
डेढ़ महीने पहले निषाद जाति के नेता हरि सहनी को भाजपा ने बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाया है. माना जा रहा है कि यह पार्टी का निषादों और अति पिछड़ों को अपने पक्ष में करने का बड़ा दांव है. महज सवा साल पहले वे पहली दफा विधायक बने, जब पार्टी ने उन्हें विधान पार्षद मनोनीत किया था. विधायकी के इतने कम अनुभव के बावजूद उन्हें इतना बड़ा पद देना एक बड़ा राजनीतिक दांव माना जा रहा है. हमने भाजपा के इस नए चेहरे को समझने के लिए उनसे बातचीत की है. पढ़िए बातचीत के अंश :
आप राजनीति में कैसे और क्यों आए?
हमको बचपन से ही लगता था कि आजादी के इतने दिन बीत गए, लेकिन देश में अभी भी फूस के मकान हैं, इतनी गरीबी है. हमको लगता था, यह सब तो नेताओं की वजह से है. तब हम सोचते थे कि कोई तो ऐसा नेता बने जो सभी फूस के घरों को पक्का मकान बना दे. हर खेत तक पानी पहुंचा दे. विद्या छूकर कहते हैं, यही सोचकर हम राजनीति में आए.
वैसे तो हम 1995 से राजनीति में हैं, भाजपा के पंचायत अध्यक्ष थे तब. मगर 2006 में बाबा रामदेव ने हमको अपनी संस्था का दरभंगा का जिला अध्यक्ष बनने कहा. तब हम मछली पकड़ते थे, बेचते थे. हम जब बाजार में जाते थे, तो लोग कहने लगते थे, अरे मछली का गंध कहां से आ रहा है. हम जानते थे, मछली का गंध तो हमारे शरीर में बसा है. कपड़ा और स्वेटर में घुसा है. आएगा ही. हमने कहा, हमको अपनी संस्था का अध्यक्ष मत बनाइए. हम मल्लाह आदमी हैं. किसी और को बनाइए. मगर वे लोग जिद करने लगे, बनना पड़ा. फिर उसी साल एक दिन हम मछली खाना छोड़ दिए. तब से हम मछली पकड़ते थे, बेचते थे, मगर खाते नहीं थे. आज भी नहीं खाते हैं. हम तो वेद व्यास के वंशज हैं न. अब तो बेचते भी नहीं हैं, दुकान किराए पर दे दिया है.
राजनीति में आपकी विचारधारा क्या है?
देखिये, आप हमको मूर्ख आदमी कह सकते हैं. मगर हम अलग तरह के आदमी हैं. भगवान के भक्त हैं, आध्यात्मिक हैं. देश के भक्त हैं और भाजपा के गुलाम हैं. अब जैसे देखिये, मेरे घर में जब हमारे अपने लिए कूलर नहीं था, तब भी हमारे पूजा घर में चौबीसों घंटे कूलर चलता था. अब इसको आप चाहे जो कहिए. मैंने अब तक जितनी फिल्में देखी हैं, उनमें से 90 परसेंट देशभक्ति फिल्में देखी हैं. मेरी गाड़ी में कभी भी देशभक्ति गाना छोड़कर कोई और गाना नहीं बज सकता. और मैं भाजपा को छोड़कर किसी और पार्टी में नहीं जा सकता.
2015 में एक पार्टी ने हमको खूब प्रलोभन दिया. पीछे पड़ गए. मगर मैं नहीं गया. 2020 में जब पार्टी ने हमको वीआईपी के टिकट पर चुनाव लड़ने कहा, तो हम सुशील मोदी जी के सामने रोने लग गए. हम अपनी पार्टी कैसे छोड़ दें. हालांकि बाद में बात मानना पड़ा. कहा गया, पार्टी हित में जाना है. वैसे, अच्छा ये हुआ कि हम चुनाव लड़ नहीं पाए. हमको हमेशा लगता है कि भाजपा ही ऐसी पार्टी है, जो देश को सुरक्षित रख सकती है. आगे बढ़ा सकती है.
आपने पहला चुनाव कब लड़ा?
2015 में पहली बार पार्टी ने बहादुरपुर से टिकट दिया था. तब मेरे खिलाफ राजद के भोला यादव मैदान में थे. वे लालूजी के सेक्रेटरी हैं और मंझे हुए नेता हैं. कई वजहों से मैं चुनाव हार गया. हालांकि उससे पहले जिला परिषद अध्यक्ष रह चुका हूं. भाजपा का जिला अध्यक्ष रह चुका हूं.
विधान परिषद में कैसे आए और नेता प्रतिपक्ष कैसे बने?
2019 में तो हम चुनाव लड़ते-लड़ते रह गए थे. तब हमसे कहा गया था, हमको एमएलसी बनाया जाएगा. फिर मंत्री बनाया जाएगा. मगर यह हुआ नहीं. मेरे बदले मुकेश सहनी एमएलसी बने, मंत्री बने. फिर हम बाबा रामदेव की शरण में पहुंचे. उन्होंने मेरी बात पार्टी के शीर्ष नेताओं तक पहुंचाई.
और आप तो बागेश्वर धाम भी गए थे?
हां, ठीक बोले. उस वक्त मेरा सब काम ठीक होते-होते गलत हो जाता था. मेरे एक परिचित ने कहा, बागेश्वर धाम जाइए. हम गए. एक ही दिन में बाबा ने हमको अपने पास बुला लिया. पूछने लगे, क्या चाहते हो? हम कुछ बोलते, तब तक पर्ची थमा दी. बोले, यही चाहते हो न? पर्ची पर लिखा था एमएलसी बनोगे. तो देखिये, एमएलसी भी बन गए और नेता प्रतिपक्ष भी. मंत्री भी बनते. हम सोचते थे कि मत्स्य पालन मंत्री बनेंगे तो अपने समाज के लिए ये करेंगे, वो करेंगे. मगर तब तक हमारा गठबंधन ही टूट गया था. बाबा पर वैसे भी हमको बहुत भरोसा है. हमारा कुछ पारिवारिक तनाव भी उनकी वजह से खत्म हुआ है.
आपको इतना महत्वपूर्ण पद मिला है, तो पार्टी के लिए क्या करेंगे?
देखिये, मैं जिस जिला में चला जाता हूं, उस जिला के अध्यक्ष और कार्यकर्ता मेरे दीवाने हो जाते हैं. मेरी भाषा, मेरी शैली और मेरे उद्बोधन को लेकर वे दीवाने होते हैं. तो मैं खूब परिश्रम करूंगा. मैं सोचता हूं, जिस व्यक्ति का परिजन आईसीयू में भर्ती होता है, वह थकता है क्या? उसी तरह हम भी नहीं थकते. वैसे भी मैं बाबा रामदेव का दिव्य पेय पीता हूं, इसलिए थकता नहीं हूं.
आज पूरे देश को गुलामी की कगार पर जाकर खड़ा कर दिया है. केवल नेताओं की तुष्टिकरण नीति के कारण न. आजाद भारत की तो नींव कमजोर हो गई. हमारे इतिहास को बदल दिया गया. हमारे शोषकों को हमारा देवता बना दिया. वो तो हमारे फिल्मकारों और गीतकारों ने हमें सच्चाई बताई. मैंने सदन में कहा था, यहां पर बैठे जितने जनप्रतिनिधि हैं, आप बिहार के लिए लड़ते हैं या अपनी पार्टी के लिए. बिहार के लिए लड़ते तो हमारे राज्य की यह दुर्दशा नहीं होती. मैं यही करूंगा. यह विषय राजनीति से जुड़ा नहीं, भावनाओं से जुड़ा है. एक भगत सिंह को फांसी मिलने से पूरा देश जाग जाता है. मैं उसी तरह देश में अलख जगाना चाहता हूं.
आपको निषाद नेता माना जा रहा है, आप खुद को क्या मानते हैं?
यह ठीक है कि मुझे निषाद नेता के रूप में माना जा रहा है, मगर मैं खुद को अतिपिछड़ा नेता के रूप में देखता हूं. उनको उनका हक दिलाना चाहता हूं.
मुकेश सहनी के बारे में क्या राय है?
मुकेश सहनी हमको गुरुजी ही कहता था. अपने समाज का है. हम हमेशा बढ़ावा दिए. जब राजद से नाता टूटा तो हम बोले, अरे ताड़ से गिरे हो, आसमान पर आ जाओ. बीजेपी के साथ आ जाओ. एनडीए में लाए. पार्टी ने उसको ग्यारह सीटें दीं. मगर बताइए, वह जाति के लिए क्या किया? कितने मल्लाहों को टिकट दिया? जयनारायण निषाद के बेटे के खिलाफ लड़ गए. वहां भी मल्लाह की भलाई नहीं सोची. जिस भाजपा ने ताकत दी, हेलीकॉप्टर पर घुमाया. यूपी में मल्लाह के विरोध में उम्मीदवार खड़े कर दिए.
मंत्री बनने पर एक भी मल्लाह उसके साथ नहीं रहा. क्यों सब भाग गए? जलाशय सोसाइटी में मल्लाह ही समिति के सदस्य बनते थे. इसने जलाशयों को सबके लिए खोल दिया. कोई भी बन सकता है. यह क्या मल्लाहों के पक्ष में किया? मल्लाहों को क्यों आरक्षण नहीं मिला, यह राज मैं बाद में खोलूंगा. समय आने पर.

अभी बिहार में जाति गणना हुई है. इस गणना के हिसाब से अतिपिछड़ों की संख्या सबसे अधिक है, मगर उनका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है. इसके अलावा निषादों को भी अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग हो रही है. आपकी क्या राय है.
मुख्यमंत्री जी ने कहा है, जिसकी जितनी आबादी है, उसको उतनी भागीदारी मिलनी चाहिए. मेरी भी यही राय है. अब मुख्यमंत्री जी को करके दिखाना चाहिए. निश्चित रूप से निषादों को एससी में शामिल किया जाना चाहिए. हम भी यह चाहते हैं. मेरी यह भावना है. बचपन से यह लड़ाई लड़ता आया हूं. जाति गणना से यह विषय अलग ढंग से खुलकर आया है.
अतिपिछड़ों की भी मांग जायज है. हमारी सरकार रोहिणी आयोग लेकर आई है. अब देखिए, उसमें क्या होता है. हम यहां चोंच में चोंच मिलाने तो आए नहीं हैं. हम चुनाव के वक्त निषादों को अधिक से अधिक टिकट दिलाने की कोशिश करेंगे.
बिहार में बीजेपी की अपनी सरकार कैसे बनेगी?
जनता पर आप जितनी अच्छी छाप छोड़ेंगे, उसी से आपकी सरकार बनेगी. हां, हमारे राज्य की जनता थोड़ी अलग है, जात-पात पर फोकस है इनका. मगर हम पार्टी से कहते हैं, हमको तीस में से तीस दिन जनता के बीच जाने दीजिए. हम जनता को यह समझाएंगे की राज्य का विकास जाति पति से नहीं, गुजरात मॉडल से होगा. तब हमारी अपनी सरकार बनेगी.
आप लोग नीतीश कुमार के साथ 15 साल रहे, तब क्यों कुछ नहीं कर पाए?
तब हम बैसाखी पर थे. हम किराए के घर में थे. एक बार हम लोगों ने राष्ट्रीय नेतृत्व से बहुत परेशान होकर कहा, हमारी सरकार है, मगर हम इस सरकार में किसी काम के नहीं हैं. तब बंद कमरे में अमित शाह जी ने कहा, हमने तब गठबंधन किया था जब बिहार में जंगलराज था. हमारा मकसद बिहार को जंगलराज से मुक्ति दिलाना था. हमने मुख्यमंत्री पद की कभी मांग नहीं की. सिर्फ बिहार की जरूरत के लिए. यही वजह है.