
जिमी शेरगिल के पास बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में कई साल का अनुभव है. सिंगल स्क्रीन थिएटर से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स तक, जिमी के नाम लंबा सफर दर्ज है. Netflix पर हालिया रिलीज वेब सीरीज ‘चूना’ में जिमी शेरगिल ने एक बाहुबली कैलकुलेटर शुक्ला का किरदार निभाया है. इंडिया टुडे हिंदी के असिस्टेंट एडिटर सुमित सिंह ने जिमी शेरगिल से उनकी वेब सीरीज ‘चूना’ और इंडस्ट्री में उनके अब तक के सफर पर बात की. इस बातचीत के अंश :
Netflix पर हाल ही में वेब सीरीज आई है ‘चूना’, जिसमें आपने कैलकुलेटर शुक्ला का किरदार किया है. पहली नज़र में पुरानी लीक पर लिखा एक बाहुबली का किरदार दिखता है ‘शुक्ला’, आपने इस रोल के लिए हां करने से पहले कोई कैलकुलेशन की थी?
(हंसते हुए) कोई कैलकुलेशन नहीं किया. आर्ट में कैलकुलेशन का कोई काम होता नहीं है. मैं कोई भी प्रोजेक्ट स्क्रिप्ट देखकर करता हूं. जब ‘चूना’ की स्क्रिप्ट आई तो इसे करने के लिए मेरे पास डेट्स नहीं थीं. लेकिन फिर जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मज़ा आया. मैंने जवाब दिया कि ये कर तो नहीं पाऊंगा लेकिन ये लिखी किसने है? बहुत शानदार लिखी गई है. बताया गया कि पुष्पेन्द्र नाथ ने लिखी है. मैंने कहा कि एक बार उनसे मिलकर ये बताना चाहता हूं कि स्क्रिप्ट बहुत दमदार लिखी है उन्होंने. फिर हम कई बार मिले. धीरे-धीरे उन्होंने मुझे ये शो करने के लिए मना ही लिया. बतौर एक्टर मुझे जब शुक्ला के किरदार में कुछ नया करने का स्कोप दिखने लगा तो मैंने भी सोचा कि ये करके देखा जाए. कई बार किसी चीज को देखने का नजरिया उसे नया बना देता है. इस बार इस किरदार को जिस नजरिए से देखने और दिखाने की कोशिश हो रही थी वो मुझे पसंद आई. इसीलिए ये शो करने के लिए मैं तैयार हुआ.
लेकिन जिमी शेरगिल का नजरिया किसी किरदार को स्क्रिप्ट से इतर कितना असरदार बना पाएगा यह शो के क्रिएटर पर भी तो निर्भर करता है. क्या हर बार आपको अपना नजरिया बरतने का मौका मिलता ही है? कैलकुलेटर शुक्ला के किरदार में आपके अपने प्रयोग कहां दिखते हैं?
दो तरह के लोग होते हैं. जैसे हमारी आपकी आम जिंदगी में भी होता है कि एक वो लोग होते हैं जो अपनी बात को लेकर अड़ जाते हैं. उन्हें जो चाहिए और जैसे चाहिए फिर वही होना चाहिए. ऐसे ही सिनेमा में भी डायरेक्टर हैं जो अपने आइडिया से हिलते नहीं. ये भी काम का एक तरीका होता ही है और कई लोगों के लिए कारगर भी होता है. लेकिन फिर आते हैं दूसरी तरह के लोग जो कुछ नया करना चाहते हैं.
डायरेक्टर के दिमाग में स्क्रिप्ट को लेकर चीजें बहुत क्लियर होती हैं कि ये कैरेक्टर ऐसा क्यों है. लेकिन जब एक्टर आता है तो ऐसी बहुत सी छोटी-छोटी चीजें उसकी परफ़ॉर्मेंस से आती हैं जिनसे वो किरदार और निखर के सामने आता है. और जब डायरेक्टर नई चीज करना चाहता है तो एक्टर का काम बेशक अच्छा हो ही जाता है. मुझे बेहद ख़ुशी है कि जब मैंने पहली बार ‘चूना’ की स्क्रीनिंग देखी तो उन छोटी-छोटी चीजों का असर शुक्ला के किरदार पर दिखाई दे रहा था जिसे शूट के दौरान आए कई सारे आइडिया की वजह से हम कर पाए. पूरी टीम साथ मिलती है आइडिया के लेवल पर, तभी स्क्रीन पर मैजिक होता है.

पटियाला यूनिवर्सिटी से बी.कॉम करते हुए कभी स्क्रीन के इस मैजिक का ख़्याल आता था?
दूर-दूर तक कहीं एक्टिंग का कोई ख़्याल था ही नहीं कॉलेज तक. जबकि स्कूल में थोड़ा बहुत थिएटर किया भी था धक्के से ही सही, लेकिन एक्टिंग करुंगा ये नहीं सोचा था. सिनेमा तो फिर भी बहुत दूर की बात थी. कॉलेज के बाद घरवालों ने धकेल दिया बॉम्बे (अब मुंबई). दिल में लगता नहीं था कि कुछ होगा. लेकिन पहुंच ही गए बॉम्बे तो एक्टिंग क्लास शुरू कर दी. घर से पूरा सपोर्ट था. लोगों के स्ट्रगल के सिर्फ क़िस्से सुने थे. जिस शहर में हर रोज़ हज़ारों लोग एक्टर बनने का सपना लेकर पहुंचते हों वहां कौन पूछता है आपको. मुझसे ज़्यादा मेरे दोस्तों और घरवालों को भरोसा था मुझ पर. तो कोशिश करनी शुरू की. कहा जो होगा देखा जाएगा.
जिस शहर में हर दिन हज़ारों लोग एक्टर बनने के सपने के साथ आते हैं, वहां आपने ऐसी क्या कोशिश की जिसने आपको गुलज़ार जैसे दिग्गज तक पहुंचा दिया और आपको ‘माचिस’ (1996) में काम मिल गया?
कुछ ख़ास नहीं किया…ऐसा कुछ जो अब बता सकूं. मैं तो अपने आपको खुशनसीब मानता हूं कि जब मैं गुलज़ार साहब से मिलने गया तो उन्होंने मुझे सुना. इनफ़ैक्ट मैं तो उनसे बतौर एक्टर मिला भी नहीं था. मैं बस ये सोच कर गया था कि एक्टिंग क्लास में थ्योरी बहुत पढ़ ली. अब मुझे सीखना था कि असल में फ़िल्म बनती कैसे है. क्या प्रोसेस होता है. कैसे एक कहानी इतने ख़ूबसूरत तरीक़े से स्क्रीन पर कही जाती है कि देखने वाला एक्टर के साथ हंसता है, रोता है, इमोशनल होता है. और ये सीखने के लिए गुलज़ार साहब से बेहतर गुरु और कौन हो सकता था. अगर मुझे वो उस वक़्त अपने असिस्टेंट के तौर पर भी काम देते तो मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात होती. लेकिन फिर उन्होंने ही कहा कि तुम असल में जो करना चाहते हो वो करो. उन्हीं के घर बैठकर मैंने ‘माचिस’ की स्क्रिप्ट पढ़ी और फिर वहीं मेरा रोल डिसाइड हुआ.
‘माचिस’ में आपके किरदार का नाम जिमी (जयमाल सिंह) है, क्या ‘माचिस’ करने की वजह से फ़िल्म इंडस्ट्री में आपको जिमी बुलाया जाने लगा?
नहीं-नहीं ऐसा नहीं था. ये गफ़लत होती है लोगों को लेकिन मामला ऐसा नहीं था. जिमी मेरे घर का नाम पहले से ही था. और पता नहीं इसे को-इन्सिडेंस कहेंगे या क्या कि जब गुलज़ार साहब ने पूछा कि तुम कौन सा रोल करोगे तो मैंने कहा जिमी. क्योंकि मुझे वो रोल एकदम भीतर से महसूस हो रहा था. पंजाब के उन दिनों की बहुत गहरी यादें थीं हमारे साथ. और मुझे उस स्क्रिप्ट में ये रोल अपने लिए बिल्कुल फ़िट लगा. इस कैरेक्टर की वजह से मेरा नाम जिमी नहीं पड़ा. मैं पहले से जिमी ही था (हंसते हैं)…

गुलज़ार के साथ काम करने की शुरुआत में घबराहट हो रही थी?
...(थोड़ा सोचते हुए) थोड़ा नर्वस तो था ही. इतने दिग्गज लोग थे साथ में. डायरेक्टर गुलज़ार साहब थे. मेरी जगह कोई भी होता तो नर्वस ही होता.
और इस नर्वसनेस के जवाब में गुलज़ार की तरफ से क्या भाव रहता था? मतलब कैसे बरतते थे वो नए अभिनेताओं को?
उनका जवाब देने का तरीका सबसे अलग था. आपका शॉट ओके है, अच्छा है या शानदार है इसकी एक पहचान होती थी. जब गुलज़ार साहब किसी के काम से खुश होते तो अपनी जेब से निकालकर एक टॉफी देते थे. वो हमेशा उनकी जेब में हुआ करती थीं. तो अगर किसी को टॉफी मिल गई समझो उसकी बल्ले-बल्ले. हर कोई चाहता था कि काम इतना शानदार करे कि उनसे टॉफी मिल जाए. मेरा मेन सीन जब आया और जब शॉट खत्म हुआ तो गुलज़ार साहब ने मुझे एक टॉफी नहीं, दो टॉफियां दे दीं. बस वहां मुझे फील हो गया कि मेहनत से करो तो हर चीज पॉसिबल है.

लेकिन ये कैसे पॉसिबल हुआ कि ‘माचिस’ के बाद आपको यशराज चोपड़ा की ‘मोहब्बतें’ (2000) मिली?
उनकी तरफ से ही कॉल आया था. शायद माचिस में मेरा काम पसंद आया होगा. लेकिन कास्ट की जो प्रोसेस होती है उससे कोई समझौता नहीं हुआ. कई दिन तक कैरेक्टर के लुक को मुझ पर टेस्ट किया गया. डायलॉग्स की रीडिंग हुई और तमाम टेस्ट करने के बाद जब उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाया तब ये रोल फाइनल हुआ. और आज जो मैं हूँ उसमें इस फिल्म का बहुत बड़ा हिस्सा है.

और आपके करियर में एक बड़ा हिस्सा तिग्मांशु धूलिया का कहा जा सकता है, जिन्होंने आपकी रोमांटिक हीरो वाली इमेज भी इस्तेमाल की ‘हासिल’ (2003) में, और फिर वो इमेज भी गढ़ी ग्रे शेड वाला बाहुबली, जो अभी ‘चूना’ में भी दिख रही है?
तिग्मांशु और इनके साथ के डायरेक्टर्स सिनेमा की नेक्स्ट जेनेरेशन वाला मामला है जो सिनेमा की जर्नी को आगे बढ़ाते हैं. अलग स्टाइल के साथ कहानी कहते हैं. देखने वालों के टेस्ट के हिसाब से नहीं कहते, बल्कि उनको नया टेस्ट डेवलेप करवाते हैं. शूट पर उम्मीद करते हैं कि एक्टर स्क्रिप्ट से ज्यादा भरोसा अपने भीतर से कुछ नया निकालने पर करेगा. और ऐसा होता भी है. तभी नई बात बनती है. हेल्दी सिनेमा बनता है.

आपकी पर्सनल हेल्थ भी तो औरों के लिए नया पैरामीटर सेट करती है. इस उम्र में भी आपकी फिटनेस वाकई कमाल है, वजह? और उम्मीद है आप बाकी सेलिब्रिटीज़ की तरह मोनोटोनस जवाब नहीं देंगे?
(हंसते हैं)...शुक्रिया आपका...इसे मैं तारीफ नहीं मानूंगा क्योंकि इसके पीछे मेहनत और डिसिप्लीन है. एक कमाल की चीज है योग. सुनने वाला सोचेगा कि फिर वही आसन-वासन. बोरियत होती है. लेकिन मेरा भरोसा करिए कि योग की बात जब मैं भी सुनता था तो बस ऐसा ही फील होता था. कौन करेगा योग भाई. लेकिन आज मेरी फिटनेस का सारा क्रेडिट योग को जाता है. आप करके देखो और और अपने भीतर चेंज फील करो. मैंने भी तभी शुरू किया जब और कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. लेकिन इतना असर होगा ये कभी सोचा भी नहीं था.
योग तो ठीक है, क्या जिमी शेरगिल मेडिटेशन की तरफ भी बढ़े हैं?
भाई झूठ क्यों बोलूं...कहने को तो कुछ भी फैन्सी सा कहा जा सकता है लेकिन सच ये है कि मुझसे होता नहीं मेडिटेशन वगैरह. कभी कोशिश भी नहीं की. मेरा मानना है कि इंसान का दिल साफ होना चाहिए बाकी सब ठीक ही होगा.

सिनेमा के पर्दे से घरों की टीवी स्क्रीन तक, आपने लंबा सफर किया है. ओटीटी के दर्शकों और सिनेमा हॉल के दर्शकों में, उनकी उम्मीदों में फर्क पाते हैं?
लॉकडाउन ने पूरे देश के दर्शकों को बदल कर रख दिया है. मजबूरी में ही सही लेकिन जब लोगों ने घर बैठे दुनिया भर का सिनेमा देखा, सीरीज देखीं तब उनका दिमाग खुला कि यार ये तो कमाल की चीज़ें हम घर बैठे देख सकते हैं. सिनेमा बनाने वालों को भी समझ आ गया कि बॉस अब नया तरीका निकालना होगा स्टोरी दिखाने का. कंटेंट में कोई कमी आपका दर्शक बर्दाश्त करेगा नहीं. तो सबने अपना-अपना तरीका बदल ही लिया न. आज से दस साल पहले कोई कहता कि सिनेमा के पर्दे पर दिखने वाले एक्टर टीवी का काम भी करेंगे तो कोई यकीन नहीं करता. लेकिन अब टीवी स्क्रीन के लिए भी शानदार कहानियां कही जा रही हैं. और कलाकार को अच्छे काम की भूख तो होती ही है.