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इंडिया टुडे कॉनक्लेवः आजादी की सरहदें तोड़ने का वादाIndia Today

इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2016 लोकतंत्र के तमाम शानदार रंगों का दो दिनों का जलसा था, जिसमें वाम से लेकर दक्षिण के दो ध्रुवों और तमाम मध्यमार्गी विचारधाराओं, विचारों और आदर्शों का खुलकर इजहार हुआ. दो दिनों के आयोजन के आखिर में #इंडियाटुमॉरो के लिए पांच लघु फिल्मों की शृंखला के शुभारंभ का उत्सव मनाया गया, जो देश के बेहतरीन फिल्मकारों ने सबसे मौजू विषयों पर बनाई थीं.

अपडेटेड 29 मार्च , 2016

अगर हिंदुस्तान खुद अपने साथ वाद-विवाद में मशगूल देश है, तो इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2016 इसका मुकम्मल आईना था. वहां बहस का मुख्य विषय आजादी ही था, चाहे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का इसकी सीमाएं बताने के लिए साफ-साफ लकीरें खींचना हो या जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का यह बताना कि उनके लिए आजादी के क्या मायने हैं.
दो दिनों के इस कॉनक्लेव में आजादी की हर रंगत की नुमाइंदगी सुनाई दी, जिसमें अंग्रेजी इंडिया टुडे की 40वीं सालगिरह के मौजू मौके पर नजरें एकटक भविष्य पर टिकी रहीं.

मानवाधिकारों की वकील अमाल क्लूनी ने बोलने की आजादी की हिमायत की और कहा कि असहमति रखने वाले लो गों को सलाखों के पीछे डालने से बस इतना ही होता है कि वे शहादत का बाना पहनकर निकलते हैं. राजनीति विज्ञानी प्रताप भानु मेहता ने पहचान की आजादी को जोर-शोर से सामने रखा और बताया कि सत्ताधारी जो नया फर्क पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, वह वाम और दक्षिण का पुराना दोतरफा बंटवारा नहीं, बल्कि सचाई और प्रोपगैंडा के बीच फर्क है.

अदाकारा शबाना आजमी ने लोकतांत्रिक विकल्पों की आजादी की तरफ इशारा किया और सवाल किया कि एमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी को अगर “भारत माता की जय” कहना गवारा नहीं है, तो क्या वे “भारत अम्मी की जय” कहना पसंद करेंगे. फिर, केंद्र सरकार के ताकतवर मंत्रियों ने अच्छे राजकाज के साथ मिलने वाली आजादी की बात की और अर्थव्यवस्था तथा बुनियादी ढांचे के लिए आगे के रास्ते पर रौशनी डाली.

कॉनक्लेव में आजादी की जितनी बातें कही गईं, उतना ही आजादी के अभाव का मुद्दा भी गूंजा. यहां आतंकियों की पकड़ से बच निकले एक पत्रकार और आतंक-विरोधी विशेषज्ञ ने बताया कि आइएसआइएस किस खौफ का नाम है और उसके दहशतगर्द उन तमाम चीजों को किस हद तक कुचल सकते हैं जिन्हें हम अपना मानकर चलते हैं-यानी अपनी मनमर्जी से प्यार करने, जीने और सीखने की आजादी. फिर, गैर-कानूनी हथियार रखने के जुर्म में सजा काटकर आए संजय दत्त ने यरवदा जेल से छूटने के बाद पहली बार कॉनक्लेव के श्रोताओं को बताया कि “आजादी एक प्रार्थना है और मुझे यह तजुर्बा हो चुका है कि आजाद न होना कैसा होता है.” कैंपसों में उथलपुथल पर एक सत्र में छात्र नेताओं ने बताया कि क्यों भारत का विचार देशद्रोही और देशभक्ति के दोहरे खांचों में फिट नहीं हो सकता.

हरेक को यह बताने का मौका मिला कि उसके लिए भारत के क्या मायने हैं. तीखे सवाल-जवाब वाले एक सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने शाखाओं में महिलाओं की भूमिका से लेकर समलैंगिकता के व्यक्तिगत पसंद होने तक कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बात कही. भारत और पाकिस्तान के युवा इतिहासकारों ने बताया कि किस तरह विभाजन के इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के जरिए स्कूलों में शुरुआत से ही श्पराए्य का विचार दिमागों में बैठा दिया जाता है. कॉमेडियन वरुण ग्रोवर ने शानदार एकालाप में कहा कि आज के भारत में जो कुछ चल रहा है, उसके मुकाबले व्यंग्य कहीं नहीं है-चाहे वह दादरी कांड में मांस के टुकड़े का पोस्टमॉर्टम हो या टीवी स्टुडियो में एसएमएस से मतदान हो या यह बहस कि भारत को पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए या नहीं.

फिर भी यहां आने वाले कल के लिए उम्मीद दिखाई दी. वह भविष्य जहां जज्बा स्कूल में सिखाया जा सके, जैसा कि ऊंचे तारों पर करतब दिखाने वाले कलाकार फिलिप पेटिट ने कहा. वह भविष्य, जहां वृद्धि एक सीध में होने की बजाए प्रतिनिधित्व के अनुपात में हो, जैसा कि भविष्यवादी स्टीफन हाइटफोर्स ने कहा. वह भविष्य जहां, जरा विज्ञानी बिल एंड्रयूज के लफ्जों में, आप सेहतमंद जिंदगी जीकर बुढ़ापे का इलाज कर सकें.

दो दिनों के आयोजन के आखिर में #इंडियाटुमॉरो के लिए पांच लघु फिल्मों की शृंखला के शुभारंभ का उत्सव मनाया गया, जो देश के बेहतरीन फिल्मकारों ने सबसे मौजू विषयों पर बनाई थीं. इसके खत्म होने पर सेंट पीटर्स स्क्वेयर के सिस्टाइन चौपल जैसे कोई सफेद धुआं नहीं उठ रहा था और बेशक इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2016 कार्डिनलों का समागम भी नहीं था, लेकिन इसमें भी शक नहीं कि यह कामयाब रहा.

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