- लंबे समय बाद स्वर्ण पदक से वापसी का अनुभव कैसा रहा? क्या ट्रेनिंग में किसी तरह के बदलाव भी किए?
करीब एक साल बाद मैंने चैंपियनशिप खेली. थोड़ी शंका थी कि पुराने प्रदर्शन को दोहरा पाऊंगी या नहीं. इस बार मेरा मुकाबला 48 किलो वर्ग में था. यह चैम्पियनशिप बहुत अहम थी क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए क्वालिफाई करना ज़रूरी था. ट्रेनिंग में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया, बस चोट से उबरने पर ज्यादा ध्यान दिया, लगातार ट्रेनिंग की और यही सोचा कि मेडल लेना है.
- आप ओलंपिक में 49 किलो वर्ग में खेलती हैं, यहां 48 किलो वर्ग में उतरीं. 1 किलो का अंतर ज्यादा असर डालता है?
बहुत ज्यादा. हम अपना वजन डेढ़ से दो किलो बढ़ाकर ट्रेनिंग करते हैं. बाद में जब वजन घटाते हैं तो मसल्स मेंटेन रखना बड़ी चुनौती होती है. अगर मसल्स लॉस हुई तो उसका असर आपकी ताकत और लिफ्ट पर पड़ता है. क्लीन एंड जर्क में तो यह साफ दिखता है।
- क्लीन एंड जर्क मुश्किल है या स्नैच?
मेरे लिए स्नैच मुश्किल है. क्लीन एंड जर्क ताकत पर निर्भर करता है, इसलिए उसमें मैं बेहतर करती हूं. स्नैच में तकनीक ज्यादा अहम होती है.
- वैसे ओलंपिक में तो 48 किलो वर्ग है नहीं. क्या उसके लिए आपको फिर वज़न बढ़ाना होगा?
अभी पक्का नहीं है. एशियाई खेलों के बाद ही तय होगा कि 48 किलो रहेगा या 53 किलो से शुरू होगा. फिलहाल मैं 48 किलो वर्ग में ही खेल रही हूं.
- आप मणिपुर के नोंगपोक इलाके से आती हैं. मैंने पढ़ा कि आप बचपन में लकड़ियां ढोकर लाती थीं और वही ताक़त आपको वेटलिफ्टिंग तक लेकर आई.
गांव में खाना पकाने के लिए लकड़ी लानी पड़ती थी. एक बार बहुत सारी लकड़ी इकट्ठी कर ली और कहा कि सब एक बार में उठाऊंगी. भाई ने मज़ाक में कहा, कैसे उठाओगी? मैंने उठा ली. उसी वक्त सबको लगा कि मुझमें ताक़त है. मां और भाई ने कहा कि खेलों में जाओ, खासकर वेटलिफ्टिंग में. बस, वहीं से शुरुआत हुई.
- रियो ओलंपिक्स के बाद आपने वेटलिफ्टिंग छोड़ने का सोचा था, क्या वजह थी?
रियो में कड़ी मेहनत के बाद भी नतीजा निराशाजनक रहा. लगा कि छोड़ दूं लेकिन मां ने समझाया कि खिलाड़ी हारते-जीतते रहते हैं. यह बात मेरे लिए प्रेरणा बन गई और मैंने वापसी की.
- और फिर आपने जीता टोक्यो में सिल्वर मेडल. सोचिये आप रियो के बाद छोड़ देतीं तो यह कैसे आता.
जी (हंसते हुए). मां की वही प्रेरणा काम आई.
- इस बीच आप कई इंजरीज़ से गुज़रीं. एक खिलाड़ी को चोट से उबरने में शारीरिक रूप से अधिक कठिनाई होती है या मानसिक?
दोनों. शारीरिक रूप से तो इलाज और ट्रेनिंग होती है, लेकिन मानसिक रूप से मज़बूत रहना सबसे जरूरी है. कोच, फिज़ियो की मदद के अलावा स्पोर्ट्स साइकोलॉजी से मैंने सीखा कि मन को मज़बूत रखकर जल्दी वापसी की जा सकती है.
- क्या कभी आपको महिला या नॉर्थ-ईस्ट से होने के कारण भेदभाव झेलना पड़ा?
अब तक तो नहीं. हां, शुरुआत में मुश्किलें आईं कि मैं लड़की हूं और गांव से इतनी दूर जाकर ट्रेनिंग करनी होगी. लेकिन राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कभी भेदभाव नहीं हुआ. उल्टा मेडल जीतने के बाद गर्व और बढ़ गया कि मैं नॉर्थ-ईस्ट से हूं.
- मणिपुर की मिट्टी में ऐसा क्या है कि लगातार वहां से महिला खिलाड़ी आगे आ रही हैं?
हार मानना हमारी फितरत में नहीं है. जो ठानते हैं, पूरा करके मानते हैं. मणिपुर में महिलाएं समाज से लेकर हर जगह आगे रहती हैं. मेरी मां भी बहुत मज़बूत रही हैं. वही सोच मुझे मिली.
- आप मैतेई समुदाय से हैं. मणिपुर में इधर काफी संघर्ष और तनाव की स्थिति रही. एक खिलाड़ी ऐसे में एकाग्र कैसे रह पाता है?
पिछले दो साल से हालात काफी खराब है. बच्चों की पढ़ाई रुक गई है. खिलाड़ी ट्रेनिंग नहीं कर पा रहे. युवा परेशान हैं. मैं, मेरीकॉम, कुंजरानी दीदी, सब मिलकर बच्चों को हिम्मत देने की कोशिश करते हैं कि वे मज़बूत बने रहें. लेकिन सच्चाई यह है कि बहुत से टैलेंट बाहर नहीं निकल पा रहे. उम्मीद है जल्द ही सब ठीक होगा.
- आगे की क्या योजना है?
अभी अक्टूबर में वर्ल्ड चैम्पियनशिप है. 48 किलो वर्ग में मेरा पहला वर्ल्ड चैम्पियनशिप होगा. फिर अप्रैल में एशियन चैम्पियनशिप और उसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स. मेरा टारगेट है कि मेडल ज़रूर लाऊं.
- धन्यवाद मीराबाई. वैसे आपको सब क्या बुलाते हैं, निक नेम?
सब चनू ही बोलते हैं. आप चनू कह सकते हैं.
- चनू या चानू ?
चनू. आप ठीक बोल रहे हैं.
- धन्यवाद चनू. आप ऐसे ही मेडल लाती रहें. शुभकामनाएं.
आपका भी बहुत धन्यवाद.