उन्होंने एक क्चवाब पिरोया. हिम्मत की और उसे सच कर दिखाया. पांच साल पहले विनम्र स्वभाव वाले एस.एस. राजमौलि ने अपने प्रोड्यूसर दोस्त और आर्का मीडियावर्क्स के सह-संस्थापक और सीईओ शोबु यरलगड्डा के साथ एक महत्वाकांक्षी फिल्म प्रोजेक्ट के बारे में बात की और इसके लिए टॉलीवुड के मशहूर ऐक्टर प्रभास को मुख्य भूमिका में रखने का प्रस्ताव रखा. कुछ हफ्ते गहन सोच-विचार हुआ, जिसमें इस फिल्म को दो हिस्सों में बनाने का फैसला लिया गया और उसके बाद राजमौलि ने हजारों कलाकारों, तकनीशियनों और शिल्पकारों को लेकर भारत की सबसे महंगी फिल्म बनाने का काम शुरू किया.
क्योंकि महिष्मती एक दिन में नहीं बना था
आर्ट डायरेक्टर साबू सायरिल और 2,000 कारपेंटरों, पेंटरों और सेट तैयार करने वालों की सेना ने 2013 में हैदराबाद की रामोजी फिल्म सिटी में महिष्मती का साम्राज्य तैयार किया. उन्होंने न सिर्फ दो महल और मूर्तियां बनार्ईं, बल्कि मशीनी जानवर जैसे बैल, घोड़े और हाथी भी बनाए. प्रभास ''महिष्मती बाइबिल" सरीखी किताब के बारे में बताते हैं, जिसमें राज्य के बारे में बारीक से बारीक जानकारी दी गई थी, यहां तक कि वहां के लोगों की पसंद और नापसंद, उनके सोने के तरीकों और उनके मुख्य आहार जैसी चीजों के बारे में भी जानकारियां दी गई थीं.
युद्ध के दृश्यों के लिए हजारों कलाकारों को लिया गया था. इन दृश्यों के बारे में प्लैनेट ऑफ ऐप्स जैसी फिल्मों के लिए काम कर चुके जॉन ग्रिफिथ ने पहले से कल्पना कर ली थी. हैदराबाद के माकुटा वीएफएक्स स्टुडियो में कई प्रभावशाली विजुअल इफेक्ट तैयार किए गए. 28 अप्रैल को जब फिल्म रिलीज होगी तो आर्का मीडियावर्क्स इस पर 450 करोड़ रु. खर्च कर चुका होगा—दो फिल्मों के लिए पहले के अनुमानित बजट से 300 करोड़ रु. ज्यादा.
यह मुख्य रूप से मेड इन इंडिया का प्रोजेक्ट है, जिसकी कहानी भारतीय मिथकों से जुड़ी हुई है, लेकिन फिल्म का स्वरूप और उसकी अपील वैश्विक है. 28 अप्रैल को यरलगड्डा, देवीनेनी प्रसाद (जिन्होंने प्रशासनिक काम संभाला था), राजमौलि और उनके साथ काम करने वाले लोग उस ऐतिहासिक अध्याय को पूरा कर चुके होंगे, जो उन्होंने शुरू किया था. फिर दो सवाल उठते हैं—क्या बाहुबलीः द कनक्लूजन राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले भाग-1 की 600 करोड़ रु. की कमाई को पीछे छोड़ पाएगी. दूसरा सवाल, ''कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा."
पिछले दो वर्षों से राजमौलि की पूरी कोशिश रही थी कि हैदराबाद से बाहुबली का कोई सीन लीक न होने पाए और वे इसमें सफल भी रहे. राजमौलि कहते हैं, ''अगर एक लाइन में इसका जवाब मिल जाता तो लोग इस रहस्य का पता लगा लेते. यह आने वाली फिल्म का एक बड़ा हिस्सा है." उनके पिता के.वी. विजयेंद्र प्रसाद ने इस फिल्म की कहानी लिखी थी, उन्होंने दर्शकों को लुभाने के लिए एक बेहतरीन अंत का प्रसंग तैयार किया. प्रसाद कहते हैं, ''हालांकि बड़ा बजट होने से माहौल तैयार करने में मदद मिलती है और फिल्म में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अंततः कहानी और फिल्म में दर्शकों की दिलचस्पी और जिज्ञासा बनाए रखने की काबिलियत ही ज्यादा मायने रखती है."
बढ़ती लागत से छूटा पसीना
यरलगड्डा कहते हैं, ''लोग समझ रहे थे कि हम मूर्ख हैं. वे फिल्म के पहले भाग के रिलीज होने से पहले ही हमें खारिज कर चुके थे. बाहुबली से पहले आर्का मीडियावर्क्स सिर्फ तीन फिल्में ही बना पाया था, जिनमें राजमौलि की मर्यादा रमन्ना (2010) थी, जिसे हिंदी में सन ऑफ सरदार के नाम से बनाया गया था. बहुत से लोगों को फिल्म के आसमान छूते बजट की वजह से इस प्रोजेक्ट के डूबने का डर सताने लगा था. लेकिन आर्का मीडियावर्क्स के लिए इससे सावधान होने का कोई विकल्प नहीं था. यरलगड्डा कहते हैं, ''मैं जानता था कि इसकी (बढ़ता बजट) वजह किसी की सनक नहीं है, बल्कि किसी का मेहनताना है."
राजमौलि और कंपनी के बीच एक दशक में जो भरोसा कायम हुआ था, उसी की वजह से बाहुबली का निर्माण संभव हो सका. इस भरोसे के कारण ही राजमौलि मगधीरा (2009) और ईगा (2012) जैसी तेलुगु की सुपरहिट फिल्में दे सके. यरलगड्डा कहते हैं, ''मैं नहीं समझता कि किसी दूसरे फिल्मकार पर मैं इतना अधिक भरोसा कर सकता था." राजमौलि का कहना है, ''प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के बीच आपसी समझ जरूरी है. अगर फिल्म की शुरुआत में ऐसा नहीं होता है तो फिल्म बनने पर भी वह दिखाई देता है."
अखिल भारतीय फिल्म का जन्म
2013 के शुरू में मुंबई में स्पाइस पीआर के पब्लिसिस्ट प्रभात चौधरी को हैदराबाद बुलाकर राजमौलि से मिलवाया गया. मकसद थाः उत्तर और पश्चिम भारत में अपना प्रभाव रखने वाली एजेंसी की मदद से बाहुबली को दक्षिण भारत से आगे ले जाना. चौधरी बताते हैं कि राजमौलि अपनी प्रेजेंटेशन में फिल्म के पहले भाग में एक झरने के दृश्य के बारे में बारीकी से बता रहे थे. वे कहते हैं, ''मैं वह सुनकर खो-सा गया." चौधरी कहते हैं, ''फिल्म को सबसे महंगा प्रोजेक्ट घोषित करने भर से ही इसने दक्षिण की फिल्म से आगे निकलकर राष्ट्रीय फिल्म का दर्जा हासिल कर लिया."
0 जुलाई, 2015 को बाहुबलीः द बिगनिंग ने नया रिकॉर्ड स्थापित किया और हिंदी में डब की गई फिल्म की पहले दिन की कमाई 5.15 करोड़ रु. हो गई जो अब तक किसी फिल्म के मुकाबले सबसे ज्यादा थी. पार्ट-2 के बारे में यही चर्चा है कि उसकी कमाई पार्ट-1 को पीछे छोड़ देगी. चंडीगढ़ में प्रमोशन के बाद फिल्म के मुख्य कलाकार अहमदाबाद जा रहे हैं, जहां रायवाडू होटल में वे बाहुबली नाम की थाली से खाना खाएंगे, इसके बाद वाराणसी का कार्यक्रम है, जहां लोगों में शिव के प्रति विशेष लगाव है, और फिर अंत में दिल्ली का नंबर है. चौधरी कहते हैं, ''बाहुबली से पहले अखिल भारतीय फिल्म की बात एक कल्पना ही थी. अब रास्ता तैयार हो गया है."
बॉलीवुड के लिए मिसाल
फिल्म निर्माण में इतने विस्तार से काम करना और पांच साल तक उसका प्रचार-प्रसार करना बॉलीवुड के लिए मॉडल हो सकता है, जबकि बॉलीवुड में सुपरस्टारों को ही अहमियत दी जाती है. दंगल जैसी फिल्म बनाने वाले डिज्नी इंडिया के पूर्व प्रमुख सिद्धार्थ रॉय कपूर कहते हैं कि हिंदी फिल्म बिरादरी के लिए बाहुबली आंखें खोल देने वाली फिल्म है. हिंदी फिल्म बिरादरी बड़ी फिल्मों के लिए सुपरस्टारों पर निर्भर रहती है."
बाहुबली को जो बात और भी प्रभावशाली बनाती है, वह यह है कि इसने प्रभास और राना डग्गुबत्ती जैसे कलाकारों के साथ इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है, जबकि इन कलाकारों के बारे में हिंदी फिल्मों के दर्शक ज्यादा नहीं जानते. वे सिर्फ रजनीकांत और कमल हासन से ही मुख्य रूप से परिचित हैं. कपूर कहते हैं, ''फिल्म की कहानी ही इसमें असली स्टार है. आपको फिल्म के निर्माताओं को सलाम करना चाहिए, जिन्होंने कहानी पर पूरा भरोसा करते हुए इसमें इतना पैसा, समय और मेहनत खर्च की. इसका भरपूर फायदा भी मिला." उनका इशारा हिंदी में डब की गई फिल्म से 111 करोड़ रु. की कमाई की ओर है.
बॉलीवुड में फैंटसी और पौराणिक कथाओं के मिश्रण पर कम ही काम हुआ है. अतीत में जाना और नए संसार की रचना करना सिर्फ महंगा काम ही नहीं है, बल्कि बहुत मेहनत वाला भी है. हालांकि पहले फैंटसी पर आधारित फिल्में बनती रही हैं जैसे आन (1952), धरम वीर (1977) और अजूबा (1991) लेकिन द्रोण (2008) और वीर (2010) और हाल ही में मोएंजोदारो (2016) की भारी असफलता के बाद निर्माताओं का भरोसा लगता है, उससे उठ गया है. कपूर कहते हैं, ''ऐसा नहीं है कि हमारी फैंटसी सीमित हैं." वे कहते हैं कि हमारे लिए चिंता इस बात को लेकर रहती है कि क्या टेक्नोलॉजी और बजट का प्रतिफल मिलेगा. वे कहते हैं, ''अकेले स्टुडियो को दोष देना सही नहीं है. किसी बड़े स्टार के बिना फिल्म बनाने के लिए हिम्मत और काबिलियत होनी चाहिए."
हालांकि राजमौलि, यरलगड्डा को भरोसा नहीं है कि स्टूडियो मॉडल बाहुबली जैसी फिल्म बनाने की इजाजत देता है. हॉलीवुड जहां ऐक्शन फिल्में बनाता है, जो जरूरी नहीं है कि सुपरस्टारों पर निर्भर हों, वहीं बॉलीवुड अब भी इस तरह का मॉडल अपनाने के मामले में बहुत दूर है. यरलगड्डा कहते हैं, ''स्टुडियो सिस्टम का एक फ्रेमवर्क होता है. इसके अडिय़लपन के कारण मानवीय निर्णय के लिए बहुत कम जगह बचती है. आपको कुछ सीमाओं और नियमों में रहकर काम करना होता है."
देसी फंतासी वाली कहानी
बाहुबली को कई वजहों से भारतीय सिनेमा में एक मानदंड के तौर पर देखा जा रहा है. यह ऐसी फिल्म है जिसमें फिल्मकार इसके अभिनेताओं से ज्यादा महत्व रखता है. राजमौलि सिर्फ एक फिल्मकार भर नहीं हैं, वे एक द्रष्टा भी हैं, जो दर्शकों को काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं, जिस तरह हॉलीवुड के स्टीवन स्पीलबर्ग और क्रिस्टोफर नोलन जैसे फिल्म निर्माता एक अनोखी दुनिया की रचना करते हैं. यह राजमौलि की अनोखी कल्पना ही है जिसमें ऐक्शन और दृश्य दर्शकों को अंत तक बांधे रखते हैं.
राजमौलि की दृष्टि भले ही पश्चिम की हो लेकिन वे अमर चित्र कथा कॉमिक्स के जबरदस्त प्रशंसक रहे हैं, जिस वजह से प्राचीन काल की कहानियां उन्हें फिल्म बनाने के लिए आकर्षित करती रही हैं, जो अगर आंखों को भाती हैं तो दिलों को भी छूती हैं. वे कहते हैं, ''मैं जानता हूं कि अगर आपके पास कोई मौलिक कथावस्तु है और कहानी को अच्छी तरह से पेश किया जाता है तो यह कहीं भी अपना असर दिखाएगी. मेरा मानना है कि हमारे पास महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य हैं, हमारे पास महान इतिहास और समृद्ध संस्कृति है, पर हम लंबे समय से उसकी उपेक्षा करते रहे हैं. हम पश्चिम की फिल्मों की नकल करने की कोशिश करते हैं. मैं इसके खिलाफ नहीं हूं, पर जब हमारे पास खुद एक बड़ा खजाना है तो समझदारी यही है कि हमें इसका उपयोग करना चाहिए."
दो बाहुबलियों अमरेंद्र और महेंद्र के रूप में राजमौलि और उनके पिता ने देसी सुपरहीरो की रचना की है, जिनकी शारीरिक शक्तियां आपको हॉलीवुड के सुपरहीरो की याद दिलाती हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व भारतीय पौराणिक कथाओं के नायकों से मिलते-जुलते हैं. बिज्जलदेव अपनी तिकड़मी चालों से महाभारत के शकुनि मामा से मिलता-जुलता चरित्र है, भल्लालदेव कुछ-कुछ दुर्योधन जैसा है, जो मानता है कि उसके साथ गलत हुआ है और वह किसी भी कीमत पर साम्राज्य को हासिल करना चाहता है, महेंद्र एक कर्तव्यपारायण पुत्र है, जो भगवान राम जैसा है, और अमरेंद्र महाभारत के भीम जैसा महान योद्धा है, कटप्पा रामायण के हनुमान की तरह राज्य का सच्चा सेवक है.
बाहुबली पार्ट-1 के प्रशंसक लेखक अमिष त्रिपाठी कहते हैं कि प्राचीन काल की कहानियों के ज्यादातर कहानीकारों की तरह राजमौलि भी भारत की पौराणिक गाथाओं जैसे रामायण, महाभारत और पुराणों से प्रभावित लगते हैं. वे कहते हैं, ''इस फिल्म ने दर्शकों को अपनी भव्यता के कारण तो आकर्षित किया ही, साथ ही इस बात ने भी आकर्षित किया कि इसमें हमारी कहानियां हैं, हमारे महल और हमारे मंदिर हैं. इसमें विस्मय और हमारी चेतना का विचित्र मिश्रण है, जबकि हॉलीवुड की फिल्में देखते हुए हमें इस तरह का जुड़ाव नहीं महसूस होता. उसमें हमारे लिए सिर्फ विस्मय का तत्व ही होता है. आप बाहुबली को देखिए, जिसे देखकर लगता है कि यह अपना नायक है."
सिर्फ चरित्र ही नहीं, बल्कि फिल्म का दर्शन भी हमें आकर्षित करता है. त्रिपाठी कहते हैं, ''यह ''धर्म" की बात करता है, और उससे मेरा मतलब किसी मजहब से नहीं है, बल्कि जीने के सही रास्ते से है. और इसमें ''कर्म" दिखाता है कि हमें किस तरह उसका निर्वाह करना चाहिए. कटप्पा के चरित्र में कर्म की यह भावना साफ दिखाई देती है, जो बाहुबली का एक बेहद सम्मानित पात्र है और जिसके सिर्फ एक काम से महिष्मती को भारी क्षति हो जाती है. त्रिपाठी कहते हैं, ''हमारी परंपरा में पूरी तरह से अच्छे और पूरी तरह से दुष्ट चरित्र नहीं होते हैं. हमारे यहां शत्रु की भी अपनी कहानी होती है और आप उससे भी कुछ सीख सकते हैं."
यह बात बाहुबलीः द कनक्लुजन की टैग लाइन से भी पता चलती है, जो इस प्रकार है—''दो सही और कोई भी गलत नहीं, के बीच की जंग" अब आपसे कहा जाता है कि आप तय करें कि आप किसका पक्ष लेते हैः टीम बाहुबली का या टीम भल्लालदेव का.
मिथकों से रचा इतिहास
इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आपको किस तरह की कहानी पसंद है, लेकिन यह बात निश्चित है कि इस फिल्म में आपको भरपूर मनोरंजन मिलेगा. यही वजह है कि करन जौहर और अनिल थडानी ने इस फिल्म के हिंदी संस्करण के वितरण अधिकार ले लिए. जौहर अपने संस्मरण अनसूटेबल बॉय में यह बताते हुए वे किस तरह इस फिल्म से जुड़े थे, लिखते हैं, ''मैं जानता था कि वे एक बड़ी फिल्म बना रहे हैं...जो बजट, भव्यता और कहानी के स्तर पर बहुत बहुत बड़ी है...और मैं पक्के तौर पर मानता हूं कि क्वालिटी, तकनीक और कहानी को पेश करने के मामले में यह दक्षिण की कोई साधारण फिल्म नहीं है, बल्कि दक्षिण को सम्मान दिलाने वाली फिल्म है. राजमौलि को कहानी के प्रस्तुतीकरण में महारत हासिल है."
ऐक्शन फिल्म (मगधीरा) के नए अवतार और बदले की कहानी पर बनी ईगा के साथ राजमौलि पहले ही दक्षिण से बाहर अपनी योग्यता का एहसास करा चुके थे. लेकिन उन्हें अब भी मणिरत्नम, शंकर, राम गोपाल वर्मा और प्रियदर्शन जैसे फिल्मकारों की पांत में जगह हासिल नहीं हुई थी. लेकिन तेलुगु फिल्मकार के. राघवेंद्र राव के शिष्य रहे राजमौलि बाहुबली के बाद फिल्मकारों के इस क्लब में न सिर्फ शामिल हो गए हैं, बल्कि उन्हें भारत के नए शोमैन का दर्जा मिल गया है. उन्होंने तेलुगु सिनेमा उर्फ टॉलीवुड, जिसे कॉलीवुड अपनी तकनीकी ताकत के बल पर अक्सर दबा दिया करता था, को नक्शे पर ला दिया है.
राव कहते हैं, ''बाहुबली 75 वर्षों के भारतीय सिनेमा के बाद असाधारण पुनर्निर्माण का प्रतीक है." राव अब तक 108 फिल्मों को डायरेन्न्ट कर चुके हैं और बाहुबली फिल्म में प्रस्तुतकर्ता के तौर पर उनका नाम दिया गया है. वे कहते हैं, ''इस फिल्म ने प्राचीन कहानियों पर सभी भारतीय भाषाओं में फिल्म बनाने की राह खोल दी है." अभिनेता राणा डग्गुबत्ती वेंकटेश कहते हैं, ''राजमौलि को अपनी महान दृष्टि और भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का श्रेय दिया जाना चाहिए और उनकी तारीफ की जानी चाहिए. मायाबाजार (1957) के बाद बाहुबली ने निश्चित रूप से तेलुगु सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है."
इन फिल्मों ने क्षेत्रीय सिनेमा की सीमाओं और बॉलीवुड की सुपरस्टार वाली संस्कृति को तोड़ दिया है. भव्यता, भरपूर नाटकीयता और लाजवाब ऐक्शन ने दर्शकों को एक बार फिर सिनेमा हाल की तरफ दर्शकों को खींचा है. बॉक्स ऑफिस इंडिया के संपादक वजीर सिंह कहते हैं, ''फिल्म का हरेक दृश्य आपके अंदर उसे बड़े परदे पर देखने की इच्छा पैदा करता है." करीब दो साल के अंतराल के बाद दूसरी फिल्म आने के बावजूद फिल्म निर्माताओं ने बाहुबली के प्रति रोचकता और जिज्ञासा को बनाए रखा है और इसके लिए कहानी को अनेक रूपों में पेश किया जाता रहा है, जैसे आनंद नीलकंठन की किताब, ग्राफिक इंडिया की ओर से कॉमिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो पर एनीमेटेड सीरीज, टीवी सीरीज, मोबाइल गेम और बाहुबली के चित्रों वाले कपड़े आदि.
देश के 6,500 स्क्रीन्स पर एक साथ रिलीज होने जा रही बाहुबलीः द कनक्लूजन को लेकर बहुत ऊंची उम्मीदें लगाई जा रही हैं. कपूर कहते हैं, ''मुझे बहुत खुशी होगी, अगर यह फिल्म पहले के रिकॉर्डों को तोड़ती है, क्योंकि यह दिखाती है कि फिल्म उद्योग तरक्की कर रहा है...लंबे समय से हम 1,000 करोड़ रु. की कमाई की कल्पना करते रहे हैं. अगर यह फिल्म उस मुकाम तक पहुंचती है तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी."
ऐसा होता है या नहीं होता है, लेकिन इतना तय है कि भारतीय सिनेमा पर यह अपना प्रभाव कम नहीं करेगी. यह उन लोगों की सफलता की कहानी है, जो सपना देखने की हिम्मत करते हैं.
क्योंकि महिष्मती एक दिन में नहीं बना था
आर्ट डायरेक्टर साबू सायरिल और 2,000 कारपेंटरों, पेंटरों और सेट तैयार करने वालों की सेना ने 2013 में हैदराबाद की रामोजी फिल्म सिटी में महिष्मती का साम्राज्य तैयार किया. उन्होंने न सिर्फ दो महल और मूर्तियां बनार्ईं, बल्कि मशीनी जानवर जैसे बैल, घोड़े और हाथी भी बनाए. प्रभास ''महिष्मती बाइबिल" सरीखी किताब के बारे में बताते हैं, जिसमें राज्य के बारे में बारीक से बारीक जानकारी दी गई थी, यहां तक कि वहां के लोगों की पसंद और नापसंद, उनके सोने के तरीकों और उनके मुख्य आहार जैसी चीजों के बारे में भी जानकारियां दी गई थीं.
युद्ध के दृश्यों के लिए हजारों कलाकारों को लिया गया था. इन दृश्यों के बारे में प्लैनेट ऑफ ऐप्स जैसी फिल्मों के लिए काम कर चुके जॉन ग्रिफिथ ने पहले से कल्पना कर ली थी. हैदराबाद के माकुटा वीएफएक्स स्टुडियो में कई प्रभावशाली विजुअल इफेक्ट तैयार किए गए. 28 अप्रैल को जब फिल्म रिलीज होगी तो आर्का मीडियावर्क्स इस पर 450 करोड़ रु. खर्च कर चुका होगा—दो फिल्मों के लिए पहले के अनुमानित बजट से 300 करोड़ रु. ज्यादा.
यह मुख्य रूप से मेड इन इंडिया का प्रोजेक्ट है, जिसकी कहानी भारतीय मिथकों से जुड़ी हुई है, लेकिन फिल्म का स्वरूप और उसकी अपील वैश्विक है. 28 अप्रैल को यरलगड्डा, देवीनेनी प्रसाद (जिन्होंने प्रशासनिक काम संभाला था), राजमौलि और उनके साथ काम करने वाले लोग उस ऐतिहासिक अध्याय को पूरा कर चुके होंगे, जो उन्होंने शुरू किया था. फिर दो सवाल उठते हैं—क्या बाहुबलीः द कनक्लूजन राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले भाग-1 की 600 करोड़ रु. की कमाई को पीछे छोड़ पाएगी. दूसरा सवाल, ''कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा."
पिछले दो वर्षों से राजमौलि की पूरी कोशिश रही थी कि हैदराबाद से बाहुबली का कोई सीन लीक न होने पाए और वे इसमें सफल भी रहे. राजमौलि कहते हैं, ''अगर एक लाइन में इसका जवाब मिल जाता तो लोग इस रहस्य का पता लगा लेते. यह आने वाली फिल्म का एक बड़ा हिस्सा है." उनके पिता के.वी. विजयेंद्र प्रसाद ने इस फिल्म की कहानी लिखी थी, उन्होंने दर्शकों को लुभाने के लिए एक बेहतरीन अंत का प्रसंग तैयार किया. प्रसाद कहते हैं, ''हालांकि बड़ा बजट होने से माहौल तैयार करने में मदद मिलती है और फिल्म में नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अंततः कहानी और फिल्म में दर्शकों की दिलचस्पी और जिज्ञासा बनाए रखने की काबिलियत ही ज्यादा मायने रखती है."
बढ़ती लागत से छूटा पसीना
यरलगड्डा कहते हैं, ''लोग समझ रहे थे कि हम मूर्ख हैं. वे फिल्म के पहले भाग के रिलीज होने से पहले ही हमें खारिज कर चुके थे. बाहुबली से पहले आर्का मीडियावर्क्स सिर्फ तीन फिल्में ही बना पाया था, जिनमें राजमौलि की मर्यादा रमन्ना (2010) थी, जिसे हिंदी में सन ऑफ सरदार के नाम से बनाया गया था. बहुत से लोगों को फिल्म के आसमान छूते बजट की वजह से इस प्रोजेक्ट के डूबने का डर सताने लगा था. लेकिन आर्का मीडियावर्क्स के लिए इससे सावधान होने का कोई विकल्प नहीं था. यरलगड्डा कहते हैं, ''मैं जानता था कि इसकी (बढ़ता बजट) वजह किसी की सनक नहीं है, बल्कि किसी का मेहनताना है."
राजमौलि और कंपनी के बीच एक दशक में जो भरोसा कायम हुआ था, उसी की वजह से बाहुबली का निर्माण संभव हो सका. इस भरोसे के कारण ही राजमौलि मगधीरा (2009) और ईगा (2012) जैसी तेलुगु की सुपरहिट फिल्में दे सके. यरलगड्डा कहते हैं, ''मैं नहीं समझता कि किसी दूसरे फिल्मकार पर मैं इतना अधिक भरोसा कर सकता था." राजमौलि का कहना है, ''प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के बीच आपसी समझ जरूरी है. अगर फिल्म की शुरुआत में ऐसा नहीं होता है तो फिल्म बनने पर भी वह दिखाई देता है."
अखिल भारतीय फिल्म का जन्म
2013 के शुरू में मुंबई में स्पाइस पीआर के पब्लिसिस्ट प्रभात चौधरी को हैदराबाद बुलाकर राजमौलि से मिलवाया गया. मकसद थाः उत्तर और पश्चिम भारत में अपना प्रभाव रखने वाली एजेंसी की मदद से बाहुबली को दक्षिण भारत से आगे ले जाना. चौधरी बताते हैं कि राजमौलि अपनी प्रेजेंटेशन में फिल्म के पहले भाग में एक झरने के दृश्य के बारे में बारीकी से बता रहे थे. वे कहते हैं, ''मैं वह सुनकर खो-सा गया." चौधरी कहते हैं, ''फिल्म को सबसे महंगा प्रोजेक्ट घोषित करने भर से ही इसने दक्षिण की फिल्म से आगे निकलकर राष्ट्रीय फिल्म का दर्जा हासिल कर लिया."
0 जुलाई, 2015 को बाहुबलीः द बिगनिंग ने नया रिकॉर्ड स्थापित किया और हिंदी में डब की गई फिल्म की पहले दिन की कमाई 5.15 करोड़ रु. हो गई जो अब तक किसी फिल्म के मुकाबले सबसे ज्यादा थी. पार्ट-2 के बारे में यही चर्चा है कि उसकी कमाई पार्ट-1 को पीछे छोड़ देगी. चंडीगढ़ में प्रमोशन के बाद फिल्म के मुख्य कलाकार अहमदाबाद जा रहे हैं, जहां रायवाडू होटल में वे बाहुबली नाम की थाली से खाना खाएंगे, इसके बाद वाराणसी का कार्यक्रम है, जहां लोगों में शिव के प्रति विशेष लगाव है, और फिर अंत में दिल्ली का नंबर है. चौधरी कहते हैं, ''बाहुबली से पहले अखिल भारतीय फिल्म की बात एक कल्पना ही थी. अब रास्ता तैयार हो गया है."
बॉलीवुड के लिए मिसाल
फिल्म निर्माण में इतने विस्तार से काम करना और पांच साल तक उसका प्रचार-प्रसार करना बॉलीवुड के लिए मॉडल हो सकता है, जबकि बॉलीवुड में सुपरस्टारों को ही अहमियत दी जाती है. दंगल जैसी फिल्म बनाने वाले डिज्नी इंडिया के पूर्व प्रमुख सिद्धार्थ रॉय कपूर कहते हैं कि हिंदी फिल्म बिरादरी के लिए बाहुबली आंखें खोल देने वाली फिल्म है. हिंदी फिल्म बिरादरी बड़ी फिल्मों के लिए सुपरस्टारों पर निर्भर रहती है."
बाहुबली को जो बात और भी प्रभावशाली बनाती है, वह यह है कि इसने प्रभास और राना डग्गुबत्ती जैसे कलाकारों के साथ इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है, जबकि इन कलाकारों के बारे में हिंदी फिल्मों के दर्शक ज्यादा नहीं जानते. वे सिर्फ रजनीकांत और कमल हासन से ही मुख्य रूप से परिचित हैं. कपूर कहते हैं, ''फिल्म की कहानी ही इसमें असली स्टार है. आपको फिल्म के निर्माताओं को सलाम करना चाहिए, जिन्होंने कहानी पर पूरा भरोसा करते हुए इसमें इतना पैसा, समय और मेहनत खर्च की. इसका भरपूर फायदा भी मिला." उनका इशारा हिंदी में डब की गई फिल्म से 111 करोड़ रु. की कमाई की ओर है.
बॉलीवुड में फैंटसी और पौराणिक कथाओं के मिश्रण पर कम ही काम हुआ है. अतीत में जाना और नए संसार की रचना करना सिर्फ महंगा काम ही नहीं है, बल्कि बहुत मेहनत वाला भी है. हालांकि पहले फैंटसी पर आधारित फिल्में बनती रही हैं जैसे आन (1952), धरम वीर (1977) और अजूबा (1991) लेकिन द्रोण (2008) और वीर (2010) और हाल ही में मोएंजोदारो (2016) की भारी असफलता के बाद निर्माताओं का भरोसा लगता है, उससे उठ गया है. कपूर कहते हैं, ''ऐसा नहीं है कि हमारी फैंटसी सीमित हैं." वे कहते हैं कि हमारे लिए चिंता इस बात को लेकर रहती है कि क्या टेक्नोलॉजी और बजट का प्रतिफल मिलेगा. वे कहते हैं, ''अकेले स्टुडियो को दोष देना सही नहीं है. किसी बड़े स्टार के बिना फिल्म बनाने के लिए हिम्मत और काबिलियत होनी चाहिए."
हालांकि राजमौलि, यरलगड्डा को भरोसा नहीं है कि स्टूडियो मॉडल बाहुबली जैसी फिल्म बनाने की इजाजत देता है. हॉलीवुड जहां ऐक्शन फिल्में बनाता है, जो जरूरी नहीं है कि सुपरस्टारों पर निर्भर हों, वहीं बॉलीवुड अब भी इस तरह का मॉडल अपनाने के मामले में बहुत दूर है. यरलगड्डा कहते हैं, ''स्टुडियो सिस्टम का एक फ्रेमवर्क होता है. इसके अडिय़लपन के कारण मानवीय निर्णय के लिए बहुत कम जगह बचती है. आपको कुछ सीमाओं और नियमों में रहकर काम करना होता है."
देसी फंतासी वाली कहानी
बाहुबली को कई वजहों से भारतीय सिनेमा में एक मानदंड के तौर पर देखा जा रहा है. यह ऐसी फिल्म है जिसमें फिल्मकार इसके अभिनेताओं से ज्यादा महत्व रखता है. राजमौलि सिर्फ एक फिल्मकार भर नहीं हैं, वे एक द्रष्टा भी हैं, जो दर्शकों को काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं, जिस तरह हॉलीवुड के स्टीवन स्पीलबर्ग और क्रिस्टोफर नोलन जैसे फिल्म निर्माता एक अनोखी दुनिया की रचना करते हैं. यह राजमौलि की अनोखी कल्पना ही है जिसमें ऐक्शन और दृश्य दर्शकों को अंत तक बांधे रखते हैं.
राजमौलि की दृष्टि भले ही पश्चिम की हो लेकिन वे अमर चित्र कथा कॉमिक्स के जबरदस्त प्रशंसक रहे हैं, जिस वजह से प्राचीन काल की कहानियां उन्हें फिल्म बनाने के लिए आकर्षित करती रही हैं, जो अगर आंखों को भाती हैं तो दिलों को भी छूती हैं. वे कहते हैं, ''मैं जानता हूं कि अगर आपके पास कोई मौलिक कथावस्तु है और कहानी को अच्छी तरह से पेश किया जाता है तो यह कहीं भी अपना असर दिखाएगी. मेरा मानना है कि हमारे पास महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य हैं, हमारे पास महान इतिहास और समृद्ध संस्कृति है, पर हम लंबे समय से उसकी उपेक्षा करते रहे हैं. हम पश्चिम की फिल्मों की नकल करने की कोशिश करते हैं. मैं इसके खिलाफ नहीं हूं, पर जब हमारे पास खुद एक बड़ा खजाना है तो समझदारी यही है कि हमें इसका उपयोग करना चाहिए."
दो बाहुबलियों अमरेंद्र और महेंद्र के रूप में राजमौलि और उनके पिता ने देसी सुपरहीरो की रचना की है, जिनकी शारीरिक शक्तियां आपको हॉलीवुड के सुपरहीरो की याद दिलाती हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व भारतीय पौराणिक कथाओं के नायकों से मिलते-जुलते हैं. बिज्जलदेव अपनी तिकड़मी चालों से महाभारत के शकुनि मामा से मिलता-जुलता चरित्र है, भल्लालदेव कुछ-कुछ दुर्योधन जैसा है, जो मानता है कि उसके साथ गलत हुआ है और वह किसी भी कीमत पर साम्राज्य को हासिल करना चाहता है, महेंद्र एक कर्तव्यपारायण पुत्र है, जो भगवान राम जैसा है, और अमरेंद्र महाभारत के भीम जैसा महान योद्धा है, कटप्पा रामायण के हनुमान की तरह राज्य का सच्चा सेवक है.
बाहुबली पार्ट-1 के प्रशंसक लेखक अमिष त्रिपाठी कहते हैं कि प्राचीन काल की कहानियों के ज्यादातर कहानीकारों की तरह राजमौलि भी भारत की पौराणिक गाथाओं जैसे रामायण, महाभारत और पुराणों से प्रभावित लगते हैं. वे कहते हैं, ''इस फिल्म ने दर्शकों को अपनी भव्यता के कारण तो आकर्षित किया ही, साथ ही इस बात ने भी आकर्षित किया कि इसमें हमारी कहानियां हैं, हमारे महल और हमारे मंदिर हैं. इसमें विस्मय और हमारी चेतना का विचित्र मिश्रण है, जबकि हॉलीवुड की फिल्में देखते हुए हमें इस तरह का जुड़ाव नहीं महसूस होता. उसमें हमारे लिए सिर्फ विस्मय का तत्व ही होता है. आप बाहुबली को देखिए, जिसे देखकर लगता है कि यह अपना नायक है."
सिर्फ चरित्र ही नहीं, बल्कि फिल्म का दर्शन भी हमें आकर्षित करता है. त्रिपाठी कहते हैं, ''यह ''धर्म" की बात करता है, और उससे मेरा मतलब किसी मजहब से नहीं है, बल्कि जीने के सही रास्ते से है. और इसमें ''कर्म" दिखाता है कि हमें किस तरह उसका निर्वाह करना चाहिए. कटप्पा के चरित्र में कर्म की यह भावना साफ दिखाई देती है, जो बाहुबली का एक बेहद सम्मानित पात्र है और जिसके सिर्फ एक काम से महिष्मती को भारी क्षति हो जाती है. त्रिपाठी कहते हैं, ''हमारी परंपरा में पूरी तरह से अच्छे और पूरी तरह से दुष्ट चरित्र नहीं होते हैं. हमारे यहां शत्रु की भी अपनी कहानी होती है और आप उससे भी कुछ सीख सकते हैं."
यह बात बाहुबलीः द कनक्लुजन की टैग लाइन से भी पता चलती है, जो इस प्रकार है—''दो सही और कोई भी गलत नहीं, के बीच की जंग" अब आपसे कहा जाता है कि आप तय करें कि आप किसका पक्ष लेते हैः टीम बाहुबली का या टीम भल्लालदेव का.
मिथकों से रचा इतिहास
इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आपको किस तरह की कहानी पसंद है, लेकिन यह बात निश्चित है कि इस फिल्म में आपको भरपूर मनोरंजन मिलेगा. यही वजह है कि करन जौहर और अनिल थडानी ने इस फिल्म के हिंदी संस्करण के वितरण अधिकार ले लिए. जौहर अपने संस्मरण अनसूटेबल बॉय में यह बताते हुए वे किस तरह इस फिल्म से जुड़े थे, लिखते हैं, ''मैं जानता था कि वे एक बड़ी फिल्म बना रहे हैं...जो बजट, भव्यता और कहानी के स्तर पर बहुत बहुत बड़ी है...और मैं पक्के तौर पर मानता हूं कि क्वालिटी, तकनीक और कहानी को पेश करने के मामले में यह दक्षिण की कोई साधारण फिल्म नहीं है, बल्कि दक्षिण को सम्मान दिलाने वाली फिल्म है. राजमौलि को कहानी के प्रस्तुतीकरण में महारत हासिल है."
ऐक्शन फिल्म (मगधीरा) के नए अवतार और बदले की कहानी पर बनी ईगा के साथ राजमौलि पहले ही दक्षिण से बाहर अपनी योग्यता का एहसास करा चुके थे. लेकिन उन्हें अब भी मणिरत्नम, शंकर, राम गोपाल वर्मा और प्रियदर्शन जैसे फिल्मकारों की पांत में जगह हासिल नहीं हुई थी. लेकिन तेलुगु फिल्मकार के. राघवेंद्र राव के शिष्य रहे राजमौलि बाहुबली के बाद फिल्मकारों के इस क्लब में न सिर्फ शामिल हो गए हैं, बल्कि उन्हें भारत के नए शोमैन का दर्जा मिल गया है. उन्होंने तेलुगु सिनेमा उर्फ टॉलीवुड, जिसे कॉलीवुड अपनी तकनीकी ताकत के बल पर अक्सर दबा दिया करता था, को नक्शे पर ला दिया है.
राव कहते हैं, ''बाहुबली 75 वर्षों के भारतीय सिनेमा के बाद असाधारण पुनर्निर्माण का प्रतीक है." राव अब तक 108 फिल्मों को डायरेन्न्ट कर चुके हैं और बाहुबली फिल्म में प्रस्तुतकर्ता के तौर पर उनका नाम दिया गया है. वे कहते हैं, ''इस फिल्म ने प्राचीन कहानियों पर सभी भारतीय भाषाओं में फिल्म बनाने की राह खोल दी है." अभिनेता राणा डग्गुबत्ती वेंकटेश कहते हैं, ''राजमौलि को अपनी महान दृष्टि और भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का श्रेय दिया जाना चाहिए और उनकी तारीफ की जानी चाहिए. मायाबाजार (1957) के बाद बाहुबली ने निश्चित रूप से तेलुगु सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है."
इन फिल्मों ने क्षेत्रीय सिनेमा की सीमाओं और बॉलीवुड की सुपरस्टार वाली संस्कृति को तोड़ दिया है. भव्यता, भरपूर नाटकीयता और लाजवाब ऐक्शन ने दर्शकों को एक बार फिर सिनेमा हाल की तरफ दर्शकों को खींचा है. बॉक्स ऑफिस इंडिया के संपादक वजीर सिंह कहते हैं, ''फिल्म का हरेक दृश्य आपके अंदर उसे बड़े परदे पर देखने की इच्छा पैदा करता है." करीब दो साल के अंतराल के बाद दूसरी फिल्म आने के बावजूद फिल्म निर्माताओं ने बाहुबली के प्रति रोचकता और जिज्ञासा को बनाए रखा है और इसके लिए कहानी को अनेक रूपों में पेश किया जाता रहा है, जैसे आनंद नीलकंठन की किताब, ग्राफिक इंडिया की ओर से कॉमिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो पर एनीमेटेड सीरीज, टीवी सीरीज, मोबाइल गेम और बाहुबली के चित्रों वाले कपड़े आदि.
देश के 6,500 स्क्रीन्स पर एक साथ रिलीज होने जा रही बाहुबलीः द कनक्लूजन को लेकर बहुत ऊंची उम्मीदें लगाई जा रही हैं. कपूर कहते हैं, ''मुझे बहुत खुशी होगी, अगर यह फिल्म पहले के रिकॉर्डों को तोड़ती है, क्योंकि यह दिखाती है कि फिल्म उद्योग तरक्की कर रहा है...लंबे समय से हम 1,000 करोड़ रु. की कमाई की कल्पना करते रहे हैं. अगर यह फिल्म उस मुकाम तक पहुंचती है तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी."
ऐसा होता है या नहीं होता है, लेकिन इतना तय है कि भारतीय सिनेमा पर यह अपना प्रभाव कम नहीं करेगी. यह उन लोगों की सफलता की कहानी है, जो सपना देखने की हिम्मत करते हैं.