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संकट मोचनः रहमत के फरिश्ते

अपनी ‌जिंदगी औरपरिजनों से दूर, दो-टूक प्रतिबद्धता और दैवीय चमत्कार कोशिशों के साथ कोविड के खिलाफजंग में अग्रिम मोर्चे के इन डॉक्टरों पर चिकित्सा शास्त्र के नैतिक पहरुयों को नाज होगा.

फोटो: बंदीप सिंह
फोटो: बंदीप सिंह
अपडेटेड 11 मई , 2020

उनकी मुलाकात मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान हुई और इसी साल जनवरी में वे शादी के बंधन बंध गए. डॉ. ईशान रस्तोगी और उनकी पत्नी डॉ. रश्मि मिश्रा को तब जरा भी इल्म नहीं था कि शादी के मात्र चार महीने में ही वे एक साथ ऐसे संकट में झोंक दिए जाएंगे, जिसमें उनके रोजमर्रा का ज्यादा वक्त खप जाएगा.

दोनों एलएनजेपी (लोकनायक जयप्रकाश) अस्पताल में मेडिसिन के सीनियर रेजिडेंट हैं, 30 वर्षीय डॉक्टर दंपती को अस्पताल के कोविड वार्ड में तैनात रहने के दौरान बमुश्किल ही अपने लिए कोई सुकून का पल मिल पाता है. राहत बस इतनी-सी है कि उनकी हर दिन मुलाकात हो जाती है, कभी-कभार एक-दूसरे के साथ ऑनलाइन लूडो खेल लेते हैं, या पीपीई सूट के पीछे ढके चेहरे से मुस्कान का आदान-प्रदान कर लेते हैं. साथ में यह दुश्चिंता भी बनी रहती है कि अगर दोनों में से एक संक्रमित हो जाता है, तो दूसरा अकेला रह जाएगा.

इन दिनों, कोविड के इलाज के लिए राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल में सीनियर और जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों को हर दिन तीन में से किसी एक पाली में रहना होता है—सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे और दोपहर 3 बजे रात 9 बजे तक छह घंटे वाली दो पाली या फिर रात 9 बजे से सुबह 9 बजे तक वाली 12 घंटे की एक पाली. पाली रोजाना बदल जाती है.

अस्पताल की सीनियर रेजिडेंट 29 वर्षीया डॉ. सोहिनी हलदर बताती हैं, ‘‘डॉक्टर सैनिटाइज्ड ‘ग्रीन जोन’ से प्रवेश करते हैं, जहां वे पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) किट पहनते हैं, जिसमें आधा घंटा लगता है. और फिर वे ‘रेड जोन’ में प्रवेश करते हैं, जहां मरीज होते हैं.’’

कोई घर या फिर क्वारंटीन सेंटर में जांच में संक्रमण का शिकार पाया जाता है तो उसे दिल्ली के नौ कोविड अस्पतालों में से किसी एक में दाखिल किया जाता है. अस्पताल ने अपने सभी शिक्षण कक्ष, ओपीडी और वार्ड को खाली करा कर सिर्फ कोविड रोगियों के इलाज के लिए 2,000 बिस्तर तैयार कर लिए हैं. हम अस्पताल पहुंचे उस रोज वहां 450 मरीज थे, जिनमें से ज्यादातर हल्के से मध्यम लक्षण वाले थे.

लगभग 800 डॉक्टर और सलाहकार उन मरीजों की निगरानी के लिए प्रति दिन 6 या 12 घंटे की पाली वाली 14 दिनों की शिफ्ट में काम करते हैं. हर वक्त अस्पताल परिसर में 150-200 डॉक्टर उपलब्ध रहते हैं.

वे केवल कोविड का ही इलाज नहीं कर रहे हैं. अस्पताल में डायलिसिस और स्त्रीरोग संबंधी सेवाएं भी चालू हैं. प्रसूति और स्त्री रोग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ.

निहारिका धीमान को पिछले एक महीने से जरूरत पडऩे पर 24 घंटे की सेवा के लिए उपलब्ध होना पड़ता है. कोविड-पॉजिटिव माताओं के प्रसव में दोगुना समय लगता है. डॉ. निहारिका को अक्सर देर रात अस्पताल पहुंचना पड़ता है, पीपीई किट पहनकर आपात चिकित्सा प्रक्रियाएं पूरी करनी होती हैं.

कोविड वार्ड में सुरक्षा कारणों से मरीजों के साथ उनके तीमारदारों के आने की अनुमति नहीं है इसलिए मरीजों की दुश्चिंताएं दूर करने और उन्हे सांत्वना देने की जिम्मेदारी भी डॉक्टरों के कंधों पर आ जाती है. डॉ.

निहारिका कहती हैं, माताएं यह सोचकर बहुत डरी होती हैं कि कहीं वायरस का संक्रमण उनके नवजात शिशुओं तक न पहुंच गया हो. वे कहती हैं, ‘‘हम उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश करते हैं कि अध्ययनों से पता चला है कि कोविड संक्रमण माता से शिशुओं में नहीं पहुंचता है, और हम बाहरी संक्रमण से बचाने के लिए सभी जरूरी सावधानी बरत रहे हैं. लेकिन माएं डरी रहती हैं.’’

परिवार के लोग आस-पास नहीं होते इसलिए मरीज बस डॉक्टरों के आने की ही राह देखते रहते हैं. और उनका पहला सवाल शर्तिया तौर पर यही होता है कि वे कब ठीक होंगे, जिसका कोई सटीक जवाब डॉक्टरों के पास नहीं हो सकता है. डॉ सोहिनी कहती हैं, ‘‘मरीज अपने परिजनों को देखने जैसी बहुत मामूली बात के लिए गिड़गिड़ाते हैं.’’ हर जनरल वार्ड में, जहां हल्के से मध्यम लक्षणों वाले रोगियों को रखा जाता है, 4-8 लोहे के बेड पर बिस्तर बिछे हैं. कुछ घर से अपनी चादर लेकर आए हैं. कुछ बेड पर एक-दो किताबें भी रखी हैं लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पढ़ रहा है.

अस्पताल के एक सफाईकर्मी का कहना है कि वह पिछले 10 साल से यहां काम कर रहा है लेकिन फर्श को इतना साफ उसने कभी नहीं देखा है, क्योंकि ‘‘अब कोई आता ही नहीं है.’’ जिस अस्पताल के ओपीडी में हर दिन औसतन 3,500-4,000 लोग आते हैं, मरीजों से खचाखच भरे रहने वालों गलियारे में सन्नाटा पसरा है. यहां से फिलहाल केवल भोजन, पानी या दवा ले जाने वाली ट्रॉलियां ही गुजरती हैं.

एलएनजेपी के ईएनटी विशेषज्ञ और मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. जे.सी. पासी कहते हैं, ‘‘डॉक्टर पीड़ा और मृत्यु को भली-भांति समझते हैं, वे इस पेशे के जोखिमों को भी जानते हैं. लेकिन कोविड ने हम सभी को हिला दिया है. यह संक्रामक है और इसके लक्षण किस तरह के होंगे, इसे पक्के तौर पर कहना मुश्किल है. इसका कोई पक्का पैटर्न नहीं है.’’ डॉ. हलदर और उनके जूनियर रेजिडेंट की टीम से पूछिए, जिनके ऊपर 150 के करीब मध्यम से गंभीर मरीजों की जिम्मेदारी है.

उन्होंने कई ऐसे मौके देखे हैं जब मरीज की हालत अचानक बिगडऩे लगती है और अस्पताल में 66 आइसीयू बेडों में से किसी एक पर पहुंचाए गए मरीज कभी नहीं लौटे. वे कहती हैं, ‘‘हम सभी महत्वपूर्ण अंगों और ऑक्सीजन के स्तर की लगातार निगरानी करते हैं. हमें हाइपोक्सिया या मरीज के अंगों में कोई क्षति दिखती है, तो हम तुरंत आइसीयू में शिफ्ट कर देते हैं.’’ जिस दिन हम अस्पताल गए थे उस दिन पांच मरीज वेंटिलेटर पर थे. डॉ. सोहिनी कहती हैं, ‘‘किसी को अकेले मरते देखना बड़ा दर्दनाक है. शिफ्ट खत्म होने के बाद मैं बस नींद खोजती हूं.’’

वास्तव में, कोविड लोगों को बहुत थका रहा है. डॉ. पासी कहते हैं, ‘‘हर डॉक्टर को 12 घंटे की शिफ्ट के दौरान पीपीई पहनना होता है. जब आप पीपीई गियर में होते हैं, तो खा-पी नहीं सकते या 4-5 घंटे तक शौचालय भी नहीं जा सकते.

फिर आपको एक ब्रेक मिलता है और उसके बाद बाकी की शिफ्ट के लिए फिर उसे पहनना होता है.’’ अस्पताल में शुरुआत में पीपीई की कमी थी, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि स्थिति में जबरदस्त सुधार हुआ है.

वे प्रशासनिक जिम्मेदारियों को भी निभा रहे हैं. कई वरिष्ठ कर्मचारियों को एम्बुलेंस पिक-अप, अंतिम संस्कार के लिए शवों को भेजने, मरीजों के परिवारों के साथ संवाद बनाए रखने या पैंट्री की आपूर्ति संभालने का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. हृदय चिकित्सा, त्वचारोग या आंतरिक चिकित्सा में 10 साल का अनुभव रखने वाले डॉक्टर अब आपको ‘हेड ऑफ ट्रांसपोर्ट’ या ‘हेड ऑफ फोन कॉल’ के रूप में भी काम करता दिख सकता है और मजाक में खुद उनके साथी उन्हें ऐसे नामों से पुकारते हैं.

14 दिनों के बाद, हर डॉक्टर की कोविड जांच होती है. मेडिसिन के एक सीनियर रेजिडेंट 30 वर्षीय डॉ. पीयूष नंदी कहते हैं, ‘‘जब आप जांच के परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं तो एक घबराहट-सी रहती है.’’ उसके बाद उन्हें 14 दिनों के क्वारंटीन अवकाश के लिए होटल ललित में भेज दिया जाता है. एलएनजेपी के एक डायटिशियन में संक्रमण की पुष्टि होने के बाद अस्पताल की कैंटीन बंद कर दी गई.

भोजन ताज होटल से आता है. दोपहर के भोजन या रात के खाने के दौरान ही दोस्तों, परिजनों से बात करते हैं, वेब खंगालते हैं.

डॉ. निहारिका और ऋषिकेश एम्स में डॉक्टर उनके पति के पास अपनी बेटी को शिमला में उसके नाना-नानी के पास भेजने के अलावा कोई चारा नहीं था. उनकी मां कहती हैं, ‘‘वह केवल छह साल की है और पिछले कुछ दिनों से मुझसे बात नहीं कर रही है.’’

नवविवाहित डॉक्टर दंपती डॉक्टर दंपती ईशान रस्तोगी और रश्मि मिश्रा ने माता-पिता को सड़क पर से ही हाथ हिलाकर विदा किया था.

डॉ. सोहिनी बताती हैं कि उन्होंने कोलकाता में अपने माता-पिता को अपने सारे निवेश या पैसे के बारे में फोन पर बता दिया है ताकि उन्हें कुछ हो गया तो सारी जानकारी रहनी चाहिए. वे कहती हैं, ‘‘एक डॉक्टर होने का यह हिस्सा है. मेरे परिवार को मुझ पर बहुत गर्व है.’’

देशभर में लॉकडाउन में ढील दी जा रही है, तो टीम बढ़ते मामलों को लेकर चिंतित है. डॉ. पासी का कहना है कि दिल्ली में पिछले तीन दिनों में 1,000 नए मामले आए हैं, और कुल संख्या 6,572 हो चुकी है. वे कहते हैं, ‘‘हमारे मरीज ठीक होकर घर जा रहे हैं, उन्हें खुश होकर जाते देखना हमारा सबसे बड़ा पुरस्कार है.’’

यह एहसास कि उन्होंने किसी की जान बचाई है, उन्हें अपना काम जारी रखने को प्रेरित करता है. ये डॉक्टर खुद को नायक के रूप में नहीं देखते हैं, वे बस यही मान रहे हैं कि वे तो अपना कर्तव्य निभा रहे हैं.

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