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आवरण कथाः रिकॉर्ड तोड़ लिफ्टर

कुल 205 किलो भार उठाकर उन्होंने कांस्य पदक के साथ तोक्यो का टिकट भी हासिल कर लिया. अब चानू और बेहतर करने के लक्ष्य और पक्के इरादे के साथ जुटी हैं.

सेखोम मीराबाई चानू
सेखोम मीराबाई चानू
अपडेटेड 16 जुलाई , 2021

सेखोम मीराबाई चानू, 27 वर्ष
खेल : भारोत्तोलन
(49 किलोग्राम)

कैसे क्वालिफाइ किया: अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन महासंघ के नियमों के तहत, 14 भार श्रेणियों में से प्रत्येक के शीर्ष आठ भारोत्तोलक खेलों में भाग लेने के पात्र होते हैं. चानू इसमें दूसरे नंबर पर हैं. अप्रैल में ताशकंद में एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के साथ ओलंपिक में उनकी जगह पक्की हो गई क्योंकि उन्होंने छह अनिवार्य क्वालिफाइंग स्पर्धाओं में भाग लिया था 

उपलब्धि: 2017 वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम महिला वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था

अप्रैल महीने की 17 तारीख को, भारत की स्टार भारोत्तोलक सेखोम मीराबाई चानू जीवन की उस सबसे अप्रिय घटना के कगार पर थीं जो पांच साल पहले घटी थी. ताशकंद में एशियन चैंपियनशिप में मणिपुर की ये कम वजन की भारोत्तोलक, स्नैच के अपने तीन प्रयासों में से पहले दो में एक लिफ्ट हासिल करने (भार उठाने) में विफल रहीं.

तीसरे 'नो-लिफ्ट’ ने चानू की पदक की उम्मीदों को समाप्त कर दिया होता और यह पांच साल पहले रियो ओलंपिक के उसी दुखदाई पल की पुनरावृत्ति होती जब वे क्लीन ऐंड जर्क श्रेणी के तीन प्रयासों में से किसी में भी वजन उठाने में विफल रहने के बाद चोटिल हो गई थीं. 

लेकिन चानू गलतियों को दोहराने वालों में से नहीं हैं. अंतिम प्रयास में उन्होंने 86 किग्रा भार उठाया और फिर क्लीन ऐंड जर्क में अविश्वसनीय 119 किग्रा भार उठाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया. कुल 205 किलो भार उठाकर उन्होंने कांस्य पदक के साथ तोक्यो का टिकट भी हासिल कर लिया. अब चानू और बेहतर करने के लक्ष्य और पक्के इरादे के साथ जुटी हैं.

चानू ने इंडिया टुडे को बताया, ''ताशकंद में विश्व रिकॉर्ड तोडऩे के बाद, मुझे लगा कि मैं ओलंपिक में भारत के लिए बेहतर कर सकती हूं. मुझे नहीं पता कि मुकाबले के दिन क्या होगा, पर किसी अन्य एथलीट की तरह मैं स्वर्ण पदक जीतना चाहती हूं.’’

नाटकीय परिवर्तन शुरू से ही चानू के करियर का हिस्सा रहे हैं. मणिपुर की राजधानी इंफाल से 45 किमी दक्षिण में एक गांव नोंगपोक काकचिंग में जन्मी चानू, शुरू में तीरंदाज बनना चाहती थीं. आठवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में उन्होंने मणिपुर की प्रतिष्ठित भारोत्तोलक कुंजारानी देवी पर एक अध्याय पढ़ा. तभी से छह भाई-बहनों में सबसे छोटी चानू को भारोत्तोलन से प्रेम हो गया. उन्हें मां का साथ मिला क्योंकि उन्होंने देखा कि चानू अपने भाइयों से अधिक वजन उठा लेती हैं.

चानू ने मां को निराश नहीं होने दिया. 2014 में, उन्होंने ग्लासगो में राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतकर देश में ख्याति प्राप्त की. तीन साल बाद, विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में महिलाओं के 48 किग्रा वर्ग में विश्व चैंपियन बनीं. यह बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि दो दशकों में पहली बार किसी भारतीय महिला भारोत्तोलक ने विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था.

इसके बाद 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में एक और स्वर्ण पदक जीता. 2019 में, वे एशियाई भारोत्तोलन चैंपियनशिप में चौथे स्थान पर रहीं, लेकिन 2019 विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में अपने ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड को सुधारा. उन्होंने कुल 201 किग्रा वजन उठाया और पहली बार 200 किग्रा की बाधा किसी ने पार की थी. 

इस बीच, 2020 से वे पीठ के निचले हिस्से की समस्या से जूझ रही थीं. पीठ दर्द की उनकी परेशानियों के बीच कोविड महामारी का प्रकोप हुआ. लॉकडाउन की घोषणा की गई और उनका प्रशिक्षण बंद हो गया. चानू कहती हैं, ‘‘मैं लॉकडाउन के दौरान प्रशिक्षण नहीं ले सकी. और बिना ट्रेनिंग के मांसपेशियों की क्षति बहुत तेजी से होती है.’’ अक्तूबर 2020 में, चानू के कोच विजय शर्मा उन्हें पूर्व भारोत्तोलक और प्रसिद्ध कोच एरोन हॉर्शिंग से प्रशिक्षण दिलाने के लिए अमेरिका के सेंट लुइस लेकर गए. इसके लिए, भारतीय खेल प्राधिकरण ने 71 लाख रुपए मंजूर किए.

उत्तर कोरिया के ओलंपिक से हटने के साथ चानू की संभावना और भी बढ़ गई है क्योंकि ताशकंद में 200 किग्रा से अधिक भार उठाने वाली चौथी भारोत्तोलक कोरियाई री-सांग गम, झिहुई के साथ चानू के मुकाबले के रास्ते में अब नहीं आएंगी.

कई डोपिंग अपराधों के कारण थाइलैंड और मलेशिया पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. चानू का कहना है कि वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को लेकर परेशान नहीं हैं. चानू कहती हैं, ‘‘मैं परिणाम के बारे में अब ज्यादा नहीं सोच रही हूं. बेशक काफी दबाव है लेकिन मैं प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान दे रही हूं.’’

सलाहकार की राय
''मुझे 100 प्रतिशत भरोसा है कि चानू तोक्यो में भारत के लिए पदक जीतेंगी. शायद उन्हें गोल्ड मिलेगा. वे बहुत मेहनती और अनुशासित एथलीट हैं. हाल ही में वे अपने खेल को एक अलग स्तर पर ले गई हैं. यह वक्त उनके लिए ओलंपिक के गौरव का स्वाद लेने का है’’ 
—कर्णम मल्लेश्वरी 
भारोत्तोलन में कांस्य पदक विजेता

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