'लेदर की छुअन से मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई और मैं ठंडी आहें भरने लगी. उसने चाबुक को मेरी पीठ पर हल्के-हल्के थपथपाते हुए एक बार फिर चक्कर काटा. दूसरे चक्कर में उसने अचानक से चाबुक को झटका, और मेरे नितंबों के निचले हिस्से पर जड़ दिया...मेरे पूरे शरीर में हजारों वोल्ट का करंट दौडऩे लगा, और यह बहुत मीठा, अनजाना और मदमस्त एहसास था...मेरा शरीर हल्की-सी चुभन के एहसास से मदहोशी के सागर में गोते लगाने लगा...आनंद के सागर में गोते लगाने से पैदा हुई ऐंठन से मेरे हाथों में लगाई गई चमड़े की हथकडिय़ां कसती जा रही थीं.''
—ई.एल. जेम्स के लिखे उपन्यास फिफ्टी शेड्स
इस उपन्यास में अमीर बिजनेसमैन क्रिश्चियन ग्रे और कमसिन छात्रा ऐनास्टेसिया स्टील का एक अनोखा संसार है. इस तरह की दुनिया के बारे में दबी-छिपी जुबान में गॉसिपिंग तो होती रही है लेकिन इतनी खुलकर चर्चा का यह पहला मौका है. यहां चाबुक फटकारना, हथकडिय़ों में बंधकर मदमस्त होना, सेक्स टॉएज़ का भरपूर इस्तेमाल, आंखों पर पट्टी बांधकर सेक्स के खेल, स्पैंकिंग, लिफ्ट में सेक्स और रोल प्ले के जरिए चरम सुख हासिल किया जाता है.
यहां एक प्लेरूम है, जिसके कुछ कायदे हैं, जिन्हें तोडऩे की सजाएं हैं. सेक्स है और गहराई तक जुड़ा सुख का एहसास है. यहां कुछ भी वर्जित नहीं है.
यह सेक्स से जुड़े पावर गेम की नई तस्वीर है. इसे स्त्रियां रच रही हैं. अपनी किताब की कामयाबी पर ई.एल. जेम्स इतना ही कहती हैं, ''यह किताब पढ़ते वक्त औरतें ग्रे से प्रेम करने लगती हैं, वे ऐना को पसंद करती हैं और स्टोरीलाइन को भरपूर एंजॉय करती हैं. ''
इसमें आज दुनिया ही नहीं भारतीय मानस भी बखूबी गोते लगा रहा है और कामसूत्र की हमारी भूमि विदेशी इरॉटिका को लेकर नई अंगड़ाई ले रही है. चाहे कॉलेज कैंटीन हो, मेट्रो का डिब्बा या ऑफिस की गॉसिप. लोग हिंदीभाषी हों या अंग्रेजीदां. उम्र 19 हो या 55 साल. सबकी हसरतें इस अनजाने से संसार से रू-ब-रू होने की हैं.
एडमैन प्रह्लाद कक्कड़ कहते हैं, ''देश में नौजवान आबादी की मेजॉरिटी है और यही वजह है कि हमारी सोसाइटी सेक्स को लेकर खुल रही है. '' इरॉटिका के मामले में लंबे समय से बंजर हिंदी कथा साहित्य के लिए यह एक सबक है कि अगर आगे बढऩा है तो हदों को लांघते हुए पाठकों तक वह सब कुछ पहुंचाना होगा, जिसकी वे हसरत रखते हैं. वैसे भी एंटरटेनमेंट के इस दौर में पॉपुलर लिटरेचर तेजी से अपनी जगह बनाता जा रहा है.
हिंदी की वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती कहती हैं, ''हमारे यहां खुलापन काफी कम है. अगर कहीं है तो एक प्रतिक्रिया के रूप में है. चीजों को मैच्योर ढंग से देखने की भारी कमी है. हमारा कॉम्प्लेक्स माइंडसेट है जो करना चाहता है लेकिन देखना नहीं चाहता. '' हालांकि हमारी नई पीढ़ी की सोच बदल रही है.
इंटरनेट, फिल्में और मीडिया इस मानस को तैयार करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. यह औरतें ही हैं, जिन्होंने इस तरह के साहित्य की कमान थामी हुई है. इसका कारण उनका सामाजिक इतिहास है, जिसमें उनकी सेक्सुएलिटी को हमेशा से दबाया और नियंत्रित किया गया है. आधुनिक भारत अभी अपने इरॉटिक संसार की खोज में है.
एक अधेड़ औरत का फंतासी लैंड
फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे की कहानी आदम और हौवा के किस्से से एकदम उलट है. उन्हें वर्जित फल खाने पर जन्नत से बाहर होना पड़ा था पर यहां वर्जना को तोडऩे पर ही आनंद की अनुभूति होती है. यह किताब स्त्री की सेक्सुअल आजादी की खोज न होकर उसकी दमित सेक्स फंतासियों का किस्सा है.
लंदन की 49 वर्षीया एरिका लियोनार्ड उर्फ ई.एल. जेम्स ने ग्रे और ऐना के जरिए ऐसी ही फंतासियां बुनी हैं. इस रोमांस की स्टोरी में सेक्स का इस्तेमाल ताकत और प्रेम का नए ढंग से इजहार करने के लिए होता है. बेहद रईस आदमी एक आम औरत को अपने तरीके से यानी सेक्सुअल डॉमिनेशन की राह अपनाकर भोगता है. फिफ्टी शेड्स ऑफ डार्कर में ग्रे और ऐना की प्रेम कहानी आगे बढ़ती है तो फिफ्टी शेड्स ऑफ फ्रीड में वैवाहिक जीवन का सफर.
फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे का अब तक विश्व की 46 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और अब इसे हिंदी में लाने की भी तैयारी हो रही है. रैंडम हाउस पब्लिशर्स इंडिया की मार्केटिंग और पब्लिसिटी संभालने वालीं कैरोलाइन न्यूबरी बताती हैं, ''दुनियाभर में इस सीरीज की 6 करोड़ जबकि भारत में दो लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. ''
इस पर जेम्स इतना ही कहती है, ''इन किताबों को लेकर जिस तरह का रिएक्शन आ रहा है, उससे मैं अब तक हैरत में. '' हैरत होनी भी चाहिए. यह एक अधेड़ औरत का खुद का फंतासी लैंड है, जिसने उसे देर रातों को, ट्रेन में सफर करते और जब भी फुरसत के लम्हे मिले, उसे रचा है. बेशक ये किताबें इंग्लिश में हैं लेकिन इससे इरॉटिका को लेकर भारतीय समाज के एक हिस्से में नई तरह की हलचल पैदा हो गई है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्टुडेंट आकृति को ही लें. उसे किताबें पढऩे का शौक नहीं है लेकिन फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे को खत्म करने की इतनी जल्दी है कि वह मेट्रो के महिलाओं वाले डिब्बे में बाकी यात्रियों से बेपरवाह ऐना और ग्रे की मदमस्त दुनिया में डूबी हुई है. मल्टीनेशनल कंपनी में टेक्निकल एक्जीक्यूटिव गुडग़ांव के तरुण ने इस किताब के चर्चे सुनकर इसे फटाफट पढ़ डाला. अब वे बीडीएसएम (बॉन्डेज, डिसिप्लिन, सैडिज्म और मैसोकिज्म) के बारे में जानने में जुटे हैं.
कुछ महिलाओं को बीडीएसएम क्रूर लग सकता है लेकिन जैसा कि एक निजी कंपनी की एक्जीक्यूटिव 33 वर्षीया आकांक्षा (बदला हुआ नाम) बताती हैं, ''इससे हमारी बोरिंग लव लाइफ में जान आ जाती है. बॉन्डेज या स्पैंकिंग से अगर सेक्स का मजा बढ़ जाता है, तो बेडरूम में यह कैसे वर्जित हो सकता है? '' अंग्रेजों के साथ ही भारतीय मध्य वर्ग ने भी विक्टोरिया के जमाने की नैतिकता को किनारे लगा दिया है लेकिन हिंदी साहित्य इसे दर्ज करने में काफी हद तक नाकाम रहा है.
कमजोर दिल हिंदी कथा साहित्य
कामुक साहित्य को लेकर हिंदी कथा साहित्य खामोश नजर आता है. अधिकतर लेखकों ने दबी जुबान में कहीं-कहीं सेक्स को मसाले के तौर पर डाला है. मिसाल के तौर पर हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव को अपने बोल्ड कहानी संग्रह हासिल और अन्य कहानियां छपवाने में चार दशक लग गए.
राजेंद्र कहते हैं, ''इसका कारण हमारे परिवारों की सामंती संरचना है, जिसमें मां-बहनों-बेटियों के बारे में ऐसा नहीं लिखना है, का अंकुश बना रहता है. लेकिन इरॉटिक भूख तो मरती नहीं और पुरुष उसे बाजार में और अन्य स्रोतों से पूरा करता है. यह हिंदी समाज का दोहरापन और हिप्पोक्रेसी है.''
दरअसल हिंदी में यौन जकडऩ से मुक्ति की कमान महिला लेखिकाओं ने ही थाम रखी है. यहां कृष्णा सोबती के सूरजमुखी अंधेरे के, मृदुला गर्ग के चितकोबरा, मैत्रेयी पुष्पा के चाक उपन्यासों को लिया जा सकता है. हालांकि गर्ग फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे को कोई बहुत अच्छी किताब नहीं मानती हैं.
वे कहती हैं, ''आज सिर्फ सेक्स के विवरण मात्र दिए जा रहे हैं. उसके पीछे कोई सोच और सौंदर्यबोध नहीं है. '' वहीं मैत्रेयी पुष्पा को लगता है कि हिंदी में इरॉटिक साहित्य की कमी का कारण पुरुष प्रभुत्व है, जहां थोड़ा खुलकर लिखते ही औरत को 'छिनाल' जैसी उपाधियों से नवाजा जाता है. मनोहर श्याम जोशी, राजेंद्र यादव, महेंद्र भल्ला और कृष्ण बलदेव वैद जैसे पुरुष लेखकों की कहानियों में यहां-वहां अंतरंग संबंधों के विवरण मिलते हैं.
2010 में सेक्स के दौरान टॉर्चर में आनंद पाने वाली एक लड़की की कहानी मैं एक बयान लिखने वाले कहानीकार रवि बुले कहते हैं, ''हिंदी का लेखक पॉपुलर होना चाहता है पर पॉपुलिस्ट लिटरेचर से परहेज करता है. ऐसे में वह कुछ सीमित विषयों से ही खेलता रहता है. '' दरअसल हिंदी के लगभग सभी लेखक अब भी मध्यकालीन मूल्यों का पालन करते हैं, जिसमें सेक्स या अंतरंग संबंधों का जिक्र वर्जित है. यही नहीं, वे सेक्स पर लिखना-बोलना कुंठित मानसिकता वालों का काम समझते हैं.
अनुवाद से इरॉटिका दर्शन
हिंदी में अधिकतर इरॉटिक साहित्य अनुवाद से आता है. डी.एच. लॉरेंस का लेडी चैटर्ली'ज़ लवर, अलबर्टो मोराविया का रोम की नारी (वूमन ऑफ रोम), शोभा डे का सितारों की रातें (स्टारी नाइट्स), खुशवंत सिंह का औरतें (द कंपनी ऑफ वूमन) और तस्लीमा नसरीन का फ्रांसीसी प्रेमी (फ्रेंच लवर) कुछ ऐसे ही नाम हैं. यही नहीं, राजेंद्र सिंह बेदी, इस्मत चुगताई और मंटो उर्दू के प्रमुख नाम हैं, जिनकी कहानियों को हिंदी में सराहा जाता है.
जर्मन से हिंदी में अनुवाद करने वाले अमृत मेहता कहते हैं, ''अकसर अपशब्दों और यौन क्रिया के लिए दूसरी संस्कृति के संदर्भ में प्रयोग होने वाले शब्दों का विकल्प ढूंढऩा थोड़ा मुश्किल रहता है. एल्फ्रीडे यलिनेक के उपन्यास पियानो टीचर का अनुवाद करते समय मुझे ऐसी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ा. '' अनुवादक अशोक कुमार मूल कृति के भाव पर जोर देते हैं. उनके मुताबिक, ''इरॉटिक और अश्लील के बीच बारीक रेखा का ध्यान रखना पड़ता है. ''
उधर, समाज में इरॉटिका की बढ़ती स्वीकार्यता पर खुशवंत सिंह की औरतें पब्लिश करने वाले राजपाल ऐंड संस के मार्केटिंग डायरेक्टर प्रणव जौहरी बताते हैं, ''नॉर्मल की परिभाषा बदली है. फिल्मों में सब कुछ बढ़ गया है, बदलाव तो होंगे ही. '' राज पॉकेट बुक्स और मेरठ के मारुति प्रकाशन ने इरॉटिक विषयों को रंगीन-आकर्षक कवर में पेश किया है. राज कॉमिक्स के सीईओ मनीष गुप्ता कहते हैं, ''लंबे समय से कामसूत्र हमारा बेस्टसेलर है. ''
यही नहीं, प्राचीनकाल से लेकर सत्रहवीं सदी तक भारतीय साहित्य में श्रृंगारिकता और कामवासना भरी पड़ी है. कामसूत्र, कोकशास्त्र, सौंदर्य लाहिरी, गीत गोविंद, अनंग रंग आदि यहीं लिखी गई हैं. खजुराहो की मिथुन मूर्तियां कामना और वासना की दार्शनिक स्वीकार्यता को दर्शाती हैं. अपनी परंपरा से कट चुके हिंदी साहित्य पर विक्टोरियन नैतिकता हावी है. शादीशुदा लेकिन पैशनलेस कपल की जिंदगी में रस घोलने के लिए उसके पास कोई मौलिक रचना नहीं है. इसीलिए पश्चिम का इरॉटिक साहित्य कामसूत्र की धरती पर अपनी जगह बना रहा है.
-साथ में मनीषा पांडेय