
नीरज घेवान की फिल्म होमबाउंड ने ऑस्कर 2026 की बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी की टॉप-15 शॉर्टलिस्ट में जगह बनाकर भारतीय सिनेमा को एक बार फिर वैश्विक चर्चा के केंद्र में ला दिया है. यह उपलब्धि सिर्फ एक फिल्म की नहीं, बल्कि उस सिनेमा की है जो चमक-दमक से दूर रहकर समाज की जटिल सच्चाइयों को ईमानदारी से सामने रखता है.
दुनिया भर से आई 80 से ज्यादा फिल्मों के बीच होमबाउंड का इस मुकाम तक पहुंचना बताता है कि भारतीय कहानियों की गहराई और संवेदनशीलता आज भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर असर छोड़ती है. क्या इस बार भारत का दशकों पुराना इंतजार खत्म होगा? इसके जवाब में कहा जा सकता है कि शायद हां, या पुराना क्लासिक जवाब ये भी दिया जा सकता है कि इसका उत्तर तो समय ही देगा.
लेकिन इस बार कई ऐसी वजहें हैं जिनके आधार क़रीब-क़रीब पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि भारत को उसका दशकों पुराना हक़ इस बार मिल जाएगा. उन कारणों की बात आगे करेंगे जो इस बार के ऑस्कर के लिए भारत को सटीक दावेदार बना रहे हैं.
यह फिल्म भारत की आधिकारिक ऑस्कर एंट्री के तौर पर पहले ही चुनी जा चुकी थी, लेकिन शॉर्टलिस्ट में शामिल होना एक अलग स्तर की मान्यता है. अब अकादमी के सदस्य इन 15 फिल्मों को विशेष स्क्रीनिंग के जरिए देखेंगे जिसके बाद अंतिम पांच नामांकनों की घोषणा होगी. ऐसे में होमबाउंड का सफर निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है और पूरी फिल्म इंडस्ट्री की नजरें इस पर टिकी हुई हैं.

कैसा है नीरज का फिल्म मेकिंग स्टाइल?
नीरज घेवान का सिनेमा हमेशा से ही हाशिए पर खड़े लोगों की कहानियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश करता रहा है. मसान के बाद होमबाउंड को उनके करियर की सबसे पकी हुई और राजनीतिक रूप से सजग फिल्म माना जा रहा है. यह फिल्म उस भारत की तस्वीर पेश करती है जहां युवा रोजगार, पहचान और सम्मान की तलाश में सिस्टम से जूझते हैं. कहानी के केंद्र में शोएब और चंदन हैं. दो ऐसे दोस्त जो एक ही सपने के साथ बड़े हुए हैं लेकिन जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि और हालात उन्हें अलग-अलग दिशाओं में धकेलते हैं.
फिल्म की पृष्ठभूमि कोविड-19 महामारी का समय है जब पूरे देश में अनिश्चितता, डर और असमानता अपने चरम पर थी. होमबाउंड इस दौर को सिर्फ एक संकट के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे आईने की तरह दिखाती है जिसमें भारतीय समाज की कमजोरियां और विरोधाभास साफ नजर आते हैं. पुलिस की नौकरी यहां सिर्फ एक करियर ऑप्शन नहीं बल्कि सत्ता, सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति का प्रतीक बन जाती है. यही वजह है कि फिल्म पर्सनल स्ट्रगल के साथ-साथ एक बड़े सोशल स्टेटमेंट के तौर पर भी सामने आती है.
होमबाउंड की दावेदारी क्यों मजबूत दिखती है
अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में होमबाउंड को जिस तरह का रिस्पॉन्स मिला उसने इसकी ऑस्कर यात्रा को मजबूत आधार दिया. कान फिल्म फेस्टिवल में इसके प्रदर्शन के दौरान इसे भारत से आई सबसे प्रभावशाली फिल्मों में गिना गया. टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दर्शकों की प्रतिक्रिया ने भी यह साफ कर दिया कि यह कहानी सिर्फ भारतीय संदर्भ तक सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर समझी और महसूस की जा सकती है. प्रवासी जीवन, पहचान की तलाश और अपने घर से जुड़ाव इस फिल्म को ग्लोबल बनाते हैं.
ऑस्कर अवार्ड के बारे में मान्यता है कि यहां काम सिर्फ अच्छी फिल्म होने भर से नहीं चलता. अच्छी फिल्म होने के साथ-साथ महीनों तक पैरलल स्क्रीनिंग और लॉबींग करते रहना पड़ता है. होमबाउंड के मामले में धर्मा प्रोडक्शन और करण जौहर इस काम में ज़ोर शोर से लगे हुए हैं. इस फ्रंट पर फिल्म के ‘लूज़ होपिंग’ का चान्स ही नहीं दिख रहा है. जो कि आधे से ज्यादा काम कर जाएगी. अब आते हैं इसके ग्लोबल प्रेजेंटेशन पर.
इस मामले में धर्मा और करण की इसलिए तारीफ करनी होगी कि उन्होंने शुरुआत से ही फिल्म के साथ दिग्गज निर्देशक निर्माता मार्टिन स्कॉर्सेसी को बतौर एग्ज़ीक्युटिव प्रोड्यूसर जोड़े रखा है. ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘गुडफेलाज़’, ‘शटर आयलैंड’, ‘आयरिशमैन’ और ‘किलर ऑफ़ दी फ़्लावर मून’ जैसी शाहकार फिल्मों और अपने दशकों के करियर में मार्टिन की 18 फिल्मों को 100 से ज़्यादा बार नॉमिनेशन मिला है, जिसमें से बीस बार इस दिग्गज ने ऑस्कर की बाज़ी मारी है. इस लिहाज से ग्लोबल प्रेजेंटेशन के मामले में भी करण जौहर और नीरज बाकी फिल्मों से कहीं उन्नीस साबित नहीं हो रहे. ऐसी ही वजहें हैं जो इस बार ऑस्कर को सपने से हकीकत हो जाने की ठोस ज़मीन दे रही हैं.

कास्टिंग भी ग्लोबल अपील बढ़ा ही रही है
फिल्म की कास्टिंग भी इसकी ताकत मानी जा रही है. ईशान खट्टर की पहचान वैश्विक स्तर पर बननी शुरू हो चुकी है. ईशान के खाते में ‘डोंट लुक अप’ जैसी दमदार फिल्म भी है. इसलिए इस फैक्टर को भी कम नहीं आंका जाना चाहिए.
ईशान खट्टर, विशाल जेठवा और जाह्नवी कपूर ने अपने-अपने किरदारों में गंभीर और बेहद सधी हुई एक्टिंग की है. खासतौर पर विशाल जेठवा के किरदार को लेकर कहा जा रहा है कि यह उनके करियर की सबसे चुनौती से भरी भूमिकाओं में से एक है. जाह्नवी कपूर के लिए भी यह फिल्म उनकी इमेज से हटकर एक अलग पहचान गढ़ने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है.
फिल्म के निर्माता करण जौहर ने इस सफलता को भारतीय सिनेमा के लिए एक भावनात्मक पल बताया है. उन्होंने कहा है कि होमबाउंड जैसी फिल्में साबित करती हैं कि कंटेंट के स्तर पर भारत किसी से पीछे नहीं है. सोशल मीडिया पर फिल्म से जुड़े लोगों और दर्शकों की प्रतिक्रियाएं भी यही इशारा करती हैं कि इस बार भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने ‘फिंगर क्रॉस’ कर लिया है.
अगर होमबाउंड ऑस्कर की अंतिम नॉमिनेशन सूची में जगह बनाती है तो ये भारत के लिए लंबे समय बाद एक बड़ी उपलब्धि होगी. इससे पहले बहुत कम भारतीय फिल्मों को इस श्रेणी में इतनी मजबूती से आगे बढ़ते देखा गया है. नीरज घेवान की ये फिल्म इस मायने में भी खास है कि ये बिना किसी औपचारिक शोर या प्रचार के सिर्फ अपनी कहानी और संवेदना के दम पर दुनिया का ध्यान खींच रही है. होमबाउंड ये बात याद दिलाती है कि सिनेमा जब ईमानदार होता है तो उसकी भाषा और सीमाएं अपने आप टूट जाती हैं.

