डॉ. प्रवीर दासगुप्त, 77 वर्ष
और कावेरी दासगुप्त, 63 वर्ष
डॉक्टर-गृहिणी दंपति,
गरिया, कोलकाता
मार्च के मध्य तक डॉ. प्रवीर दासगुप्त बिना किसी बदलाव के अपनी दिनचर्या का पालन किया करते थे. हफ्ते में दो बार वे सोनारपुर स्थित अपने पॉलीक्लिनिक का दौरा किया करते थे. अपने पेशे के प्रति उनमें गहरा जुनून है. गरिया के उनके घर से लेकर क्लिनिक तक का आधे घंटे का पूरा रास्ता खासा हरा-भरा है. हरियाली का यह आकर्षण उन्हें क्लिनिक जाने की अपनी आदत बनाए रखने को प्रोत्साहित करता है.
कावेरी भी सामाजिक रूप से काफी सक्रिय रहना, सहेलियों और पड़ोसियों से रोजाना मिलना-जुलना पसंद करती हैं. यही वजह है कि दोनों के लिए घर की चारदीवारियों के भीतर सिमटकर रह जाना काफी मुश्किल हो गया है. चूंकि उनके घर में अभी नौकरानियों के आने की भी अनुमति नहीं है, इसलिए कावेरी पर घरेलू काम का भी अच्छा-खासा बोझ है. लेकिन उनकी परेशानी शारीरिक की बजाए मानसिक ज्यादा है. प्रवीर को थोड़ा उच्च रक्तचाप की शिकायत रहती है.
वे कहते हैं, ‘‘लोगों से फोन पर बात कर लेना, कॉफी और सिंघाड़े के साथ अड्डेबाजी का विकल्प कभी नहीं हो सकता.’’ यह दंपती नकारात्मक समाचारों से खुद को बचाने के लिए कभी-कभार ही टीवी देखता है. प्रवीर, ‘‘कहानी की किताबें और मेडिकल जर्नल्स पढऩा पसंद’’ करते हैं.
एक डॉक्टर होने के कारण वे अपने स्वास्थ्य को लेकर उतने ज्यादा चिंतित तो नहीं लेकिन कहते हैं, ''मैं अपने परिवार के स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं कर सकता. सच यह है कि मैं ताजा हवा के लिए खुले स्थान में नहीं जा सकता और कावेरी भी आम दिनों की तरह मित्रों के साथ मेल-मुलाकात नहीं कर पा रही हैं. मैं महसूस कर सकता हूं कि वे इस तरह कैद हो जाने के कारण कितना छटपटा रही हैं.’’
‘‘फोन पर बात करने से क्या! वह कॉफी के गर्मागरम कप और सिंेघाड़े के साथ जमने वाले शानदार अड्डों का विकल्प थोड़े ही हो सकता है!’’

