काले धन के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुरू किए गए ''शुद्धीकरण अभियान" के ठीक अगले दिन देश के ऊपर तबाही के काले बादल घिर आए. जहरीला स्मॉग गाढ़ा हो गया, हवा में जहरीले महीन कण इतने सघन हो गए कि मानक उपकरणों से उन्हें मापा जाना असंभव हो गया. इसके बाद 10 नवंबर को करीब 1,400 स्कूली बच्चों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग की कि देश में एक राष्ट्रीय स्वच्छ हवा दिवस घोषित किया जाए. हालांकि बच्चों की लिखी यह चिट्ठी खबर भले नहीं बन सकी, लेकिन स्कूली बच्चों ने यह दिखा दिया कि वे भी बेशक सामूहिक अवचेतन का एक हिस्सा हैं.
हवा की शुद्धि से कहीं ज्यादा इस देश में हमेशा शुद्धीकरण के कर्मकांड का बोलबाला रहा है. कर्म, योग, आयुर्वेद जैसे विचार इस देश को हमेशा से रोमांचित करते रहे हैं. कचरे से लेकर काले धन तक हर गंदी चीज को देश से साफ करने के प्रधानमंत्री के वादे की रोशनी में इस देश के मूड को आंकें तो कह सकते हैं कि जिंदगी, स्वतंत्रता और सुख-शांति से जुड़े मसलों के इर्द-गिर्द लोगों को अब भी थोड़ी- बहुत उम्मीदें हैं.
प्रधानमंत्री मोदी का कार्यकाल शुरू होने के बाद के पहले देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में लोगों की चिंता मोटे तौर पर सांप्रदायिकता, स्कूली किताबों के पाठ्यक्रम पर होने वाली सियासत और यौन अपराधों में हो रहे इजाफे को लेकर थी. 2015 और 2016 में लोगों का ध्यान बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार के मामलों और सांप्रदायिक तनाव पर था. हालांकि इस साल ऐसा लगता है कि ये चीजें लोगों के दिमाग से पूरी तरह निकल चुकी हैं. लोगों ने अपनी प्राथमिकताएं जाहिर कर दी हैः प्रदूषित हवा और पानी, अस्पतालों की खस्ता हालत और बदहाल स्कूलों से लेकर कानून-व्यवस्था और न्याय अब उनकी प्राथमिकता है.
सर्वेक्षण में शामिल 70 फीसदी लोग मानते हैं कि हवा और पानी का प्रदूषण चिंता का विषय है और इनमें 32 फीसदी इसे ''बहुत गंभीर विषय" मानते हैं. 65 फीसदी लोगों को लगता है कि नेताओं का लोगों के जीवन की असली स्थितियों से कोई लेना-देना नहीं है और इनमें 18 फीसदी का कहना है कि ''नेता उन्हीं मुद्दों की चिंता करते हैं, जो उन्हें वोट दिलवा सकें." लोगों की ये चिंताएं वाजिब हैं क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवंबर मध्य में आई ''ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज" रिपोर्ट कहती है कि पहली बार वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. पहली बार ऐसा हुआ है कि यहां की हवा में औसत प्रदूषणकारी कणों की मात्रा चीन की हवा से ज्यादा हो गई है.
इसका मतलब यह नहीं कि चीजें बरदाश्त से बाहर हो चुकी हैं क्योंकि आधे से ज्यादा लोगों का यह भी कहना है कि उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है और ये लोग उन सेवाओं के लिए भी केंद्र को श्रेय दे रहे हैं, जो राज्य सरकार के दायरे में आती हैं. 58 फीसदी लोग यह मानते हैं कि मोदी के राज में स्कूलों की हालत सुधरी है, जबकि 59 फीसदी लोगों की यही राय अस्पतालों के बारे में है. हालांकि इसी के साथ तथ्यात्मक सचाई यह भी है कि इस तरह की ज्यादा बातें बीजेपी शासित पूरब और पश्चिम के राज्यों से ही आ रही हैं. सरकार के साथ दो साल से संघर्ष कर रही न्यायपालिका अपनी जगह कायम है. न्यायिक भ्रष्टाचार से कहीं ज्यादा लोगों की शिकायत अदालतों और जजों की कमी को लेकर है, जिसे वे देश की न्याय व्यवस्था में सबसे बड़ा अवरोध मानते हैं. कुल 64 फीसदी लोग हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सिनेमाघरों में अनिवार्य किए गए राष्ट्रगान बजाए जाने के फैसले के समर्थन में हैं.
नोटबंदी के पचास दिन बीतने के बाद 31 दिसंबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था, ''भारत ने जो किया है, उसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलती. लोगों ने त्याग की अवधारणा को नए तरीके से परिभाषित किया है." अब इसे त्याग कहें, भ्रम या उदासीनता, लेकिन राजनीति को साफ-सुथरा बनाने का प्रधानमंत्री का नुस्खा कारगर साबित हुआ है. इसके समर्थक इसे तंत्र को ''शुद्ध" करने के नए अवसर के रूप में ले रहे हैं. इस लिहाज से वे मोदी सरकार को ही अहम मानते हैं, जो देश को, मुद्रा को, हवा को और तमाम चीजों को साफ करेगी.