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मजबूत इरादों वाली मोदी सरकार लेने लगी आकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रिपरिषद का गठन कर जोरदार शुरुआत की लेकिन उन्हें सहयोगियों में उत्साह बनाए रखना होगा. उनकी मंत्रिपरिषद में 82 फीसदी ग्रेजुएट या उससे ऊपर हैं और 29 फीसदी का आपराधिक रिकॉर्ड है. मोदी ने प्रमुख चुनाव प्रचारक और पूरी तरह वफादार लोगों को मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाकर उन्हें सम्मानित किया है. क्या वे अच्छे दिन ला पाएंगे?

अपडेटेड 9 जून , 2014
नरेंद्र मोदी ने जिस दिन साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्यभार संभाला उस दिन जवाहरलाल नेहरू की 50वीं पुण्यतिथि भी थी. शार्क जैसी काली बख्तरबंद 7 सीरीज बीएमडब्ल्यू के काफिले में और टैंक को बीच में ही रोक देने लायक आग उगलने में सक्षम एसपीजी अंगरक्षकों के साये में प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचने के तुरंत बाद मोदी ने भारत के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे नेहरू को ट्विटर पर श्रद्धांजलि दी.

उसके बाद सार्क के सभी सात देशों और मॉरिशस के राष्ट्राध्यक्षों या प्रतिनिधियों के साथ एक के बाद एक मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. इनमें मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री की गद्दी तक पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ अहम शिखर वार्ता शामिल थी. उसके बाद मोदी ने अपने मंत्रिमंडल की पहली बैठक की अध्यक्षता की, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी से मिलने जाने का समय निकाला और अपने प्रमुख अधिकारियों के साथ बैठक की. रायसीना की पहाडिय़ों पर जब सूर्यास्त हो रहा था तब तक मोदी ने एक दिन में इतना सब कर डाला जितना करने में औरों को महीने लग जाते. इस तरह मोदी ने चुपचाप प्रधानमंत्री कार्यालय का वर्चस्व स्थापित कर दिया. यह वही कार्यालय है जिसने यूपीए के एक दशक के कार्यकाल में न सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा गंवाई, बल्कि जिसके प्रमुख अधिकारी सीबीआइ जांच के दायरे में भी आ गए.

मोदी ने जिस तूफानी रफ्तार से शुरुआत की वह जारी रही. दूसरे दिन एक अध्यादेश के जरिए 1967 बैच के सेवानिवृत आइएएस अधिकारी नृपेंद्र मिश्र की मोदी के प्रधान सचिव के पद पर नियुक्ति का रास्ता साफ हुआ. अध्यादेश से वह धारा ही बदल दी गई जो उन्हें फिर से केंद्र सरकार की सेवा करने से रोक रही थी.

तीसरे दिन, गुजरात भवन की दूसरी मंजिल के अपने आवास में सुबह छह बजे नींद से उठकर मोदी ने एक घंटा योग और प्राणायाम किया. उन्होंने अपने मंत्रियों को 100 दिन के लक्ष्य तय करने का निर्देश दिया. उन्होंने एनडीए सरकार के लिए जो 10 प्राथमिकताएं तय की हैं उनमें कम-से-कम तीन अफसरशाही के बारे में है. उन्होंने साफ कर दिया है कि वे अपनी सरकार में जबरदस्त सफाई करने वाले हैं. उनका एजेंडा अफसरशाही में विश्वास पैदा करने, उन्हें काम करने की आजादी देने और लीक से हटकर सोचने को प्रोत्साहित करने पर बल देना है.

मोदी सरकारमोदी ने संकेत दे दिया है कि जैसे काम शुरू किया है वैसे ही करते रहेंगे. अपने मंत्रिपरिषद के सदस्यों की 27 मई को जारी आधिकारिक सूची में उन्होंने अपने विभागों के नामों के साथ एक पंक्ति यह भी जोड़ी थी, “सभी महत्वपूर्ण नीति संबंधी विषय.” अस्पष्ट शब्दों मं7 लिखी गई इस पंक्ति से एकदम स्पष्ट हो जाता है कि एक-से-एक वजनदार नेताओं की कैबिनेट में बॉस कौन है—विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, भारत के पेंटागन यानी सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी में इंदिरा गांधी के बाद पहली महिला, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त, कॉर्पोरेट अफेयर्स और रक्षा जैसे तीन अहम मंत्रालयों के प्रभारी अरुण जेटली. इन सब ने 42 अन्य मंत्रियों के साथ एक भव्य सार्वजनिक समारोह में शपथ ली. यह समारोह अमेरिकी शैली के शपथ समारोह के बहुत करीब था.

मोदी और उनके मंत्री, राजधानी के नए शासक, फुटबॉल के मैदान जितने बड़े राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में 5,000 से ज्यादा आमंत्रित अतिथियों के सामने विराजमान थे. सार्क देशों के शासनाध्यक्ष, अरबपति, सरकारी अफसर, नेता, राजनयिक और फिल्मी सितारे सब दिल्ली की झुलसा देने वाली गर्मी में निमंत्रणपत्र से पंखा झुला रहे थे. पूरे माहौल में यह अपेक्षाएं मुखर थीं कि मोदी का तंत्र सुशासन और अर्थव्यवस्था को फिर पंख लगाने के चुनावी वादे पूरे करेगा. समारोह में आमंत्रित मुंबई के मशहूर रियल एस्टेट कारोबारी निरंजन हीरानंदानी ने वहां मौजूद एक शख्स को बताया, “तीन दिन पहले दुबई से एक एनआरआइ ने फोन करके पूछा था कि वह तुरंत 10 करोड़ डॉलर यानी 600 करोड़ रु. कहां निवेश कर सकता है.”
मोदी के दो स्तंभ
परिवर्तन लाने वाला मंत्रिमंडल
मोदी ने राष्ट्रपति चुनाव की शैली में प्रचार किया और अब सब उम्मीद कर रहे हैं कि वे राष्ट्रपति शैली की सरकार चलाएंगे. इस अपेक्षा को पूरा करने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन 10 दिन तक माथापच्ची के बाद किया गया. दिल्ली के नए सत्ता त्रिकोण—झ्ंडेवालान में आरएसएस कार्यालय केशव कुंज; अशोक रोड पर बीजेपी मुख्यालय और दिल्ली में गुजरात भवन में जबरदस्त चर्चाएं हुईं. मोदी मई के अंत तक थोड़ी नई साज-सज्जा के बाद 7 रेसकोर्स रोड स्थित प्रधानमंत्री आवास में जाने वाले हैं. मोदी की धारदार सरकार की उम्मीदें तो पूरी हुईं लेकिन सिर्फ एक हद तक.

यूपीए-2 में 29 कैबिनेट मंत्री थे. टीम मोदी में सिर्फ 23 मंत्री हैं. कुल 45 मंत्रियों की इस टीम का आकार 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट के एकदम बराबर है. यूपीए के कार्यकाल में 68 मंत्री 51 मंत्रालय चला रहे थे. मोदी सरकार में 45 मंत्री 52 विभाग चलाएंगे. दो नए मंत्रालय गठित किए गए हैं—असम के सर्वानंद सोनवाल की अध्यक्षता में कौशल विकास, उद्यमशीलता मंत्रालय और उमा भारती के नेतृत्व में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय. मोदी ने मंत्रिपरिषद के लिए 75 वर्ष की जो आयु सीमा तय की थी उसके शिकार लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वयोवृद्ध नेता हुए.
मोदी के सुपर सिक्स
लेकिन मोदी की मशीन अभी तैयार हो रही है और उसमें से रक्षा मंत्री का अहम पुर्जा अभी गायब है. वित्त मंत्री अरुण जेटली संकेत दे चुके हैं कि वे अस्थायी तौर पर रक्षा मंत्री का पद संभाल रहे हैं जब तक कोई दूसरी व्यवस्था नहीं हो जाती. प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार जेटली के कंधों पर अपेक्षाओं का बोझ बढऩे से पहले हो जाने का अनुमान है. उन्हें जुलाई के अंत में सरकार का पहला बजट पेश करना है. मंत्रालयों में तकनीकी विशेषज्ञों को शामिल करने का जो वादा किया गया था उसके भी कोई संकेत नहीं मिले. कैबिनेट से अरुण शौरी का नाम गायब होने पर भी हैरत है. वे वाजपेयी सरकार में विनिवेश, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रह चुके हैं.

फिर भी कहना पड़ेगा कि मोदी की कैबिनेट ने संघ के नुमाइंदों, चुनाव आसन्न राज्यों के क्षत्रपों और सहयोगियों के प्रतिनिधियों को जगह देते हुए भी “अधिकतम प्रशासन, न्यूनतम सरकार्य” का वादा पूरा किया है. मंत्रिमंडल का नया स्वरूप यूपीए-2 से बहुत अलग है. 17 संबद्ध मंत्रालयों को सात अलग-अलग समूहों में मिला दिया गया है. वजनदार मंत्रालयों में बड़ा बदलाव हुआ है. प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय को वापस सुषमा स्वराज के विदेश मंत्रालय में विलीन कर दिया गया है. यूपीए-2 में सचिन पायलट का कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्रालय अब वित्त मंत्रालय का हिस्सा है.
मोदी
मोदी की कार्यसूची में एक प्रबल क्षेत्र बुनियादी ढांचे का है, उसमें सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी तथा बंदरगाहों को एक मंत्रालय में मिला दिया गया है. इसी तरह ऊर्जा, कोयला, नवीन तथा अक्षय ऊर्जा को एक मंत्रालय में जोड़ दिया गया है. पेट्रोलियम अभी अलग मंत्रालय है. शहरी विकास, आवास और गरीबी उन्मूलन के परस्पर जुड़े मंत्रालय एक प्रभार में सौंपे गए हैं जबकि ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पेयजल और स्वच्छता को एक साथ मिला दिया गया है.

मंत्रालयों के ये समूह यूपीए काल के डायनासोर अधिकार प्राप्त मंत्री समूहों का नामो-निशान मिटा देंगे. यूपीए काल में मंत्रालयों के बीच तालमेल बढ़ाने के लिए गठित इन 82 समूहों ने वास्तव में निर्णय प्रक्रिया में एक और परत जोड़ दी थी. पूर्व कैबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर के मुताबिक, “अगर एक ही मंत्री कई विभागों का प्रभारी होगा तो फैसले निश्चित ही तेजी के साथ लिए जाएंगे.”

मोदी का ‘न्यूनतम सरकार’ का नारा व्यवस्था में एक बड़े परिवर्तन का अंग है. प्रमुख सरकारी अधिकारियों का कहना है कि उनकी कोशिशों को अलग-अलग नहीं बल्कि प्रशासन तंत्र में आमूल-चूल परिवर्तन का अंग मानकर देखा जाना चाहिए. मंत्रालयों को जोडऩा अभी पहला कदम है. चंद्रशेखर के अनुसार, इसके साथ ही विकेंद्रीकरण और अधिकार सौंपने की एक मजबूत व्यवस्था अपनाई जाएगी ताकि एक मंत्री पर काम का सारा बोझ न पड़े. इससे सरकारी अधिकारियों को मंत्रालय चलाने के लिए अधिक जिम्मेदारी भी मिलेगी. यह सरकारी अधिकारियों पर केंद्रित मोदी की प्रशासन शैली के अनुकूल है. गुजरात में सब जानते थे कि वे अपने मंत्रियों को अपना अधिकारी चुनने की इजाजत नहीं देते थे. उन्हें मेहनती, बेहद ईमानदार और चुपचाप काम करने वाले अधिकारी हमेशा पसंद रहे हैं. एक सरकारी अधिकारी ने बताया, “अगर उन्हें लगता है कि कोई संयुक्त सचिव किसी सचिव से ज्यादा चुस्त है तो वे सीधे जूनियर अधिकारी से काम करा लेंगे.”

नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के गलियारों में फौरन फैसले लेने की गूंज सुनाई देने लगी है. मंत्रिमंडल का पहला फैसला विदेशों में जमा भारत का काला धन वापस लाने के लिए विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने का था जिसके मुखिया सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एम.बी. शाह हैं. अमेरिका के एक संगठन ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी ने 2010 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया था कि भारत के लोगों ने 500 अरब डॉलर की रकम विदेशों में छिपा रखी है.

विभिन्न मंत्रालयों के सरकारी अफसर मोदी के कार्यालय के बाहर 20 स्लाइड का पावर पॉइंट प्रजेंटेशन लेकर खड़े होने लगे हैं जिनमें जल्दी नतीजा देने वाले ऐसे फैसलों की सूची है जिन्हें सरकार पूरा कर सकती है और यूपीए सरकार के शासन के पतन की वजह बनी सुस्ती को मिटा सकती है.

आगे की राह
सरकार को चलाने वाला मोदी का पीएमओ हमेशा ‘कार्य प्रगति पर है’ वाले मोड में है. पीएमओ के प्रमुख के रूप में मिश्र की नियुक्ति तो पहला मामला है. दूसरी सबसे अहम नियुक्ति देश के सबसे वरिष्ठ अफसरशाह, नए कैबिनेट सचिव की होगी, जो कैबिनेट सचिवालय के मुखिया होते हैं, कैबिनेट के प्रमुख फैसलों पर अमल करते हैं और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं. मौजूदा कैबिनेट सचिव अजित सेठ 14 जून को रिटायर हो रहे हैं. उनकी जगह लेने की दौड़ में सबसे आगे बिजली सचिव पी.के. सिन्हा और पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्रा हैं. सिन्हा 1977 बैच के मध्य प्रदेश काडर के अधिकारी हैं और चंद्रा 1978 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के अफसर हैं.

सवाल यह है कि क्या मोदी गांधीनगर में सरकार चलाने की अपनी शैली को ज्यों की त्यों नई दिल्ली में लागू कर पाएंगे? पूर्व केंद्रीय सचिव ई.ए.एस. सरमा बताते हैं कि कारगर सरकार चलाने के लिए एक तरफ कैबिनेट सचिव और पीएमओ के बीच जिम्मेदारियों के स्पष्ट विभाजन और दूसरी ओर सरकार में अधिकारों के वितरण की जरूरत होगी. वे कहते हैं, “कम महत्व के अनेक मामलों को वित्त मंत्रालय के हवाले करने की जरूरत है. वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधियों के पास प्रस्तावों को मंजूर करने का अधिकार दिया जा सकता है, जो विभिन्न मंत्रालयों में वित्त सलाहकार होते हैं.”
मोदी मंत्रिपरिषद
मोदी ने अपने जूनियर मंत्रियों पर काम का बोझ बढ़ा दिया है. स्वतंत्र प्रभार वाले हर मंत्री को औसतन 2.8 विभाग दिए गए हैं. यूपीए-2 में यह औसत 1.3 का था. स्वतंत्र प्रभार वाले 10 मंत्री हैं. पूर्व थल सेना प्रमुख वी.के. सिंह जैसे कुछ मंत्रियों को तीन-तीन विभाग दिए गए हैं. जनरल सिंह के पास पूर्वोत्तर मामलों के विभाग का स्वतंत्र प्रभार है और वे प्रवासी भारतीय मामलों तथा विदेश मामलों के मंत्रालय में सुषमा स्वराज के जूनियर मंत्री हैं.

मोदी ने मंत्रालयों के बीच तालमेल भी किया है. मसलन, पीयूष गोयल को तीन मंत्रालयों बिजली, कोयला और अक्षय ऊर्जा का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है. यूपीए राज में ये तीनों मंत्रालय तीन वजनदार नेताओं ज्योतिरादित्य सिंधिया, श्रीप्रकाश जायसवाल और फारूक अब्दुल्ला के जिम्मे थे. इसी तरह गोपीनाथ मुंडे ग्रामीण विकास, पंचायती राज और पेयजल तथा साफ-सफाई विभागों के कैबिनेट मंत्री हैं. ये मंत्रालय यूपीए-2 में जयराम रमेश, सलमान खुर्शीद और भरत सिंह सोलंकी संभाल चुके हैं.

इसके पहले और हाल के इतिहास में संबंधित मंत्रालयों को जोडऩे की कोशिशें सिर्फ ताकतवर प्रधानमंत्री ही कर सके हैं. मसलन, 1981 में इंदिरा गांधी के राज में कोयला, बिजली और पेट्रोलियम मंत्रालयों को जोड़कर ऊर्जा का सुपर मंत्रालय बनाया गया और उसे एक कैबिनेट मंत्री के तहत हर विभाग के लिए राज्यमंत्री बनाए गए. हालांकि पूर्व केंद्रीय नियामक आयोग के अध्यक्ष प्रमोद देव के मुताबिक, विभिन्न विभागों के बीच समन्वय सिर्फ मंत्री स्तर पर ही होता है जबकि विभिन्न विभागों के अफसर अपने क्षेत्र को बचाने की कोशिश करते हैं.

देव बताते हैं, “अब कोयला और बिजली के मंत्रालयों को एक करना अच्छा कदम है क्योंकि 80 फीसदी से ज्यादा कोयला बिजली उत्पादन में ही लगता है. इसी छतरी में पेट्रोलियम को लाना भी महत्वपूर्ण है लेकिन इसके लिए उच्च स्तर के तालमेल की जरूरत होगी. 2006 में ही सरकार योजना आयोग की पेश की गई एकीकृत ऊर्जा नीति को मंजूरी दे चुकी है लेकिन इस पर अमल के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए.”

इसी तरह राजीव गांधी सरकार ने रेलवे, जहाजरानी और नागरिक उड्डयन विभागों का एक संयुक्त परिवहन मंत्रालय बनाया था. उनकी सरकार ने ही शिक्षा, संस्कृति और महिला और बाल विकास विभागों को मिलाकर पहली बार मानव संसाधन मंत्रालय बनाया. बाद में नागरिक उड्डयन को अलग कर दिया गया जबकि नरसिंह राव की सरकार में भूतल परिवहन और जहाजरानी को जोड़ दिया गया.

दो परिवहन मंत्रालयों को जोडऩे की पहल नई नहीं है. हाल ही में इसी साल पहली मार्च को राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति कमेटी ने भारत परिवहन रिपोर्ट पेश की, जिसमें रेलवे और नागरिक उड्डयन समेत सभी परिवहन मंत्रालयों को जोड़कर एक मंत्रालय बनाने की वकालत की गई है. चीन में यह पिछले साल किया गया.

मोदी मंत्रिमंडल में संतुलन के अभाव की एक वजह यह है कि उन्हें अपनी पार्टी के देशव्यापी असर को दिखाने के लिए क्षेत्रीय, जाति और समुदाय के प्रतिनिधित्व का ख्याल रखना था. बीजेपी को 71 सीटों का तोहफा देने वाले उत्तर प्रदेश को आठ मंत्रियों की सौगात दी गई. इनमें चार कैबिनेट मंत्री, दो राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार और दो राज्यमंत्री हैं. कैबिनेट का एकमात्र मुस्लिम चेहरा 74 वर्षीय नजमा हेपतुल्ला को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उत्तर प्रदेश से पार्टी के ब्राह्मण चेहरे 73 वर्षीय कलराज मिश्र को कुटीर, लघु एवं मझोले उद्योगों के मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से जाट सांसद संजीव बालियान पर इलाके में सितंबर, 2013 में दंगों में भूमिका निभाने का आरोप था. उन्हें बीजेपी के उत्तर प्रदेश प्रभारी अमित शाह की बदौलत कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री बनाया गया.

कुछ मामलों में मोदी ने नेता की उपयोगिता, पार्टी और उनके प्रचार अभियान में उसकी भूमिका को भी ध्यान में रखा. उन्होंने उन नेताओं को चुना जो उस समय उनके नजरिए और उन्हें समर्थन देते रहे हैं जब पार्टी के दूसरे नेता उनकी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे. उन्हीं कार्यकर्ताओं को तरजीह दी जो उनके मिशन 272+ में सीधे उनसे जुड़े थे. बिहार बीजेपी के एक नेता कहते हैं, “वे वफादार और अवसरवादी में फर्क करना जानते हैं.” इसी से पता चलता है कि मोदी विरोधियों को पाकिस्तान चले जाने को कहने वाले गिरिराज सिंह मंत्रिमंडल में नहीं हैं जबकि दशक भर पहले 2002 के गुजरात दंगों के लिए मोदी की आलोचना कर के बाद में उनकी मजबूत समर्थक बनीं स्मृति ईरानी सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री हैं.

इतना ही नहीं, उनको मंत्री बनाए जाने से आरएसएस में कई नेता नाराज भी हुए. एक आरएसएस नेता कहते हैं, “बोलने में महारत और सामथ्र बौद्धिकता, अनुभव और वैचारिक प्रतिबद्धता की जगह तो नहीं ले सकते.” ईरानी के दो अलग-अलग चुनावी हलफनामे भी सरकार के लिए पहली बड़ी झेंप साबित हुए—2004 और 2014 के हलफनामों में उन्होंने दो अलग-अलग ग्रेजुएट कोर्स में पढ़ाई करने का दावा किया है.

हालांकि दूसरे नेताओं का कहना है कि उन्हें मंत्रिमंडल से निराशा हुई है. पद की दौड़ से बाहर एक वरिष्ठ बीजेपी नेता कहते हैं, “प्रधानमंत्री ने अपने कंधों पर भारी बोझ डाल लिया है. पांच साल में नतीजे देने वाला तो यह मंत्रिमंडल नहीं हो सकता.” गृह मंत्री राजनाथ सिंह पीएमओ के तहत खुफिया ब्यूरो और राष्ट्रीय जांच एजेंसी को मिलाकर एक नया आंतरिक सुरक्षा विभाग बनाने की पहल को टालने में सफल रहे. राजनाथ ने दलील दी कि इससे गृह मंत्रालय का कद इतना घट जाएगा कि उसे कैबिनेट में नंबर दो कहना बेमानी हो जाएगा.

राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण के दौरान फुटबॉल फैन की तरह ‘मोदी, मोदी’ के नारों और मुस्कुराहटों के पीछे काफी उथल-पुथल और सत्ता का खेल छुपा रहा है. 1990 के दशक में महाराष्ट्र में मंत्री के नाते मुंबई-पुणे हाइवे बनवाने वाले पूर्व पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी ने मोदी को सलाह दी कि रेलवे, बंदरगाह, सड़क और नागरिक उड्डयन को जोड़कर एक सुपर इन्फ्रास्ट्रक्चर मंत्रालय बनाया जाए. लेकिन वे यह जानकर हैरान रह गए कि मोदी ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कथित तौर पर कहा कि एक आदमी को इतनी जिम्मेदारी ठीक नहीं. गडकरी के पास सड़क और बंदरगाह ही रह गए.
मोदी की सत्ता के प्रमुख केंद्र बिंदु
नई टीम, पुराने शकवे
अपेक्षाकृत हल्के नेताओं को मंत्रालय आवंटन से असंतुलित मंत्रिमंडल की बात में शायद दम नजर आता है. इसे लेकर पार्टी के कुछ नेता दबी जुबान में बात भी कर रहे हैं. बीजेपी के एक नेता कहते हैं, “एक दशक से हम सत्ता से बाहर रहे हैं, इस दौरान हमने सिर्फ टेलीविजन पर बोलने वाले प्रवक्ता ही पैदा किए हैं, अनुभवी नेता नहीं.” तीन प्रवक्ताओं रविशंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमन और प्रकाश जावड़ेकर को मंत्री पद मिल गए. इनमें से सिर्फ रविशंकर प्रसाद ही पहले मंत्री रह चुके हैं. कम-से-कम दो मंत्रालयों—कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कोई भी अनुभवी मंत्री नहीं है. बालियान कृषि मंत्रालय में राज्यमंत्री हैं जिसमें कैबिनेट मंत्री राधामोहन सिंह भी पहली बार मंत्री बने हैं. फिर बालियान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री भी हैं और उसमें कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल भी पहली बार केंद्र में मंत्री पद तक पहुंची हैं.

मोदी कैबिनेट में जेटली का असर साफ नजर आता है.  मोदी ने सुषमा स्वराज के करीबी सांसदों को दूर रखा तो जेटली के करीबी प्रमुख मंत्रालय पा गए. पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमन को अहम मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिल गया. गोयल बिजली, कोयला और अक्षय ऊर्जा के मुखिया हैं तो सीतारमन को वाणिज्य और उद्योग का स्वतंत्र प्रभार मिल गया और वे जेटली के वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के विभाग से भी जुड़ी हुई हैं. इसका उन्हें भरपूर फायदा मिल गया है. खास बात यह कि सीतारमन तो अभी सांसद भी नहीं हैं. उनके पहले सुषमा स्वराज से मतभेद रहे हैं, इसका खामियाजा सुषमा स्वराज को ही भुगतना पड़ा. उनके करीबी माने जाने वाले एस.एस. आहलूवालिया और राजीव प्रताप रूडी कई बार सांसद रहने के बावजूद बाहर रखे गए. उन्हें किसी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है. आहलूवालिया ने इंडिया टुडे से कहा, “मंत्रियों को नियुक्त करना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है, मैं अपने क्षेत्र की सेवा करता रहूंगा.”

मोदी ने दिल्ली की जंग जीत ली है. कांग्रेस को साफ करने का उनका अभियान सालभर जारी रहेगा. हिमाचल प्रदेश के पूर्व मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का नाम बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है. वे इस साल बाद में हरियाणा और महाराष्ट्र में अभियान की अगुआई करेंगे. ये राज्य कांग्रेस के असर वाले अंतिम गढ़ ही नहीं हैं, बल्कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के खजाने की जीवनधारा भी हैं. इन राज्यों में बीजेपी की जीत कांग्रेस को केरल, कर्नाटक और कुछ उत्तरी तथा पूर्वोत्तर के राज्यों तक सीमित क्षेत्रीय पार्टी में बदल सकती है. इससे पैदा हुई ऊर्जा बीजेपी को 2019 के आम चुनावों के लिए भारी शह दे देगी. तब के लिए कम-से-कम एक बीजेपी नेता ने नारा तैयार भी कर लिया हैः “फिर एक बार मोदी सरकार.”
    —साथ में जतिन गांधी
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