राजद्रोह
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए राजद्रोह को ऐसे बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्यांकन या अन्य अभिव्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है जिनसे 'घृणा पैदा हो या मानहानि’ हो, या जो सरकार के प्रति ‘अलगाव को उकसाते या उकसाने का प्रयत्न’ करते हैं. (अलगाव या वैमनस्य को द्रोह या शत्रुता की भावना के रूप में परिभाषित किया गया है.) हालांकि सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों के प्रति अस्वीकृति दर्शाने वाले उन कथनों या टिप्पणियों को, जो सरकार से उन कदमों को बदलवाने की मंशा से किए गए हैं, तब तक राजद्रोह नहीं माना जाता जब तक कि वे सरकार के प्रति घृणा, अवमानना या अलगाव नहीं उकसाते या उकसाने का प्रयत्न नहीं करते.
कठोर प्रावधान
राजद्रोह संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि पुलिस इस अपराध के आरोपी को वारंट के बगैर गिरफ्तार कर सकती है. यह गैर-जमानती और गैर-समाधेय अपराध है (गैर-समाधेय का अर्थ यह है कि आरोपी और पीड़ित के बीच समझौते के जरिए इसका समाधान नहीं किया जा सकता). 124ए के तहत आरोपित व्यक्ति सरकारी पद धारण नहीं कर सकते और उन्हें अपना पासपोर्ट जमा करना पड़ता है. सजा में कैद (तीन साल से ताउम्र तक), जुर्माना, या दोनों शामिल हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980 (एनएसए) ‘कुछ निश्चित मामलों और उनके साथ जुड़े विषयों में एहतियातन हिरासत’ का प्रावधान करता है. यह केंद्र और राज्य सरकारों को अधिकार देता है कि वे ऐसे लोगों को हिरासत में रखें, जो ‘देश की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ भारत के संबंधों के प्रति पूर्वाग्रह’ से संबंधित हरकत कर सकते हैं, या 'सार्वजनिक व्यवस्था या अनिवार्य आपूर्तियों और सेवाओं में खलल’ डालने की मंशा रखते हैं.
कठोर प्रावधान
एनएसए के तहत लोगों को बगैर किसी आरोप-पत्र के 12 महीनों तक हिरासत में रखा जा सकता है. लोगों को उन्हें हिरासत में लेने का कारण बताए बगैर 10 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है. हिरासत में लिए गए व्यक्ति हाइकोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड के सामने अपील कर सकते हैं, लेकिन सुनवाई के दौरान उन्हें वकील रखने की इजाजत नहीं है.
गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून 1967
इस कानून का उद्देश्य देश की अखंडता और संप्रभुता के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियां रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अधिकार देना है.
कठोर प्रावधान
यूएपीए आरोप लगाए बगैर 180 दिनों तक हिरासत में रखने की इजाजत देता है. 2019 में किए गए संशोधन केंद्र सरकार को मुकदमा चलाए बगैर किसी व्यक्ति को 'आतंकवादी’ घोषित करने का अधिकार देते हैं. हिरासत 30 दिन बढ़ाई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने 1 फरवरी 2021 को निर्णय दिया कि अगर त्वरित मुकदमा चलाने के अधिकार का को जमानत दी जा सकती है.