2009 बैच की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल ने नोएडा के अवैध रेत खनन माफिया से टकराने की ठान ली. गौतमबुद्ध नगर में ग्रेटर नोएडा की 28 वर्षीया एसडीएम ने इस साल फरवरी से जुलाई के बीच नोएडा पुलिस के साथ मिलकर 66 एफआइआर दर्ज कीं, अपने जिले में अवैध खनन से जुड़े 104 लोग गिरफ्तार किए और 81 वाहन जब्त किए. उन्होंने पुलिसवालों के फ्लांइग स्क्वाड बनाए जो रात में 11 बजे से सुबह 4 बजे तक किसी भी समय छापा मारते थे और दुर्गा खुद मौजूद रहती थीं ताकि कहीं कोई गड़बड़ न हो.
उन्हें जानने वाले अधिकारी और कर्मचारी कहते हैं कि इन 6 महीनों में उन्हें गांववालों, खनन माफिया और इस कारोबार से रिश्ते रखने वाले नेताओं से धमकियां मिलीं. वे बेहिचक अपने मकसद में जुटी रहीं जब तक बात सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की सरकार की बर्दाश्त से बाहर नहीं हो गई. 27 जुलाई को आनन-फानन में उन्हें निलंबित कर दिया गया. आरोप यह लगा कि रमजान के दौरान उन्होंने नोएडा के कादलपुर में एक मस्जिद की दीवार तुड़वाकर सांप्रदायिक तनाव भड़काया है. 2 अगस्त को समाजवादी पार्टी के एक नेता नरेंद्र भाटी ने जोर-शोर से दावा किया कि उन्होंने सिर्फ 41 मिनट में दुर्गा शक्ति को निलंबित करा दिया. उनकी इस शेखी का टेप मौजूद है. 6 अगस्त को उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन ने विजेता के अंदाज में निलंबित एसडीएम को झूठी कहा. एक दिन पहले ही सरकार ने उन्हें चार्जशीट दी थी. सबसे बुरी प्रतिक्रिया तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लगी. ऊर्जावान कहलाने वाले युवा मुख्यमंत्री ने 5 अगस्त को दुर्गा शक्ति की तुलना उस बिगड़े हुए बच्चे से की जिसे सुधारने की जरूरत है.
आइएएस दुर्गा शक्ति के निलंबन और रेत माफिया के खिलाफ उनकी दिलेर कार्रवाई की खबर फैलते ही पूरे देश ने एकजुट होकर उनके काम की तारीफ की. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इतनी विचलित हो गईं कि 2 अगस्त को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग की कि दुर्गा के साथ निष्पक्षता से व्यवहार हो. वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कहा कि अगर वे अदालत में गईं तो वे उनका मुकदमा मुफ्त लड़ेंगे. कहते हैं, आम आदमी पार्टी उन्हें सदस्यता देना चाहती है. उत्तर प्रदेश आइएएस एसोसिएशन और सेंट्रल आइएएस एसोसिएशन, दोनों ने राज्य सरकार से निलंबन रद्द करने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाइकोर्ट में दायर दो जनहित याचिकाओं में मांग की गई है कि उन्हें तुरंत बहाल किया जाए. अनेक फेसबुक पन्नों और ट्विटर हैंडल के जरिए उनका नाम भारत के नौजवानों की जबान पर है जो ईमानदार अधिकारी के साथ ऐसे व्यवहार से गुस्से में हैं.
इस सब के बीच दुर्गा ने चुप्पी साध रखी है. वे इस समय लखनऊ में राजस्व बोर्ड में तैनात हैं. समझा जाता है कि वे अपनी ससुराल में रह रही हैं. लेकिन सुर्खियों में आने से पहले दुर्गा कौन थी? उन्हें इतनी मजबूती कहां से मिली कि वे राष्ट्रीय प्रतीक बन गईं.
अफसर बनने तक का सफर
इनमें से कुछ सवालों के जवाब उनकी जिंदगी के अब तक के सफर में मिल सकते हैं. आगरा में जन्म होने के बाद उनका परिवार दिल्ली आ गया जहां लॉरेटो कॉन्वेंट में पढ़ाई हुई. भारतीय सांख्यिकीय सेवा के अधिकारी उनके पिता की नियुक्ति चंडीगढ़ में हो गई जहां से उन्होंने 10वीं और 12वीं पास की. चंडीगढ़ में विवेक हाई में उनके मनपसंद टीचर राजवीर संधू आज भी याद करते हैं कि वह जोशीली लेकिन शांत लड़की थी. भविष्य पर स्पष्ट नजर और साफ मकसद ने उन्हें ऐसा आत्मविश्वास दिया जो इतनी कम उम्र में बहुत कम दिखता है.
दुर्गा आज सिर्फ आइएएस अधिकारी नहीं हैं. वह आदर्श बन गई हैं. 5 अगस्त को विवेक हाई के प्रिंसिपल वी.के. सिंह ने सुबह की प्रार्थना के समय आंखें बंद कर उनके लिए प्रार्थना कर रहे 2,000 बच्चों से कहा कि दुर्गा ऐसी हस्ती हैं जिनसे तुम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए.
लॉरेटो कॉन्वेंट में उनकी सहपाठी रवनीत संधू अब चंडीगढ़ में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट में सीनियर मैनेजर हैं. अपनी दोस्त को याद करते वे हुए कहती हैं कि वे एक मेधावी छात्रा थीं जो हमेशा क्लास में फर्स्ट आती थी. उन्हें याद है कि दुर्गा जब स्कूल में थी तभी उनका भाई गुजर जाने से परिवार बहुत दुखी था. इससे कामयाब होने और परिवार के लिए कुछ अच्छा करने का उनका संकल्प दोगुना हो गया.
10वीं और 12वीं दोनों परीक्षाओं में प्रथम आने के बाद दुर्गा ने दिल्ली में इंदिरा गांधी महिला तकनीकी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग का कोर्स चुना. वहां उनके प्रोफेसर ए.के. महापात्र को याद है कि दुर्गा अनुशासित, बुद्धिमान और सुसंस्कृत छात्रा थीं. महापात्र ने बताया, दुर्गा ने 2003 में ऑटोमेशन इंजीनियरिंग का कोर्स चुना लेकिन बाद में कंप्यूटर साइंस ले लिया. हमें उम्मीद थी कि कैंपस में आई आइटी कंपनी उसे अच्छा प्लेसमेंट देगी. कुछ दिन बाद मैंने सुना कि वह सिविल सर्विसिज में चली गई है.
दुर्गा ने जो करियर चुना उसका उनके पिता के सपने से कोई संबंध रहा होगा. पिता हाल ही में डिफेंस एस्टेट्स के प्रिंसिपल डायरेक्टर पद से रिटायर हुए हैं.
रवनीत ने बताया कि दुर्गा दिन में 15 घंटे से ज्यादा पढ़ती थी उनका मकसद साफ था और उनका परिवार तथा मित्र जानते थे कि वह अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगी. उन्होंने पहली ही बार में परीक्षा पास कर ली और भारतीय राजस्व सेवा में चुन ली गईं. मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में प्रशिक्षण भी शुरू हो गया. दुर्गा ने वहीं से दूसरी बार परीक्षा दी और इस बार 20वां स्थान मिला. उन्हें अपनी मंजिल मिल गईः भारतीय प्रशासनिक सेवा.
मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में उनके बैच के साथी इन घटनाओं को हैरत से देख रहे हैं. उनकी नजर में वह थोड़ी अलग-थलग रहती थीं. एक साथी ने बताया कि ऐसा नहीं था कि उनके दोस्त नहीं थे, लेकिन अधिकतर समय काम करती रहती थीं. इरादे की पक्की थीं.
काम ही पूजा है
ट्रेनिंग के बाद दुर्गा की पहली नियुक्ति मोहाली में हुई लेकिन अपने से 2 साल बड़े 2011 बैच के अधिकारी अभिषेक सिंह के साथ विवाह के बाद वे उत्तर प्रदेश आ गईं. रवनीत ने बताया कि दोनों दिल्ली में आइएएस कोंचिग सेंटर में मिले थे और बहुत दिनों तक अच्छे दोस्त रहे. अभिषेक के पिता रिटायर्ड आइपीएस अधिकारी हैं.
रवनीत पिछले महीने दुर्गा से मिली थीं और उनके साथ रही भी थीं. रवनीत का कहना है कि उनकी दोस्त काम के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं, ‘घर में भी उनके कमरे में फाइलों का अंबार लगा रहता है और रात को सोने से पहले रोजाना फाइलें देखती हैं. हमने कभी उनके काम के बारे में बात नहीं की. इस मामले में वे बहुत प्रोफेशनल हैं. मैंने कभी दखल नहीं दिया पर देखा है कि वे हमेशा बहुत मेहनत से काम करती थीं और हमेशा थकी-थकी रहती थीं.’
किंतु दुर्गा अपने काम के रास्ते में कोई रुकावट नहीं चाहती थीं. जब उन्होंने आदेश दिया कि कादलपुर में मस्जिद की दीवार गिराई जाए तो उनका मकसद सिर्फ नियमों का पालन कराना था. इसी गांव के 50 वर्षीय फतेह मोहम्मद के अनुसार उन्होंने कहा कि वे अपना काम करेंगी. चाहे रातभर वहां बैठना पड़े. लेकिन उन्होंने किसी को बुरा-भला नहीं कहा और न ही कोई बहस की. दिल्ली के वकील एम.एल. शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में याद दिलाया है कि वह तो अदालत के ही आदेश का पालन कर रही थी.
2009 और फिर 2010 में जारी आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि सार्वजनिक स्थलों पर अनधिकृत धार्मिक ढांचों को गिराया जाए.
तन्हा ईमानदारी
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में दुर्गा के स्टाफ और जूनियर्स सब उनकी कड़ी मेहनत और सख्त अनुशासन की बातें करते हैं. एक ने कहा कि हमारी एसडीएम मैडम कड़क हैं और अपनी उम्र के हिसाब से बहुत सख्त हैं. हरेक ईमानदार आइएएस अधिकारी को इतना समर्थन नहीं मिलता. अफसरशाही को राज्य सरकार के सामने घुटने टेकने पर विवश करने की कोशिश में उत्तर प्रदेश में पिछले 18 महीने में करीब 2,000 वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले हुए हैं.
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह का कहना है कि अफसरशाही ने ही दुर्गा की यह हालत की है. उन्होंने कहा, ‘निलंबन के आदेश पर किसी सचिव या संयुक्त सचिव ने ही हस्ताक्षर किए होंगे. यह काम अखिलेश या समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह से मौखिक बातचीत के आधार पर किया गया होगा. उन्हें आंख मूंदकर दस्तखत नहीं करने होते, आरोप लगाने के लिए एक प्रक्रिया है.’ प्रकाश सिंह ने अपने निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसके बाद 2006 का ऐतिहासिक आदेश (प्रकाश सिंह बनाम भारतीय संघ) आया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आइपीएस अधिकारियों के कार्यकाल की सुरक्षा और तबादले की प्रक्रिया के दिशा-निर्देश जारी किए. इस पर अभी तक भी अमल नहीं हुआ है.
उनका कहना है कि अफसरशाही ने अपने हाथ खुद कटवाए हैं, ‘अगर आइएएस ने नेताओं का सामना किया होता तो नेता इतने दुस्साहसी नहीं होते. उन्होंने वर्षों तक उनके सामने घुटने टेके हैं और अब उसकी कीमत चुका रहे हैं.’
नियम से चलने वाली दुर्गा जैसे ईमानदार अधिकारियों के साथ क्या होता है? आइएएस अधिकारी रह चुके टी.आर. रघुनंदन का कहना है कि ईमानदार अधिकारियों के दोस्त कम होते हैं. दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सलाहकार रघुनंदन कहते हैं, ‘ईमानदार अधिकारियों को बचाने का आइएएस का रिकॉर्ड बहुत खराब है. नियुक्ति के मामले में ईमानदारी पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता. लोगों को ऐसा अफसर पसंद है जो रिश्वत लेकर उनका काम करा दे.’ रघुनंदन ने बताया कि आइएएस के हर कैडर में ईमानदार अधिकारी होते होंगे लेकिन अब कुछ न करने वाले ईमानदार हो गए हैं. वे कभी दुर्गा जैसे ईमानदारी से काम करने वालों का साथ नहीं देंगे.
यही त्रासदी है और यही वजह है कि दुर्गा जैसे अधिकारी खुद को अकेला और लाचार पाते हैं. भारत में ईमानदारी से काम करने वालों के हमेशा ताकतवर दुश्मन बन जाते हैं. यादव हुकूमत के लिए दुर्गा ऐसी राजनैतिक वस्तु बन गई हैं जिसे उत्तर प्रदेश की राजनीति के फलते-फूलते सांप्रदायिक बाजार में बेचा जा सकता है. केंद्र सरकार भी शुरू में गुस्सा दिखाने के बाद ऐसे अफसर की हिमायत करने में हिचक रही है जिसने सिर्फ ईमानदारी और कानून की किताब को हथियार बनाकर मुलायम के इलाके में राजनैतिक माफिया को ललकारने की जुर्रत की है.
और उनकी यही हिचक राजनीति और धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने वालों के हौसले बुलंद करती है. दुर्गा खामोश हैं, राजनीति मुखर है. लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, मुख्यमंत्री कानून की बारीकियां सिखा रहे हैं. देश बदलाव चाहता है, लेकिन राजनीति समाज को बांटकर वोट बटोरने की नीति बदलना नहीं चाहती. डर यह है कि कहीं सिर तानकर चलने वाले इक्का-दुक्का अफसर अपने लिए शांत कोना न तलाशने लगें.
-साथ में आशीष मिश्र, असित जॉली और करुणा जॉन