इसी 12 मार्च को अरुण पांडे की कंपनी रिद्धि स्पोर्ट्स ने पुणे की कंपनी यूथ बेवरेज के साथ एक साझा उद्यम पर दस्तखत किए जिसके तहत वह एनर्जी बार, प्रोटीन बार, प्रोटीन बिस्कुट, फ्लेवर्ड दूध और दूसरे पोषक उत्पाद बेचेगी. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के प्रायोजन से जुड़े सौदे रिद्धि स्पोर्ट्स ही संभालती है. धोनी से पुरानी दोस्ती का आलम यह है कि पांडे हर अगले वाक्य में उन्हीं का नाम लेते हैं. उन्होंने रिद्धि के दफ्तर के बाहर विशाल मैदान में हाल ही दो झूले इस उम्मीद से लगवाएं हैं कि धोनी और उनकी पत्नी साक्षी कभी चाहें तो इसमें आकर समय बिता सकें.
यूथ बेवरेज से करार तक का यह लंबा सफर दोस्ती, भरोसे और आजमाइश जैसी अजीबोगरीब चीजों से मिलकर बना है जिसने भारत में ब्रांडिंग, प्रायोजन और विज्ञापन की रहस्यमय दुनिया को ही बदल डाला. इस सबका श्रेय पांडे और धोनी को जाता है, जो आज विज्ञापन की फीस के बतौर सालाना 100 करोड़ रु. से ऊपर कमाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बन गए हैं.
धोनी की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके साथ जुड़ कर देवी-देवता भी फायदे में हैं. पिछले दिनों अखबारों में जैसे ही खबर छपी कि धोनी के गृह जिले रांची से घंटा भर की दूरी पर तमाड़ स्थित देवरी मंदिर में धोनी आने वाले हैं, वहां श्रद्धालुओं की दैनिक संख्या 50 से बढ़कर 500 हो गई और मंदिर की मासिक आमदनी 5,000 से बढ़कर एक लाख रु. तक.
दुनिया में अमीरों की गिनती करने वाली पत्रिका फोर्ब्स के मुताबिक, धोनी दुनिया के सबसे अमीर खिलाडिय़ों की सूची में 31वें स्थान पर हैं, उनके बाद उसैन बोल्ट, नोवाक जोकोविक और वेन रूनी का नाम आता है. धोनी ने कुल 2.65 करोड़ डॉलर की जो कमाई की है, उसमें से 2.3 करोड़ डॉलर विज्ञापन से आए हैं. यह रकम सचिन तेंदुलकर को ब्रांड और उत्पादों के विज्ञापन से होने वाली कमाई से 40 फीसदी ज्यादा है.
यह आंकड़ा जून 2012 तक का है, जिसमें उनके हाल के कुछ विज्ञापन सौदे, एसपीवी और इक्विटी सौदे शामिल नहीं हैं. यदि इस सब को जोड़ लिया जाय, तो धोनी के करीबी लोगों की राय में, वे अमीर खिलाडिय़ों की सूची में पहले स्थान के काफी करीब होंगे.
पांडे बताते हैं कि रिद्धि ने 2010 में उनका मैनेजमेंट संभाला था. विश्व कप में जीत ने उनके कारोबार को काफी बढ़ा दिया. ''उन दिनों (धोनी और रिद्धि की जोड़ी बनने से पहले) उन्हें एक ब्रांड पर ढाई से तीन करोड़ रु. मिलते थे, अब 10 करोड़ रु. मिलते हैं. उस वक्त कुल राशि थी 40 करोड़ रु. आज 100 करोड़ रु. से ज्यादा है. आप जानते हैं कि खिलाडिय़ों का कॅरियर कितना लंबा होता है. एक ब्रांड के बतौर धोनी इन सबसे ऊपर उठ चुके हैं. धोनी के बारे में बात करना भारत के बारे में बात करने जैसा है.”
धोनी हमेशा से ऐसी स्थिति में नहीं रहे हैं. शुरुआती दिनों में अपना ब्रांड खड़ा करने के लिए उन्होंने एनडीटीवी के साथ एक्सक्लूसिव साक्षात्कारों, बातचीत और विशेष कार्यक्रमों के लिए सौदा किया था. इस सौदे के बारे में घोषणा करने के लिए मई 2006 में रविवार की एक दोपहर धोनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए, तो वे पूरी बांह वाली मटमैली टीशर्ट पहने, लंबे बालों में थे. लग रहा था, कोई नया-नया लड़का आया हो जो गंभीर दिखने की कोशिश कर रहा हो. साल भर बाद की बात है, वे कामयाब हो चुके थे. सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ के बगैर भारत की टीम ने जैसे ही टी20 विश्व कप जीता, देश भर की जुबान पर एक ही नाम था धोनी.
पांडे रणजी में धोनी के साथ खेल चुके थे और उस वक्त तक वे समझ चुके थे कि उनकी प्रतिभा इतनी ही है. उस दौरान उन्होंने अपना कुछ वक्त टी-सीरीज कंपनी में गुज़ारा जहां उनकी दोस्ती गुलशन कुमार के भाई दर्शन कुमार से हो गई. दर्शन ने उन्हें वहां कुछ काम दिए, जिससे उनकी समझ बढ़ सकी. उन्होंने 2007 में अचानक लंबी छलांग लगाई और रिद्धि स्पोर्ट्स नामक कंपनी की स्थापना की.
पहले धोनी का सारा प्रबंधन गेमप्लान और फिर बाद में माइंडस्केप मेस्ट्रोस करती थीं लेकिन पांडे लगातार धोनी के साथ बने हुए थे. पांडे ने बताया, ''मैंने बिग बाजार और दैनिक भास्कर के लिए धोनी के सौदे करवाए. चूंकि माही के साथ मेरा रिश्ता था, तो जीत (गेमप्लान के प्रमुख बनर्जी) को भी मेरे ही रास्ते माही तक जाना पड़ता था. माही ने सबको कह दिया कि पांडेजी के माध्यम से ही उन तक कोई पहुंच सकता है. मैंने मेहनत शुरू की, चार करार किए.”
जिस शख्स ने 1983 के बाद भारत को पहला खिताब दिलवाया, उसका कामकाज संभालने के लिए 50 से 60 लाख रु. कतई पर्याप्त न थे. धोनी को कुछ नुकसान भी हुआ. एक फैशन डील थी, जिसमें उनके एक करीबी पर फर्जीवाड़े का आरोप लगा था. हालांकि इससे रिद्धि और धोनी के करीब आने की प्रक्रिया तेज ही हुई. 2010 में धोनी ने तीन साल के दौरान न्यूनतम 210 करोड़ रु. की गारंटी के लिए रिद्धि के साथ करार कर लिया. अब धोनी ने आधिकारिक तौर पर तेंदुलकर को पीछे छोड़ दिया है, जिनका पिछला सौदा तीन साल के लिए 180 करोड़ रु. का था.
धोनी और रिद्धि का रिश्ता सिर्फ प्रायोजन की फीस तक नहीं रुका, बल्कि इन्होंने मिलकर प्रायोजन के नियमों को बदलना शुरू कर दिया. कुछ बदलाव तो मैदान से ही आया. धोनी के उप-कप्तान बनने पर उनकी फीस डेढ़ करोड़ रु. हो गई. टी20 विश्व कप की जीत के साथ यह बढ़ कर तीन करोड़ से पांच करोड़ रु. जा पहुंची. पांडे कहते हैं कि 2011 की विश्व कप जीत के बाद किसी विज्ञापन सौदे के लिए 10 करोड़ निकलवाना मामूली बात रह गई.
जो बड़े सौदे हैं, वे सब लंबे समय के लिए किए जा रहे हैं. कम-से-कम पांच ऐसे सौदे हुए हैं जिनमें रिति या धोनी या फिर दोनों को ही बराबर का हिस्सा मिला है. सोच यह है कि ब्रांड धोनी उनके रिटायर होने के बाद भी बाजार में जिंदा रहे और कुछ साल तक चलने वाले करियर के बाद हर खिलाड़ी के सामने आने वाली दिक्कत से पार पा सके. मुस्कराते हुए पांडे कहते हैं, ''वे मेरे दोस्त हैं. मैं उनसे बड़ा हूं. उनसे पैसा लेना मुझे अच्छा नहीं लगता. मुझे कंपनी भी तो चलानी है.”
—साथ में अजिता शशिधर और एन. माधवन

