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तमिलनाडु-द्रविड़ दलों की दुविधा

अन्नाद्रमुक और द्रमुक दोनों के करिश्माई नेता अब नहीं रहे. इसलिए दोनों में से कोई भी दल अपनी एकतरफा जीत को लेकर आश्वस्त नहीं दिखता.

पलानीस्वामी और ओ.पन्नीरसेलवम
पलानीस्वामी और ओ.पन्नीरसेलवम

दक्षिणी प्रायद्वीप में अप्रत्याशित क्षेत्रीय दलों के भरोसे रहना ही भाजपा और कांग्रेस की प्राथमिक चुनौती है. दमदार क्षेत्रीय पार्टी के कंधे पर सवार होने का यही नुक्सान है. ये पार्टियां दो तेलुगु राज्यों में अपने दम पर सरकार में हैं. द्रमुक, अन्नाद्रमुक, टीआरएस, टीडीपी, वाइएसआरसी, जद (एस) समेत अनेक दलों पर टिकी हैं इन दो राष्ट्रीय दलों की संभावनाएं

तमिलनाडु में 18 अप्रैल का चुनाव सत्तारूढ़ ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (अन्नाद्रमुक) और उसके प्रतिद्वंद्वी द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (द्रमुक) के लिए एक ऐतिहासिक चुनाव होने वाला है. लोकसभा चुनाव के साथ-साथ 234 सीटों वाली विधानसभा की 18 सीटों के लिए हो रहे उप-चुनावों के नतीजे, तीन साल पुरानी अन्नाद्रमुक सरकार का भविष्य तय कर सकते हैं.

पिछली लोकसभा में अन्नाद्रमुक ने राज्य की 39 सीटों में से 37 सीटें जीती थीं और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. अब अन्नाद्रमुक और द्रमुक, दोनों के ही कद्दावर नेता क्रमशः जे. जयललिता और एम. करुणानिधि का निधन हो चुका है. दोनों ही दलों ने अपनी सुविधानुसार अन्य क्षेत्रीय दलों और राष्ट्रीय पार्टियों—द्रमुक ने कांग्रेस के साथ और अन्नाद्रमुक ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया है. नतीजा यह रहा कि दोनों ही मुख्य द्रविड़ पार्टियां अब केवल 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं और राष्ट्रीय दल इन द्रविड़ पार्टियों के वोट बैंक का फायदा उठाएंगे.

इस बार चुनावी समीकरण उलझे हुए दिखाई देते हैं. साल 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लडऩे वाली अन्नाद्रमुक इस बार भाजपा, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) और देसिय मुरुपोकु द्रविड़ कडग़म (डीएमडीके) के साथ चुनावी समर में उतरी है. अन्नाद्रमुक दो साल पुरानी इदप्पडी के. पलानीस्वामी सरकार को बनाए रखने के लिए राज्य की सभी 18 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ रही है.

पलानीस्वामी सरकार के पास विधानसभा में सुविधापूर्ण बहुमत नहीं है और उसे जयललिता की सहयोगी रही टी.वी. शशिकला के भतीजे टी.टी.वी. दिनाकरन के नेतृत्व वाली अम्मा मक्कल मुनेत्र कडग़म की चुनौती का भी डटकर सामना करना है.

जिन 18 सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं उनमें से 16 सीटें अन्नाद्रमुक के भीतर दिनाकरन के समर्थक विधायकों को अयोग्य ठहरा दिए जाने के कारण खाली हुई हैं. लेकिन तीन अन्य सीटों पर उपचुनाव को अभी स्थगित रखे जाने के कारण विधानसभा में सदस्यों की मौजूदा प्रभावी संख्या 213 है. अन्नाद्रमुक के पास वर्तमान में 114 विधायक हैं और उसे अपनी सरकार बनाए रखने के लिए इन 18 में से कम से कम दो सीटें जीतकर विधानसभा में अपना आंकड़ा आधे से अधिक यानी 116 तक पहुंचाना होगा.

जाति और समुदाय के अंकगणित को ध्यान में रखते हुए अन्नाद्रमुक ने वन्नियारों में अपनी पकड़ रखने वाले पीएमके के साथ गठबंधन किया है. वह फिलवक्त अपने मूल वोट बैंक को लेकर उतनी आश्वस्त नहीं दिख रही. यह बात स्थानीय निकाय चुनावों को लंबे समय से टालने और दिनाकरन के पार्टी तोडऩे के बाद चुनावी समर में उतरकर अपनी ताकत आजमाने में अन्नाद्रमुक की हिचकिचाहट से झलकती है. यही कारण है कि इसने पश्चिमी तमिलनाडु में वोट बैंक को साधने के लिए पीएमके को सात लोकसभा सीटों की पेशकश की है.

हालांकि पीएमके के राज्य में शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के एक 'फासीवादी पार्टी' होने की बात कहने से उसके साथ अन्नाद्रमुक का गठबंधन मुश्लिकों भरा हो सकता है.

इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही 2014 के मुकाबले ज्यादा लाभ में रह सकती हैं. भाजपा ने 2014 में सिर्फ एक लोकसभा सीट जीती थी जबकि कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी. भाजपा अपने गठबंधन सहयोगियों की तुलना में काफी कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

वह राज्य की 39 में से सिर्फ पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि अन्नाद्रमुक 20 सीटों पर और पीएमके 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 2014 में भाजपा पीएमके के साथ गठबंधन करके अन्नाद्रमुक के खिलाफ चुनाव लड़ी थी. इस बार भाजपा ने तमिलनाडु से अपने सांसदों की संख्या बढ़ाने की आस में अन्नाद्रमुक को भी साथ लिया है.

सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं को लेकर अन्नाद्रमुक का प्रदर्शन खराब नहीं रहा है. हालांकि अन्य कई मुद्दे हैं जो पार्टी की संभावनाओं पर प्रभाव डाल सकते हैं. इनमें मेडिकल प्रवेश परीक्षा में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा या एनईईटी को लागू किया जाना, पिछले साल ठुथुकुडी में स्टरलाइट कॉपर फैक्ट्री के प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी, जिसमें 12 लोग मारे गए थे, कावेरी डेल्टा में मीथेन के दोहन जैसी परियोजनाओं को रोकने की मांग और प्रस्तावित न्यूट्रिनो वेधशाला परियोजना जिसमें थेनी जिले में एक पहाड़ी के नीचे 1,300 मीटर गहरी गुफा बनाना शामिल है.

द्रमुक ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि वह मीथेन और न्यूट्रिनो परियोजनाओं को बंद करेगी. द्रमुक की कोशिश रहेगी कि वह इन मुद्दों को लेकर इतना जोरदार संघर्ष करे कि 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों को समय से काफी पहले कराना पड़े.

पार्टी ने करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को ठुथुकुड़ी लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है जिनका राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्यकाल समाप्त होने वाला है. हालांकि, द्रमुक और उसके सहयोगियों के लिए चुनाव में प्रमुख चेहरे के रूप में करुणानिधि के छोटे बेटे, एम.के. स्टालिन ही होंगे.

इस तरह की सीधी लड़ाई में सत्ता-विरोधी मतों के एकजुट होने की संभावना है जिसका स्वाभाविक रूप से द्रमुक को लाभ मिलेगा. स्टालिन ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए अपने समर्थन की घोषणा करके राज्य के अल्पसंख्यक और दलित वोटों को साधने की कोशिश की है. द्रमुक रणनीतिकारों का कहना है कि राज्य सरकार के कर्मचारियों में भी अन्नाद्रमुक सरकार को लेकर गहरा असंतोष है. इसका अर्थ है कि अल्पसंख्यक और दलित वोटों के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक द्रमुक के पक्ष में लामबंद हो सकता है और वे इससे पार्टी की ताकत में और इजाफा होने की उम्मीदें लगा रहे हैं.

इदाप्पडी के. पलानीस्वामी और ओ. पन्नीरसेल्वम दोनों नेताओं ने एक संयुक्त मोर्चा बनाने में कामयाबी हासिल की है; पार्टी अपनी संख्या बढ़ाने के लिए सहयोगी दलों का सहारा ले रही है, हालांकि यह 2014 के लोकसभा चुनाव में उसके रिकॉर्ड 37 सीटों के आस-पास भी नहीं हो सकता है

एम.के. स्टालिन करुणानिधि की छत्रछाया में राजनीति के गुर सीखने वाले स्टालिन को भरोसा है कि वे अपने सहयोगियों की सहायता से अन्नाद्रमुक के वोट बैंक में सेंध लगाकर लोकसभा और विधानसभा, दोनों चुनावों में एक बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रहेंगे.

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