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जानें बारूद के ढेर पर क्यों बैठा है असम?

राज्य में सक्रिय कई विरोधी उग्रवादी गुटों ने 76 आदिवासियों के कत्लेआम की घटना को दिया अंजाम. इसके साथ ही 2014 के उत्तरार्द्ध में असम में 152 लोगों की हत्या हुई, जो पूर्वोत्तर में सबसे अधिक है. इसके साथ ही राज्य में हिंसा और जवाबी हिंसा के दौर के शुरु होने की आशंका बढ़ गई है.

अपडेटेड 5 जनवरी , 2015
असम के चिरांग जिले में द्विमुगुरी गांव के रुनीखाता गल्र्स हाइस्कूल में 20 अगस्त को दसवीं कक्षा की छात्रा 16 वर्षीया प्रिया बसुमातारी को नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड-सोंगबिजित गुट (एनडीएफबी-एस) के उग्रवादियों ने उसके मां-बाप और पूरे गांव के सामने पीट-पीट कर मार डाला. उनका कहना था कि वह पुलिस की मुखबिर है.

यह घटना शाम लगभग साढ़े चार बजे की है, लेकिन उसकी हत्या से ही उग्रवादियों को संतोष नहीं मिला. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर टीवी कैमरों के सामने मृत शरीर में गोली मारी.

चार महीने बाद, लोग जब क्रिसमस की तैयारी में जुटे थे, एनडीएफबी उग्रवादियों ने फिर हमला किया और 23 दिसंबर को सोनितपुर और कोकराझार जिले में पांच जगहों पर 21 बच्चों सहित 76 आदिवासियों को गोलियों से भून डाला. मारे गए लगभग सभी संथाल ईसाई थे और एनडीएफबी के उग्रवादी भी ईसाई थे. इसी आधार पर अधिकारियों का दावा है कि यह सांप्रदायिक खून-खराबा नहीं था.

असम पुलिस के मुताबिक, ब्रह्मपुत्र के उत्तर के इलाकों का अलग संप्रभु बोडोलैंड बनाने के कथित उद्देश्य के लिए 1986 में गठित एनडीएफबी मई और दिसंबर 2014 में नरसंहार की दो घटनाओं में कम-से-कम 120 लोगों को मार डाला. मृतकों में 46 नाबालिग थे, जिनमें तीन महीने की आयु के शिशु भी थे, जिन्हें उनकी माताओं की गोद में ही गोली से उड़ा दिया गया था.

पुलिस के मुताबिक, 2014 के उत्तरार्द्ध में असम में 152 लोगों की हत्या हुई, जो पूर्वोत्तर में सबसे अधिक है. खुफिया ब्यूरो के तत्कालीन प्रमुख सैयद आसिफ इब्राहिम ने नवंबर में गुवाहाटी में खुलासा किया था कि 85 फीसदी हत्याओं के लिए एनडीएफबी-एस जिम्मेदार है. बोडोलैंड क्षेत्रीय स्वायत्त जिलों (बीटीएडी) में, जहां एनडीएफबी का असर सबसे अधिक है, पिछले पांच वर्षों में कोई 1,000 लोग मारे गए और 1,300 से अधिक लोगों का अपहरण हुआ.

पुलिस पांच वर्षों में 700 हथियार बरामद कर चुकी है, लेकिन माना जाता है कि राज्य में उग्रवादियों के पास मौजूद हथियारों का यह मात्र 5 प्रतिशत है. असम पुलिस और सुरक्षा बलों ने 2014 में 160 अवैध हथियार बरामद किए, जिनमें 90 प्रतिशत बीटीएडी में बरामद किए गए हैं. लेकिन असम पुलिस की विशेष शाखा के एक अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया कि राज्य में एनडीएफबी-एस के सिर्फ 120 सशस्त्र सदस्य हैं.

असम पिछले वर्षों में—गुटीय, सांप्रदायिक, अंतर-आदिवासी, आदिवासी बनाम गैर आदिवासी—सभी प्रकार की हिंसा का उफान देख चुका है. आशंका यह है कि नरसंहारों का यह सिलसिला तेज ही होगा. निकट भविष्य में हालात बदतर हो सकते है. राज्य को यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के नए सिरे से उत्पन्न खतरे से जूझना होगा, जो 1979 में बने सबसे पुराने उग्रवादी संगठनों में एक है.

खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक, उल्फा का परेश बरुआ गुट संप्रभु असम की अपनी मांग से रत्ती भर भी नहीं हिला है और वह राज्य में हिंदीभाषी लोगों तथा बीजेपी के कुछ शीर्ष नेताओं पर हमले करने की योजना बना रहा है. बरुआ पहले ही 23 दिसंबर के नरसंहार के लिए एनडीएफबी-एस का समर्थन यह कहकर कर चुका है कि ऐसी हत्याएं एक 'बड़े युद्ध’ की रणनीति का हिस्सा होती हैं.

लेकिन इस युद्ध में एनडीएफबी और उल्फा जैसे गुटों को लगभग अनपेक्षित शत्रु—माओवादियों—से मुकाबला करना पड़ सकता है. केंद्रीय गृह मंत्रालय को आशंका है कि 23 दिसंबर के नरसंहार के बाद माओवादी चाय बागानों में काम कर रहे आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की कोशिश करेंगे. असम में पचास लाख से अधिक आदिवासी रहते हैं, जिन्हें अंग्रेज अपने चाय बागानों में काम करने के लिए मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार से लाए थे. विशेष शाखा के एक अधिकारी कहते हैं, ''हाल के नरसंहार के बाद आदिवासी लोग अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हो जाएंगे. ऐसे में बहुत संभव है कि चाय बागान मजदूर बोडो लोगों से अपनी सुरक्षा के लिए माओवादियों की ओर झुकें.” असल में मध्य भारत के बड़े भूभाग में सक्रिय माओवादियों के असर से असम अछूता नहीं है. पिछले कुछेक वर्षों में ही राज्य में 70 माओवादी गिरफ्तार किए गए. इनमें सीपीआइ (माओवादी) के पोलितब्यूरो और केंद्रीय समिति के सदस्य अनकूलचंद्र नस्कर और अक्लंत राभा भी हैं.

हिंसा के खेल में एक पक्ष मुस्लिम आतंकवादी समूहों, खासकर बांग्लादेश-आधारित जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) भी है. आशंका है कि वह 2014 में मुसलमानों के खिलाफ हुई हिंसा का बदला लेने के लिए कभी भी हमला कर सकता है. 2 अक्तूबर को पश्चिम बंगाल के बर्दवान शहर के एक घर में हुए विस्फोट की जांच करते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) जिस नतीजे पर पहुंची है, वह ठीक यही है. एनआइए सूत्रों के मुताबिक, जेएमबी ने 40-50 बोडो नेताओं की हिट लिस्ट तैयार की है.

ऐसा ही विवादास्पद मुद्दा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का है. सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर को एनआरसी को अद्यतन करने का रास्ता साफ कर दिया और इस प्रक्रिया को जनवरी 2016 तक पूरा करने का आदेश दिया. यह मुद्दा अतीत में भी विवाद का विषय रहा है, क्योंकि इसका उद्देश्य अवैध घुसपैठियों को चिन्हित करना है. कई दशकों से राज्य में बसे मुसलमानों को लगता है कि यह उन्हें निशाना बनाने का एक बहाना है. एनआरसी को अद्यतन करने का पायलट प्रोजेक्ट 2010 में तब रोकना पड़ा था, जब ऑल असम माइनॉरिटीज स्टूडेंट्स यूनियन ने बरपेटा जिले में हिंसा शुरू कर दी थी.

हालांकि राज्य के आयुक्त तथा (राजनैतिक व गृह) सचिव प्रतीक हजेला का इरादा एनआरसी प्रक्रिया को 'उसके तार्किक निष्कर्ष’ पर ले जाने का है. इंडिया टुडे से उन्होंने कहा, ''यह ध्यान रखा गया है कि भारतीय नागरिकों को एनआरसी से बाहर न कर दिया जाए.” लेकिन गुवाहाटी के लेखक-पत्रकार दिलीप चंदन को इस पर संदेह है. वे कहते हैं, ''राजनैतिक संगठनों और दबाव समूहों ने तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुप्पी साध रखी है, फिर भी यह आसानी से चुनाव के पहले गर्मागर्म मुद्दा बन सकता है. आखिर 16 जनवरी, 2016 की अंतिम तिथि विधानसभा चुनाव से बस कुछ ही महीने पहले पड़ रही है.”

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हिंसा की ताजा घटनाओं के बाद एनडीएफबी-एस के खिलाफ कठोर रुख अपनाया है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस गुट के साथ किसी भी तरह की बातचीत से इनकार किया है. लेकिन खबरें ये भी हैं कि सरकार एनडीएफबी के दो अन्य गुटों के साथ समझौते के कगार पर है. इसमें एक गुट केंद्र सरकार के साथ वार्ता के पक्ष में है और दूसरे का नेतृत्व रंजन दाइमारी के पास है, जो 2012 में बांग्लादेश में गिरफ्तार किए जाने के बाद अब गुवाहाटी जेल में है. जानकारों का कहना है कि इससे सोंगबिजित गुट ताकत दिखाने को उतावला हो उठा है.

नरसंहार की ताजा घटना के बाद राजनैतिक आरोपों-प्रत्यारोपों का खुला दौर चल पड़ा है. असम गण परिषद और बीजेपी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी नेताओं के एनडीएफबी-एस के साथ संबंध हैं. मुख्यमंत्री गोगोई कहते हैं, ''अगर मैं मुंह खोल दूं, तो उनके लिए भारी मुसीबत खड़ी हो जाएगी.” असम कांग्रेस के प्रमुख अंजन दत्ता का दावा है कि तेजपुर से बीजेपी उम्मीदवार ने कैमरे के सामने कहा था कि आम चुनाव से पहले सोनितपुर के बिस्वनाथ चरियाली में हुई मोदी की रैली के बाद उसे एनडीएफबी-एस का समर्थन प्राप्त है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने इंडिया टुडे से कहा कि आरएसएस के कार्यकर्ता जिले में सक्रिय हैं और वे एनडीएफबी और संथालों, दोनों को एक दूसरे के खिलाफ भड़का रहे हैं. उन्होंने कहा, ''यह दोनों को समाप्त करने की बीजेपी-आरएसएस की रणनीति है, क्योंकि वे ईसाई हैं.”

इसके जवाब में असम बीजेपी के अध्यक्ष सिद्धार्थ भट्टाचार्य कहते हैं कि उनकी पार्टी ऐसी कोई रणनीति नहीं बनाती. प्रदेश बीजेपी फिलहाल विवादों को और तीखा नहीं होने देने का प्रयास कर रही है. पार्टी के नेता प्रवीण तोगडिय़ा और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेताओं की यात्राओं को लेकर भी चौकन्ने हैं, क्योंकि इस बहु-जातीय राज्य में सांप्रदायिक टिप्पणियां उलटी भी पड़ सकती हैं. वास्तव में, बांग्लादेश के साथ किए गए भूमि समझौते के बाद से बीजेपी अवैध घुसपैठियों के खिलाफ पूरी ताकत से सामने आने में कठिनाई महसूस कर रही है, क्योंकि कई लोग इस समझौते को मोदी सरकार का यू-टर्न मान रहे हैं. एक बीजेपी नेता कहते हैं, ''दो महीने पहले हम सूपड़ा साफ कर देने की स्थिति में थे. लेकिन अगर विधानसभा चुनाव आज हो जाएं, तो हमारी स्थिति जम्मू-कश्मीर जैसी होगी.”

हालांकि केंद्र इस क्षेत्र में उग्रवाद से निबटने की नई नीति तैयार कर रहा है. फरवरी 2015 तक इसके लागू होने की संभावना है. फिलहाल तो राज्य में वही नीति मायने रखती है, जो दर्जनों प्रिया बसुमातारियों के जीवन की रक्षा करे, जो हिंसा के इस दौर में बलि का बकरा बनती हैं.
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