सी भूमिका मिली. उनकी प्रमुख भूमिका वाली पहली फिल्म रॉकी बॉक्स ऑफिस पर पिट गई. हालांकि वह नाम उनके साथ चिपक गया और वे अपने फैन के लिए 'रॉकिंग स्टार’ हो गए.
यश को सियासी व्यंग्य कलारा संते (2009) में दूसरी प्रमुख भूमिका देने वाले फिल्मकार सुमन कित्तूर याद करती हैं कि वह बीसेक वर्ष की उम्र में पांव रखता तेज युवा अपने जिंदगी के लक्ष्य को लेकर एकदम साफ था. उनकी घर की प्राथमिकताएं थीं अपनी बहन की कॉलेज की पढ़ाई, उसकी शादी और अपनी खुद की शादी के बाद एक घर खरीदना. वे कहती हैं, ''उसने सब योजनाएं करीने से बनाई थीं और उसे पूरा किया.’’ अपने पहले टीवी शो में यश ने पहली दफा राधिका पंडित के साथ काम किया. बाद में वे चार फिल्मों में उनकी नायिका बनीं और आखिरकार 2016 में पत्नी बनीं.
रॉकी के जरिए केजीएफ फिल्मों में जो भरोसा और जमीनी शैली दिखाई गई है, वह यश की शख्सियत में भी गुंथी हुई है. 2014 में कन्नड़ ब्लॉकबस्टर मिस्टर ऐंड मिसेज रामाचार में वे कहते हैं, ''नावु क्लास अल्ला...मास (मैं क्लास नहीं, मास हूं).’’ शायद उनमें रजनीकांत की एक झलक है. यश को मोगिना मानसु (2008) से पहचान मिली.
उस भूमिका में उन्हें लेने वाले फिल्मकार शशांक याद करते हैं कि दोनों कन्नड़ सिनेमा के बड़े फलक पर न उभरने को लेकर निराशा जताते थे और फिर पड़ोस की तमिल और तेलुगु फिल्मों को बड़े पैमाने पर टक्कर देने में नाकामी पर बातें करते थे. शशांक कहते हैं, ''वे मौके की तलाश में थे. जब उन्हें सही टीम मिली तो वे उसमें खुलकर उभर आए. यही उनकी नियति थी.’’
प्रशांत नील की गैंगस्टर कथा उग्राम्म (2014) में यश खिले और केजीएफ के आइडिया ने उस वन्न्त आकार लेना शुरू किया जब प्रोडक्शन हाउस होंबले फिल्म्स के जरिए दोनों एक साथ आए. 2018 में पार्ट 1 आया तो वह अखिल भारतीय रिलीज वाली पहली कन्नड़ फिल्म बनी. कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की खूबियों को आगे बढ़ाने में यश की नायक जैसी भूमिका है.
स्टाइल में शानदार
अनिल थडानी केजीएफ के पहले चैप्टर का संपादित हिस्सा सबटाइटल के बगैर देखने के वाकये को याद करते हैं. उनकी बगल में बैठे यश हर पांच मिनट में संवादों का तर्जुमा कर रहे थे. बाहुबली सीरीज और पुष्पा के वितरक थडानी कहते हैं, ''मेरे लिए यश स्टार थे, उनकी अपनी स्टाइल थी.’’
स्टाइल ही वह सबसे शानदार चीज है जो दक्षिण में इनसानों को भगवान बना देती है, एक ऐसी परिघटना जो हिंदी फिल्म उद्योग के लिए अजनबी है. मंदिर बनाए जाते हैं, फिल्म रिलीज के वक्त विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं. जनवरी, 2020 में यश का जन्मदिन मनाने के लिए बेंगलूरू में 5,000 किलो का केक तक काटा गया. मगर यह सारी ठकुरसुहाती राज्यों तक सीमित रहती थी, रजनीकांत अकेले अपवाद थे.
फिल्मी रुझानों, बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों और मीडिया में खपत के पैटर्न पर नजर रखने वाली कंपनी ऑर्मेक्स मीडिया के सीईओ शैलेश कपूर को लगता है कि हिंदी फिल्म दर्शकों पर इस 'स्टाइल’ का नशा छाया है. वे कहते हैं, ''इसके साथ मर्दानगी भरा व्यवहार जुड़ा है. यह वह सामान्य 'पेट अंदर और सीना बाहर’ स्टाइल वाली मर्दानगी नहीं है. यह शारीरिक बनावट से ज्यादा किरदार की शख्सियत में होती है.’’
इसके उलट बॉलीवुड में मर्दानगी हालिया वक्त में इठलाते हुए मांसल देह दिखाने का पर्याय हो गई है. फिर आश्चर्य क्या कि हिंदी अभिनेताओं को दक्षिण के बाजार में जगह बनाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी है, जहां सामान्य से बहुत विराट फिल्में हिंदी सिनेमा के मुकाबले कहीं ज्यादा आम हैं. थडानी कहते हैं, ''हम जो कमर्शियल फिल्में बनाते हैं, वैसी कुछ वे पहले ही देख चुके होते हैं. उनकी फिल्में स्केल और ऐक्शन के लिहाज से कहीं ज्यादा बड़ी होती हैं. वे पैसा भी बहुत लगाते हैं. दक्षिण में वे अभिनेताओं की कीमत अदा करते हैं और फिल्म पर खर्च करने की हिम्मत भी रखते हैं.’’
थडानी हिंदी फिल्मकारों के ''कंटेंट से चलने वाली फिल्में ज्यादा बनाने’’ को इसकी वजह बताते हैं. वे कहते हैं, ''हिंदी फिल्में अच्छा कारोबार कर रही थीं, पर फिर भी वह सब ऊपरी तबके, शहरों तक सीमित था.’’ हल्की-फुल्की व्यावसायिक फिल्में हाल के अतीत में बहुत इनी-गिनी और यदा-कदा ही आईं, केवल सलमान खान और फिल्मकार रोहित शेट्टी ने ही जनसाधारण को अपील करने वाली फिल्में बनाईं.
(शेट्टी की सूर्यवंशी ने नवंबर 2021 में हिंदी फिल्म उद्योग को अंतत: कोविड-19 महामारी के धक्के से उबारा). लिहाजा इस किस्म के मनोरंजन के लिए तरसते हिंदी फिल्म दर्शक अपना यह दिल बहलाऊ नशा दूसरी जगहों से हासिल करने लगे. थडानी कहते हैं, ''उन्हें देखना भर आंखों के लिए सुखकर होता है. इतने विराट पैमाने पर फिल्म बनाने के लिए वे जितना पैसा खर्च करते हैं, जिस तरह शूट करते हैं, वही उन्हें बड़े परदे का एंटरटेनर बनाता है.’’
दक्षिण का रुख
बॉलीवुड भय और विस्मय से देख रहा है. वायरल हुए एक एसएमएस में राजकुमार हीरानी ने पुष्पा के रचयिता सुकुमार की 'शानदार फिल्म’ बनाने के लिए तारीफ की. स्टंट दृश्यों का सहारा लिए बगैर धमाकेदार फिल्में देने वाले हीरानी ने लिखा, ''मैं इसके बारे में इतने सारे लोगों से बात करता रहा हूं कि वे सोच रहे हैं कि मुझमें क्या गड़बड़ी है. मुझे लेखन अच्छा लगा... कैसे आपने हर दृश्य को असामान्य बनाने के लिए उसे सिर के बल उलट दिया. बहुत अच्छे-से शूटिंग की गई... यह शानदार एंटरटेनर है.’’
अलबत्ता सुकुमार को हिंदीभाषी इलाकों में फिल्म की संभावनाओं का बहुत भरोसा नहीं था. उन्हें चिंता यह थी कि प्रोड्यूसरों को नुक्सान उठाना पड़ेगा क्योंकि गंवार, उजड्ड और लुंगी पहने हीरो और दक्षिण भारतीय परिधान में सजी-संवरी हीरोइन के इर्द-गिर्द घूमती कहानी को मुश्किल से ही कोई स्वीकार करेगा. यह पूछे जाने पर कि फिर वह क्या था जिससे यह तेलुगु फिल्म बॉक्स ऑफिस की दौड़ में सबसे आगे निकल गई.
सुकुमार कहते हैं, ''हमने व्यावसायिक फिल्म को अलविदा नहीं कहा. यहां हमेशा ऐसा होता रहा है. आपको गानों, मार-धाड़, रोमांस, हंसी-ठहाकों और बहादुरी का मिला-जुला तड़का देना होता है. यह अलग-अलग फूलों से बनी माला की तरह है. यह हमें सारे भारत से जोड़े रखती है.’’
हिंदी सितारे दक्षिण की तरफ देखने लगे हैं. आलिया भट्ट ने आरआरआर में एक छोटी-सी भूमिका से संतोष कर लिया, महज इसलिए कि वे दूरदृष्टि से संपन्न एस.एस. राजमौलि के साथ काम कर सकें. शाहरुख खान जवान (2023) के लिए एटली (मर्सल, बिजिल) के साथ काम कर रहे हैं.
रणवीर सिंह ने धमाकेदार फिल्में दे चुके शंकर (इंडियन, शिवाजी: द बॉस, एंथिरन) के साथ एक प्रोजेक्ट का ऐलान किया है; और दीपिका पादुकोण भी हैदराबाद में महानती के फिल्मकार नाग आश्विन की अगली फिल्म के लिए प्रभाष के साथ काम कर रही हैं. तमाम स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ने अपने अभिनय कला के लिए प्रशंसित फहद फासिल और विजय सेतुपति सरीखे अदाकारों के मुरीदों के आधार में बढ़ोतरी की है.
मुंबई स्थित स्टुडियो रीमेक बनाने के लिए दक्षिण के फिल्मकारों को लाने लगे हैं, तो हिंदी पट्टी में अपनी कामयाबी से दक्षिण के स्टुडियो का हौसला दिन दूना, रात चौगुना बढ़ा है. केजीएफ फ्रेंचाइजी का निर्माण करने वाले होम्बले फिल्म्स के पार्टनर चालुवे गौड़ा कहते हैं कि कन्नड़ इंडस्ट्री के हलकों में मजाक यह था कि उन्होंने प्रोडक्शन से ज्यादा मार्केटिंग पर खर्च किया. मगर ब्योरों पर ध्यान देना, मसलन दूसरी भाषाओं में डबिंग करते वक्त, ज्यादा व्यापक पहुंच की कुंजी है.
वे कहते हैं, ''आप बहुत अच्छी फिल्म बनाएं और उसे अपने तक सीमित रखें, तो किसी को पता ही नहीं चलेगा.’’ मार्केटिंग में निवेश का फैसला महज दिल की बात सुनने का मामला नहीं था. यह प्रत्यक्ष, टेलीफोन और ऑनलाइन सर्वेक्षणों के आधार पर उठाया गया कदम है. गौड़ा कहते हैं, ''हम जानना चाहते थे कि केजीएफ—चैप्टर 1 बड़े पैमाने पर दर्शकों तक पहुंची या नहीं.’’ चैप्टर 2 के लिए बजट कई गुना बढ़ा दिया गया और संग्रह भी उसी अनुपात में बढ़ा.
होम्बले फिल्म्स फिलहाल तेलुगू, कन्नड़, तमिल और मलयालम में 14 फिल्मों के निर्माण में जुटी है. इनमें सलार भी है जो बाहुबली से मशहूर प्रभाष के अभिनय से सजी है और केजीएफ के निर्देशक प्रशांत नील इसका निर्देशन कर रहे हैं. गौड़ा कहते हैं, ''हम हर साल एक अखिल भारतीय फिल्म लाने का मंसूबा बना रहे हैं. बाकी दो भाषाओं का मिश्रण या वैसा ही कुछ होंगी.’’
दक्षिण की हरेक फिल्म अलबत्ता अखिल भारतीय दर्शकों के लिए नहीं बनी होती. जहां एक तरफ पुष्पा, केजीएफ और आरआरआर हैं तो अनगिनत दूसरी फिल्में हैं जो राधे श्याम में प्रभाष की तरह भरोसेमंद सितारों की मौजूदगी के बावजूद कोई छाप नहीं छोड़तीं और न ही अपने राज्य में वैसा शानदार कारोबार करती हैं जैसा हाल ही में तमिल फिल्म विक्रम ने किया और जो कमल हासन की सबसे बड़ी हिट बन गई. तेलुगु फिल्मकार शैलेष कोनरु ने इंडिया टुडे से कहा, ''पिछले छह-सात महीनों में दक्षिण की ढेरों फिल्में रिलीज हुईं जिनके हम नाम तक नहीं जानते. कई फिल्में हैं जो कामयाब नहीं होंगी.’’
हालांकि भाषाई दीवार ढह रही है, अल्लू अर्जुन और यश ने पुष्पा और केजीएफ का हिंदी वर्जन डब नहीं किया, लेकिन तब भी आकर्षण पैदा किया. यह भी गौरतलब है कि प्रभाष, अल्लू अर्जुन और यश को देशव्यापी लोकप्रियता हासिल करने के लिए हिंदी फिल्मों की जरूरत नहीं है. फिल्म के सबसे बड़े वितरकों में से एक अनिल थडानी के मुताबिक, इससे उनकी उपलब्धि रजनीकांत, चिरंजीवी या नागार्जुन से बड़ी लगती है, जिन्होंने हिंदी फिल्मों में भूमिकाएं निभाई हैं.
प्रतिष्ठित तेलुगु फिल्म निर्माता अल्लू अरविंद कहते हैं, ''भारतीय सिनेमा समुद्र मंथन के दौर से गुजर रहा है. हिंदी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं का सिनेमा धीरे-धीरे खुल रहा है. भारतीय सिनेमा अगले दौर में जा रहा है, जिसमें दक्षिण भारतीय सिनेमा इसके जानर में तेजी से योगदान कर रहा है.’’ अल्लू अर्जुन पुष्पा: द रूल के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं, जिसका 2023 में रिलीज का इंतजार है. वे जानते हैं कि जमीन से जुड़े और कथ्य के प्रति ईमानदार होकर ही भारी उम्मीदों पर खरा उतरा जा सकता है.
वे कहते हैं, ''निर्माण के कोई बदलाव नहीं है. हम लोगों को पसंद आए तरीकों का ध्यान रखते हैं और फिर उसे ऊंचाई पर ले जाते हैं.’’ शूटिंग में बस महीना भर बाकी रह गया है. यह ऐक्टर उन लाजवाब पोज को और निखार रहा है, जिसे देश पसंद करता है. ये बेहद सहज भाव से निकलते हैं. कहते हैं ना कि पुष्पा फ्लावर नहीं, फायर है.
—साथ में अजय सुकुमारन और अमरनाथ के. मेनन