उनकी देह फिल्मी सितारों की तरह चिकनी, तराशी हुई सिक्स पैक वाली नहीं है, सौरव गांगुली यह बात जानते थे. फिर भी बेधड़क उन्होंने एक ऐतिहासिक पल में अपनी शर्ट उतारकर सबके सामने हवा में लहरा दी थी. खुशी जाहिर करने का सबका अपना-अपना अंदाज होता है. मसलन विराट कोहली को मुट्ठियां भीतर की ओर भींचकर कातिल निगाहों से चीखना पसंद है तो ईशांत शर्मा किसी पुछल्ले बल्लेबाज को पवेलियन भेजते वक्त जरूर कुछ-न-कुछ बड़बड़ा देते हैं.
सचिन तेंदुलकर की तो सांसें ही थम जाती हैं, आंखें भर आती हैं जब वे ट्रॉफी लेकर मैदान का चक्कर एक विजेता के अंदाज में लगाते हैं. लॉर्ड्स की बालकनी और 2002 के वे दृश्य हाल ही में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में एक बार फिर देखने को मिले, जब भारत के बॉर्डर-गावसकर ट्रॉफी सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को ऐतिहासिक अंदाज में 4-0 से धो डाला. टीम इंडिया में अलग-अलग पीढिय़ों, मिजाज और कद के सदस्यों ने अपने-अपने तरीके से खुशी का इजहार किया था.
इन तमाम दृश्यों के बरक्स अब महेंद्र सिंह धोनी को जरा तलाशा जाए. पिछले एक दशक में टीम इंडिया के लिए तीन सबसे अहम मौके थे—2007 की टी20 विश्व चैंपियनशिप, 2011 का विश्व कप और मौजूदा सीरीज में हुई जीत. तीनों मौकों पर महेंद्र सिंह धोनी एक ही काम करते दिखे. हर बार जीत के बाद वे एक स्टंप उखाड़ते और मुस्कराते हुए निकल लेते, जबकि उनके चारों ओर हर कोई खुशी और उल्लास से उछलता-कूदता दिखता था.
धोनी हमेशा से ऐसे ही रहे हैं. उन्होंने अपने जज्बात कभी जाहिर नहीं किए. 2011 में जिस रात भारत ने विश्व कप जीता और उनके साथियों समेत पूरा देश भोर तक जश्न में डूबा रहा, धोनी अपने कमरे में चुपचाप बैठकर अपनी पसंदीदा फुटबॉल टीम मैनचेस्टर यूनाइटेड का खेल देख रहे थे. यहां तक कि पिछले हफ्ते जब सीरीज में भारत को 3-0 की बढ़त मिल चुकी थी और चंडीगढ़ के मैरियट होटल में धोनी का सुइट जश्न के अड्डे में बदल गया था, वे खुद सुइट दिए जाने पर अपनी किस्मत का शुक्रिया अदा करते दिखे (कप्तान और प्रशिक्षक को यह विशेष सुविधा दी जाती है) और जश्न के बीच से उठकर अपने कमरे में सोने चले गए.
जीत के बाद भी सामान्य बने रहने में धोनी को अगर कोई टक्कर दे सकता है तो वह इकलौता भारतीय है अभिनव बिंद्रा. बिंद्रा को तो उनके खेल की अनिवार्यताओं के चलते उत्तेजना पर लगाम कसने और धड़कन को स्थिर रखने का प्रशिक्षण दिया गया था, लेकिन वे 2008 के बीजिंग ओलंपिक में जीतने के बाद भी वैसे ही बने रहे. क्रिकेट में शांत बने रहने की जरूरत नहीं होती, उसके बावजूद धोनी ने अपने धैर्य से अपनी शख्सियत को और आभा ही बख्शी है.
अपोलो अस्पताल में मनोचिकित्सा के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. संदीप वोहरा मानते हैं कि धोनी का स्वभाव ही ऐसा है. उनके शब्दों में, ''यह एक परिपक्व और स्थिर मस्तिष्क का संकेत है, जो इस बात को समझता है कि कामयाबी कोई एक बार में बहक जाने वाली चीज नहीं, इसे लगातार बनाए रखना पड़ता है. ऐसे लोग अतिउत्साहित नहीं होते. वे अपनी खुशी को अपने तक रखते हैं, इस तरह औसत लोगों से ज्यादा उपलब्धियां हासिल करते हैं.”
अपनी कप्तानी को लेकर धोनी का नजरिया बड़ा दिलचस्प है. जब कभी टीम हारती है, धोनी सामने आकर उसकी जिम्मेदारी लेते हैं और मीडिया की मार अकेले झेलते हैं लेकिन जब भी टीम जीतती है, वे इसका श्रेय उस मैच में खास प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी को देने से नहीं चूकते. यह पूछने पर कि वे क्यों हमेशा अपेक्षाकृत युवा खिलाडिय़ों को ट्रॉफी थमा कर बीच से हट जाते हैं, उनका जवाब था, ''वे नौजवान हैं, जश्न मनाना जानते हैं. और आखिर वे ही तो हैं, जिन्होंने सारी मेहनत की है. मैं तो बस ट्रॉफी लेने चला जाता हूं.”
वे कहते हैं, ''ये सारी जीत अपनी जेब में लेकर मैं नहीं जाऊंगा, यह पूरी टीम की थाती है.” धोनी 26 टेस्ट मैचों में जीत और 60 फीसदी से ज्यादा की विजय दर के साथ देश के अब तक के सबसे कामयाब कप्तान साबित हुए हैं. उन्होंने सौरव गांगुली को पीछे छोड़ दिया है. जिस सीजन में धोनी की कप्तानी अपने सबसे निचले स्तर पर है, उस वक्त भी भारत की टीम एकदिवसीय में दुनिया में दूसरे और टेस्ट में तीसरे स्थान पर बनी हुई है. पिछले हफ्ते न्यूजीलैंड के खिलाफ अगर मैट प्रायर ने इंग्लैंड का टेस्ट बचा न लिया होता, तो भारत एक पायदान और ऊपर होता.
एक कप्तान को उसकी टीम जितना ही बेहतर होना चाहिए, धोनी इसे अच्छी तरह समझते हैं. इसी स्थिति को बनाए रखने के लिए हर बार उनकी कोशिश होती है कि वे सही टीम बनाकर मैदान में उतरें. वे इसे अलग-अलग दौड़ के लिए घोड़े चुनने का नाम देते हैं. इस तरीके पर सवाल भी उठे हैं और कई बार गलत चुनाव भी हुए हैं, लेकिन हर बार वे नतीजे सही देकर अपने चुनाव को सही ठहराते आए हैं.
2007 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज को याद कीजिए, जिसके बीच में ही मुरली कार्तिक को बुलाया गया था. उनके अच्छे प्रदर्शन के बावजूद ऑस्ट्रेलिया के लिए धोनी ने पीयूष चावला को चुना और उन्हें भी सिर्फ फाइनल में मैदान पर उतारा और वही तुरुप का पत्ता साबित हुआ. 2007 में गौतम गंभीर को लेकर जब हर कोई आशंकित था तो धोनी ने कहा कि ''वे टी20 विश्व कप में सारे मैच खेलेंगे, चाहे जितने भी रन बनाएं. मैं जानता हूं कि जब सर पर तलवार लटकती है तो कैसा महसूस होता है.” गंभीर ने धोनी का भरोसा रखा और न सिर्फ सबसे ज्यादा रनबटोरू बल्लेबाज साबित हुए, बल्कि धोनी की छांव में टेस्ट के नंबर एक बल्लेबाज बन बैठे. धोनी ने इसके बावजूद ताजा टेस्ट सीरीज में गंभीर की बजाए मुरली विजय और शिखर धवन को चुना. दोनों ने ही बेहतरीन शतक का उपहार दिया.
जहां तक आर. आश्विन पर उनके अतिरिक्त भरोसे का सवाल है, जिसके बारे में आलोचकों का कहना है कि धोनी ने अपने पुराने साथी हरभजन सिंह तक को चेन्नै सुपर किंग्स से अपने रिश्ते के चलते झिड़क दिया, धोनी खुद 2008 के आइपीएल के अंत तक नहीं जानते थे कि आश्विन कौन हैं जबकि दोनों एक ही ड्रेसिंग रूम में थे. 2009 में भी आश्विन अंतिम एकादश में तो थे पर मुंबई इंडियंस के बल्लेबाजों के जमकर धुनने के बावजूद धोनी ने उनसे एक ओवर भी नहीं फिंकवाया.
आलोचकों का मानना है, बल्कि पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता मोहिंदर अमरनाथ ने तो कह ही दिया था कि बीसीसीआइ के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन न होते तो धोनी कप्तान भी न होते. धोनी इंडिया सीमेंट्स के कर्मचारी हैं और श्रीनिवासन मालिक. धोनी चेन्नै सुपर किंग्स के कप्तान हैं तो श्रीनिवासन उसके मालिक. हितों के इस टकराव के चलते आलोचकों की बात पर गौर करना लाजिमी था. पहले भी अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए बीसीसीआइ अध्यक्षों ने किसी खिलाड़ी पर चयनकर्ताओं की राय खारिज करते हुए मर्जी चलाई है.
डर के आगे जीत है
बिहार में धोनी के कप्तान रहे नेशनल स्टेडियम के वरिष्ठ खिलाड़ी तारिक-उर रहमान ने एक किस्सा सुनाया जिससे धोनी के दिमाग की एक झलक मिलती है. रहमान बताते हैं, ''एक रणजी मैच के दौरान हरी पिच और मौसम के बारे में हमें बात करते हुए धोनी ने सुन लिया. ऐसे बादल थे कि स्कोरबोर्ड तक नहीं दिख रहा था. हम टॉस हार गए और हमें पहले बल्लेबाजी चुननी पड़ी. तब धोनी ने कहा कि पारी वे शुरू करेंगे. हमें अंदेशा था कि यह कैसे होगा, लेकिन मैच की पहली ही गेंद पर धोनी ने आगे बढ़कर छक्का जड़ दिया. ड्रेसिंग रूम में बैठे हम सभी चौंक उठे. बाद में हमने उससे खाने पर इस बारे में पूछा तो उसने कहा कि ऐसे मौसम में गेंद को खुरदुरा करने का यही सबसे बढिय़ा तरीका है. उस दिन मुझे लगा कि यह लड़का कुछ हट कर सोच सकता है, हम सब से अलग.”
आंकड़ों की कप्तानी
धोनी को अकेले कप्तान के तौर पर देखने से चूक हो जाएगी. कप्तान धोनी अलग है, ब्रांड धोनी बिल्कुल अलग और स्वतंत्र व्यक्ति के तौर पर धोनी एक अलहदा शख्सियत. इन तीनों कायाओं में उनके आते-जाते रहने की पड़ताल करना दिलचस्प होगा. आज की तारीख में ब्रांड धोनी की कीमत 100 करोड़ के कांटे को छू चुकी है. तमाम कारोबारों में उनका निवेश है. माही रेसिंग टीम इंडिया नाम की बाइक रेसिंग टीम के वे मालिक हैं. दुनिया के सबसे बड़े दुपहिया बाजार में तेज बाइकों के लिए अपनी दीवानगी को धोनी ने कारोबारी शक्ल दी है. इस रेसिंग टीम के चेयरमैन और निदेशक धोनी के बचपन के दोस्त अरुण पांडे बताते हैं, ''धोनी को इस खेल का बहुत अंदाजा है. हम जब बाइक चालकों की नियुक्ति कर रहे थे, सारी सलाह वे ही दे रहे थे. बाइक और रेसिंग के बारे में उनका ज्ञान अथाह है.”
उनकी रेसिंग टीम में तुर्की के एक ड्राइवर केनन सुफोग्लू धोनी के बड़े प्रशसंक हैं, क्रिकेट के लिए नहीं, उनकी रेसिंग और बाइकों के संग्रह के लिए. दोनों के पास 30-30 बाइक हैं और केनन चाहते हैं कि कभी धोनी उन्हें पीछे बैठाकर शहर भर में घुमाएं. संयोग देखिए, जिस दिन धोनी ने चेन्नै में किस्मत पलटने वाला दोहरा शतक जड़ा, उसी दिन केनन ने माही रेसिंग के लिए पहला खिताब हासिल किया. धोनी परफ्यूम का भी कारोबार करते हैं. उनके परफ्यूम का नाम है 7, जिसे उन्होंने हाल ही में दुबई में लॉन्च किया. वे स्पोर्ट्रसफिट वर्ल्ड के नाम से फिटनेस केंद्रों की श्रृंखला भी चलाते हैं. पांडे कहते हैं, ''धोनी के कारोबारी उद्यमों के बारे में एक बड़ी बात यह है कि वे खेल और फिटनेस का प्रचार करके इस रूप में समाज में कुछ योगदान देना चाहते हैं.” धोनी जल्द ही एक हेल्थ और न्यूट्रीशन बार बाजार में उतारने वाले हैं. इसके लिए सबसे बड़ी दवा कंपनियों में से एक के साथ करार हुआ है.
धोनी के बारे में एक और चौंकाने वाली चीज उनके और परिवार के बारे में बरती जाने वाले गोपनीयता है. वीरेंद्र सहवाग की मां उनके जितनी ही चर्चित हैं पर धोनी की मां को कोई नहीं जानता. धोनी अपने निजी जीवन को लेकर बेहद संकोची हैं. दो साल तक साक्षी से उनका प्रेम संबंध चला और फिर शादी भी मीडिया की चकाचौंध से दूर रहकर की. अकेले वीवीएस लक्ष्मण ही नहीं हैं, जो अपने संन्यास की खबर के लिए धोनी से फोन तक पर संपर्क नहीं कर पाए. तमाम दोस्त हैं, जो फोन पर उनसे बात नहीं कर पाते. धोनी नए गैजेट्स के शौकीन हैं पर फोन साथ रखना उन्हें पसंद नहीं. बीसीसीआइ को उन्हें कहना पड़ा कि संवाद के लिए उनका फोन उठाना जरूरी है. घर पर उन्हें परिवार के साथ वक्ïत बिताना, कुत्तों के साथ खेलना और गैराज में रखी बाइकों की साज-संभाल करना भाता है.
ये मेरी जिंदगी है
धोनी को जिंदगी से प्यार है. 2008 में वे अपनी स्पोर्ट्स बाइक लेकर चेन्नै आए थे और खाली सड़कों पर रात के सन्नाटे में उससे चलते थे. एक दिन सुरक्षा अधिकारी ने चेन्नै के मैनेजमेंट से शिकायत कर दी कि धोनी इसकी खबर उन्हें नहीं देते. उस रात धोनी ने यह सूचना पुलिस को दे दी और उन्हें पीछे आने को कहा. अपनी 100 सीसी की मोटरसाइकिल से पुलिसवाले धोनी की 100 सीसी रफ्तार को आखिर कहां पकड़ पाते! मिनट भर में वे ओझल हो गए. अपने वायरलेस पर वे रात भर लगातार धोनी का पता लगाने की कोशिश करते रहे, जबकि धोनी ने अपनी ड्राइव पूरी की और चुपचाप कमरे में आकर सो गए. पुलिसवालों ने फिर कभी धोनी को लेकर शिकायत नहीं की.
अपने पुराने दोस्तों के लिए आज भी धोनी वैसे ही हैं. नए लोगों और कारोबारों के प्रबंधन का जिम्मा उन्होंने पुराने क्रिकेटर मित्र पांडे को सौंप रखा है. उनकी दोस्ती 13 साल पुरानी हो चली है. उनके पास अब भी जो पार्कर कलम है, वह उनकी स्कूल शिक्षिका शर्मिष्ठा कुमार की दी हुई है, जिसे उन्होंने प्रसिद्धि हासिल करने के कई साल बाद एक सम्मान समारोह में उन्हें दिखाया था.
स्टेडियम में क्रिकेट प्रशिक्षक एम.पी. सिंह उनकी सहजता के बारे में एक वाकया बताते हैं, ''भारतीय टीम में जाने के बाद भी वे हमारे साथ ग्वालियर में एक टूर्नामेंट खेलने आए. आयोजकों ने धोनी के लिए विशेष इंतजाम किए थे पर धोनी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वे टीम का हिस्सा हैं, उसी के साथ रहेंगे. उन्होंने कहा था, 'इंडिया प्लेयर हूं तो क्या हुआ, मैं मेरी टीम के साथ ही आऊंगा और रहूंगा.”
सिंह एक और किस्सा सुनाते हैं, जब धोनी नए खिलाडिय़ों को उनसे बल्लेबाजी के गुर सीखता देख रहे थे, कि कैसे बैकलिफ्ट, पैरों का इस्तेमाल और डिफेंस करना है. इस सत्र के बाद उन्होंने सिंह से कहा कि वे दोबारा उन्हें वह सब सिखाएं. सिंह कहते हैं, ''मैंने कहा कि तुम इंडिया के खिलाड़ी हो, शतक मार चुके हो और ये सब अब सीखना चाहते हो? उसने सहजता से कहा, ''सीखना जरूरी है, कभी भी हो.” जाहिर है, खेल धोनी के स्वभाव में है और कप्तानी उनके लिए पैदाइशी बात है. उन्होंने आलोचकों का मुंह बंद किया है और सीनियर खिलाडिय़ों से अपनी बात मनवाई है. उन्होंने छोटे शहरों की एक समूची पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम किया है. धोनी की कहानी शब्दों में बयां करना आसान नहीं. उनकी पारी अब भी जारी है और वे लगातार अपनी विरासत को मजबूत करने में जुटे हुए हैं.