कुल जमा 22 बरस की दिशा रवि कुछ हफ्तों पहले तक महज एक और उत्साही पर्यावरण कार्यकर्ता थी. मगर 14 फरवरी को जब दुनिया वेलेंटाइन दिवस मना रही थी, बेंगलूरू की इस लड़की को दिल्ली पुलिस ने केंद्र के खिलाफ ‘अलगाव’ पैदा करने के लिए गिरफ्तार कर लिया. कानून की किताबों में भारतीय दंड संहिता की जिस धारा 124ए के तहत दिशा को गिरफ्तार किया गया, वह यही कहती है. पुलिस हिरासत में पांच दिन और न्यायिक हिरासत में चार दिन बिताने के बाद उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया. दिल्ली की एक अदालत ने कटु टिप्पणी की और कहा कि दिशा के काम को राजद्रोह नहीं माना जा सकता.
मुंबई की वकील निकिता जैकब और पुणे के इंजीनियर शांतनु मुलुक के साथ दिशा पर आरोप लगाया गया कि उसने किसानों के विरोध प्रदर्शन के लिए एक ऑनलाइन 'टूलकिट’ का संपादन किया था. 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में इस टूलकिट की अब जांच की जा रही है. दिशा ने अदालत में कहा कि उसने यह टूलकिट नहीं बनाया, पर स्वीकार किया कि उसने इसमें 'दो पंक्तियां संपादित’ की थीं. बेंगलूरू के माउंट कारमेल कॉलेज से ग्रेजुएट दिशा जलवायु कार्रवाई समूह फ्राइडेज फॉर फ्यूचर (एफएफएफ) की भारत प्रमुख है. यह संगठन स्वीडन की जलवायु ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने 2018 में शुरू किया था. जैकब और मुलुक पर्यावरण से जुड़े वैश्विक आंदोलन एक्स्टिंक्शन रिबेलियन का हिस्सा हैं.
इस टूलकिट में कथित तौर पर ‘‘26 जनवरी को कार्रवाई के बिंदुओं, डिजिटल हमले और भौतिक कार्रवाई’’ का जिक्र किया गया है. सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, 26 जनवरी की हिंसा उस ‘कार्य योजना के हूबहू अमल’ का पर्दाफाश करती है जिसके ब्योरे टूलकिट में दिए गए हैं और जिसमें 'योग तथा चाय सहित देश की सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट करने और विदेश स्थित विभिन्न राजधानियों में भारतीय दूतावासों को निशाना बनाने’ का भी जिक्र है. तत्काल की जाने वाली कार्रवाइयों में 'ट्विटर स्टॉर्म’ और दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शन भी शामिल है. फरवरी के पहले हक्रते में कई वैश्विक शख्सियतों ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के समर्थन में ट्वीट किए थे, जिनमें अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना, वकील-ऐक्टिविस्ट मीना हैरिस (अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी) और पूर्व वयस्क मनोरंजनकर्ता मिया खलीफा शामिल थीं.
इस टूलकिट पर दुनिया की नजर तब पड़ी जब 2 फरवरी को थनबर्ग ने इसे ट्वीट किया. बातचीत के जो लिखित ब्योरे लीक किए गए, वे बताते हैं कि थनबर्ग के ट्वीट के कुछ ही पल बाद दिशा ने उनसे कहा कि इस दस्तावेज को पोस्ट न करें क्योंकि उन दोनों के नाम इसमें हैं. उन्होंने थनबर्ग से यह भी कहा कि इस बारे में ''कुछ वक्त के लिए बिल्कुल कुछ न बोलें’’ क्योंकि उन्हें गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून 1967 के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
दिशा का डर 4 फरवरी को सच साबित हुआ जब दिल्ली पुलिस ने टूलकिट बनाने वालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली और उन पर, अन्य धाराओं के अलावा, राजद्रोह का आरोप लगाया. पुलिस ने दावा किया कि टूलकिट कनाडा स्थित और कथित खालिस्तान-समर्थक धड़े पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीजेएफ) ने तैयार और दिशा ने संपादित किया था, जिसे बाद में थनबर्ग के साथ साझा किया गया. यह भी दावा है कि दिशा, जैकब और मुलुक ने पीजेएफ की एक जूम मीटिंग में हिस्सा लिया था. 21 और 27 जनवरी के बीच दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में मुलुक की मौजूदगी का भी हवाला दिया गया.
दिशा की गिरफ्तारी के तीन दिनों के भीतर जैकब और मुलुक ने मुंबई हाइकोर्ट से गिरफ्तारी के खिलाफ अस्थायी राहत हासिल कर ली. मुलुक ने अग्रिम जमानत के लिए दिल्ली हाइकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया. दिशा को जमानत की मंजूरी देते हुए 23 फरवरी को पटियाला हाउस कोर्ट में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा, ''रिकॉर्ड पर मौजूद थोड़े-से और आधे-अधूरे सबूतों पर विचार करते हुए मुझे जमानत से इनकार करने का कोई साफ कारण नहीं मिला.’’ उन्होंने दिल्ली पुलिस पर तल्ख टिप्पणियां भी कीं और कहा कि ''लोग सरकार के नैतिक पहरुए हैं... उन्हें इसलिए जेल में नहीं डाला जा सकता कि वे सरकार की नीतियों से असमहत हैं.’’
लोग सरकार के नैतिक पहरुए हैं...उन्हें सिर्फ इसलिए जेल में नहीं डाला जा सकता कि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं...राजद्रोह का अपराध बस सरकार के आहत अभिमान को सहलाने के लिए नहीं लगाया जा सकता.