• आलोचकों को आसानी होती है क्या कि मनीष वर्मा सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले से हैं और स्वजातीय हैं तो इन पर आरोप लगा दो?
आलोचकों को आसानी तो होती है क्योंकि मैं उनके गृह जिले से हूं और स्वजातीय भी हूं तो इस तरह के आरोप तो लगते ही हैं. लेकिन जब आप काम करते हैं तो ऐसे आरोप तो लोग लगाते ही रहते हैं. मुझे फर्क नहीं पड़ता.
• आप इस पर कैसे रिएक्ट करते हैं, जब आपसे कहा जाता है कि मनीष वर्मा नीतीश के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं?
जब मेरी ज्वॉइनिंग हुई थी तो उस समय से बात काफी चली थी. मैं 5 साल के लिए डेपुटेशन पर सीएम ऑफिस में था. जब डेपुटेशन खत्म हुआ तो मैं सोचता था कि मैं वापस लौट जाऊंगा. जब मैं ये बात सर (नीतीश कुमार) से कहता था तो वो मुस्कराते थे. फिर पता चला कि मेरा डेपुटेशन साल भर के लिए बढ़ गया. ऐसा करके साल-साल भर के लिए मेरा डेपुटेशन 4 बार के लिए बढ़ता रहा. मैं मानता हूं कि मेरे ऊपर सीएम नीतीश कुमार की कृपा थी. 2021 में मेरा डेपुटेशन खत्म हुआ और मैं ओडिशा जा रहा था. लेकिन फिर लगा कि बिहार में ही काम करते तो अच्छा होता. राज्य से एक अटैचमेंट (लगाव) था. फिर सीएम नीतीश कुमार से भी एक अटैचमेंट था और मैं लोगों के लिए काम करना चाहता था तो बिहार ही रुक गया.
• नीतीश सरकार के 7 निश्चय में एक निश्चय था - अवसर बढ़े आगे पढ़ें. लेकिन सच्चाई ये है कि सरकार शिक्षकों की भर्ती परीक्षा ठीक से नहीं करा पा रही है?
2015 में 7 निश्चयों के आधार पर चुनाव लड़ा गया था. गठबंधन को इसके नाम पर वोट भी मिला था. ये सातों निश्चय सरकार ने पूरे भी किए. युवाओं को स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड मिला. ऐसी अच्छी स्कीम आपको कहीं और नहीं मिलेगी. इसका लाभ छात्रों को मिला भी है. 4 लाख का लोन छात्रों को मिल रहा है और तुरंत लौटाने की बाध्यता भी नहीं है. छात्र इस लोन को 72 इंस्टॉलमेंट में आराम से नौकरी लगने के बाद लौटा सकते हैं.
• पेपर लीक पर नीतीश सरकार क्यों चूक जा रही है?
पेपर लीक पर बहुत पहले से कई गिरोह काम कर रहे थे और ये गिरोह के लोग बार-बार पेपर लीक कराते हैं. नीट पेपर लीक में जो गिरोह सामने आया, उसका नाम पुराने पेपर लीक में भी सामने आया. हम लोग इन गिरोह के सदस्यों को पकड़ते है, उन्हें सजा दिलाते है. इसके बाद ये लोग छूट जाते है और फिर पेपर लीक के काम में लग जाते हैं. अब सरकार इस पर गंभीर हो गई है, और सारे लूप होल को खत्म करने का काम रही है. जेल से छूटने के बाद भी इन गिरोहों पर नजर रखना जरूरी हैं. BPSC का भी पेपर जब लीक हुआ था तो उसकी जांच कराई गई, पेपर को फिर से कराया गया. जितने भी पेपर लीक हुए है उन सभी पेपर को फ्रेश तरीके से फिर से कराया गया है. कानून के रहते हुए भी अपराध तो होते ही है. हम कोशिश करते हैं कि पेपर लीक न हो लेकिन व्यवस्था में लूप होल तो हो ही जाता है. 24 जुलाई को बिहार सरकार ने पेपर लीक के खिलाफ एक विधेयक पारित किया है, जिसका नाम है - बिहार लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) विधेयक-2024. सरकार की नीयत एकदम साफ है कि हम लोग साफ-सुथरे तरीके से परीक्षा कराएं.
• बिहार में शराबबंदी क्यों फेल हो रही है? लोग अब भी जहरीली शराब पीने से मर रहे हैं? कुछ जिलों में तो शराब तस्कर घर तक शराब की होम डिलीवरी करा रहे हैं? आप शराबबंदी कानून को लेकर क्या सोचते हैं?
बिहार में अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू है. इससे पहले राज्य में बड़े स्तर पर लोग शराब पी रहे थे. बच्चों तक शराब की पहुंच हो गई थी. लोगों की ओर से जब इसका विरोध हुआ तो सरकार ने शराबबंदी लागू करने का फैसला किया. सीएम नीतीश कुमार का खुद का भी एक्सपीरियंस रहा हैं. उन्होंने बचपन में देखा है कि शराब की वजह से गांव में किस तरह मारपीट होती थी. सीएम की ओर से शराबबंदी का फैसला काफी सोच-विचार कर लिया गया है. पहले मैं भी समझता था कि एकाध पैग पी लेने से क्या ही नुकसान होगा? लेकिन ये स्लो पॉइजन है. सरकार की सोच है कि शराबबंदी करने से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा रुकेगी, बच्चों और गरीब तबके का भविष्य खराब होने से बचेगा, समाज का विकास होगा, शांति रहेगी. नीतीश कुमार समाजवादी सोच के व्यक्ति हैं इसलिए गरीबों का कल्याण सोचते हुए उन्होंने शराबबंदी लागू की.
• जहरीली शराब पीने से मरने वाले लोगों की संख्या के मामले में बिहार पहले नंबर पर क्यों हैं?
जहां पर शराबबंदी नहीं है वहां भी जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हुई है. शराब तस्करों की ग्रिड जहां होगी वहां ऐसी घटना होती है. शराबबंदी और जहरीली शराब से होने वाली मौतों के बीच सीधे तौर पर कोई रिश्ता नहीं है.
• नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी रहे प्रशांत किशोर उनकी शराब नीति को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठाते हैं?
ये प्रशांत किशोर का मानना है. कभी वो भी नीतीश कुमार के साथ थे और उनके विचारों से प्रभावित थे. प्रशांत किशोर से मेरी ज्यादा बातचीत या मुलाकात नहीं हुई है. कभी एकाध बार दुआ-सलाम हुई है और वो भी रास्ते में भेंट-मुलाकात के दौरान.
• बिहार विधानसभा का चुनाव पार्टी किसके नेतृत्व में लड़ेगी, क्या नीतीश कुमार पार्टी का सीएम फेस होंगे?
सीएम फेस तो नीतीश कुमार ही होंगे. ये बात बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के लोगों की ओर से भी साफ कह दी गई है. प्रशांत किशोर जी ने कहा था कि जेडीयू खत्म हो गई, ऐसी उनकी भविष्यवाणी थी. उन्होंने सबसे ज्यादा अगर किसी को गाली दी है तो वो सीएम नीतीश कुमार हैं. प्रशांत किशोर जानबूझकर नीतीश को लक्ष्य करते है. जहां पर लक्ष्य करने से कोई फायदा होता है, इंसान वहीं तो लक्ष्य करता है. प्रशांत किशोर सीएम नीतीश कुमार के अलावा किसी और को कुछ कहेंगे तो क्या ही फायदा होगा, इसलिए वो सिर्फ नीतीश कुमार के खिलाफ बोलते हैं. प्रशांत किशोर टारगेट भी नीतीश कुमार को करते हैं और फॉलो भी उन्हीं को करते हैं. अब उनको लगता है कि नीतीश कुमार बदल गए है लेकिन मैं नीतीश कुमार को 8 सालों से देख रहा हूं, वो बिल्कुल नहीं बदले हैं.
• नीतीश कुमार सत्ता में बने रहने के लिए बार-बार पाला क्यों बदलते हैं?
राजनीति में स्थिति बदलती रहती है. हम लोग बिहार के हितों के लिए काम करते हैं. बिहार का हित जिस गठबंधन में सुरक्षित नजर आता है, हम लोग उस गठबंधन का हिस्सा रहते हैं. हमारी पहली कोशिश रहती है कि हम अपने वजूद को बचाएं. और जब तक हम अपने वजूद को नहीं बचा पाएंगे तब तक हम लोग बिहार को कैसे बचाएंगे. राजनीति में हर तरह की बात होती है. लक्ष्य है कि हम लोगों के हितों को सुरक्षित रखे. हमने हमेशा गठबंधन बदला है लेकिन कभी अपनी नीतियां नहीं बदली हैं.
• 2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू का इतना खराब प्रदर्शन क्यों रहा?
चुनाव में एलजेपी (लोक जनशक्ति पार्टी) की वजह से हमें नुकसान हुआ. उन्होंने पैरलल (समांतर) एक ऑप्शन खड़ा किया जिसकी वजह से वोट बंट गए. कई जगह पर हमारी हार एलजेपी के कारण हुई थी.
• चिराग पासवान ने आरोप लगाए कि नीतीश ने उनके पिता जी रामविलास पासवान का सम्मान नहीं किया?
राजनीति में सब कुछ चलता है. नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जी कई जगह पर मिलकर साथ में काम भी किए हैं. कई बार मतभेद भी हुआ होगा. लेकिन चिराग जिस राज्यसभा चुनाव को लेकर आरोप लगा रहे हैं, उस चुनाव में सीएम नीतीश कुमार की वजह से रामविलास पासवान राज्यसभा पहुंचे थे. चिराग को कुछ भी लग सकता है लेकिन सीएम नीतीश कुमार का किसी को हर्ट करने की मंशा नहीं थी. अब देखिए सब ठीक है. हम लोग साथ में हैं. लोकसभा चुनाव में एक दूसरे के लिए प्रचार भी किए हैं.
• आरसीपी सिंह पार्टी छोड़कर क्यों गए? कहा जाता है एक अफसर वो भी थे जो सब छोड़ राजनीति में आए लेकिन बाद में पार्टी छोड़कर चले गए?
ये महज एक संयोग है कि उन्होंने भी VRS (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) लिया था. वो भी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, पार्टी के अध्यक्ष रहे थे. मुझे लगता है कि पार्टी की ओर से उन्हें भरपूर सम्मान मिला था. मामला कैसे बिगड़ा इसे लेकर लोगों की अलग-अलग राय है. एक चर्चा ये है कि पार्टी की इच्छा के विरुद्ध जाकर वो खुद मंत्री पद ले लिए, क्योंकि वो उस समय राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. पार्टी का स्टैंड था कि हम लोग तीन मंत्री चाहते थे. उस समय कुछ दलों के सांसद कम थे तब भी उन्हें एक मंत्री पद मिल रहा था और हम लोगों के पास 16 सदस्य थे तब भी हमलोगों को एक ही मंत्री पद मिल रहा था. शायद यही सोचकर पार्टी ने स्टैंड लिया कि हम लोग मंत्री पद नहीं लेंगे, लेकिन आरसीपी सिंह पार्टी की इच्छा के विरुद्ध जाकर मंत्री पद ले लिए. इसे लेकर मतभेद हो गया. आरसीपी सिंह को भी इस पूरे मामले को ईगो पर नहीं लेना चाहिए था. जिस व्यक्ति के साथ आप 16 साल काम किए हों उसके साथ ईगो नहीं करना चाहिए था. आरसीपी सिंह सत्ता पटलने की तैयारी में थे कि नहीं, इसकी मुझे जानकारी नहीं है.
• अक्टूबर 2014 में दशहरा के दिन पटना के गांधी मैदान में भगदड़ से 33 लोगों की मौत हुई थी. आरोप लगा कि तब पटना के जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा स्थिति को सही तरीके से हैंडल नहीं कर पाए. घटना के वक्त वो पटना के होटल मौर्या में अपने बेटे का जन्मदिन मना रहे थे?
ये मेरे जीवन की सबसे दुखद घटनाओं में से एक है. उस समय जब रावण दहन के कार्यक्रम का पेपर मेरे पास आया, तो उससे पहले सिर्फ चार लाइन का आदेश निकलता था लेकिन मैंने इस कार्यक्रम के लिए नए सिरे से सारे आदेश दिए. सुरक्षा के सारे इंतजाम किए. अधिकारियों के साथ मीटिंग की और सारी तैयारी की. उस समय पटना सिटी में भी एक कार्यक्रम होता था और एक कार्यक्रम गांधी मैदान में होता था. लेकिन दुर्भाग्य से उस साल पटना सिटी वाला कार्यक्रम नहीं हुआ तो वहां की भी सारी भीड़ गांधी मैदान में ही रावण दहन का कार्यक्रम देखने आ गई. घटना के बाद एक बात और पता चली थी कि किसी ने घटना स्थल पर ये अफवाह फैला दी थी कि तार बिजली का गिरा है लेकिन वो तार बिजली का नहीं था, वो तार केबल का था. इसकी वजह से भीड़ में डर का माहौल बन गया और देखते-देखते भगदड़ मच गई. उस दिन मेरे बेटे का पहला बर्थडे था. हमने बर्थडे का फंक्शन होटल में 7.30 बजे रखा था लेकिन मुझे जैसे ही घटना का पता चला, मैंने बर्थडे पार्टी तुरंत कैंसिल कर दी और घर से ही तुरंत पीएमसीएच अस्पताल पहुंचा, घायलों से मिलने. उस समय मीडिया में मुझे लेकर खबर चली कि घटना के वक्त मैं पार्टी कर रहा था. मैं चैलेंज करता हूं कि कोई भी एक भी फोटो दिखा दे कि मैं पार्टी कर रहा था. मैं अब बाद में भी उस घटना के बारे में सोचता हूं तो मुझे लगता है कि मैं कुछ नहीं कर सकता था. मैं वहां पर रहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता था.
• पुल गिरने के कारण बिहार सरकार की खूब किरकिरी हुई, आखिर में बिहार सरकार कहां चूक रही है कि इतने पुल गिर रहे हैं?
पुल गिरने को लेकर जब खबरें आ रही थीं तो ऐसा लग रहा था कि मानो कितना भ्रष्टाचार हुआ है. गिरते पुल को देख पहला रिएक्शन यही आता है कि ये करप्शन का शिकार हो गया. पुल गिरने को लेकर जब जांच हुई तो दो तरह के मामले सामने आए. पहला ये कि 6 पुल जो गिरे हैं वो गंडकी नदी में गिरे हैं. ये सारे पुल 15 साल से डटे हुए थे, तमाम बाढ़-बारिश झेले, फिर सब इस बार ही क्यों गिरे? इसकी जांच की गई तो पता चला कि इस नदी में रिवर लिंकिंग का काम चल रहा है. खुदाई चल रही है. जो सुपरवाइजर और कॉन्ट्रैक्टर थे उन्हें पुल के पिलर के पास खुदाई के समय एहतियातन सुरक्षा के खास इंतजाम करने चाहिए थे लेकिन वो लोग ऐसा नहीं किए. इंजीनियर, ठेकेदार सबकी जिम्मेदारी थी ये देखना, लेकिन सबकी लापरवाही की नतीजा ये रहा कि पुल गिर गिए. अब सभी जिम्मेदार लोगों पर एक्शन हो रहा है. जो निर्माणाधीन पुल गिरे उसके लिए भी ठेकेदार और इंजीनियर जिम्मेदार थे. आमतौर पर निर्माणाधीन पुल पर 15 जून के बाद काम रोक दिया जाता है बारिश और बाढ़ की वजह से. लेकिन ठेकेदार के काम जल्दी करने के चक्कर में 15 जून के बाद बरसात के सीजन में भी काम जारी रखा गया और नतीजतन पुल गिर गया. पुल गिरने से सरकार की छवि को धक्का लगता है. एक्शन जिन पर होना था सब पर हुआ है.
• तेजस्वी यादव पर क्या सोचते हैं? क्या आप उन पर कुछ बोलने से बचते हुए नजर आएंगे? इस संभावना को देखते हुए कि कहीं फिर से 'बिहार के हितों' की चिंता करते हुए नीतीश फिर आरजेडी के साथ न चले जाएं.
अगर तेजस्वी यादव की ओर से हम लोगों पर और पार्टी पर अनर्गल आरोप लगेंगे तो हम उसे डिफेंड करेंगे ही. रही बात तेजस्वी जी के बारे में सोचने की तो तेजस्वी जी लालू जी के बेटे हैं. उन्हें विरासत में काफी कुछ मिला है. अपनी पार्टी के लिए जितना हो सकता है उतना काम तो कर ही रहे हैं वो. ये जनता को डिसाइड करना है कि वो कैसे नेता हैं, मेरे कहने और न कहने से क्या फर्क पड़ता है.
• वो प्वॉइंट क्या था जब नीतीश ने आपसे कहा कि 'अब क्या करोगे IAS की नौकरी करके अब VRS ले लो और राजनीति में आ जाओ'?
ये बेहद निजी फैसला था. कोई व्यक्ति किसी के पर्सनल फैसलों में दखल नहीं देता. मैंने कभी सोचा नहीं था कि राजनीति में आऊंगा. मैं तो सिर्फ अधिकारी के तौर पर काम करता रहा था. न मैं किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव रहा हूं, न ही मुझे कभी पेपर में छपने का कोई शौक रहा. मैं बस काम पर फोकस रखता था. मैं बचपन से बिहार को देख रहा हूं और सीएम नीतीश के कार्यकाल वाले बिहार को भी देख रहा हूं. नीतीश सरकार ने बिहार में काफी काम किया है. सड़कें अच्छी हुईं, बिजली आई. नीतीश ने मुझे बिहार के लिए काम करने का मौका दिया. मुझे गर्व है कि मैं अपने राज्य के लिए काम किया हूं और अब आगे भी करता रहूंगा.
• आप 2024 लोकसभा चुनाव में नालंदा सीट से जेडीयू के टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे?
मैं नालंदा से कभी टिकट का दावेदार नहीं था. अगर दावेदार होता तो प्रचार करने के लिए जाता, लेकिन मैं नहीं गया. लोगों के बीच ये बात हो सकती है लेकिन मैं अपनी तरफ से कभी टिकट की दावेदारी लेकर नहीं गया. ये तो 6 महीने पहले ही तय हो गया था कि मैं नालंदा सीट से उम्मीदवार नहीं हूं.
• क्या राज्यसभा के दावेदार होंगे?
ये गठबंधन का मामला है. जिस हिसाब से सीटें तय होंगी उसी हिसाब से उम्मीदवार तय होंगे. वैसे भी ये शीर्ष नेतृत्व का फैसला है.