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"उत्तराधिकारी नहीं, हम तो नीतीश भक्त हनुमान ही बने रहना चाहते हैं"

बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी और उनकी बेटी व सांसद शांभवी चौधरी ने एक किताब लिखी है 'बिहार के गांधी - नीतीश कुमार'. यह किताब इस समय काफी चर्चा में है. इस पर इंडिया टुडे के संवाददाता पुष्यमित्र की अशोक चौधरी के साथ बातचीत हुई. पेश है संपादित अंश

अशोक चौधरी, बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री
अशोक चौधरी, बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य मंत्री
अपडेटेड 21 अगस्त , 2024

'बिहार के गांधी - नीतीश कुमार' में राज्य के ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी और उनकी बेटी शांभवी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तमाम मसलों पर तारीफ की है. लेकिन साथ ही एक चैप्टर में पूर्व मुख्यमंत्री और नीतीश के विरोधी लालू प्रसाद यादव को भी पिछड़ों के लिए वरदान बताया है. यह किताब लिखने की वजह, नीतीश से उनके संबंध और दूसरे कई मसलों पर पुष्यमित्र ने अशोक चौधरी से विस्तार से बातचीत की. इसके अंश 

किताब लिखना मेहनत का काम होता है. इतनी जिम्मेदारियों के बीच आपने इस काम को कैसे अंजाम दिया?

मैं अपने जीवन में दो लोगों से ही सबसे अधिक प्रभावित हूं. एक मेरे पिता, जिन्हें मैं भगवान समझता था. दूसरे नीतीश कुमार. जब मैं राजनीति में आया तो उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुआ. उनके काम करने का स्टाइल, उनके खाने-पीने का स्टाइल, उनके बात करने का स्टाइल, उनके सम्मान देने का स्टाइल, उनका तर्क करने का स्टाइल, विपक्षियों के साथ व्यवहार. इन सबसे मैं चमत्कृत रहता था. ऐसे में जब 2020 के विधानसभा चुनाव में हमें (जदयू को) सिर्फ 43 सीटें मिलीं तो यह हम सबके सीने में किसी शूल की तरह चुभ गया. हमें लगा कि नीतीश कुमार यह डिजर्व नहीं करते. उस वक्त ऐसा लगा कि शायद नई पीढ़ी यह नहीं जानती कि नीतीश कुमार ने किया क्या है और किन परिस्थितियों में बिहार के लिए काम करते रहे हैं. नई पीढ़ी को यह सब बताने के मकसद से मैंने यह किताब लिखी है. 

आप नीतीश कुमार के करीब कब और कैसे आए?

नीतीश जी के संपर्क में तो हम 2015 में आ गए थे मगर वह 2014 के चुनाव के बाद की बात थी. तब मैं भूमि अधिग्रहण बिल की वापसी के खिलाफ बोधगया से चंपारण तक की पदयात्रा कर रहा था. उस वक्त कई लोगों से मेरा संपर्क हुआ. उनमें सत्तू बेचने वाले थे, खीरा बेचने वाले, अंडा बेचने वाले जैसे लोग थे, जिनसे मेरी बातचीत हुई. उस वक्त बहुत सारे लोग कहते थे, 2014 में तो हमने नीतीश जी को वोट नहीं किया है, मगर 2015 में नीतीश बाबू को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे. तब मैं कांग्रेस में था, मगर इस बात ने मुझे काफी प्रभावित किया. हमने एक रिपोर्ट तैयार की और इस बात को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बताया. इसके बाद हमारा गठबंधन हुआ.

2015 में सरकार बनी तो हम उनके साथ शिक्षा मंत्री के रूप में काम करने लगे. उस वक्त उन्होंने हमे बुलाकर कहा था, अशोक जी परीक्षा में होने वाली चोरी किसी तरह रोकना है. उसके सालभर पहले हम लोगों की काफी बदनामी हुई. तब यहां की तस्वीर टाइम पत्रिका में छप गई थी, आपको याद होगी बिल्डिंग पर चढ़कर लोग नकल करवा रहे थे. नीतीश जी ने कहा, आप सब काम छोड़कर इस पर विशेष ध्यान दीजिए. फिर हमने निर्णय लिया कि जहां-जहां चोरियां होंगी वहां के प्रिंसिपल को जिम्मेदार माना जाएगा. उस वक्त हम लोगों ने 60-70 प्रिंसिपल और सुपरिटेंडेंट को सस्पेंड किया था. आज स्थिति ये हो गई कि चोरी बिल्कुल बंद हो गई. इस बात ने उन्हें काफी प्रभावित किया. उस समय से मैं सोचता था कि इन पर किताब लिखना है. जब 2020 का रिजल्ट आया तो मेरा निश्चय और पक्का हो गया.

आप अभी बातचीत में नीतीश कुमार से जुड़े किस्से बता रहे हैं, मगर ऐसे किस्से आपकी किताबों में कम हैं. ऐसा क्यों है?

मेरे साथ जो उनकी बातें हुईं, वे तो किसी कथा-उपन्यास जैसी बातें हो जाएंगी. वह बताना मेरा मकसद नहीं था. मैं तो आने वाली पीढ़ी को बताना चाहता था कि आखिर नीतीश जी ने किया क्या है. मैं दावे के साथ कहता हूं कि नीतीश कुमार न दूसरा पैदा हुआ था, न दूसरा पैदा होगा.

इस किताब की सह-लेखिका आपकी बेटी और सांसद शांभवी चौधरी भी हैं. आपके साथ किताब लिखने में उनकी क्या भूमिका रही?

शांभवी चौधरी, लोजपा सांसद
शांभवी चौधरी, लोजपा (R) सांसद

हम इस किताब को अंग्रेजी और हिंदी दोनों में लाना चाहते थे. इस किताब में पूरी रिसर्च और एडिटिंग शांभवी ने ही की है. इसके अलावा एक हमारे मित्र हैं भारत सरकार में, अखिलेश झा उन्होंने भी काफी मदद की है. नीतीश जी के काफी करीबी मित्र उदयकांत मिश्रा जी, जो पहले भी उन पर किताब लिख चुके हैं, उनसे भी काफी मदद मिली. इस किताब को लेकर मेरी योजना है कि इस पर काफी चर्चा-परिचर्चा हो. विश्वविद्यालय में, कॉलेजों में. वहां युवाओं को बताया जाए कि नीतीश कुमार क्या हैं, उनकी नीति क्या थी, उनकी चुनौतियां क्या रहीं. 

आपने नीतीश कुमार को 'बिहार के गांधी' क्यों कहा? 

गांधी ऐसा नाम है जिससे हर कोई परिचित है. गांधी जी जितने सादगी भरे थे, हमारे नेता भी उतने ही सादगी भरे हैं. उनका पहनावा देख लीजिए, बोलचाल की भाषा देख लीजिए. यहां तक कि मैं भी उतना सिंपल नहीं हूं. जबकि मैं उन्हें आदर्श मानता हूं. मेरे पूरे व्यक्तित्व पर उनकी चमत्कृत कर देन वाली छाप है. इसके बावजूद मुझे ऐसा लगता है. कभी-कभी उस इंसान के लिए इतना भावुक हो जाता हूं कि समझ नहीं आता उनके लिए क्या करूं. 43 का जो नंबर आया न (बिहार विधानसभा चुनाव-2020 में जदयू को मिली सीटें), वह हम सब के लिए दुख का सबब था. यह कैसे हुआ, क्या गलती हो गई, समझ नहीं आता था.

जब इस किताब के लिए शोध करने लगे तो उनके प्रति मन में और सम्मान बढ़ने लगा. आप देखिए कि इस वक्त देश और दुनिया में कौन ऐसा राजनेता है, जिसके पास अपने लिए कुछ नहीं है. चाहे परिवार का सवाल हो, जिसके बारे में वे बहुत कम फिक्र करते हैं, या फिर उनके अपने लिए हो. 18 साल उनको मुख्यमंत्री रहते हुए हो जाएंगे, उससे पहले वे केंद्र सरकार में मंत्री रहे. पांच से सात साल. इतने लंबे अरसे से सत्ता में रहने के बावजूद न सादगी में कोई कमी, न विचार में कोई कमी. एक ही काम, बिहार को आगे ले जाना. 

जब आप ने नीतीश कुमार से यह किताब लिखने के बारे में जिक्र किया तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?

जब मैंने उनसे कहा कि मैं आप पर किताब लिख रहा हूं तो उन्होंने कहा कि आप एक बार उदयकांत मिश्रा जी से मिल लीजिए. वे उनके काफी करीबी मित्र हैं. फिर मैं उनके पास गया और जो मैंने लिखा था, उनसे ठीक करवाया. लोग सतही तौर पर कहते हैं कि नीतीश जी सहूलियत की राजनीति करते हैं. मगर अंदरूनी तौर पर देखिएगा तो वे बिहार के विकास की राजनीति करते हैं. 

एक दिलचस्प बात है कि नीतीश कुमार पर लिखी इस किताब में आपने एक पूरा चैप्टर राजद नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर लिखा है. चाहे लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी हो या ओबीसी आरक्षण को लागू कराने का मसला या फिर सवर्ण अफसरों पर लगाम कसना, इन हवालों से आपने पूर्व सीएम की खूब तारीफ की है और उन्हें पिछड़ों के लिए वरदान तक बताया है...

लालू जी के व्यक्तित्व में एक ही गड़बड़ी है. शुरुआत तो उनकी ठीक थी. उनका 'टेक ऑफ' काफी अच्छा था, 'लैंडिंग' बहुत खराब थी. वे बिहार के लिए नहीं सोचते थे. यही नीतीश और लालू के बीच फर्क है. नीतीश जी का काम बिहार के लिए था, लालू प्रसाद का काम पॉवर के लिए था. पहले हम समझते थे कि वे पिछड़ों और वंचितों के लिए काम कर रहे हैं, बाद में समझ आया कि वे पॉवर को पाने और उसे बरकरार रखने के लिए यह सब कर रहे हैं.

मैंने वह चैप्टर इसलिए लिखा है, क्योंकि अस्सी के दशक के बाद किसी ने शुरुआत तो की! उनकी वजह से बड़ी जमात को आवाज मिली, ताकत मिली. लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में भी नीतीश जी की बड़ी भूमिका थी क्योंकि नीतीश जी उनके पीछे का दिमाग थे. दरअसल नीतीश जी को लगता था कि लालूजी के पास यादवों का बड़ा वोट है, वे इस बदलाव को अंजाम दे सकते हैं. मगर उसके बाद वे रास्ता भटक गए.

आपने लालू प्रसाद यादव के शासनकाल को जंगलराज कहे जाने पर, उन पर लगे परिवारवाद या भ्रष्टाचार के आरोप पर कुछ नहीं लिखा. 

मैं इस किताब को मुख्य रूप से नीतीश पर केंद्रित करना चाहता था. मैं उधर जाता तो कहा जाता कि यह किताब लालू प्रसाद यादव के खिलाफ है. लालू प्रसाद यादव को नीतीश जी ने इसलिए बढ़ाया क्योंकि उनका लक्ष्य बहुजन की राजनीति को आगे बढ़ाना था, उन्होंने सोचा नहीं था कि लालू इसे परिवार आधारित राजनीति बना देंगे.

आपने नीतीश कुमार के कामकाज में शराबबंदी की चर्चा की, कोसी आपदा को लेकर उनके काम की चर्चा की, अपराध नियंत्रण की चर्चा की. अभी आपके सहयोगी संजय झा साइकिल योजना की चर्चा कर रहे हैं. आपको व्यक्तिगत रूप से उनका कौन-सा काम सबसे अच्छा लगता है?

मेरे लिए सबसे बड़ा काम यह था कि पॉवर में आने के बाद यह पता किया कि कौन बच्चे स्कूल से बाहर हैं, किनके बच्चे स्कूल से बाहर हैं. इसके बाद उन्होंने तालीमी मरकज और टोला सेवक की नियुक्ति कराई. यह बड़ी क्रांति थी. उन्होंने देखा था कि पांचवीं-छठी के बाद बच्चियों का ड्रॉप आउट रेट अधिक है. तब वे पोशाक योजना (इसके तहत गरीब छात्राओं को स्कूल ड्रेस के लिए पैसा देने का प्रावधान है) के साथ आए क्योंकि गरीब की बच्ची चौथी-पांचवीं तक तो किसी भी तरह की ड्रेस पहनकर स्कूल आ जाती थी, उसके बाद उसके पास कपड़े की कमी हो जाती थी.

यह विचार और यह नीति कि कैसे समाज बदले, इससे आप नीतीश जी की सोच का अंदाजा लगाइए. इससे बड़ा फर्क पड़ा. पहले मैट्रिक परीक्षा देने वालों में 31 फीसदी ही लड़कियां होती थीं, आज 51 फीसदी से अधिक हो गई हैं. यह बदलाव है. आबादी को नियंत्रित करने के लिए भी नीतीश जी ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया. उन्होंने बच्चियों की पढ़ाई के लिए सहायता देना शुरू किया.  

इस किताब में अनंत सिंह और सुनील पांडे के किस्से भी हैं. यह जिक्र है कि नीतीश कुमार ने इनकी दबंगई को कैसे नियंत्रित किया. हालांकि इन दिनों ये लोग फिर चर्चा में हैं.

राजनीति में लाना तो जनता का काम है. जनता तो जेल में बैठे लोगों को जिता देती लेकिन सत्ता में आने के बाद हम उसे सत्ता का दुरुपयोग नहीं करने देंगे. ये नीतीश जी की नीति है. मैं यही कहना चाह रहा था. नीतीश जी ने कभी कानून व्यवस्था से समझौता नहीं किया.

नीतीश कुमार के लिए आप आगे की क्या राह देखते हैं?

नीतीश जी के नेतृत्व, कामकाज, उनकी नीति और उनकी विचार प्रक्रिया की अभी बिहार को जरूरत है. जिस तेजी से काम हो रहा है और भारत सरकार हम लोगों को मदद करती रही तो हम तीन से पांच साल में विकसित प्रदेशों में आ जाएंगे.

उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, आजकल इस बात की काफी चर्चा होती है.

अभी हमको इस बारे में चर्चा करने की जरूरत नहीं है. अभी वह स्टेज आया नहीं है कि हम नीतीश जी के उत्तराधिकारी के बारे में सोचें.

आपके नाम की भी चर्चा होती है.

नहीं.. नहीं. हम तो राम भक्त हनुमान हैं. हम हनुमान की भूमिका में ही रहना चाहते हैं. हम उत्तराधिकारी की भूमिका नहीं चाहते. राम का हनुमान होना भी एक बड़ी उपलब्धि है.

चिराग पासवान भी खुद को हनुमान कहते हैं.

हम तो इसलिए खुद को हनुमान कहते हैं, क्योंकि हम पूरी तरह उनके व्यक्तित्व से चमत्कृत हैं. अगर मैं नीतीश जी का दस परसेंट भी हो जाऊं तो सोचूंगा एक सफल राजनेता हूं. 

अगली किताब भी आएगी?

अभी हम जाति गणना पर एक किताब लाने जा रहे हैं कि उसके पीछे क्या विचार था और किस प्रक्रिया से उसे अंजाम दिया गया. नीतीश जी ने क्यों इसे राष्ट्रीय स्तर पर कराने के लिए प्रधानमंत्री से आग्रह किया. जो इसके नतीजे आए, उसके बाद जो योजना बनी, वहीं नीतीश जी को किसने कहा कि आपको यह करना चाहिए. यह सब उस किताब में होगा. 

आपकी पुरानी पार्टी कांग्रेस भी जाति जनगणना की मांग कर रही है...

अभी कांग्रेस ने अपने किस राज्य में जाति आधारित गणना कराई है? ओबीसी के बारे में बात करना, महादलित के बारे में बात करना, अल्पसंख्यकों के बारे में बात करना अलग है. मगर इसके बारे में आपकी पॉलिसी क्या है, यह जरूरी बात है.

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