मैदान के बाहर वे काफी विनम्र और शांत हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि मैच के दौरान उनका रवैया बदल जाता हो. फील्ड पर भले ही कितना तनाव हो, चेतेश्वर पुजारा अपने भीतर की शांति तब भी भंग नहीं होने देते. ऐसा लगता है जैसे उन्हें अपने विचारों पर पूरा कंट्रोल है. और शायद यही वजह है कि जब वे मुश्किल हालात में सबसे मजबूत टीमों की गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ बल्लेबाजी करते हैं तो उनका हर एक शॉट चयन और गेंदों को खाली छोड़ना धैर्य की डेफिनिशन को और खूबसूरती से बयां करता है.
दिग्गज राहुल द्रविड़ के बाद टीम इंडिया में टेस्ट क्रिकेट के दूसरी 'दीवार' कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा परिस्थितियों को बहुत अहमियत देते हैं. 15 साल से अधिक समय इंटरनेशनल क्रिकेट में गुजार चुके पुजारा कहते भी हैं, "जब आप अपने देश के लिए टेस्ट क्रिकेट खेल रहे होते हैं, तो आप सिर्फ अपना स्वाभाविक खेल नहीं खेल सकते. आप परिस्थितियों के अनुसार खेलते हैं." फिलहाल वे टीम से बाहर हैं लेकिन वापसी की उम्मीद अभी छोड़ी नहीं है.
हाल में चेतेश्वर की पत्नी पूजा पुजारा ने उनके क्रिकेट जीवन के अनकहे किस्सों को एक किताब की शक्ल दी है, जिसका टाइटल है: 'द डायरी ऑफ अ क्रिकेटर्स वाइफ'. इस मौके पर चेतेश्वर पुजारा ने इस किताब और अपने निजी जीवन के बारे में इंडिया टुडे (डिजिटल) के सब-एडिटर सिकन्दर के साथ खास बातचीत की. संपादित अंश:
● टेस्ट क्रिकेट फिजिकल से ज्यादा मेंटल गेम है. राहुल द्रविड़ इसकी तैयारी के लिए घंटों शॉवर लेते थे, टॉयलेट पर बैठ कर खुद को रिलैक्स करते थे ताकि क्रीज पर भी वे शांति से टिक सकें. उन्हीं की तर्ज पर आपको दूसरी 'दीवार' कहा जाता है, आपकी तैयारी कैसी रहती है?
हर खिलाड़ी की अलग तैयारी होती है. मैं ऑन फील्ड घंटों प्रैक्टिस के अलावा योग, प्रार्थना और ब्रीदिंग एक्सरसाइज करता हूं, जिससे मुझे निगेटिव विचारों को कंट्रोल करने में मदद मिलती है. जब आप फील्ड पर प्रेशर सिचुएशन में बल्लेबाजी करते हैं, उस समय दिमाग में बहुत से खयाल आते हैं. इन थॉट्स को कंट्रोल करना बहुत जरूरी होता है.
फील्ड पर खेला जाने वाला कोई भी स्पोर्ट्स आपकी इंस्टिंक्ट पर काफी निर्भर करता है. अगर किसी का दिमाग ज्यादा चलता है तो बॉडी अपने आप थोड़ी स्लो हो जाती है. अगर दिमाग को ठंडा रखा जाए, और थॉट्स को कंट्रोल किया जाए तो फिर आपका इंस्टिंक्ट खेल में आ जाता है. प्रैक्टिस इस इंस्टिंक्ट को बेहतर बनाती है. दिमाग को कंट्रोल कर अपना स्वाभाविक खेल अच्छी तरह खेला जा सकता है.
● 2021 में ब्रिस्बेन (गाबा) का वो ऐतिहासिक टेस्ट, आपने शरीर पर कई खतरनाक चोटें झेली, फिर भी टीम को जीत की दहलीज तक ले गए. उस पूरे समय आपकी सोच क्या रही थी?
वो काफी मुश्किल सीरीज थी. टीम में इंजुरी की काफी घटनाएं हुई थीं, और बहुत से खिलाड़ी उपलब्ध भी नहीं थे. इसकी वजह से नए खिलाड़ियों को मौका मिला था, जिन्होंने मौके का भरपूर फायदा उठाया. वे सीरीज को आखिरी मैच तक ले गए. गाबा का मैच निर्णायक था. वहां सबने मिलकर यह तय किया था कि 2018 में पिछली बार की तरह इस बार भी सीरीज जीत सकते हैं.
उस समय मेरे दिमाग में यही था कि पहला सेशन अच्छी तरह खेल कर निकालना है. वहां एक छोर पर विकेट में एक्स्ट्रा बाउंस था, असमतल उछाल था जहां अनुमान लगाना बहुत मुश्किल हो रहा था. मैंने रणनीति बनाई थी कि अगर गेंद मेरी कमर के ऊपर आएगी, तो मैं उसे बल्ले से खेलने के बजाय शरीर पर ले लूंगा. क्योंकि खेलने की कोशिश में गेंद बल्ले या ग्लव्स को लग सकती थी, और आउट होने का चांस ज्यादा होता.
पहला सेशन इस लिहाज से अहम था, और वहां पार्टनरशिप बनाना जरूरी था. इस कोशिश में शरीर पर कई गेंदें लगीं, लेकिन फोकस क्लियर था कि जीत हासिल करनी है, सीरीज जीतनी है.
● आपने महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली और रोहित शर्मा इन सबकी कप्तानी में क्रिकेट खेला. सबसे शानदार ट्यूनिंग किसके साथ रही?
ये सभी दिग्गज खिलाड़ी हैं, और मेरी सबके साथ ट्यूनिंग अच्छी रही. मेरे टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत माही भाई (धोनी) की कप्तानी में हुई. काफी अच्छी यादें रही हैं, जब तक माही भाई टेस्ट क्रिकेट खेल रहे थे. उनके रिटायरमेंट के बाद विराट कप्तान बने. उनकी कप्तानी में हमने पहली बार ऑस्ट्रेलियाई धरती पर टेस्ट सीरीज जीती. काफी अच्छी यादें रहीं उनकी कप्तानी में भी. इसके बाद रोहित कप्तान बने, और उनके साथ भी मेरा अच्छा समय गुजरा. मेरा 100वां टेस्ट रोहित की कप्तानी में था.
● भारत एक विविधता से भरा देश है. बिहार, बंगाल, गुजरात, पंजाब, मद्रास और देश के अन्य हिस्सों से खिलाड़ी टीम इंडिया में आते हैं. यह डायवर्सिटी दूसरे साथी खिलाड़ियों को कितना और किस तरह से प्रभावित करती है?
असर कुछ खास नहीं होता, क्योंकि सभी भारतीय टीम के लिए खेल रहे होते हैं. चाहे आप गुजरात से आ रहे, बेंग्लुरु से आ रहे, साउथ इंडिया से आ रहे, अल्टीमेट गोल यही रहता है कि भारतीय टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन करना है. टीम को मैच जिताना है. इसके लिए टीम के सभी प्लेयर काफी मेहनत करते हैं, काफी अनुशासन में रहते हैं. कोई भी जीत आसानी से नहीं मिलती. जब सभी प्लेयर्स मिलकर टीम के लिए अच्छा खेलते हैं, तब भारतीय टीम जीतती है.
● क्या वजह रही कि आपका क्रिकेट करियर टेस्ट तक ही सीमित रहा?
(ठंडी आह भरते हुए) टेस्ट क्रिकेट मेरे लिए काफी मायने रखता था, और प्राथमिकता टेस्ट क्रिकेट ही थी. इसी की वजह से मुझे व्हाइट बॉल क्रिकेट में कम मौके मिले. क्योंकि अगर एक खिलाड़ी के तौर पर आपकी प्राथमिकता टेस्ट क्रिकेट है तो आपको टेस्ट क्रिकेटर का टैग मिल जाता है. लेकिन अगर आप घरेलू मैचों में व्हाइट बॉल क्रिकेट में मेरा प्रदर्शन देखेंगे, चाहे वो टी-20 हो या वनडे फॉर्मेट, तो उसमें काफी अच्छा रहा है. तो मौके कम मिले, इसी की वजह से मुझे लगता है कि टेस्ट क्रिकेटर का टैग ज्यादा मिल गया.
● आप बहुत संजीदा नजर आते हैं, क्या इंस्टाग्राम पर कभी रील वगैरह भी देख लेते हैं?
नहीं, जितना हो सके, मैं सोशल मीडिया से दूर ही रहता हूं. हां, थोड़ा एक्टिव रहना भी जरूरी है तो मेरे फोटो पोस्ट होते रहते हैं. मैं रील्स वगैरह नहीं देखता, क्योंकि मैं एक अच्छा रूटीन फॉलो करने की कोशिश करता हूं. क्रिकेट प्रैक्टिस के अलावा अपनी फैमिली के साथ टाइम बिताना पसंद करता हूं, अपने दोस्तों से मिलता हूं, रिश्तेदारों से मिलता हूं.