उसे सबसे पहले फांसी लगनी चाहिए. कानून को उसकी उम्र को देखते हुए उसके साथ किसी तरह की दया नहीं दिखानी चाहिए. उसने जो क्रूरता दिखाई है, वह किसी बच्चे का काम नहीं हो सकता. मेरी बेटी ने मुझे बताया था कि वही सबसे ज्यादा वहशी था. अगर उसने उसके अंदरूनी अंगों को चोट न पहुंचाई होती तो वह बच सकती थी.’’ यह कहना है दिल्ली गैंगरेप की शिकार 23 वर्षीया लड़की के पिता का. उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के अपने गांव से फोन पर बोलते हुए उनका गला रुंध जाता है. जिस लड़के ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया और लोहे की रॉड उसके शरीर में डालकर उसकी आंत बाहर खींच ली, उसकी उम्र 18 साल से पांच महीना कम बताई जाती है.
हालांकि 16 दिसंबर की रात को बस में बैठाने के लिए उसने लड़की को दीदी कहकर बुलाया था. बाद में उसने जो दरिंदगी दिखाई, उसे बयान भी नहीं किया जा सकता. इतने घोर अपराध के बावजूद वह सुधार गृह में तीन साल बिताने के बाद आजाद हो सकता है. जिस समय उसके पांच अन्य साथी तिहाड़ जेल में हर रोज बाकी कैदियों के गुस्से का सामना कर रहे हैं, वह दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में अपेंडिक्स का ऑपरेशन कराकर आराम से स्वास्थ्य लाभ कर रहा है.
दक्षिण दिल्ली स्थित हक: सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स के काउंसलर्स जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड-2 की प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट गीतांजलि गोयल के आदेश पर गैंगरेप के इस आरोपी को अपनी सेवाएं दे रहे हैं. मजनूं का टीला में बंद सात किशोरों में से सिर्फ इसी को काउंसलिंग सुविधा उपलब्ध है.
बलात्कार की शिकार लड़की के पिता गुस्से में तेज आवाज में पूछते हैं, ‘‘क्या आप कल्पना कर सकती हैं कि 17 साल की उम्र में अगर वह इतनी दरिंदगी कर सकता है तो बड़ा होने पर कितना खूंखार होगा?’’ इस दुख में वे अकेले नहीं हैं. जुवेनाइल जस्टिस (बाल संरक्षण) कानून, 2000 के कारण निराश दूसरे माता-पिता भी इसी तरह की शिकायत करते हैं.
पटना के 41 वर्षीय राजेश कुमार को ही लें. जब वे अपहरण का शिकार हुए अपने आठ साल के इकलौते बेटे सत्यम के बारे में बात करते हैं तो उनके लिए अपने आंसुओं को रोक पाना मुश्किल हो जाता है और उनकी पत्नी राखी सिसकने लगती हैं. मई, 2009 को 15 साल के दो लड़कों ने उनके नन्हें बच्चे के साथ यौनाचार करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी.
सत्यम जब दर्द से चिल्लाने लगा तो उन लड़कों ने गला घोंटकर उसे मार डाला. फिर उसका शव पॉलीथीन के झोले में भरकर फोन पर राजेश से फिरौती मांगी. उन लड़कों को 30 मई को गिरफ्तार कर लिया गया. वे दोनों सुधार गृह में अधिकतम तीन साल की सजा काटने के बाद अब आजाद घूम रहे हैं.
इस अपराध ने राजेश और राखी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी है. राजेश कहते हैं, ‘‘इस जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम से खराब और क्या हो सकता है? उन्होंने बड़ी बेरहमी से मेरे मासूम बेटे की हत्या कर दी और सुधार गृह में तीन साल गुजारने के बाद फिर से आजाद घूम रहे हैं. यह कैसी व्यवस्था है, जिसमें पीड़ित को तकलीफ भुगतनी पड़ती है और अपराधी को आजाद छोड़ दिया जाता है? क्या आप इसे न्याय कहेंगे? वे दोनों हत्यारे पटना में आराम से घूमते हैं और मेरी पूरी कोशिश होती है कि मैं उन्हें न देखूं. यह मेरे सीने में किसी नश्तर की तरह चुभता है.’’
जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) कानून अपराध करने वाले किशोर के मानवीय उपचार पर जोर देता है. कानून किशोर के अपराध को अपराध तो मानता है लेकिन उसे सुधरने के लिए एक और मौका देता है. पटना हाइकोर्ट में वकील संजीव कुमार पूछते हैं, ‘‘यह वैसे तो ठीक मालूम होता है लेकिन उसे फिर अपराध करने से रोकने की बात कहां है?’’
इसमें कथित सुधार तो आम तौर पर अपराध से भी बदतर होता है. भारत के 815 बाल सुधार गृहों में उसकी क्षमता से अधिक अपराधी बच्चे भरे हुए हैं, जहां पूरी सुविधाएं भी नहीं हैं और पेशेवर ढंग से काम करने वाले योग्य लोगों की भारी कमी है. इस समय 17 लाख आरोपी किशोर हैं, जिन्हें लगातार परामर्श की जरूरत है. ज्यादातर सुधार गृहों में तो परामर्शदाता भी नहीं हैं. इनके कर्मचारी किशोर अपराधियों से बेहद डरे हुए होते हैं. वे कभी-कभार ही परामर्श का सामूहिक सेशन लेते हैं, जहां अप्रशिक्षित समाजशास्त्री परामर्श देने का काम करते हैं.
इन सुधार गृहों में बच्चे आगे चलकर आम तौर पर गिरोह बना लेते हैं और कोई पाबंदी न होने से सेलफोन छीनने और छोटी-मोटी चोरियां करने जैसे छोटे अपराधों से शुरू करके हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगते हैं. 2011 के शुरू में दिल्ली का कुख्यात ‘‘लूटो और आग लगाओ’’ गैंग ऐसे ही किशोरों का गिरोह था, जो किंग्सवे कैंप के सेवा कुटीर सुधार गृह के लड़कों ने मिलकर बनाया था. सुधार गृह से भागे एक लड़के की अगुआई में यह गिरोह सरोजिनी नगर और लक्ष्मीबाई नगर जैसी सरकारी कॉलोनियों और आसपास के इलाकों में वारदातों को अंजाम देता था. वे घरों में घुसकर चोरियां करते और फिर उसे आग के हवाले कर देते थे, ताकि सारे सबूत मिट जाएं. गिरोह के सरगना को पहले कई बार गिरफ्तार किया जा चुका था और वह भी कम-से-कम तीन बार सुधार गृह से भाग चुका था. अब 18 साल की उम्र पार करने के बाद वह तिहाड़ जेल में विचाराधीन कैदी है.
जेजे एक्ट पुलिस को यह अधिकार देता है कि किशोर के कथित अपराध की सजा अगर सात साल से कम हो तो उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज न करे. इससे वह किशोर हत्या, हत्या की कोशिश और बलात्कार को छोड़कर हर तरह का अपराध करने के लिए आजाद है. पुलिस छोटे-मोटे अपराध के मामलों में उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज नहीं करती है, जिससे वे बड़ा अपराध करने की हिम्मत करने लगते हैं.
नतीजा यह होता है कि ये किशोर अपराध के चक्र में फंसकर रह जाते हैं. जैसा कि गैंग रेप के किशोर आरोपी के मामले में देखा जा सकता है. अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़ा वह लड़का 11 साल पहले उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में अपना कच्चा घर छोड़कर चला गया था. उसके पिता मानसिक रूप से बीमार हैं और उसका परिवार गांव में सबसे गरीब परिवारों में से एक है. गैंग रेप की शिकार लड़की और उसके दोस्त को सड़क पर फेंकने के बाद उस लड़के ने इत्मीनान से चाय बनाई और अन्य आरोपी अक्षय ठाकुर के साथ बस की सफाई की. फिर उसने रविदास कॉलोनी में ठाकुर के घर पर टीवी देखते हुए रात गुजारी. उसके लिए जैसे हर रोज की तरह आम दिन था.
उसके साथ काम करने वाले काउंसलरों का कहना है कि उसमें खास तरह की मनोविकृति दिखाई देती है. इस तरह के लोगों को समझना सबसे मुश्किल काम होता है. दिल्ली स्थित क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रजत मित्रा कहते हैं, ‘‘करीब 30-35 फीसदी बाल अपराधी मनोविकृति के शिकार होते हैं, जिनमें 10 वर्ष तक के बच्चे भी शामिल हैं. वे जानते हैं कि किस तरह शिकार को जाल में फंसाया जाए. यहां तक कि वे काउंसलरों तक को झांसा देने की कोशिश करते हैं कि वे सुधर चुके हैं.’’
हक संस्था की भारती अली इसी तरह के एक किशोर के बारे में बताती हैं, जिसे बार-बार अपराध करने के बाद लाया गया था. पहली बार उसे हत्या की कोशिश के आरोप में लाया गया, लेकिन उसके खिलाफ कोई सबूत न होने से उसे छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद उसे हत्या की एक और कोशिश के मामले में लाया गया और उसे सजा सुनाई गई. जब वह सुधार गृह में सजा काट रहा था, तो उसने हंगामा करने और खिड़कियों के शीशे तोडऩे के बाद भागने की कोशिश की. अली कहती हैं, ‘‘वह कुछ ही दिनों में 18 वर्ष का होने वाला था और वहां से उसे तिहाड़ भेज दिया गया.’’ अली के मुताबिक, ‘‘वह लड़का देखने में बहुत आकर्षक था और बॉलीवुड के हीरो की तरह दिखता था.’’
बाल अपराध समाज के सिर्फ गरीब तबके तक ही सीमित नहीं हैं. मार्च, 2012 में हरियाणा के एक विधायक के किशोर उम्र के पौत्र पर छह वयस्क लोगों के साथ मिलकर जयपुर एमिटी यूनिवर्सिटी में बीटेक के तीसरे वर्ष के छात्र प्रशांत वीर की हत्या का आरोप लगा था. हालांकि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड उसे लंबे समय तक हिरासत में रखना चाहता था, लेकिन आरोपी के परिवार ने उसके लिए जमानत हासिल कर ली.
उम्र की सीमाएं धुंधली पड़ गई हैं. इसकी वजह से किशोर अपराधी जेजे एक्ट का लाभ उठा लेते हैं. पटना में बाल अपराध के मामलों से जुड़े वकील मानते हैं कि इस कानून में उम्र की सीमा का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है क्योंकि किशोर अपराधी इसी सीमा का फायदा उठाकर कड़ी सजा से बच जाते हैं. देश भर में इसका लाभ उठाया जा रहा है. इसीलिए कानून विशेषज्ञों, मनोविज्ञानियों और कानून लागू करने वालों की ओर से किशोर अपराधी की उम्र की सीमा 18 साल से घटाकर 16 साल किए जाने की मांग की जा रही है. लेकिन बाल अधिकारों की लॉबी इसके खिलाफ है.
पूर्व डीजीपी और प्रयास नाम के एनजीओ के संस्थापक आमोद कंठ बाल अपराधियों और उपेक्षित बच्चों के साथ काम करते हैं. वे कहते हैं कि कुछ अपवादों के कारण कानून नहीं बदला जाना चाहिए. जेजे एक्ट की रूपरेखा तैयार करने वालों में शामिल रहे आमोद कंठ कहते हैं कि कानून में 2000 में संशोधन किया गया था और तब दुनिया भर के नियमों को देखते हुए किशोर अपराध के लिए उम्र सीमा 16 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी. अब दोबारा उसे घटाकर 16 साल करना आसान नहीं होगा क्योंकि भारत संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों के कन्वेंशन (यूएनसीआरसी), बीजिंग रूल्स और रियाद गाइडलाइंस जैसे तीन अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है.
इसके अलावा भारत में वयस्क की उम्र 18 साल मानी गई है. इस उम्र से पहले कोई भी व्यक्ति वोट देने, विवाह करने और वाहन चलाने की योग्यता नहीं रखता है. कंठ कहते हैं कि उम्र की सीमा कम करना कोई हल नहीं है. इसका हल जेजे कानून को सही ढंग से लागू करने में निहित है.
वे कहते हैं, ‘‘सरकार यह एक्ट लागू करने में असफल रही है, फिर बच्चों को क्यों दोष दिया जाए?’’ कानून देश के हर जिले में एक बाल कल्याण समिति, एक बाल हेल्पलाइन (1018), बाल अपराधी जस्टिस बोर्ड, किशोर कल्याण अधिकारी, सुधार गृह और सजा पूरी होने के बाद देखभाल का एक कार्यक्रम चलाने के लिए कहता है. लेकिन कानून के ये ज्यादातर प्रावधान सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं, खासकर इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू यानी कि परामर्श.
इस तरह का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि कितने बाल आरोपियों का वास्तव में पुनर्वास हो पाता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, करीब 10 फीसदी किशोर ही दोबारा अपराध में लिप्त होते हैं. लेकिन यह सिर्फ एक अनुमान है, क्योंकि नियम के मुताबिक, पुलिस किशोर की सजा पूरी होने के बाद उसके सभी रिकॉर्ड नष्ट कर देती है. अगर वह वयस्क होने पर अपराध करता है, तो उसका नाम दोबारा जुर्म करने वाले के रूप में नहीं जोड़ा जाता है.
बहुत से मामलों में अपराध के कारण किशोर का साहस और बढ़ जाता है, खासकर जब वह पकड़ा जाता है. किशोर अपराधियों की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उनसे पूछताछ करने वाले पुलिसकर्मी इस बात से हैरान हो जाते हैं कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं होता है. एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘मैंने किशोरों को यह बताते हुए सुना है कि किस तरह उन्होंने पीड़ित के हाथ पकड़े और वह आधी बेहोशी की हालत में छटपटाता रहा. लगता है उन्हें हत्या करने में मजा आता है.’’
संभव है कि दिल्ली के गैंग रेप के किशोर बलात्कारी को पीड़ित लड़की के दर्द से कराहने पर मजा आता रहा हो. अगर वह सचमुच में मनोरोगी है तो वह 20 साल की उम्र में छूटने के बाद भी अपराध कर सकता है. जुवेनाइल जस्टिस लॉ, जो उसे जल्दी ही आजाद होने की छूट देता है और जिसके अपराध के रिकॉर्ड को भी मिटा देने के लिए कहता है, उसमें निश्चित ही संशोधन किए जाने की जरूरत है. अब समय आ गया है कि नया बाल कानून बनाया जाए, जिसमें सिर्फ उम्र ही नहीं, बल्कि अपराध की गंभीरता को भी ध्यान में रखा जाए. समाज और सरकार खूंखार अपराधियों के आजाद घूमने का जोखिम नहीं उठा सकते, चाहे उनकी कोई भी उम्र हो. 17 साल के दिल्ली के इस बलात्कारी की घिनौनी हरकत में बच्चों जैसी कोई बात नहीं है. फिर उसकी दरिंदगी के लिए कानून उसे माफ क्यों करे. -साथ में रोहित परिहार