उसके डॉक्टर ने कहा, ''अंडों से तौबा कर लो!" सवाल आया, ''तो, मैं कौन-से अंडे खाऊं?" डॉक्टर ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा. कोलेस्ट्रॉल की मात्रा के बेपनाह बढऩे से उसके खाने की मेज से अंडे ऐसे दूर कर दिए गए हैं, जैसे पार्टी में बेमजा मेहमानों से किनारा किया जाता है. वर्षों तक उस सफेद-सी चीज से दिन की शुरुआत करते आए शख्स के लिए यह खासा मुश्किल था. लेकिन उसने अंडे के खालीपन से समझौता कर लिया और अपनी भावनाओं पर काबू पाकर भले के लिए तमाम अगड़म-बगड़म को अपना लिया.
मसलन, दालों और ऐसे ही अनाजों के शोरबे को सुड़कना, उसी के अंडे जैसे जर्द सफेद वाले ऑमलेट, मुलायम तोफू, कोलेस्ट्रॉल-रोधी दवाइयां अब उसकी जीभ के स्वाद का इम्तहान ले रही थीं और उसे कब्ज दे रही थीं. उधर, गूगल पर अंडा रहित भोजन से विक्षिप्तता को जोडऩे की चटरपटर भी खूब चल रही थी.
फिर माहौल बदला. यह 2017 है. अचानक अंडे फिर नाश्ते की मेज के सुपरस्टार बन गए. सोशल मीडिया पर ''नाश्ते का नया चस्का" क्लाउड एग्स की धूम है. फैशनेबल भोजन-भट्ट सलाह देने लगे हैं कि अपने कॉफी कप में एक अंडा जरूर तोड़िए, यह विएतनाम का पुराना पेय है जो अचानक ''भाने" लगा है. कई फूड एडिटर सिर्फ अंडे के व्यंजनों की किताबें कलमबंद करने लगे हैं. सेलेब्रिटी शेफ अंडों को ''लाजवाब फास्ट फूड" बताने लगे हैं. सुपरमार्केटों के खानों में विशेष किस्म के अंडों, ऑर्गेनिक, हर्बल, ओमेगा-3, केज-फ्री वगैरह देख आप चौंक सकते हैं. न्यूयॉर्क से लेकर नवी मुंबई तक हर जगह अंडा रेस्तरां, दिलचस्प नामों और गरमागरम स्वाद वाले मेन्यू के साथ उग आए हैं. उम्र की सदी मनाने की ओर बढ़ रहे कई लोग दावा करने लगे हैं कि उनकी लंबी उम्र का ''राज्य" अंडे हैं. आखिर हो क्या रहा है? अब डॉक्टर को घूरने की बारी मरीज की है.
अंडा पुनर्जागरण
कुछ तो हवा बदली-बदली-सी है. भूख बढ़ाने वाली खूशबू का समूचा विज्ञान अंडे की प्रतिष्ठा वापस बहाल कर रहा है. नए शोध के विस्फोट से दुनिया भर में पोषण के बारे में हवा का रुख बदला है. लिहाजा, खाद्य पदार्थों के बारे में लंबे समय से चली आ रही राय के पीछे ''बुरे विज्ञान" से तौबा की जा रही है, जिसने कुछ (जैसे, अंडे) को अखाद्य और कुछ (जैसे ब्रेड या डबल रोटी) को लाजवाब घोषित कर दिया था. भोजन के इस पुनर्जागरण या नए नजरिए ने सर्वसुलभ, सामान्य-से, बेहद आम अंडे को सबसे ऊंचा आसन दे दिया है. खाद्य नीतियां बनाने वाले अपने सिर खुजला रहे हैं. अंडों को दूर भगाने वाले डॉक्टर अब नई बोली बोलने लगे हैं.
इंटरनेट पर लोगों की जानकारी पाने की अकूत ललक पसरी है. सवाल बेहिसाब हैः अंडे सेहत के लिए अच्छे हैं या बुरे? उबले, पोच्ड या फ्राई? एक दिन में एक या तीन अंडे? पीले या सफेद वाला? भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में उप-महानिदेशक (जीव विज्ञान) हबीबुर रहमान कहते हैं, ''अंडे तेजी से पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ हैं." भारत दुनिया का तीसरा सबसे अधिक अंडा उत्पादन करने वाला देश है. 2000 में सालाना 34 अरब नग से आज 84 अरब नग सालाना यहां अंडे निकल रहे हैं. भारतीय लोग पहले से अधिक अंडे खा रहे हैं. यहां अंडे की सालाना प्रति व्यक्ति खपत 1980 में 15 थी तो अब 63 है. अंडे की मांग मांस, दूध और अनाजों से ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. आमदनी बढऩे से युवा और बढ़ती शहरी आबादी के उपभोग के तौर-तरीकों में बदलाव आया है. रहमान इसकी वजह बताते हैं, ''अंडे किफायती, सर्वसुलभ और काफी गुण वाले हैं."
तो, अंडों का सच क्या है?
बेशक, पुराने सवालों के नए जवाब जानने की ललक होगी. दिल्ली में फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ कहते हैं, ''उभरते तथ्यों से संकेत मिलता है कि अंडे का विज्ञान चतुराई भरा और विवादास्पद रहा है." वे बताते हैं कि अंडों को बुरा बताने का रिवाज दिल की बीमारी और उसकी वजहों के बारे में पुरानी सोच की वजह से था. कोलेस्ट्रॉल और सैचुरेटेड फैट (वसा) को सेहत के लिए खतरनाक बताया जाता रहा है और अंडे में इन दोनों की प्रचुरता है. वे बताते हैं, ''पिछले दशक में हम जान पाए कि कोलेस्ट्रॉल शायद दिल की बीमारी में उतनी बड़ी भूमिका नहीं निभाता है जितना पहले सोचा जाता रहा है. फिर, कोलेस्ट्रॉल को कम करने की कोशिश से अलग तरह की समस्याएं उभरती हैं." इसके अलावा, अंडे में और कई सेहतमंद तत्व होते हैं. वे बताते हैं, ''अब लगता है कि अंडों के बारे में जानकारी पुरानी भ्रामक धारणाओं पर आधारित रही है."
राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआइएन) के पूर्व निदेशक तथा न्यूट्रिशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. बी. शशिकिरण कहते हैं, ''अंडों का विज्ञान वर्षों तक कई दिशा में झूलता रहा है क्योंकि आहार विज्ञान इस कदर उलझाऊ है कि आपको पगला दे." वे बताते हैं कि मोटापा, मधुमेह या डायबिटिज या दिल की बीमारी जैसे रोग लंबी अवधि वाले होते हैं. इसलिए भोजन के किसी खास तत्व का इन पर असर जानना बेहद कठिन है. इसी तरह, एक ही तरह के खाद्य पदार्थ के पोषण तत्वों में आकाश-पाताल का फर्क हो सकता है. अंडे को घर में बनाइए और उसे ही रेस्तरां में चखिए तो तेल और नमक के कारण उसके पोषक तत्व एकदम अलग हो जाते हैं. डॉ. शशिकिरण कहते हैं, ''हम जो खाते हैं, वह सेहत को फायदा और नुक्सान, दोनों एक साथ दे सकता है. इस फर्क को अक्सर फूड इंडस्ट्री बड़ी चालाकी से अपने हक में इस्तेमाल करती है."
इस मामले में सैन फ्रांसिस्को यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन मार्के का है, जो जेएएमए इंटर्नल मेडिसिन के सितंबर 2016 के अंक में छपा था. इसके मुताबिक, 1960 के दशक में शक्कर लॉबी ने वैज्ञानिकों को ऐसा शोध करने के लिए पैसे दिए कि दिल की बीमारी में चीनी की भूमिका को नजरअंदाज करके तेल या वसा को खलनायक के रूप में प्रचारित किया जाए. शशिकिरण बताते हैं, ''अवधारणाओं की जांच करने की तकनीक और शोध पत्र वगैरह पिछले दशक में ही बाहर आने शुरू हुए."
इस तथ्य को परखें
इस फरवरी में वल्र्ड हार्ट फाउंडेशन के प्रेसिडेंट डॉ. सलीम यूसुफ ने क्लीवलैंड क्लीनिक कार्डियोलॉजी सेमिनार में आहार और दिल की तंदुरुस्ती के बारे में जारी व्यापक अध्ययन के प्रारंभिक डाटा को पेश किया और कहा, ''आप अंडे बेहिचक खाइए" तो समूचा मेडिकल प्रतिष्ठान हिल उठा. भारत में जन्मे कार्डियोलॉजिस्ट, एपिडेमिओलॉजिस्ट और कनाडा के मैकमास्टर यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल में मैरियन डब्ल्यू. बर्क चेयर के प्रोफेसर लंबे समय से जारी ''खाद्य-पदार्थों की सचाई" के दिशा-निर्देशों को तार-तार कर रहे थे. लेकिन उन्होंने तो सिर्फ उन्हीं धारणाओं को बुलंद किया जो अनेक वैज्ञनिक और डॉक्टर महसूस कर रहे हैं और जिनकी तादाद बढ़ती जा रही है. उन्होंने कहा, ''हर हफ्ते हम अखबारों में पढ़ते हैं कि फलां चीज आपकी सेहत के लिए अच्छी है और उसके अगले हक्रते वही चीज बुरी बता दी जाती है. अब वक्त आ गया है कि इन दुष्प्रचारों से परदा उठाया जाए."
अब उस अध्ययन के नतीजे सामने आ चुके हैं. यह अध्ययन पांच महादेशों के 18 देशों के 1,50,000 लोगों पर किया गया, जिसमें भारत के 29,298 लोग शामिल थे. इस प्योर स्टडी (प्रोस्पेक्टिव अर्बन ऐंड रूरल इपिडियोमिओलॉजिकल स्टडी) ने पुराने पंडितों को हैरान कर दिया. एक अध्ययनकर्ता, डॉ. मोहन्स डायबिटिज स्पेशजिटीज सेंटर के चेयरमैन डॉ. वी. मोहन कहते हैं, ''अंडों को इसलिए कलंकित किया गया क्योंकि विशेषज्ञों ने कहा कि भोजन में वसा को घटाओ और कार्बोहाइड्रेट्स को बढ़ाओ."
डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, आदमी को रोजाना की ऊर्जा का 75 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट से मिल सकता है. लेकिन अध्ययन से पता चला कि अधिक कार्बोहाइड्रेट वाले भोजन से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है. इसका मतलब यह होता है कि अपने भोजन में प्रसंस्कृत कार्बोहाइड्रेट घटाइए और प्राकृतिक वसा को बढ़ाइए. और हां, अंडे में पाया जाने वाला प्राकृतिक वसा उम्दा है. सितंबर में प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट में छपा यह अध्ययन दुनिया भर में बढ़ती दिल की बीमारी पर काबू पाने के मामले में गेम चेंजर माना जा रहा है.
प्योर अध्ययन के नतीजे कई नए शोध से मिलते हैं, जिनसे यह तथ्य उभरता है कि अंडे जैसे उच्च कोलेस्ट्रॉल वाली खाने की चीजों से दिल की बीमारी का खतरा नहीं बढ़ता. इनमें सबसे शुरुआती शोध में एक 2009 का है. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ सर्रे की टीम ने 30 देशों के डेटा का विश्लेषण किया और कहा कि ज्यादातर लोग अपनी सेहत बिगाड़े बिना जितना चाहे अंडा खा सकते हैं. सबसे ताजा अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्टर्न फिनलैंड का है. इसके शोधकर्ताओं ने 21 साल तक 1,032 लोगों पर अध्ययन किया, जिनमें एक-तिहाई लोगों में दिल की बीमारी (और अलजाइमर्स) के खतरे वाले जींस थे. फरवरी 2016 में अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में छपे इस अध्ययन में कहा गया कि दिल की बीमारी की अधिक आशंका वाले लोगों को भी रोज एक अंडा खाने से खतरा बढ़ता नहीं है.
अंडा दें या न दें
पूर्व प्रधान न्यायाधीश तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू ने 15 अक्तूबर को कहा, ''उन्हें अंडे दो." देश भर के स्कूलों में 10 करोड़ बच्चे हर रोज पके-पकाए भोजन का इंतजार करते हैं. कुछ के लिए यह दिन का पहला निवाला होता है तो ज्यादातर के लिए यही इकलौता पूरा भोजन होता है. उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा, अगर रोज रोटी-चावल, पनीली दाल या सांभर के साथ एक अंडा भी मिले. सरकारी स्कूलों में देश की समेकित बाल विकास सेवा और मिड डे मिल योजना के लिए अंडे के अलावा यही सब प्रस्तावित है. जिस दिन अंडे भी मिलने लगेंगे, वे दौड़े-दौड़े स्कूल चले आएंगे, चाहे पानी बरसे या आग. लेकिन कई बच्चों के लिए यह खुशी संभव नहीं लगती.
एक के बाद एक राज्य मिड डे मिल से अंडे को हटा रहे हैं. भारत के 29 में से उत्तर और पश्चिम के 19 राज्य इस भोजन में अंडे को शामिल नहीं करते. मध्य प्रदेश के पक्के शाकाहारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 2010 से ही स्कूलों के मिड डे मिल में अंडा शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज करते आए हैं. वे कहते हैं, ''अंडों की जरूरत क्या है? मनुष्य का शरीर शाकाहारी भोजन के लिए ही उपयुक्त है." केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी इसी राय की हैं, ''अंडे पोषण के लिए अच्छे नहीं हैं. उनमें काफी कोलेस्ट्रॉल होता है." लेकिन 10 अक्तूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट से पता चलता है कि देश पोषण संकट से गहरे घिरा है. अब यहां सबसे अधिक कुपोषित बच्चे हैं, सब सहारा अफ्रीकी देशों से भी अधिक. यही नहीं, भारत में सबसे अधिक मोटापे से ग्रस्त बच्चे (चीन के अलावा) भी हैं.
नए शोध और अध्ययनों को नीति-निर्धारकों की मेज तक पहुंचाना आसान नहीं है. लेकिन एक हल्की-सी धारा अमेरिकी सरकार को परंपरा तोडऩे पर जरूर बाध्य कर चुकी है. अमेरिकी कृषि और स्वास्थ्य तथा मानव सेवा विभाग ने 2015-2020 के लिए जारी अमेरिकी लोगों के आहार संबंधी दिशा-निर्देश में कुछ अहम बदलाव किए हैं. यह 1990 से हर पांचवें साल जारी होता है. दिसंबर 2015 में जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है, ''अंडे स्वस्थ खान-पान का हिस्सा हो सकते हैं."
यह गड़बड़झाला कैसे?
अंडे 1950 के दशक में चर्चा के केंद्र में आए, जब पश्चिमी दुनिया में दिल की बीमारी महामारी की तरह फैलने लगी. 1940 के दशक के आखिरी वर्षों में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी. रूजवेल्ट का निधन दिल के दौरे से हो गया, तो एक महत्वपूर्ण अध्ययन फ्रैमिंगहैम हार्ट स्टडी (एफएचएस) सामने आया. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट, हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. के.एस. रेड्डी बताते हैं कि वैज्ञानिक जब दिल की बीमारी से खान-पान में वसा और कोलेस्ट्रॉल के संबंधों की बात करने लगे तो लोगों के आहार पर गौर करने के दौर की शुरुआत हुई. एफएचएस अध्ययन में खाद्य पदार्थों में ''जोखिम के तत्वों" की बात आई. यह पाया गया कि जो लोग ''एथीरोस्क्लोरोसिस" (धमनियों का पतला और सख्त होना) से पीड़ित थे, उनमें ''बुरे" एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ा हुआ था और ''अच्छे" एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम था. लेकिन, डॉ. रेड्डी बताते हैं कि उससे अंडे का संबंध नहीं जुड़ता है.
दरअसल वह डेटा इतना अस्पष्ट-सा था कि रिपोर्ट महत्वपूर्ण जर्नलों में कभी नहीं भेजी गई और उसे लेकर वैज्ञानिकों में तीखे मतभेद उभरे. फिर भी, यह बहस सार्वजनिक चर्चा में आई और इससे नीति-निर्माता प्रभावित हुए. यह दलील दी गई कि जिन लोगों में एलडीएल का स्तर ऊंचा है, वे जरूर ज्यादा कोलेस्ट्रॉल और वसायुक्त भोजन कर रहे होंगे. इसलिए अंडे जैसे ज्यादा वसा वाले एनिमल फूड से बचें और फल, सब्जियों और कार्बोहाइड्रेट का सेवन ज्यादा करिए. दिल की बीमारी से बचाव के लिए अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) 1970 के दशक से आहार संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने लगी. कोलेस्ट्रॉल का स्तर प्रति दिन 300 मिलीग्राम तय किया गया. इस तरह कहा गया कि हफ्ते में चार से ज्यादा अंडे न खाइए और उसके पीले हिस्से से परहेज करें. 1980 में यूएसडीए ने आहार संबंधी पहला दिशा-निर्देश जारी किया. उसमें एक प्रमुख बात यह थी कि हर तरह के कोलेस्ट्रॉल और वसा से बचें.
लेकिन इससे हृदय रोगों को बेकाबू होने से नहीं रोका जा सका. '80 के दशक में मोटापा भी संकट बनने लगा तो ज्यादातर विशेषज्ञों को लगने लगा कि शोधकर्ताओं ने शायद गलत खलनायक को चुन लिया. दरअसल वह कोलेस्ट्रॉल नहीं, बल्कि सैचुरेटेड फैट है जिससे लीवर की कोशिकाएं कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देती हैं और बुरे एलडीएल का स्तर बढ़ जाता है. सो, '90 के दशक के बाद आहार संबंधी दिशा-निर्देशों में सलाह दी जाने लगी कि कुल ऊर्जा में वसा की मात्रा 30 प्रतिशत तक और सैचुरेटेड फैट की मात्रा 10 प्रतिशत तक घटा दी जानी चाहिए. अंडे फिर संदिग्ध श्रेणी में आ गए.
जंगल से जायके तक
हालांकि अंडों की कथा सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान जंगल से निकल कर कृषि सभ्यता और पशु पालन से ही जुडऩे लगी, लेकिन भारतीय भोजन और व्यंजनों में इसका प्रवेश कई सदियों में धीरे-धीरे फारसी, पुर्तगाली और ब्रितानी व्यंजनों के जरिए हुआ. 20वीं सदी के अधिकतर समय अंडा घर के बाहर ठेलों-खोमचों, कैंटीन, क्लब और रेस्तरांओं में ही खाया जाता रहा. नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, 1947 से 1960 के बीच भारतीय भोजन में अंडों और पॉलट्री का हिस्सा बेहद कम था. वजह सिर्फ क्रय-शक्ति कम होना ही नहीं, बल्कि ''पुरातनपंथी हिंदुओं और जैनियों के धार्मिक विश्वास भी अंडा वगैरह खाने" से परहेज करने का कारण रहे हैं. इस दौर में दाल, शाक-सब्जियों, चीनी और तेल-घी की खपत अत्यधिक तेजी से बढ़ी है.
उन दिनों भारत में दिल की बीमारियों पर रिपोर्टें कम ही छपीं. हालांकि कुछेक अध्ययनों में दिल के बैठने की दर करीब 1 प्रतिशत रही. डॉक्टरों ने शहरी, समृद्ध वर्गों में दिल के मामले दर्ज किए. अपनी तरह के पहले अध्ययनों में एक, आगरा के सरोजिनी नायडु मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के डॉ. के.एस. माथुर ने लिखा, ''दिल की बीमारी समाज के सुविधा संपन्न वर्गों में ही पाई जाती है" (प्रकाशन, 1960). तो, वजह क्या हो सकती है? जाहिर है, वे ''अधिक तेल-घी वाले व्यंजन को सेवन करते हैं." कई चर्चित शख्सियतों वल्लभभाई पटेल, बी.आर. आंबेडकर, फिरोज गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री के दिल के दौरे से निधन के बाद आहार ज्ञान बाहर आया कि तेल-घी वाले भोजन से बचें.
यह परिदृश्य 1970 के दशक में बदला, जब देश में अंडों की खपत बढऩी शुरू हुई और प्रोटिन के परंपरागत स्रोत दलहन और मोटे अनाज महंगे और कम उपलब्ध होने लगे. इंटरनेशनल एग्रीकल्चर ट्रेड रिसर्च कंसोर्शियम की रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 के दशक के आखिरी वर्षों से हरित क्रांति के तहत एक के बाद एक सरकारों ने पूरी तरह गेहूं और धान की बुआई पर जोर देना शुरू किया तो दलहन और मोटे अनाजों की उपेक्षा होने लगी. दलहन की उपज कम हुई और उसके दाम चढऩे लगे तो भारतीय लोगों में प्रोटीन की जरूरत पूरी करने के लिए अंडों के प्रति रुझान बढ़ा. इसे ''मवेशी क्रांत्यि कहा गया.
इस पद को इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने चलाया. इसका सीधा-सा मतलब था कि जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और आमदनी बढऩे के साथ लोग परंपरागत अनाजों से अंडे जैसे एनिमल प्रोटीन की ओर रुख करने लगे. मुंबई में एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन, कॉर्डियक सर्जन डॉ. रमाकांत पांडा कहते हैं कि आहर में पोषण के उस संक्रमण के दौर ने भारत को गंभीर बीमारियों के चक्रव्यूह में ढकेल दिया. यूएसडीए ने अपने दिशा-निर्देशों को सख्त किया तो 1990 के दशक में हर जगह डॉक्टर रोजना एक से अधिक अंडा न खाने पर जोर देने लगे.
पलट गया विज्ञान
आखिर चल क्या रहा है? गुडग़ांव में मेदांता द मेडिसिटी के एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटीज विभाग के चेयरमैन डॉ. अंबरीश मिथल कहते हैं, ''दशकों तक हजारों मर्द-औरतों पर किए गए करीब दर्जन भर व्यापक अध्ययनों से 2000 के दशक में कुछ अहम फांक भरे जा सके हैं. इन सबके नतीजे जोडऩे पर यह तर्कसंगत तथ्य उभरता है कि ज्यादातर लोगों के लिए रोजाना एक अंडा खाना सुरक्षित है." एक नए उभरते अध्ययन से पता चलता है कि अंडा जैसे अधिक कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर उतना नहीं बढ़ता. वे कहते हैं कि चीनी, अधिक वसा वाले खाद्य का सेवन ज्यादा नुक्सानदेह हो सकता है.
पुराने दिशा-निर्देशों के साथ दिक्कत यह है कि उनमें मान लिया जाता है कि अंडे और दूसरे एनिमल फूड के सेवन से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है. दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एक्वस) के एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटीज विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर डॉ. निखिल टंडन कहते हैं, ''मान लीजिए, और बेशक कुछ अंडे खाना सही भी है. मगर आपका शरीर ऐसे काम नहीं करता है." आदमी का शरीर अपनी जरूरत का सभी कोलेस्ट्रॉल बना लेता है, जो कोशिकाओं के क्रियाकलाप के लिए आवश्यक तत्व है. हर रोज आपका लीवर 1 से 2 ग्राम बना लेता है और बाकी खाने-पीने से मिलता है. वे बताते हैं, ''लेकिन जब कोई खाने में अधिक कोलेस्ट्रॉल लेता है तो शरीर कम पैदा करता है." जब भोजन में आप कम कोलेस्ट्रॉल लेते हैं तो शरीर ज्यादा बनाता है.
शोध से अब पता चलता है कि आप खाने के साथ जो कोलेस्ट्रॉल लेते हैं उसका रक्त के कोलेस्ट्रॉल पर बेहद कम असर पड़ता है.
अंडों का क्या करें, क्या नहीं
कोलेस्टॉल के नए दिशा-निर्देशों ने कुछ झिझक के साथ अंडों को मुक्त कर दिया है. हालांकि कुछ भोजन विज्ञानी चिंतित हैं कि कोलेस्ट्रॉल पर लचीले दिशा-निर्देशों से गलत संदेश जाएगा और लोग हर सुबह नाश्ते में पांच-छह अंडे खाने लगेंगे. उनका कहना है कि अधिक चटखारे वाला व्यंजन छोड़कर भरपूर पोषण वाली विविध तरह की चीजें खाइए. अंडा भी खाइए पर उसे गलत तरीके से न लीजिए. इसलिए इन कुछ नुस्खों पर गौर कीजिएः
ज्यादातर लोगों के लिए रोजाना एक अंडा खाने से दिल के दौरे, या किसी तरह की दिल की बीमारी का खतरा नहीं होता.
अगर पहले से ही दिल के मरीज हैं या दूसरी वजहों से दिल की बीमारी की आशंका अधिक है या मधुमेह से पीड़ित हैं तो हफ्ते में तीन अंडे से ज्यादा न खाइए.
रोजाना कितने अंडे खाएं इसका कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है मगर रोज एक अंडे का सेवन एकदम सही है (इसी साल 115 वर्ष की उम्र में मृत्यु को प्राप्त हुईं एम्मा मोरानो रोज तीन अंडे खाती थीं).
आप हफ्ते में कितने अंडे खाएं, यह आपके बाकी खान-पान पर निर्भर करता है.
आप अंडे के साथ क्या खाते हैं, यह काफी मायने रखता है (प्रसंस्कृत ''बुरे कार्बोहाइड्रेट" या तेल-घी, या मैदा और चावल, आलू, तले खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत खाद्य या मीठे पेय पदार्थ).
अंडों के साथ ताजा सब्जियां खाएं, ताकि स्वस्थ ऐंटी-ऑक्सीडेंट शरीर को मिलें.
अंडे की अगली जंग
हमेशा विवादास्पद रहे अंडे का एक और घोटाला उभर रहा है. भारत के विधि आयोग की इस जुलाई में 269वीं रिपोर्ट में मुर्गी पालन के अमानवीय तौर-तरीकों की ओर ध्यान दिलाया गया है. उत्पादन तेज करने के लिए मुर्गियों को भूखे रखा जाता है और बड़े निर्मम तरीके अपनाए जाते हैं. पीड़ा और वजन कम होने से मुर्गियों के संक्रमित अंडे देने का खतरा बढ़ रहा है.
ऐसे में कौन बता सकता है कि अंडे के भीतर ऐसा क्या छिपा है, जो कहीं संकट न पैदा कर दे? वाशिंगटन के सेंटर फॉर डिजीज डाइनामिक्स, इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिसी और दिल्ली के पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के शोध में पाया गया कि पंजाब के 18 पॉलट्री फार्म में ऐंटीबायटिक और दवा-रोधी बैक्टिरिया का अनियंत्रित इस्तेमाल कर रहे हैं. जुलाई 2017 में एन्वायरनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में छपे इस शोध के मुताबिक अंडों तथा चिकन की बढ़ती मांग से भारत में ऐंटीबायटिक की खपत 2030 तक 300 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. सीडीडीईपी के निदेशक तथा इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक रमानन लक्ष्मीनारायण कहते हैं, ''ऐंटीबायोटिक रोधी जीवाणु उन दवाइयों को ही बेमानी बना सकते हैं जो बीमारी केइलाज के लिए दी जाती है." अगर ऐसी महामारी फैलती है तो कोई नहीं बचेगा, चाहे वह दूर-दराज के गांव में हो या महानगरों में.
अंडों को उबारने की नई जंग अब यहीं से शुरू होती है.