आज जॉब के मामले में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) तेजी से प्रतिष्ठित ब्रांड बनता जा रहा है. अपने प्रोफेशनल वर्क कल्चर की वजह से इसका नाम बिजनेस टुडे की उन 25 सर्वश्रेष्ठ कंपनियों की लिस्ट में आ गया है, जो भारत में जॉब के नजरिए से बेस्ट हैं. डीएमआरसी में पिछले कुछ साल में बड़ी संख्या में भर्तियां हुई हैं क्योंकि देश की राजधानी में इसकी सेवाओं में काफी इजाफा हुआ है. 1995 में रजिस्टर हुई इस कंपनी ने 2002 में अपनी सेवा शुरू की थी. 2004 में इसके एंप्लॉइज की संख्या जहां 2,400 थी, वह अब 8,000 तक पहुंच गई है. इनमें से 577 एंप्लॉई (करीब 7 प्रतिशत) अधिकारी स्तर के हैं और बाकी नॉन एग्जिक्यूटिव स्टाफ हैं.
डीएमआरसी अपने यहां रिक्रूटमेंट के लिए काफी कठोर प्रक्रिया अपनाती है ताकि सबसे योग्य लोग ही रखे जाएं. मेट्रो ड्राइवरों को ट्रेन चलाने से पहले असली जैसी मशीनों पर सिखाया जाता है. डिप्टी जनरल मैनेजर ट्रेन ऑपरेशन और डीएमआरसी के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में प्रिंसिपल अमित कुमार जैन कहते हैं, ''हम एंप्लॉइज को ऑन-टाइम काम करना सिखाते हैं. हम स्टाफ को दूसरे मेट्रो सिस्टम्स से भी ट्रेनिंग देते हैं जैसे बंगलुरू मेट्रो, चेन्नै मेट्रो, जयपुर मेट्रो, मुंबई मेट्रो रैपिड मेट्रो और कोच्चि मेट्रो सिस्टम.”
डीएमआरसी में चुने गए ऑफिसर को ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है. उदाहरण के लिए करीब 20 टेक्निकल ऑफिसर्स के बैच को साल भर के कोर्स—मेट्रो टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा—के लिए दिल्ली के आइआइटी भेजा जाता है. इसका खर्च डीएमआरसी उठाती है. कंपनी हर व्यक्ति पर साल में 7 लाख रु. खर्च करती है जिसमें 25,000 रु. की मासिक स्कॉलरशिप और मुफ्त में रहने की सुविधा शामिल है.
अब तक पांच बैच में कुल 105 अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है और छठा बैच 20 जुलाई से ट्रेनिंग पर है. डीएमआरसी में एचआर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर करण सिंह कहते हैं, ''इसके अलावा दो और तीन दिन के विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम भी हैं. टोक्यो यूनिवर्सिटी भी हर साल डीएमआरसी के तीन टेक्निकल ऑफिसर्स को ट्रांसपोर्ट इंजीनियरिंग का कोर्स कराती है. वह तीन महीने के कोर्स के लिए स्कॉलरशिप भी देती है.
अपने कर्मचारियों की ट्रेनिंग पर भारी खर्च करने के अलावा डीएमआरसी उन्हें वेतन के अतिरिक्त कई फायदे भी देती है ताकि वे कंपनी में बने रहें. इसके 20 प्रतिशत एंप्लॉइज को फ्लैट मिले हुए हैं. अगले कुछ साल में यह संख्या 33 फीसदी तक बढऩे की उम्मीद है. डीएमआरसी का नॉन-एग्जीक्यूटिव एंप्लॉई 15 लाख रु. तक का होम लोन ले सकता है जो एग्जीक्यूटिव लेवल पर 20 लाख रु. तक हो सकता है. कंपनी अपने स्टाफ को मैक्स और फोर्टिस जैसे बड़े प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की भी सुविधा देती है. एक जूनियर इंजीनियर को करीब 36,000 रु. सैलरी मिलती है जबकि सरकार में जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के, सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड के अधिकारी को प्रतिमाह 1.7 लाख रु. मिलते हैं. यहां एवरेज सैलरी भारतीय रेलवे के मुकाबले 20-25 प्रतिशत ज्यादा है.
खाली होती कुर्सियां
बेहतरीन ट्रेनिंग देने की वजह से डीएमआरसी में नौकरी छोडऩे की दर भी बहुत ऊंची है—खासकर हैदराबाद चेन्नै और जयपुर जैसे दूसरे शहरों में मेट्रो की योजनाएं बनने की वजह से. (बंगलुरू मेट्रो पहले ही शुरू हो चुकी है.) डीएमआरसी एकमात्र ऐसी जगह है जिसके पास इन प्रोजेक्ट्स के लिए ट्रेंड एंप्लॉई हैं. सिंह कहते हैं, ''इसके 40 प्रतिशत लोको ड्राइवर ग्रेजुएट और बीटेक डिग्री वाले हैं.
उन्हें किसी आइटी कंपनी में असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी मिल सकती थी. जाहिर है, वे अच्छे मौके की तलाश में रहते हैं.” 8,000 में से सिर्फ 4,000 एंप्लॉई ही तीन साल या उससे कुछ अधिक समय से कंपनी में बने हुए हैं और करीब 3,500 कर्मचारी 2002 से कंपनी छोड़कर जा चुके हैं.
इसके बावजूद डीएमआरसी के वर्क कल्चर की वजह से इसके एंप्लॉइज वफादारी बनाए रखते हैं. डायरेक्टर (फाइनेंस) के.के. सबरवाल (डीएमआरसी में अपने दो कार्यकाल में चार साल काम कर चुके हैं) कहते हैं, ''डीएमआरसी से अच्छा कोई और संगठन नहीं है. डीएमआरसी का मैनेजमेंट अपने कर्मचारियों के लिए सौ फीसदी प्रतिबद्ध है.”
डीएमआरसी अपने यहां रिक्रूटमेंट के लिए काफी कठोर प्रक्रिया अपनाती है ताकि सबसे योग्य लोग ही रखे जाएं. मेट्रो ड्राइवरों को ट्रेन चलाने से पहले असली जैसी मशीनों पर सिखाया जाता है. डिप्टी जनरल मैनेजर ट्रेन ऑपरेशन और डीएमआरसी के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में प्रिंसिपल अमित कुमार जैन कहते हैं, ''हम एंप्लॉइज को ऑन-टाइम काम करना सिखाते हैं. हम स्टाफ को दूसरे मेट्रो सिस्टम्स से भी ट्रेनिंग देते हैं जैसे बंगलुरू मेट्रो, चेन्नै मेट्रो, जयपुर मेट्रो, मुंबई मेट्रो रैपिड मेट्रो और कोच्चि मेट्रो सिस्टम.”
डीएमआरसी में चुने गए ऑफिसर को ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है. उदाहरण के लिए करीब 20 टेक्निकल ऑफिसर्स के बैच को साल भर के कोर्स—मेट्रो टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा—के लिए दिल्ली के आइआइटी भेजा जाता है. इसका खर्च डीएमआरसी उठाती है. कंपनी हर व्यक्ति पर साल में 7 लाख रु. खर्च करती है जिसमें 25,000 रु. की मासिक स्कॉलरशिप और मुफ्त में रहने की सुविधा शामिल है.
अब तक पांच बैच में कुल 105 अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है और छठा बैच 20 जुलाई से ट्रेनिंग पर है. डीएमआरसी में एचआर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर करण सिंह कहते हैं, ''इसके अलावा दो और तीन दिन के विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम भी हैं. टोक्यो यूनिवर्सिटी भी हर साल डीएमआरसी के तीन टेक्निकल ऑफिसर्स को ट्रांसपोर्ट इंजीनियरिंग का कोर्स कराती है. वह तीन महीने के कोर्स के लिए स्कॉलरशिप भी देती है.
अपने कर्मचारियों की ट्रेनिंग पर भारी खर्च करने के अलावा डीएमआरसी उन्हें वेतन के अतिरिक्त कई फायदे भी देती है ताकि वे कंपनी में बने रहें. इसके 20 प्रतिशत एंप्लॉइज को फ्लैट मिले हुए हैं. अगले कुछ साल में यह संख्या 33 फीसदी तक बढऩे की उम्मीद है. डीएमआरसी का नॉन-एग्जीक्यूटिव एंप्लॉई 15 लाख रु. तक का होम लोन ले सकता है जो एग्जीक्यूटिव लेवल पर 20 लाख रु. तक हो सकता है. कंपनी अपने स्टाफ को मैक्स और फोर्टिस जैसे बड़े प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की भी सुविधा देती है. एक जूनियर इंजीनियर को करीब 36,000 रु. सैलरी मिलती है जबकि सरकार में जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के, सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड के अधिकारी को प्रतिमाह 1.7 लाख रु. मिलते हैं. यहां एवरेज सैलरी भारतीय रेलवे के मुकाबले 20-25 प्रतिशत ज्यादा है.
खाली होती कुर्सियां
बेहतरीन ट्रेनिंग देने की वजह से डीएमआरसी में नौकरी छोडऩे की दर भी बहुत ऊंची है—खासकर हैदराबाद चेन्नै और जयपुर जैसे दूसरे शहरों में मेट्रो की योजनाएं बनने की वजह से. (बंगलुरू मेट्रो पहले ही शुरू हो चुकी है.) डीएमआरसी एकमात्र ऐसी जगह है जिसके पास इन प्रोजेक्ट्स के लिए ट्रेंड एंप्लॉई हैं. सिंह कहते हैं, ''इसके 40 प्रतिशत लोको ड्राइवर ग्रेजुएट और बीटेक डिग्री वाले हैं.
उन्हें किसी आइटी कंपनी में असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी मिल सकती थी. जाहिर है, वे अच्छे मौके की तलाश में रहते हैं.” 8,000 में से सिर्फ 4,000 एंप्लॉई ही तीन साल या उससे कुछ अधिक समय से कंपनी में बने हुए हैं और करीब 3,500 कर्मचारी 2002 से कंपनी छोड़कर जा चुके हैं.
इसके बावजूद डीएमआरसी के वर्क कल्चर की वजह से इसके एंप्लॉइज वफादारी बनाए रखते हैं. डायरेक्टर (फाइनेंस) के.के. सबरवाल (डीएमआरसी में अपने दो कार्यकाल में चार साल काम कर चुके हैं) कहते हैं, ''डीएमआरसी से अच्छा कोई और संगठन नहीं है. डीएमआरसी का मैनेजमेंट अपने कर्मचारियों के लिए सौ फीसदी प्रतिबद्ध है.”