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आवरण कथाः हसरतों की हैंडबॉल

2012 में बिहार हैंडबॉल एसोसिएशन ने उसे भारतीय खेल प्राधिकरण के लखनऊ केंद्र में प्रशिक्षण के लिए चुना. 2014 में घर लौटकर उसने पाया कि उसे चारदीवारी में कैद कर दिया गया है

खूशबू कुमारी
खूशबू कुमारी

वह कक्षा 8 में थी जब हैंडबॉल का जुनून उसके सिर पर सवार हुआ. यह उस लड़की के लिए कोई अक्लमंदी की बात नहीं थी जो दूरदराज के गांव में रहती थी और माता-पिता को दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करते देखती थी. लेकिन कुछ भी खुशबू कुमारी का रास्ता नहीं रोक सका.

न वे पड़ोसी जो उसकी बुराई करते रहते थे और न ही उसके दादा जिन्होंने उसके घर से बाहर पैर रखने पर पाबंदी लगा दी थी. खुशबू लड़कों के साथ खेलने के लिए एक के बाद एक दीवारें पार करती गई और जल्दी ही उन्हें धूल चटाने लगी.

2012 में बिहार हैंडबॉल एसोसिएशन ने उसे भारतीय खेल प्राधिकरण के लखनऊ केंद्र में प्रशिक्षण के लिए चुना. 2014 में घर लौटकर उसने पाया कि उसे चारदीवारी में कैद कर दिया गया है और परिवार उसके लिए एक ''भला-सा लड़का" खोज रहा है.

मगर वह उनकी चलने देना नहीं चाहती थी. जब हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया ने उसे 2016 के दक्षिण एशियाई खेलों के लिए चुना, तो घरवाले इस शर्त पर भेजने को राजी हुए कि वह लौटते ही शादी कर लेगी.

खुशबू ने मौके को झपट लिया. उसने बिहार पुलिस भर्ती परीक्षा पास कर ली और राज्य महिला हैंडबॉल टीम की कप्तान बन गई. जब तक वह लौटी, पुलिस कॉन्स्टेबल बन चुकी थी. अब भला कौन उस पर दबाव डालने की जुर्रत करता? तभी से खुशबू देश भर में और विदेशों में खेलती आ रही है.

28,000 रु. मासिक तनख्वाह से उसने माता-पिता को एक नए घर का तोहफा दिया है. 

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