यहां मत आना. किसी को बचाने मत आना. कुछ नेपाली और साधु पागल हो गए हैं. वे लाशों और अधमरे लोगों का सामान लूट रहे हैं. मेरे बेटे को मार डाला और...’’ फोन कट गया. देहरादून में खड़ा विजयपाल सिंह समझ ही नहीं पाया कि केदारनाथ की प्रलय में फंसे उनके चाचा आखिर कह क्या रहे थे? विजय ने कई बार फोन लगाया लेकिन तब तक मोबाइल सिग्नल और शायद उसके साथ जिंदगी की डोर भी टूट चुकी थी. भगवान के घर में पैसे के लालच ने आदमी को नरपिशाच बना दिया. यह अकेला फोन नहीं था, उत्तराखंड के हादसे के बाद ऐसी अनगिनत कहानियां रह-रहकर सामने आ रही हैं, जिन्हें सुनकर यकीन नहीं होता कि ये सब घिनौने काम भी इसी दुनिया में हो रहे हैं.
मोबाइल फोन से हाल ही में बनाया गया केदारनाथ का एक वीडियो ऐसा ही हौलनाक मंजर पेश करता है. इसमें एक व्यक्ति मरी हुई औरत की उंगली से सोने की अंगूठी उतारने की कोशिश कर रहा है. चूंकि लाश फूल चुकी है, इसलिए प्लास की मदद से भी अंगूठी नहीं उतरती. अंत में वह व्यक्ति उंगली काटकर अंगूठी निकाल लेता है. वीडियो में एक महिला की आवाज भी सुनाई दे रही है और साथ ही उस बदजात शख्स की हंसी भी जो उंगलियां काटकर अंगूठी उतार रहा है.
पुलिस ने जब साधुओं के कमंडलों से सोना और उनके फटे झोलों से नोटों की गड्डियां बरामद कीं तो समझ में आ गया कि गेरुआ कपड़े पहनने से माया का बंधन नहीं कटता. कई भगवाधारियों से जब इस तरह पैसे मिले तो मजबूरन पुलिस को हर साधु की जांच-पड़ताल शुरू करनी पड़ी. पुलिस की मानें तो इन लोगों ने पीड़ितों का सामान और पैसे लूटे हैं. और जब इन्होंने जी भर के चोरी-चकारी कर ली तब इन्होंने आपदा पीड़ित बनकर हेलिकॉप्टर या अन्य राहत वाहनों का रुख किया. चारधाम यात्रा पर आए लोगों में हर आय वर्ग के लोग शामिल होते हैं और ऐसे में मुसीबत में फंसे लोगों को अपना आसान शिकार बनाने में इन लोगों को खास दिक्कत नहीं आई. सोने की चमक ने इन्हें अंधा बना दिया.
ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ भगवाधारी ही कहर बरपा रहे हों, मुसीबत में फंसे इनसान की जेब से पाई-पाई निकालने के लिए कई स्थानीय लोगों ने भी कमर कस ली है. केदारनाथ की तबाही में अपने परिवार के नौ सदस्यों को खो चुके कानपुर के 40 वर्षीय सुधीर कुमार गुप्ता ने बताया कि तीन दिन तक थोड़ी-सी खिचड़ी और बूंदभर पानी हासिल करने के लिए उसने एक स्थानीय परिवार को अपना 15,000 रु. का मोबाइल दे दिया. गुप्ता की मानें तो गौरीगांव में जब रात में वे और कई परिवार बरसात से बचने के लिए एक मकान के छज्जे के नीचे खड़े हुए तो स्थानीय लोगों ने डंडे मारकर वहां से भगा दिया और महिलाओं से बदतमीजी की. यह बात अलग है कि बाद में इसी गांव के दूसरे लोगों ने उन्हें बचाया.
अपनी पत्नी कुसुम और दो साल के बेटे आरुश को हिफाजत से घर वापस लाने के लिए लखनऊ के प्रदीप कुमार को 50 रु. की चाय और 150 रु. का परांठा खाकर आगे बढऩा पड़ा. जब जेब रीत हो गई तो पत्नी की कान की बालियां बेचनी पड़ीं. हद तो तब हो गई जब जान के अलावा बाकी सब लुटाकर प्रदीप गुप्तकाशी पहुंचे तो वहां आपदा प्रभावित मदद लिखे वाहन ने भी उन्हें देहरादून पहुंचाने के लिए 3,000 रु. मांगे. यह संकेत कुछ लोगों के लिए कमाई का मौका बन गया. पूरे राज्य के आपदा प्रभावित इलाकों से ऐसी खबरें आती रहीं कि किस तरह बिस्किट का एक पैकेट 200 रु. में और पानी की बोतल इससे भी महंगी कीमत पर बिकी. हेलिकॉप्टर से पहले ले जाने के लिए रिश्वतखोरी के आरोप भी खूब लगे.
रुपए तो एक पायलट ने भी मांगे लोगों को केदारनाथ से बाहर निकालने के लिए. जब यह आरोप लगा तो देहरादून के सहस्त्रधारा हेलिपेड पर पुलिस क्षेत्राधिकारी स्वतंत्र कुमार ने पायलट जगजीत सिंह पालीवाल से पूछताछ की. लेकिन जवाब देने की बजाए पायलट सीओ से उलझ गए और दोनों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई. हालांकि बाद में पायलट ने किसी तरह की रिश्वत मांगने से इनकार किया. इसी हेलिपेड पर दूसरे पायलट को इसलिए डांट खानी पड़ी क्योंकि वह ऐसे बीमार लोगों को फाटा से देहरादून ले आया था, जिन्हें इलाज की सख्त जरूरत थी. दरअसल यह पायलट पंजाब सरकार की ओर से सेवा में लगाए गए हेलिकॉप्टर को उड़ा रहा था. उड़ान भरने से पहले ही पायलट को सख्त हिदायत दी गई थी कि वह सिर्फ पंजाब के यात्रियों को ही बचा कर लाए. लेकिन पायलट जब फाटा पहुंचा तो वहां केदारनाथ से बचाकर लाए गए हैदराबाद के छह लोग सबसे पहले उसके सामने आए.
डॉक्टरों ने कहा की कि इन लोगों की हालत खराब है और इन्हें तुरंत मदद की दरकार है. इनसानियत के तकाजे के आगे पायलट सरकारी बाबू का हुक्म भूल गया. लेकिन बलिहारी लालफीताशाही की कि अफसर महोदय ने हेलिपैड पर पायलट को खूब खरी-खोटी सुनाई और हेलिकॉप्टर में ईंधन भी नहीं भरने दिया. मौसम साफ होने के बावजूद हेलिकॉप्टर दिनभर सहस्त्रधारा के हेलिपैड पर खड़ा रहा. खड़े तो वे ट्रक भी ऋषिकेश और अन्य जगहों पर रहे जो दिल्ली से राहत सामग्री लेकर आपदा प्रभावित इलाकों में जा रहे थे. 42 ट्रक ड्राइवरों को ऋषिकेश, देहरादून औैर हरिद्वार पहुंचने के बाद यही समझ में नहीं आया कि इस राहत सामग्री को रिसीव कौन करेगा और इसे ले कहां जाना है. वे थक-हारकर वापस लौट आए और मुसीबतजदा लोग भूख से तड़पते रहे.
इस हेलिपैड पर शर्मसार होने का सिलसिला यहीं थम गया हो, ऐसा नहीं है. 26 जून को यहां दो माननीय सांसद भी मल्लयुद्ध पर आमादा हो गए. आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद वी. हनुमंत राव और तेलगु देशम पार्टी सांसद रमेश राठौड़ में इस बात पर झगड़ा हो गया कि राहत कार्य में शामिल होने के लिए किसका चेहरा पहले टीवी पर दिखाई दे. साथ ही यह भी कि आंध्र प्रदेश के लोगों की हिफाजत के लिए कांग्रेस ज्यादा मरी जा रही है या टीडीपी. दोनों सांसदों के हाथापाई तक पहुंचे वाकयुद्ध के शर्मसार करने वाले दृश्य लोगों ने घंटों तक समाचार चैनलों पर देखे. बाद में पुलिस ने एक-दूसरे से गुथे हुए सांसदों को किसी तरह अलग किया, लेकिन उसके बाद भी वे स्कूली बच्चों की तरह एक-दूसरे पर छींटाकशी करते रहे.