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आवरण कथाः पूजा का जोरदार पंच

वोहरा की सोच रानी के कोच संजय श्योराण से बातचीत के बाद और रानी की अपनी जिद तथा बॉक्सिंग की उनकी जन्मजात प्रवृत्ति की वजह से बदल गई.

पूजा रानी
पूजा रानी
अपडेटेड 16 जुलाई , 2021

पूजा रानी, 30 वर्ष 
खेल: बॉक्सिंग
श्रेणी: 75 किलो

कैसे क्वालिफाइ किया: मार्च 2020 में थाईलैंड की पोर्निप्पा चुटी को कॉन्टिनेंटल क्वालिफायर्स में परास्त किया

उपलब्धियां: एएसबीसी एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2019 और 2020 में स्वर्ण पदक

भारतीय महिला बॉक्सिंग में मैरी कॉम का प्रताप अब भी बरकरार है लेकिन उम्मीद है कि 2021 तोक्यो गेम्स में महिलाओं का दल एक से ज्यादा पदक लेकर लौटेगा और उनमें सबसे ज्यादा उम्मीदें पूजा रानी से हैं.

इस हरियाणवी बाला ने मई में एएसबीसी एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता था और इस साल मार्च में बॉक्सम इंटरनेशनल टूर्नामेंट में विश्व चैंपियन एथीना बायलॉन को हराया था, जिसमें उन्हें रजत मिला. इसके अलावा, उनमें काफी लगन, सकारात्मक सोच और तैयारी है, जिनमें पुरुषों के साथ मुक्केबाजी का अभ्यास और अपनी प्रतिद्वंद्वियों की तकनीक और गेम प्लान को समझने के लिए हाल के यूरोपीय क्वालिफायर्स का खेल देखना शामिल है.

अपने पहले ओलंपिक में भाग लेने के लिए एक दशक तक इंतजार करने के बाद रानी मौका नहीं गंवाना चाहतीं. वे कहती हैं, ''मेरा सपना आखिर साकार हो रहा है पर अब यह बड़ा हो गया है. मैं पदक जीतना चाहती हूं.’’ उन्हें मालूम है कि ऐसा करने के लिए उन्हें खेल के मानसिक पहलू में महारत हासिल करनी होगी.

वे कहती हैं, ‘‘अगर आप मानसिक रूप से फिट नहीं हैं तो चाहे जितना शारीरिक प्रशिक्षण ले लें, मदद नहीं मिलेगी.’’ प्रायोजक लक्ष्य स्पोर्ट्स की मदद से रानी की स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट से मुलाकात हुई, जो उनकी आशंकाओं को दूर करता है और आत्मविश्वास बढ़ाता है.

रानी ने 18 साल की उम्र से बॉक्सिंग शुरू कर दी, जो बास्केटबॉल और नेटबॉल के उलट, अकेले खेलने वाली विधा है. वे कहती हैं, ‘‘मुझे टीम वाले खेलों में यह पसंद नहीं कि किसी और के खराब प्रदर्शन की वजह से आप हार जाएं.’’ लेकिन बॉक्सिंग के प्रति उनका उत्साह उनके पुलिस अधिकारी पिता राजवीर सिंह वोहरा को कतई पसंद नहीं था, जो इसे ‘‘गुंडोंवाला गेम’’ मानते थे. पहले छह महीने तक रानी ने भिवानी की कैप्टन हवा सिंह बॉक्सिंग एकेडमी में गुपचुप प्रेक्टिस की. वे बताती हैं, ‘‘जिस रोज मुझे चोट लगती, मुझे दुख होता.

वह इसलिए नहीं कि मुझे दर्द था बल्कि मुझे मालूम था कि मेरे जख्म देखकर मेरा परिवार मुझे यह खेल छुड़वा देगा.’’ वोहरा की सोच रानी के कोच संजय श्योराण से बातचीत के बाद और रानी की अपनी जिद तथा बॉक्सिंग की उनकी जन्मजात प्रवृत्ति की वजह से बदल गई. वे पहले साल की अपनी नॉकिंग पंच में 2009 में यूथ स्टेट चैंपियन बन गईं और फिर 60 किलो भारवर्ग में यूथ नेशनल में रजत हासिल किया. उनके पिता ने उन्हें एक बाइक गिफ्ट में दी.
लेकिन शिखर तक रानी के सफर में ऊबड़-खाबड़ रास्ते भी आए.

वे 2017 की दिवाली में हाथ जला बैठीं, जिसकी वजह से उन्हें छह महीने तक आराम करना पड़ा. अपने खोए वक्त की भरपाई करने के लिए उन्होंने तेजी से प्रशिक्षण शुरू किया और कंधे में चोट लगा बैठीं. उनका विश्वास डगमगाया, रानी ने सोचा कि 81 किलो की श्रेणी में चले जाना बेहतर है.

उन्होंने अप्रैल 2019 में एएसबीसी एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता, नतीजतन भारत के विदेशी कोच राफेल बर्गमास्को को लगा कि उन्हें 75 किलो की श्रेणी में लौट आना चाहिए. रानी बताती हैं, ‘‘राफेल को मुझ पर खुद मुझसे ज्यादा भरोसा था.’’ बर्गमास्को का भरोसा बरकरार है. उनका मानना है कि छह बार की राष्ट्रीय चैंपियन और 2014 एशियन गेम्स की पदक विजेता में टोक्यो में शीर्ष तीन में शामिल होने की संभावना है.  

कोच की राय
''पूजा ने पिछले दो साल में अपना समन्वय सुधारा है और शरीर के निचले हिस्से की ताकत में काफी इजाफा किया है. इसकी वजह से उन्हें अपनी रणनीति बदलने और प्रतिद्वंद्वी के माकूल होने में मदद मिली है. यूं तो इसमें हमेशा किस्मत का थोड़ा हिस्सा होता है, लेकिन मेरा मानना है कि उनके पोडियम तक पहुंचने की अच्छी संभावना है’’
राफेल बर्गमास्को, 
विदेशी कोच, भारतीय महिला बॉक्सिंग टीम
 

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