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आवरण कथाः मूल्य तय करने  की माथापच्ची

एलआइसी की पॉलिसियों या उत्पादों का रुझान घोषित तौर पर बचत उत्पादों की तरफ है, जिन्हें ‘एंडोवमेंट’ पॉलिसी कहा जाता है.

एलआइसी
एलआइसी
अपडेटेड 18 मार्च , 2021

एलआइसी का एम्बेडेड यानी अज्ञात या अंतर्निहित मूल्य (ईवी) पता लगाना पेचीदा कसरत है जबकि आइपीओ लाने से पहले यह करना ही होगा. वित्तीय क्षेत्र की दूसरी कंपनियों (मसलन, बैंक, एनबीएफसी या म्युच्युअल फंड) की तो बात ही छोड़ दें, आइपीओ से पहले किए जाने वाले मूल्य निर्धारण के मकसद से इसकी तुलना निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों से भी नहीं की जा सकती. दूसरी बीमा कंपनियां भी कोई भरोसमंद मानदंड प्रस्तुत नहीं करतीं तो इसकी मुख्य वजह है.

एलआइसी के उत्पादों का मिला-जुला अनूठा मिश्रण और मुनाफे में साझेदारी का ढांचा. संभावित मूल्य के अनुमान 2-3 लाख करोड़ रुपए से लेकर 20 लाख करोड़ रुपए तक हैं. इतना भारी फर्क ही अपने आप में बताता है कि यह कवायद कितनी पेचीदा है. अच्छी शुरुआत शायद यही है कि मूल्य तय करने का काम बीमांकक फर्म मिलिमैन एडवाइजर्स को सौंप दिया गया है, जो दुनिया के सबसे बड़े बीमांकक सेवा प्रदाताओं में है.

भावी मुनाफों का मौजूदा मूल्य
जीवन बीमा लंबे वक्त का कारोबार है जिसमें बीमा कंपनी पांच से लेकर 25 साल तक की लंबी अवधि के दौरान (एलआइसी के मामले में) अपने पॉलिसी धारकों से मियादी प्रीमियम हासिल करती रहती है. इस तरह मिलने वाले राजस्व का मूल्य निर्धारण करने के लिए भावी नकद प्रवाह के मौजूदा मूल्य की गणना करनी होती है.

एलआइसी की पॉलिसियों या उत्पादों का रुझान घोषित तौर पर बचत उत्पादों की तरफ है, जिन्हें ‘एंडोवमेंट’ पॉलिसी कहा जाता है. ‘सावधिक या मियादी’ बीमा योजनाओं के विपरीत इनमें निवेश का एक तत्व अंतर्निर्मित होता है. एलआइसी इन्हीं निवेश-सह-बीमा योजनाओं के बलबूते फला-फूला है. ऊपर से 'बोनस’ और ‘गारंटीशुदा बढ़ोतरियों’ और एक 'संप्रभु गारंटी’ ने इन्हें जोखिम से परहेज करने वाले भारतीय निवेशकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया है.

एलआइसी का मूल्य तय करने में एक प्रमुख मानदंड उसके उत्पादों का मिला-जुला रूप होगा, क्योंकि बचत योजना की लाभप्रदता या मुनाफा खालिस प्रोटेक्शन योजना के मुकाबले बहुत ही ज्यादा है.

मूल्य तय करने में एक और बेहद अहम कारक यह होगा कि सरकार 1956 के एलआइसी कानून में किस तरह बदलाव करती है. मूल्य तय करने के संदर्भ में खास दिलचस्पी की बात वे संशोधन हैं जो एलआइसी की अपने पॉलिसी धारकों के साथ मुनाफे में साझेदारी की अनूठी प्रतिबद्धता के मामले में प्रस्तावित किए गए हैं. मौजूदा व्यवस्था यह है कि 95 फीसद सरप्लस या अधिशेष पॉलिसी धारकों को मिलते हैं.

जबकि केवल 5 फीसद सरकार को मिलते हैं जो फिलहाल एलआइसी की अकेली शेयरधारक है. कोलियर्स इंटरनेशनल में वैल्यूएशन सर्विसेज (इंडिया) के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय शर्मा कहते हैं, ''निवेशकों के लिए ज्यादा अनुकूल बनाने की खातिर एलआइसी के पूरे ढांचे को नए सिरे से देखना होगा. अगर सरप्लस का बड़ा हिस्सा पॉलिसी धारकों को जाता है, तो निवेशक और खास तौर पर संस्थाएं निवेश करने से कतराएंगी’’ 
—आनंद अधिकारी 

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