जब भारत ने लॉकडाउन की आर्थिक चुभन महसूस करनी शुरू की तो केंद्र ने सबसे पहले लॉजिस्टिक सेक्टर को खोलने का फैसला किया था. जल्दी ही आवश्यक वस्तुओं, दवाओं और स्वास्थ्य उपकरणों की ढुलाई के लिए ट्रक हाइवे पर दौड़ने लगे लेकिन तब राज्यों की सीमाएं सील थीं और आवश्यक वस्तुओं से लदे ट्रकों को लंबे वक्त तक इंतजार करना होता था. बाजार विश्लेषकों ने अनुमान लगाया कि लॉकडाउन के 40 दिनों में देश के परिवहन और लॉजिस्टिक सेक्टर ने शायद 15-20 फीसद का नुक्सान झेला होगा.
वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में माल ढुलाई से रेलवे को हुई आमदनी 2019-20 से 26.4 फीसद घटकर 31,275 करोड़ रुपए रह गई. ऐसा कोयले और सीमेंट तथा ऐसी वस्तुओं की मांग में आई गिरावट से हुआ जो अमूमन ट्रेनों से ढोई जाती हैं. बहरहाल, रेलवे के आला अधिकारी कहते हैं कि जब से अनलॉक शुरू हुआ है, माल ढुलाई में तेजी आई और पैसेंजर ट्रेनों पर बंदिश की वजह से अतिरिक्त पटरियां उपलब्ध हैं जिसका फायदा मिल रहा है.
बहरहाल, अंतरराज्यीय गतिविधियों के शुरू होने के बाद भी ट्रक ऑपरेटरों को कारोबार फिर से जमाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मोटे तौर पर इसकी वजह ड्राइवरों की कमी है, जो अपने गांवों को लौट गए हैं. साथ ही ट्रकों के लिए वापसी के सफर में रिटर्न लोड भी कम ही होता है. हालांकि, सड़क मार्ग से लंबी दूरी की आवाजाही फिर शुरू हो गई है, लेकिन इसे रेलवे से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.
रेटिंग एजेंसी केयर की हालिया रिपोर्ट कहती है कि लॉकडाउन ने समुद्री माल ढुलाई पर भी असर डाला है और अप्रैल-जून की अवधि में इसमें 19.7 फीसद की कमी पिछले साल के मुकाबले दर्ज की गई है. परिवहन सेक्टर में यात्री सेवाओं पर सबसे बुरा असर पड़ा है. हवाई सेवा शुरू हो चुकी है लेकिन रेलवे जो 2,800 एक्सप्रेस और मेल ट्रेनें रोज चलाता था, अभी 250 से भी कम ट्रेनें चला रहा है. अंतरराज्यीय बसें शुरू नहीं हो पाई हैं. जिलों के बीच बसों को परिचालन की अनुमति तो है पर उनमें क्षमता से आधे मुसाफिर ही यात्रा कर सकते हैं.
शहरों में सार्वजनिक परिवहन सामान्य होने में समय लगेगा. 7 सितंबर से मेट्रो रेल सेवाएं दोबारा शुरू हुई हैं पर उनके फेरे सीमित हैं. ऑटो और कैब भी सड़कों पर पूरी क्षमता से दौड़ नहीं रही हैं. उबर ने भारत में 2,000 लोगों के कार्यबल को एक-चौथाई घटा दिया है और मुंबई का दफ्तर बंद कर दिया है.
रेटिंग एजेंसी आइसीआरए का कहना है कि जुलाई के बाद से बंदिशें हटीं तो रेल और समुद्री माल ढुलाई महामारी के दौर से पहले के करीब 90 फीसद स्तर तक आ गई है. लेकिन कोविड के केस बढ़ रहे हैं और कई राज्यों में बार-बार लग रहे लॉकडाउन से मांग कम ही रहने वाली है और इससे पहले से चुनौतियों से जूझ रहे लॉजिस्टिक कारोबार के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी ही.
केस स्टडी
संजीव दीवान, 47 वर्ष
मालिक, चंडीगढ़-इंदौर रोडलाइन्स, चंडीगढ़
उनके पास 50 ट्रकों का बेड़ा है और संजीव दीवान की कंपनी चंडीगढ़ के आसपास के इलाकों में लंबी दूरी की माल ढुलाई में प्रमुख नाम है. दीवान पंजाब और हिमाचल प्रदेश में मोटे तौर पर कृषि उत्पादों, औषधीय उत्पादों और औद्योगिक माल की ढुलाई करते हैं.
कामकाज के स्तर को देखा जाए तो दीवान लॉकडाउन के दौरान अपने ड्राइवरों का प्रबंधन करने में व्यस्त रहे क्योंकि उनमें से कई हाइवे पर फंस गए थे. उन्होंने सुनिश्चित किया कि उन्हें खाने और दूसरी जरूरतों के लिए पैसों की कमी न हो और उन्हें अस्थायी रूप से रहने की जगह भी मिल जाए.
दीवान कहते हैं, ''लॉकडाउन के पहले तीन महीनों में तो कारोबार तकरीबन ठप पड़ गया था, लेकिन हमें ड्राइवरों और दूसरे कर्मचारियों को तनख्वाह देनी थी क्योंकि आप उन्हें खो नहीं सकते. वे वफादार और ट्रेंड हैं.'' वे कहते हैं कि हालांकि, जुलाई से कारोबार ने गति पकड़नी शुरू की, पर यह सामान्य से बहुत कम है. वे कहते हैं, ''कोविड महामारी से पहले के कारोबार की तुलना में अभी का कामकाज आधा ही है. पर यह समय भी असामान्य है. हम रनिंग कॉस्ट घटा रहे हैं और चीजें चलती रहें इसके लिए नए तरीके अपना रहे हैं.''

