''अभियुक्त ने अपने पवित्र अनुयायियों को भी नहीं बख्शा और जंगली जानवर की तरह पेश आया. वह किसी माफी का हकदार नहीं है," सीबीआइ की विशेष अदालत के जज जगदीप सिंह ने 28 अगस्त की दोपहर रोहतक की सुनारिया जेल की अत्यधिक सुरक्षित चहारदीवारी के भीतर गुरमीत राम रहीम सिंह की आंखों में देखते हुए अपना कठोर फैसला सुनाया.
बलात्कार और आपराधिक धमकी के दो मामलों के लिए बीस साल के कठोर सश्रम कारावास की सजा और 30.2 लाख रुपए का जुर्माना. जज ने गुरमीत सिंह को कहा कि अगर जुर्माना अदा करने में किसी तरह की कोई चूक हुई तो उनकी कारावास की अवधि चार साल और बढ़ा दी जाएगी. लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह और भी चौंकाने वाला है—पूरी तरह से स्तब्ध गुरमीत सिंह पछतावा दिखाने लगा. ''मुझे माफ कर दीजिए", वह अभियुक्त गिड़गिड़ाने लगा जो महज कुछ ही दिन पहले तक उस डेरा सच्चा सौदा का बड़ा ताकतवर आध्यात्मिक गुरु हुआ करता था, जिसके 7 करोड़ निष्ठावान अनुयायी होने का दावा किया जाता था. सुनवाई के दौरान मौजूद प्रत्यक्षदर्शी जेल गार्डों ने बताया कि गुरमीत सिंह बिलखने लगा और उसे जबरदस्ती जेल की उस कोठरी तक ले जाना पड़ा जो अगले दो दशकों तक उसका ठिकाना होगी. आम तौर पर सिरसा और पंजाब के मालवा इलाके में मौजूद डेरा समर्थकों से सुरक्षित रूप से पर्याप्त दूरी पर स्थित रोहतक की उस मॉडल जेल की वह दोपहरी उस अत्यधिक ताकत, प्रभाव और राजनैतिक धौंस के ठीक उलट थी जिसका सुख अपनी आजादी के दिनों में गुरमीत सिंह भोगता रहा था.
गुरमीत सिंह को सिनेमाई पर्दे पर उतारने वाली जनवरी, 2015 में आई पहली फिल्म एमएसजीः द मैसेंजर ऑफ गॉड के ट्रेलर की पहली लाइन थी, ''हमें मारना अपने आपको मारने के बराबर है." यह एक तरह से गुरमीत सिंह का विरोध करने वाले सभी लोगों के लिए एक चेतावनी सरीखी थी. आशय यह था कि उससे पार पाना आसान नहीं होगा. और वह इस बात को लेकर ज्यादा गलत भी नहीं था. आखिरकार, इसमें 15 साल, 200 से ज्यादा अदालती सुनवाइयां और दो युवा साध्वियों (जिनमें से एक तो अल्पवयस्क थी) की हिम्मत और दृढ़ता लग गई. इन्हीं दोनों साध्वियों ने सबसे पहले गुरमीत सिंह पर अपने साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था. 2002 में बड़ी हिम्मत दिखाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक खत में अपने उत्पीडऩ की दास्तान लिखने वाली कुरुक्षेत्र की युवा महिला ''वादी एक" को इस राक्षसी बाबा ने कहा था, ''इसमें कोई संदेह नहीं है कि मैं भगवान हूं."
प्रधानमंत्री को तीन पन्नों के खत में उसने कहा था कि गुरमीत सिंह का शिकार होने वाली वह अकेली लड़की नहीं है. युवा अनुयायियों के अनियंत्रित यौन उत्पीडऩ की उस घिनौनी और अंतहीन दास्तान से पहली बार परदा उठाते हुए उसने लिखा, ''अगर प्रेस या कोई सरकारी एजेंसी" उसके आरोपों की जांच करती है तो ''डेरा सच्चा सौदा परिसर में रहने वाली 40 से 50 लड़कियां सचाई बताने के लिए सामने आ जाएंगी." मामले की छानबीन करने वाले सीबीआइ अधिकारियों ने कथित रूप से गुरमीत सिंह की हवस का शिकार हुई 18 लड़कियों का पता लगा लिया था. लेकिन उसके शिकंजे से बाहर निकलने के बाद ज्यादातर ने शादी कर ली थी और वे डेरा से सुरक्षित दूरी पर जिंदगी गुजर कर रही थीं. अंत तक टिकी दो साध्वियों को छोड़कर उनमें से कोई भी गवाही देने के लिए आगे आने को तैयार नहीं हुईं.
सिरसा स्थित हिंदी अखबार पूरा सच के संपादक रामचंद्र छत्रपति को डेरा में चल रही काली करतूतों के बारे में काफी कुछ अंदाजा था. उन्होंने साध्वी की श्मदद के लिए गुहार्य को अपने अखबार में प्रमुखता से छापा. गुरमीत सिंह के गुर्गों ने छत्रपति को धमकी दी लेकिन छत्रपति ने झुकने से इनकार कर दिया. इसकी बजाए उन्होंने सच्चा सौदा के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और एक दिन डेरा के कथित गुंडों ने संपादक को उनके घर के पास ही गोली मार दी.
संपादक की हत्या से कुछ ही महीनों पहले डेरा में कभी गुरमीत सिंह के भीतरी घेरे का हिस्सा रहे रंजीत सिंह, जो बलात्कार का शिकार हुई साध्वियों में से एक के भाई भी थे, की भी कुरुक्षेत्र जिले में उनके गांव के बाहर खेतों में गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसकी भी जांच सीबीआइ कर रही है और रंजीत सिंह की हत्या में गुरमीत सिंह और बाकी लोगों के खिलाफ मामला आखिरी चरण में है और उसकी अगली सुनवाई 16 सितंबर को है.
एक तरफ इन काले व घिनौने अपराधों और दूसरी तरफ मसखरेपन, आध्यात्मिकता और बनावटीपन के भड़कीले मिश्रण के बीच कितना गहरा अंतरविरोध था. ''संत गुरमीत राम रहीम सिंह" उसी तरह से खुद को दुनिया के सामने पेश करता था. लेकिन इस गुरु की आत्म-मिथ्या और ''लाखों" लोगों की आत्म-भ्रांति के पीछे एक बड़ी डरावनी और घिनौनी अप्रिय कहानी है. यह हमारे दौर की कहानी है.
गुरमीत सिंह राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में गुरुसर मोदिया गांव में एक जाट सिख दंपती मगहर सिंह और नसीब कौर का इकलौता बेटा है. यह दंपती डेरा के तत्कालीन प्रमुख शाह सतनाम के अनुयायी थे. गुरमीत सिंह के स्कूल के सहपाठी उसे अपनी उम्र से ज्यादा परिपन्न्व और विश्वास से भरपूर लड़के के तौर पर जानते हैं. उसे खेलों का बहुत शौक था और वह पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था. लेकिन साफ तौर पर उसके बचपन की इस प्रचलित कहानी में खासा हिस्सा जबरदस्ती डाली गई ''वैकल्पिक सचाइयों" का भी है. गुरुसर मोदिया में कई लोग गुरमीत सिंह के लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार करने, परीक्षाओं में फेल होने और आखिरकार नौवीं कक्षा में स्कूल से निकाल दिए जाने की चर्चा भी करते हैं.
डेरा में गुरमीत सिंह को तभी शामिल कर लिया गया था जब वह केवल सात साल का था. फिर, जब उम्रदराज हो चुके शाह सतनाम ने 23 सितंबर, 1990 को स्वैच्छिक रूप से उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया तो गद्दी गुरमीत सिंह को मिल गई. उसे विरासत में डेरा का नेतृत्व मिल गया. उसे संत कहा जाने लगा और लोग उसे संत गुरमीत राम रहीम सिंह कहने लगे. डेरा के उसके अनुयायियों ने तत्काल उसे बेपरवाह मस्ताना बलूचिस्तानी का अवतार घोषित कर दिया, जिन्होंने अप्रैल 1948 में डेरा की स्थापना की थी और फिर जनवरी 1960 में समाधिस्थ होते हुए यह घोषणा कर गए थे कि वे सात साल बाद फिर से जन्म लेंगे. लिहाजा, 15 अगस्त 1967 को गुरमीत का जन्म उसके गद्दीनशीन होने में काफी सहायक बन गया.
मगर यहां भी बड़ी सावधानी से बताया जाने वाला एक वैकल्पिक किस्सा इस बात का है कि आखिरकार वास्तव में क्या हुआ होगा. गुरजंत सिंह श्राजस्थानी्य सिख आतंकवादी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स का मुखिया था और गुरमीत सिंह का लंबे समय से दोस्त था. वह अक्सर सिरसा में डेरा में जाता रहता था. पंजाब पुलिस के पूर्व खुफिया अधिकारी कहते हैं कि राजस्थानी डेरा के विशाल परिसर का इस्तेमाल हथियारों का भंडार जमा करने और यहां तक कि छिपने के लिए भी करता था. जब गुरमीत सिंह को गद्दी सौंपी गई तो राजस्थानी वहां मौजूद था और लगातार प्रचलित रही एक अफवाह के अनुसार शाह सतनाम की कनपटी पर रिवॉल्वर सटा कर बड़ी आसानी से गद्दी हासिल कर ली गई होगी. हालांकि डेरा के भीतर इस तरह की अफवाहों का पुरजोर विरोध किया जाता रहा है.
राजस्थानी को 31 अगस्त, 1991 को मोहाली में एक मुठभेड़ में पंजाब पुलिस ने मार गिराया था. लेकिन तब तक गुरमीत सिंह का डेरा पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित हो चुका था. विरोध के किसी भी सुर को उसने पूरी तरह से खामोश कर दिया था. उसी के साथ उसने डेरा का तेजी से विस्तार करना शुरू कर दिया, ताकि वह खासा प्रभाव और ताकत हासिल कर सके.
एक सामान्य-सा आश्रम 700 एकड़ में फैल गया. नई इमारतें बन गईं जिनमें दुकानों की कतारें, स्कूल, अत्याधुनिक अस्पताल, सात स्कूल और कॉलेज, पैसा दे सकने वाले अनुयायियों के लिए दो आलीशान होटल और यहां तक कि दो पेट्रोल पंप भी थे. और इन सबके बीच थी गुरमीत सिंह की अपनी गुफा—एक अत्याधुनिक निवास जिस तक उन अभागी साध्वियों के अलावा केवल कुछ खास लोगों की ही पहुंच थी. सोशल मीडिया पर अपुष्ट वीडियो में हरियाणा पुलिस को 29 अगस्त को गुफा में प्रवेश करते दिखाया गया है. इस वीडियो में अत्यधिक महंगे ऐशो-आराम के साजो-सामान और वातानुकूलित कक्ष नजर आ रहे हैं और हर दीवार पर श्गुरु्य गुरमीत सिंह के विशालकाय चित्र लगे हैं. जाहिर है, इस व्यक्ति को खुद को देखना अच्छा लगता था.
गुरमीत सिंह सिरसा में मामूली-से डेरा सच्चा सौदा को विशाल बनाने में भी कामयाब रहा. सीबीआइ जांचकर्ताओं की बनाई फेहरिस्त के मुताबिक, डेरा की संपत्तियां हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में हैं. इसके अलावा विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया), इटली और ब्रिटेन में उसके केंद्र हैं. डेरा की संपत्तियों की यह फेहरिस्त पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट केनिर्देश पर अभी बनाई ही जा रही है. इससे करीब 230 नामचर्चा घरों (सामुदायिक केंद्र) का भी खुलासा होता है. नकदी, बैंक खातों या दूसरी प्रतिभूतियों की तो गिनती अभी छोड़ ही दीजिए, पंजाब प्रशासन ने इन नामचर्चा घरों की ही कीमत का मोटा अनुमान 60 करोड़ रु. लगाया है. इसके अलावा डेरा केहोटलों, एमएसजी खाद्य पदार्थों (ऑनलाइन खुदरा दुकान) और कई केंद्रों में एमएसजी उत्पादों की बिक्री से ही हर रोज 1 करोड़ रु. की कमाई का अनुमान है.
इन तमाम धन-संपदा के अलावा डेरा प्रमुख का राजनैतिक रुतबा और दबदबा उसके अनुयायियों की बढ़ती तादाद से हासिल होता था. जरा इस पर गौर फरमाएः सितंबर 1990 में जब गुरमीत ने गद्दी संभाली तो करीब दस लाख लोग ''चंदे" के जरिए डेरा से जुड़े थे. डेरावालों का दावा है कि गुरमीत सिंह के कार्यकाल में अनुयायियों की संख्या 70 गुना बढ़ गई. गुरमीत सिंह की दुश्वारियों के मौजूदा दौर के कुछ महीने पहले डेरा के मुख्य प्रवक्ता आदित्य इनसान ने इंडिया टुडे को बताया था, ''गुरुजी के करीब एक-तिहाई अनुयायी तो युवा हैं, जिन्होंने नशा, मांसाहारी भोजन और अनैतिकता त्याग दी है."
युवा अनुयायियों की बढ़ती तादाद ने ही गुरमीत सिंह को गाना गाने, नाचने और आखिरकार सिनेमा के परदे पर उतरने को प्रेरित किया. नवंबर 2014 में मीडिया के सामने पहली बार मुखातिब हुए गुरमीत सिंह ने माना, ''युवाओं को आकर्षित करने के लिए कुनैन की मीठी गोली की तरह है."
एमएसजीः द मेसेंजर ऑफ गॉड बॉलीवुड की फॉर्मूला फिल्मों की तरह ही थी, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत होती है. उसमें रैप और रॉक संगीत, नाच और ऐक्शन की भरमार थी. गुरमीत सिंह के समर्थक गर्व से कहते हैं, ''गुरुजी अपने गीत खुद लिखते हैं और हर गीत का संगीत खुद बनाते हैं." गुरमीत सिंह अपनी फिल्मों में मुख्य किरदार, सह-निर्देशक, गीतकार, गायक, सेट तथा कॉस्ट्यूम डिजाइनर लगभग सब कुछ होता रहा है. वह सुपरबाइकों, ऊबड़-खाबड़ और हर तरह के रास्तों पर चलने वाले वाहनों, यहां तक कि हेलिकॉप्टरों से उछल-कूद जैसे असंभव-से स्टंट करता, शायद जेम्स बॉन्ड और अक्षय कुमार की फिल्मों की नकल करता रहा है.
उसके बाद लगातार उसकी चारों फिल्में एमएसजी-2: द मेसेंजर, एमएसजीः द वारियर लायन हार्ट, हिंद का नापाक को जवाब और जट्टू इंजीनियर भी इसी तरह की फॉर्मूला फिल्में थीं लेकिन हरेक उसके अनुयायियों में काफी लोकप्रिय हुईं. इन फिल्मों से कथित तौर पर गुरमीत सिंह और डेरा को 1,000 करोड़ रु. की कमाई हुई.
इसके बावजूद, या फिर शायद कानून से संभावित मुठभेड़ की आशंका में, गुरमीत सिंह के नेतृत्व में डेरा ने ''उपलब्धियों" की भी ऐसी लंबी फेहरिस्त जुटाई है जिसे देख अधिकांश सामाजिक संगठन दांतों तले उंगली दबा लें. कुल 133 सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों में से एक डेरा सच्चा सौदा के स्वैच्छिक रक्तदान अभियानों मं तीन लाख लीटर से अधिक रक्त जमा किए गए (डेरा की वेबसाइट के दावे के मुताबिक, सिरसा के डेरे में ही हर साल 35,000 यूनिट रक्त जमा होता रहा है). इससे यह तीन बार गिनेस वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुआ. डेरा का यह भी दावा है कि उसे नशा-मुक्ति केंद्रों, नेत्र, मधुमेह तथा कार्डिएक क्लीनिक, पौधारोपण और साफ-सफाई अभियानों के सिलसिले में 22 गिनेस वर्ल्ड रिकॉर्ड हासिल हो चुके हैं. यही नहीं, 2001 में गुजरात भूकंप, 2013 में उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा, 2014 में कश्मीर की बाढ़ वगैरह में अनोखे राहत कार्य किए. उसके शाह सतनाम जी ग्रीन ''एस" वेलफेयर फोर्स विंग में 70,000 प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं जिन्हें मार्शल प्रशिक्षण और वेशभूषा दी गई है. ये कठिन परिस्थितियों में आपदा राहत का काम संभालते हैं.
गुरमीत सिंह और उसके समर्थक लंबे समय से कह रहे हैं कि उसके खिलाफ बलात्कार, हत्या और 400 जबरन बधिया करने के आरोप झूठे हैं. उनकी दलील है कि शराब और नशीले पदार्थों के खिलाफ डेरा सच्चा सौदा के लगातार अभियान की वजह से धंधे पर पडऩे वाली चोट से शराब और मादक पदार्थों की माफिया की यह ''साजिश" है.
डेरा के दावे के मुताबिक, गुरमीत सिंह के 1990 में गद्दी संभालने के बाद ''6.5 करोड़ लोगों को शराब और मादक पदार्थों की लत से मुक्ति" दिलाई जा चुकी है. लेकिन जरा रुकिएरू यह तो पंजाब और हरियाणा की कुल आबादी से भी बड़ी संख्या है!
जाहिर है, यह बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की सोची-समझी कोशिश है. 22 गिनेस वल्र्ड रिकॉर्ड को ही लें. इनमें अधिकांश ''पूज्य संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इनसान" को मिले हैं. इन अवार्डों में कई सबसे लंबे पोस्टर, सबसे लंबी फिंगर पेंटिंग, हाथ की सफाई करने वाले सर्वाधिक लोग, एक दिन में सबसे ज्यादा जन्मदिन वीडियो (32,207) प्राप्त करने जैसे बेमतलब मामलों केलिए मिले हैं, जिनकी चर्चा डेरा के प्रवक्ता बाहरी लोगों से शायद ही करते हैं. डेरा की स्मार्ट वेबसाइट (222.स्रद्गह्म्ड्डह्यड्डष्द्धड्डह्यड्डह्वस्रड्ड.शह्म्द्द) ही बहुत कुछ खुलासा कर देती है. इसमें क्या कुछ नहीं हैः स्वस्थ जीवन के नुस्खे से लेकर उपदेशों की शृंखला और भोजन के चार्ट वगैरह. इस पोर्टल पर 20 अलग-अलग शपथ-पत्रों की पीडीएफ भी हैं, जिसे अनुयायियों को दस्तखत करके सबमिट करना होता है. इसमें रक्त, नेत्र, चर्म, अस्थि या शरीर दान से लेकर सब्सिडी न लेने, कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ, लड़कियों को छेड़छाड़ करने के खिलाफ, यहां तक कि समलैंगिकता छोड़ देने के भी शपथ दिलाए जाते थे.
इतना ही नहीं, एक पूरा सेक्शन गुरमीत सिंह के ''चमत्कारों" पर भी है. इनमें गुरु को ''कैसर और मानसिक बीमारी ठीक करने से लेकर दृष्टि वापस दिलाने, दुर्घटना को टाल देने, मृत बच्चे को जीवित कर देने और बेटा होने की गारंटी" जैसे चमत्कारों का श्रेय दिया गया है.
डेरा के प्रवक्ता आदित्य इनसान, जिन पर 25 अगस्त को पंचकुला में हिंसा के सिलसिले में राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं, ने इंडिया टुडे से दावा किया कि गुरमीत सिंह के गद्दी संभालने के बाद से डेरा ''मानव चर्म (प्रत्यारोपण के लिए), अस्थि (घुटने की सर्जरी का सस्ता विकल्प), आंख की कॉर्निया का टिश्यू और स्वैच्छिक अंगदान करने वालों" का सबसे बड़ा केंद्र है. उनका यह भी दावा है कि डेरा ''2006 से सेना को रक्तदान करने वाला इकलौता सबसे बड़ा केंद्र" है. हालांकि इन दावों की पुष्टि की कोई पेशकश नहीं की गई.
रोहतक जेल की अस्थायी अदालत में डेरा प्रमुख के लंबे समय से वकील एस.के. गर्ग नरवाना ने सजा देने में उदारता दिखाने की दलील पेश करते हुए गुरमीत सिंह के समाज कल्याण अभियानों का हवाला दिया. नरवाना ने अदालत से कहा, ''अभियुक्त हरियाणा में सामाजिक कार्य करते रहे हैं, खासकर जब हरियाणा सरकार ऐसे काम करने में नाकाम रही है." उन्होंने यह भी कहा कि गुरमीत सिंह नशामुक्ति अभियान चलाते रहे हैं और अपने अनुयायियों को ''वेश्याओं से भी शादी" करने को प्रेरित करते रहे हैं. लेकिन इससे जज जगदीप सिंह प्रभावित नहीं हो पाए.
इसी तरह डेरा सच्चा सौदा के देश-विदेश में 7 करोड़ अनुयायियों के होने का दावा भी शायद अतिशयोक्ति ही है. दावा भले बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता हो मगर अनुयायिायों की संक्चया इतनी तो है ही कि हर विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता उनके दरवाजे पर पहुंचते रहे हैं. हर चुनाव के पहले उनका आशीर्वाद या कहें समर्थन हासिल करने जुटते रहे हैं.
गुरमीत सिंह का अस्वाभाविक उत्थान और पतन, दोनों ही शायद समान रूप से दिलचस्पी जगाने वाला है. मगर यह कहानी एक सामाजिक घटना के रूप में उतनी ही परेशान करने वाली भी है. हाल के दशकों में पंजाब, हरियाणा और दूसरे उत्तर भारतीय राज्यों में ''डेरा संस्कृति" का उभार दिखा है, जिसमें स्वयंभू धर्मगुरु सामाजिक-धार्मिक पंथ का निर्माण कर लेते हैं. उनके अनुयायियों में हर धर्म और जाति के लोग होते हैं लेकिन मोटे तौर पर सामाजिक-आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े पायदान के लोग होते हैं. पंजाब की आबादी में दलित 32 फीसदी हैं. पंजाब और हरियाणा में दलितों का एक बड़ा वर्ग किसी न किसी डेरे से जुड़ा है.
इस इलाके में डेरा सच्चा सौदा जैसे करीब 3,000 डेरे हैं जिनके अनुयायियों में हिंदू, सिख, पिछड़ी जातियों से ईसाई और मुसलमान बने लोग सभी हैं. चंडीगढ़ में इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट ऐंड कम्युनिकेशन (आइडीसी) के निदेशक, समाज विज्ञानी प्रमोद कुमार डेरों को ''संस्थागत धर्म के गरीब भाई" बताते हैं. वे कहते हैं कि डेरों की लोकप्रियता की जड़ें इस इलाके की धार्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई हैं, जहां श्रद्धालु शास्त्र और ग्रंथों को पढऩे की बजाए दिलचस्प अंदाज में कथा कहने वाले गुरुओं या संतों को सुनना पसंद करते हैं. हालांकि डेरों के उदय में संस्थागत धर्म (पंजाब में सिख धर्म) को ऐसे लोगों को साथ लेकर चलने या सरकार से किसी तरह की सुरक्षा की गारंटी के अभाव का भी योगदान है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के समाज विज्ञानी सुरिंदर एस. जोधका कहते हैं, ''डेरा अपने अनुयायियों में सुरक्षा और एक तरह का अपनापन का एहसास दिलाते हैं जो मुख्यधारा के गुरुद्वारों और मंदिरों में नहीं मिलता." खासकर महिलाएं तो डेरों की पक्की भक्त हैं. शराब की लत छुड़ाने और नशामुक्ति आयोजनों के अलावा सच्चा सौदा जैसे डेरों के पास अकूत संपत्ति भी इकट्ठा हो गई है, जिसका एक हिस्सा वे अनुयायियों के कल्याण की योजनाओं में भी खर्च करते हैं. प्रमोद कुमार कहते हैं कि डेरा वह सब मुहैया कराते हैं जो सरकार नहीं करा पाती.
सन् 2000 के शुरुआत से ही पंजाब के छह बड़े डेरों—डेरा सच्चा सौदा, राधास्वामी पंथ का डेरा बाबा जयमाल सिंह, जालंधर जिले के नूरमहल में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, जालंधर में डेरा सचखंड बालान, नामधारी और निरंकारी—के अनुयायियों की बढ़ती संख्या उनके प्रमुखों को बेहिसाब राजनैतिक रसूख दिलाती रही है. सच्चा सौदा पंजाब के मालवा की 27 विधानसभा सीटों में चुनावी नतीजों को बदलने की ताकत दिखाता रहा है. आइडीसी के एक अध्ययन से पता चलता है कि राधास्वामी संप्रदाय 19 विधानसभा क्षेत्रों, दिव्य ज्योति जागृति संस्थान और डेरा सचखंड बालान आठ-आठ और निरंकारी चार तथा नामधारी दो क्षेत्रों में चुनाव प्रभावित कर सकते हैं. ज्यादातर डेरे अपनी राजनैतिक पसंद जाहिर नहीं करते, लेकिन सच्चा सौदा ने 2007 में इस प्रथा को बदल दिया और अमरिंदर सिंह की अगुआई वाले कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया. फिर उसने 2012 और 2017 में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा को समर्थन दे दिया.
हालांकि गुरमीत सिंह हमेशा यही कहता रहा है कि उसने अपने अनुयायियों से किसी खास नेता या पार्टी को वोट देने को नहीं कहा. लेकिन डेरा की राजनैतिक शाखा साध-संगत राजनीतिक लगातार राजनैतिक दिशा का संकेत देती रही है चाहे वह विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा. अक्तूबर 2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतदान के महज कुछ दिन पहले डेरा सच्चा सौदा की राजनैतिक शाखा ने भाजपा को समथर्न देने का ऐलान कर दिया. इसके पहले भाजपा के हरियाणा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय 40 भाजपा उम्मीदवारों के साथ डेरा प्रमुख से मिले थे. यह भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा को समर्थन का ऐलान नारनौद में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डेरा के स्वच्छता अभियान की तारीफ के बाद किया गया था.
इसका एक मतलब यह है कि राजनैतिक पार्टियां डेरा प्रमुख के खिलाफ कोई कदम उठाने के लिए अनिच्छुक रही हैं या फिर हिम्मत नहीं जुटा पाई हैं. जैसा कि हरियाण की मनोहर लाल खट्टर के मामले में साफ-साफ दिखा है. इसके विपरीत पंजाब में गुरमीत सिंह को दोषी ठहराए जाने के बाद उत्पात मचाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की गई. वहां सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को डेरा का समर्थन हासिल नहीं है. दूसरी ओर, हरियाणा सरकार ने न सिर्फ पंचकुला में करीब एक लाख डेरा समर्थकों को जुटने की इजाजत नहीं दी, बल्कि अदालत को आश्वस्त करता रहा कि स्थिति नियंत्रण में है. हालांकि बाद में हालात बेकाबू हो गए.
लेकिन यह सब अब इतिहास हो गया है. गुरमीत सिंह की 82 वर्षीय मां नसीब कौर ने 28 अगस्त को अपने बेटे जसमीत इनसान को डेरा का नया प्रमुख घोषित कर दिया. इसे हनीप्रीत कौर उर्फ प्रियंका गुप्ता की ओर से चुनौती मिलना तय है. इस युवा महिला को 1999 में गुरमीत सिंह ने गोद लिया था. इसके अलावा एक तीसरी दावेदार 34 वर्षीय विपाशना भी हैं जो गुरमीत सिंह करीबी रही हैं और अभी तक डेरा के रोजमर्रा के कामकाज की निगरानी करती रही हैं.
हालांकि इसकी नौबत नहीं भी आ सकती है. पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के कार्यवाहक न्यायाधीश एस.एस. सरोन, न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश अनवीष झिंगन की पीठ ने पंजाब और हरियाणा राज्यों को डेरा सच्चा सौदा की सभी संपत्तियों की फेहरिस्त बनाने और उन्हें जब्त करने का आदेश दिया है. अदालत ने बैंक खातों के हस्तांतरण या जायदाद की बिक्री पर भी पाबंदी लगा दी है. अदालत का कहना है कि इसका इस्तेमाल पंचकुला और बाकी जगहों पर डेरा समर्थकों के उत्पात से हुए नुक्सान की भरपाई की जाएगी. अब शायद बहुत सारे डेरा के अनुयायियों का मोह भंग हो सकता है और वे शायद मुख्यधारा के धर्म की ओर लौट जा सकते हैं. उधर, रोहतक की जेल में कैदी नं. 1997 गुरमीत सिंह पर कुछ और मुकदमों का सिलसिला शुरू हो सकता है.
इसमें 2002 में पत्रकार छत्रपति और रंजीत सिंह की हत्या में गुरमीत सिंह के हाथ के अलावा सीबीआइ का यह आरोप भी हो सकता है कि डेरा सच्चा सौदा के पूर्व प्रमुख ने 400 अनुयायियों का जबरन बधिया करने का आदेश दिया था. इन सभी मामलों में मुकदमे इस साल के अंत तक खत्म होने की उम्मीद है.