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आवरण कथाः पद्मावती का मिथक और यथार्थ

पद्मावती मलिक मुहम्मद जायसी के प्रबंध-काव्य पद्मावत की नायिका है. पद्मावत की हस्तलिखित प्रतियां अधिकतर मुसलमानों के ही घर में पाई गई हैं

पॉल फियर्न/अलामी
पॉल फियर्न/अलामी
अपडेटेड 30 नवंबर , 2017

पद्मावती मलिक मुहम्मद जायसी के प्रबंध-काव्य पद्मावत की नायिका है. इसके कथानक के मुताबिक, अद्वितीय सुंदरी पद्मावती सिंहलदेश के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी. उसके पास हीरामन नाम का तोता था, जो किसी बहेलिये के हाथों पकड़ा गया और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के यहां जा पहुंचा. हीरामन से पद्मावती के रूप का वर्णन सुनकर रत्नसेन ने साधु का वेश धरा और पद्मावती को ब्याह कर चित्तौड़ ले आया. उधर, रत्नसेन द्वारा अपमानित ज्योतिषी राघव चेतन से पद्मावती की सुंदरता के बारे में सुनकर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. आठ वर्ष के युद्ध के बाद भी असफल रहने पर उसने संधि का झूठा संदेश भिजवाया और धोखे से राजा रत्नसेन को कैद कर लिया. रत्नसेन को छोडऩे की शर्त थी पद्मावती. पद्मावती ने तब गोरा-बादल की मदद ली.

सोलह सौ पालकियां सजाई गईं और भेस बदलकर राजा रत्नसेन को मुक्त कराया गया. चित्तौड़ लौटने पर जब राजा रत्नसेन को पता चला कि पड़ोसी राज्य कुंभलनेर के राजा देवपाल ने पद्मावती को एक दूत के जरिए प्रेम-प्रस्ताव भेजा था तो उसने कुंभलनेर जाकर देवपाल को द्वंद्वयुद्ध के लिए ललकारा. इस लड़ाई में देवपाल को मौत और रत्नसेन को जीत हासिल हुई, पर एक घाव ने बाद में उसकी भी जान ले ली. उधर, खिलजी ने जब दोबारा आक्रमण किया तो कोई रास्ता न बचने पर रानी पद्मावती सोलह सौ स्त्रियों के साथ जौहर की अग्नि में कूद गई. 

पद्मावत का रचनाकाल 1521 से 1542 के मध्य माना गया है, जबकि इसका खलनायक खिलजी 1296 से 1316 तक दिल्ली की गद्दी पर रहा था. इतिहास के तथ्यों के मुताबिक, खिलजी ने 1303 में चित्तौड़ पर हमला किया था, जहां के राजा रत्नसिंह की पत्नी का नाम पद्मिनी था. जायसी के कथानक के इतने ही तथ्य इतिहास में मिलते हैं, बाकी को कवि की कल्पना माना गया. लेकिन ब्रिटिश अधिकारी जेक्वस टॉड (1782-1835) ने राजस्थान के चारणों से सुने वृत्तांतों में एक अन्य कहानी बताई. टॉड के यहां रत्नसेन का नाम भीम सिंह है, पद्मावती का नाम पद्मिनी और उसके पिता और सिंहलदेश के राजा का नाम गंधर्वसेन की बजाए हम्मीर है. पद्मिनी के रूप के बारे में सुन खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी. भयंकर युद्ध के बाद भी कोई परिणाम न निकलने पर खिलजी ने संधि प्रस्ताव भिजवाया कि उसे बस एक बार पद्मिनी का रूप देख लेने दिया जाए. इस तरह युद्ध रुका और उसको एक दर्पण में पद्मिनी का अक्स दिखाया गया. टॉड ने अलाउद्दीन के दूसरे हमले में राणा भीम सिंह के अपने 11 पुत्रों सहित मारे जाने की बात कही है.

हालांकि टॉड के काम में परवर्ती शोधार्थियों ने अक्सर गलतियां ढूंढी हैं, पर पद्मावती की कहानी के मामले में कुछेक हेरफेर के साथ एक और पुस्तक आईने आकबरी टॉड का समर्थन करती है. जायसी से करीब आधी सदी बाद लिखी गई आईने अकबरी में रत्नसेन का ही उल्लेख है.

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पद्मावत की वृहद मीमांसा में जायसी के इतिहास और भूगोल के ज्ञान को काफी विस्तार से खंगाला है. उनके मुताबिक, "अलाउद्दीन के समय की और घटनाओं का भी जायसी को पूरा पता था. मंगोलों के देश का नाम उन्होंने 'हरेव' लिखा है. अलाउद्दीन के समय में मंगोलों के कई आक्रमण हुए थे जिनमें सबसे जबरदस्त हमला 1303  में हुआ था. 1303 में ही चित्तौड़ पर अलाउद्दीन ने चढ़ाई की थी. अलाउद्दीन चित्तौड़ गढ़ को घेरे हुए है, इसी बीच में दिल्ली से चिट्ठी आती हैः

"एहि विधि ढील दीन्ह तब ताईं! दिल्ली तें अरदासैं आईं.

पछिउं हरेव दीन्हि जो पीठी, जो अब चढ़ा सौंह के दीठी.

जिन्ह भुइं माथ गगन तेहि लागा, थाने उठे आव सब भागा.

उहां साह चितउर गढ़ छावा, इहां देस अब होइ परावा."

क्या रामचंद्र शुक्ल के इस उदाहरण से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जायसी अपने बाकी वर्णनों मं, भी तथ्यों को लेकर उतने ही दुरुस्त होंगे? वैसे जहां तक पूर्वार्ध के राजा-रानी, तोते वाले कथासूत्र की बात है तो शुक्ल और हजारीप्रसाद द्विवेदी, दोनों ने ही इसे प्रचलित और बहुश्रुत माना है, जिसमें कवि ने अपने नामों को फिट किया. यहां यह भी याद रखने की बात है कि साहित्य के इतिहास में पद्मावती सिर्फ मलिक मुहम्मद जायसी की नायिका ही नहीं है. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इस क्रम में दसवीं सदी के मयूर कवि के पद्मावती-कथा नाम के एक काव्य का उल्लेख किया है, और पृथ्वीराज रासो में भी पृथ्वीराज का एक पद्मावती से विवाह होता है.

पद्मावत और उसके आसपास की इन सभी कथाओं में जो एक बात समान है वह है खिलजी का खलनायकत्व. क्या इसका कारण वही है जैसा खिलजी के समकालीन इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने लिखा कि "उसने फराओ (अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात मिस्र के रोमनपूर्व शासक) से भी कहीं ज्यादा निर्दोष लोगों का खून बहाया." सच जो भी हो, पर पद्मावती की कहानी से कमाई करने वालों और उस पर बवाल करने वालों के लिए बेहतर होगा कि वे बरनी के बयान की बजाए रामचंद्र शुक्ल को याद रखें, जिन्होंने लिखा, "पद्मावत की हस्तलिखित प्रतियां अधिकतर मुसलमानों के ही घर में पाई गई हैं. इतना मैं अनुभव से कहता हूं कि जिन मुसलमानों के यहां यह पोथी देखी गई उन सबको मैंने विरोध से दूर और अत्यंत उदार पाया."

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