● 'द डायरी ऑफ अ क्रिकेटर्स वाइफ' लिखने का खयाल कब और कैसे आया?
मैं जर्नलिंग (नियमित रूप से लिखना) करती थी. लेकिन जब मैंने लिखना शुरू किया, तब ऐसा कोई प्लान नहीं था कि मैं इसे किताब में कन्वर्ट करूंगी. 2021 में चेतेश्वर ने ही आइडिया दिया कि इसे तुम किताब की शक्ल क्यों नहीं देती! फिर मैंने सभी टुकड़ों में लिखे हुए पीस को इकट्ठा किया और फैसला किया कि चलो दिखाते हैं कि यह पढ़ने लायक है या नहीं.
● एक क्रिकेटप्रेमी के लिए यह किताब किन मायनों में खास है?
इसमें एक क्रिकेटप्रेमी को उनके फेवरेट क्रिकेटर की लाइफ को एक अलग एंगल से जानने-समझने को मिलेगा कि असल में 'बिहाइंड द सीन' कितना कुछ चल रहा होता है, कितनी मेहनत लगती है, कितना त्याग होता है और कितने साल लगातार मेहनत करने के बाद एक क्रिकेटर को इंटरनेशनल स्टेज पर मैच खेलने का मौका मिलता है.
● पुजारा जब खराब फॉर्म से गुजर रहे थे और लोग उन्हें काफी क्रिटिसाइज कर रहे थे, तब आपको कैसा लगता था?
एक क्रिकेटर की लाइफ में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं. ये हमारे वश में नहीं है कि क्या लिखा जा रहा है, क्या बोला जा रहा है. लेकिन एक परिवार के रूप में सपोर्ट कर सकते हैं ताकि उनकी मेंटल हालत स्थिर बनी रहे.
कई बार टेस्ट क्रिकेट चार-पांच मैचों की सीरीज होता है, एक-दो मैच में अगर परफॉर्मेंस ठीक नहीं रहता, तो भी मोराल डाउन करने की जरूरत नहीं है. जब भी कोई सीरीज चल रही है तो स्टेबल माइंड रहना बहुत जरूरी है.
● पहली बार पुजारा से कब मिलना हुआ, और कैसे आप दोनों लाइफ पार्टनर बने?
हमलोग पहली बार एक अरेंज मैरिज के सेटअप पर मिले थे, चेतेश्वर के मामाजी के यहां. वे बहुत शर्मीले थे और किसी कैफे या पब्लिक प्लेस पर नहीं मिलना चाहते थे, जिससे कि उन्हें कोई डिस्टर्बेंस हो. तो हम उनके मामाजी के घर पर मिले.
फिर हमने एक डेढ़ महीना बातें की, इंस्टैंटली कनेक्ट किया. फिर हम श्योर थे कि हमें एक-दूसरे से शादी करनी है. अब इस शादी को 12 साल हो गए.
● अनुष्का शर्मा ने एक बार किसी इंटरव्यू में कहा था कि 'विराट कोहली इज अ मेल वर्जन ऑफ अनुष्का शर्मा', पुजारा के बारे में आपका क्या कहना है?
नहीं, ऐसा कभी सोचा नहीं. चेतेश्वर इज चेतेश्वर, वे काफी इंट्रोवर्टेड हैं और मैं एक्स्ट्रोवर्टेड हूं. हमारी वैल्यू सिस्टम बहुत मिलती-जुलती है, लेकिन दोनों की पर्सनैलिटी काफी अलग है.
● आप एक समय कॉर्पोरेट फील्ड में काम करती थी. शादी के बाद आपने इसे छोड़ दिया. क्या आप अपने काम को मिस करती हैं?
शुरुआत में ऐसा बहुत लगता था. हमारी शादी काफी जल्दी 24-25 साल में हो गई थी. ऐसे में अगर दोनों को साथ में टाइम बिताना था तो किसी एक को जिम्मेदारी लेनी ही थी.
चेतेश्वर 11 महीनों तक ट्रैवल करते रहते थे, और मैं इतनी छुट्टी नहीं ले सकती थी. तो मैं जस्टिफाई न इधर कर पाती, न उधर. इसलिए जॉब छोड़ना मेरा सोचा-समझा डिसीजन था.
लेकिन एक साल के भीतर मैंने चेतेश्वर का बहुत सारा काम संभाल लिया. मैं अब कॉर्पोरेट जॉब को तो मिस करती थी, लेकिन काम को नहीं. और इसका दोहरा फायदा ये हुआ कि मैं अब पुजारा की हेल्प भी कर पा रही थी और उनके साथ समय बिताने का मौका भी भरपूर था.
और मेरी जो चाहत थी कि काम भी करूं और मुझे तरक्की भी मिले, जो इस फील्ड में भी मिल ही रही है, तो व्हाय नॉट!