
2020 सुर्खियों के सरताज
कोविड-19: अर्थव्यवस्था
यकीनन बीते वर्ष के शुरुआती महीनों जनवरी और फरवरी में कोविड-19 महामारी मोटे तौर पर चीन की समस्या लग रही थी. देश में इसकी आमद या अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की थोड़ी आशंका जरूर थी. तब ज्यादातर चिंताएं चीन से आयात को लेकर थीं. हालांकि वायरस के प्रकोप बढ़ने और रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने उदारीकरण के बाद पहली बार देश को मंदी में झोंक दिया, कामकाज ठप और रोजगार चौपट हो गए.
यह बेहद नाटकीय था कि देश की सबसे तेज वृद्धि दर्ज करने वाली अर्थव्यवस्था दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बुरे दौर में पहुंच गई. इसकी एक वजह तो यह हकीकत थी कि देश में वायरस की आमद के पहले ही जीडीपी वृद्धि दर धीमी होती जा रही थी, साल दर साल के पैमाने पर 2019 की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में 4.1 फीसद तक गिर गई थी.
इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं थम गई थीं, उपभोक्ता खर्च घट गया था, निर्यात बमुश्किल हो रहा था, और बैंकिंग क्षेत्र डूबत कर्ज के पहाड़ और घोटालों तथा नाकामियों के नीचे दबा हुआ था, जबकि उसी से 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था 50 खरब डॉलर तक पहुंचाने के लिए पूंजी मुहैया कराने की उम्मीद थी.

लॉकडाउन ने दर्द काफी बढ़ा दिया. इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि शून्य से नीचे -23 फीसद बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बुरी थी क्योंकि पहले केंद्र और फिर राज्यों तथा स्थानीय अधिकारियों के थोपी लॉकडाउन ने खपत लगभग बंद हो गई. सबसे बुरा हाल सेवा क्षेत्र का हुआ. विमानन, होटल-रेस्तरां, ट्रैवल और खुदरा कारोबार बैठ गए, गैर-जरूरी जिंसों के उत्पादन ठप हो गए.
देश के इतिहास में पहली दफा घरेलू वाहन निर्माण थम गया. अप्रैल में देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने एक भी कार नहीं बेची. बिक्री पाताल में पहुंचने से कंपनियां अपने मुनाफे को बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर नौकरियों और वेतन कटौती में मशगूल हो गईं.
मई में सरकार ने 20 लाख करोड़ रु. का आत्मनिर्भर प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान किया. लक्ष्य था एमएसएमई (कुटीर, छोटे और मझोले उद्यमों) क्षेत्र में जान फूंकना, अर्थव्यवस्था के सबसे निचले पायदान वालों की रक्षा करना और महामारी से पस्त कुछ खास कारेबारी क्षेत्रों की मदद करना. इस प्रोत्साहन पैकेज का असर पूरी तरह अभी नहीं दिखा है, इससे मांग या निवेश में कोई अहम फर्क अभी तक नहीं दिखा है.

हालांकि इसी दौर में सामान्य आर्थिक गतिविधियों में रुकावटों का लाभ उठाकर ऑनलाइन खुदरा और शिक्षा क्षेत्र की कंपनियों ने अपनी हिस्सेदारी अच्छी-खासी बढ़ा ली. अगस्त में बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के एक सर्वे में पता चला कि लॉकडाउन में नए ऑनलाइन दुकानदारों की बढ़ोतरी 20 फीसद देखी गई.
जुलाई से अर्थव्यवस्था ‘अनलॉक’ के चरण में है, मैन्युफैक्चरिंग उठी है और एक हद तक बुनियादी खुदरा कारोबार में इजाफा हुआ है. मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में इजाफा काफी अहम है, जैसा कि दूसरी तिमाही की जीडीपी वृद्धि के आंकड़ों से पता चलता है. जानकारों का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग, कृषि क्षेत्र और बिजली खपत में वृद्धि की वजह से ही पहली तिमाही में -23 फीसद की वृद्धि दूसरी तिमाही में -7.5 फीसद पर पहुंच गई. ये सभी आर्थिक गतिविधियों के बढऩे के संकेत हैं. हालांकि इससे अभी जश्न मनाने की खास वजह नहीं बनी है.
जानकारों का मानना है कि मैन्युफैक्चरिंग में दिख रहा उठान ठहरी हुई मांग के उठने का नतीजा है. फिर कॉर्पोरेट आंकड़ों में सकारात्मकता स्टाफ और वेतन कटौती से हुई बचत और कच्चे माल की घटी कीमतों का नतीजा है. इसका मतलब यह है कि देश में रोजगार और नौकरियों का भारी संकट का सामना आगे भी करना पड़ेगा. अशुभ संकेत पहले ही मिल रहे हैं.
सितंबर में मैनपावरग्रुप के 800 कंपनियों के सर्वे में पता चला कि देश में नौकरियों पर रखने की फितरत 15 साल में सबसे निचले स्तर पर है. सिर्फ 3 फीसद कंपनियां ही नौकरी पर रखने के लिए लोगों की तलाश कर रही हैं और सिर्फ 7 फीसद ही अगले तीन महीने में अपने वेतन खर्च में इजाफे की उम्मीद कर रही हैं.
जानकारों के मुताबिक, हाल-फिलहाल खुश होने की वजहें ज्यादा नहीं हैं. उनका कहना है कि आने वाले महीनों में वृद्धि में मामूली सुधार ही होगा, जो वैसे भी शून्य से नीचे के दायरे में ही रहेगा और आखिरकार उसी से अगले वित्त वर्ष में सकारात्मक दायरे में वृद्धि की राह खुलेगी. समूचे 2021 के वित्त वर्ष में विभिन्न एजेंसियां अपने पहले के जीडीपी अनुमानों को बढ़ा रही हैं लेकिन यह अभी भी नकारात्मक दायरे में ही है.
मसलन, क्रिसिल ने इस वित्त वर्ष के लिए अपने पहले के -9 फीसद के अनुमान को सुधारकर -7.7 फीसद कर लिया है. यह दूसरी तिमाही में उम्मीद से अधिक तेजी से आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी और कोविड-19 संक्रमण के मामलों में गिरावट की वजह से हुआ है. हालांकि गौरतलब यह भी है कि खाद्य वस्तुओं की महंगाई दो अंकों में पहुंच गई है. उसका कहना है कि कुछ चीजों के दाम ऊंचे बने हुए हैं और उपभोक्ता कीमतों में हाल की बढ़ोतरी बताती है कि महंगाई का दबाव बना रहेगा.
उसका अनुमान है कि वित्त वर्ष 2021 में खुदरा महंगाई 6.4 फीसद पर रहेगी. ऊंची महंगाई आमदनी में खर्च करने के हिस्से को घटा देती है, आर्थिक अनिश्चितता बढ़ाती है और वृद्धि को सहारा देने की केंद्रीय बैंक की क्षमता घटा देती है. क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. जोशी कहते हैं, ‘‘मदद के तौर पर सरकार का प्रत्यक्ष खर्च मांग में इजाफे के लिए नाकाफी है.’’ वे बताते हैं कि मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार का प्रत्यक्ष खर्च जीडीपी का महज 2 फीसद है.
सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के दो उद्देश्य देश को आत्मनिर्भर और दुनिया में स्पर्धा के लायक बनाना है. हालांकि कितनी प्रगति की दरकार है, इस पैमाने पर वर्ल्ड बैंक लॉजिस्टिक परफॉर्मेंस इंडेक्स 2018 में दुनिया के 167 देशों में भारत का रैंक 44 है. मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव कहते हैं, ‘‘मेरा मानना है कि भारत के उद्योगों को कम खर्चीला और प्रतिस्पर्धी होना चाहिए. इसमें सरकार और उद्यमियों दोनों को भूमिका निभानी है. आत्मनिर्भरता की जरूरत है कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग का विकास तेजी से हो और वह बेहद प्रतिस्पर्धी बने.’’
कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कुछ समय के लिए सरकार को राजकोषीय घाटे का लक्ष्य की चिंता ज्यादा नहीं करनी चाहिए और उसे जीडीपी के मौजूदा 3 फीसद से बढ़ाकर 4 फीसद करना चाहिए, ताकि उसके लिए ज्यादा खर्च करने की गुंजाइश बने. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक हालिया बयान से लक्ष्य को बढ़ाने की इच्छा का संकेत मिलता है.
कुछ का यह भी मानना है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक महंगाई के लक्ष्य को मौजूदा 4 फीसद से बढ़ाकर 5 फीसद कर देना चाहिए. हालांकि 2 फीसद अंक ही फर्क को बर्दाश्त करने का लक्ष्य बरकरार रखना चाहिए.
अर्थव्यवस्था को बहाल करने के खातिर भारत को जिन क्षेत्रों में कदम बढ़ाने की जरूरत है, उनमें नियामक जकडऩ को घटाना, कारोबारी सहूलत के लिए केंद्र और राज्य स्तर के सुधारों पर अमल, देश की वृद्धि की आकांक्षओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर खासकर एमएसएमई को फंड मुहैया कराने वाले मजबूत बैंकिंग व्यवस्था का निर्माण जैसे कुछेक कदम शामिल हैं.