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एस्ट्रोनॉट सफेद या ऑरेन्ज रंग के ही कपड़े क्यों पहनते हैं, साइंस है या कुछ और?

एस्ट्रोनॉट पृथ्वी से लॉन्चिंग के वक़्त ऑरेन्ज स्पेस सूट पहनते हैं, जबकि अंतरिक्ष में पहुंचकर सफेद सूट पहन लेते हैं. और ऐसा सभी देशों के एस्ट्रोनॉट करते हैं

ऑरेन्ज और सफेद कपड़ों में एस्ट्रोनॉट (फोटो:नासा)
ऑरेन्ज और सफेद कपड़ों में एस्ट्रोनॉट (फोटो:नासा)
अपडेटेड 28 फ़रवरी , 2024

गूगल के सर्च बॉक्स में आप जैसे ही अंग्रेज़ी या हिंदी में एस्ट्रोनॉट (Astronaut) लिखेंगे, आपको ढेर सारी ख़बरें दिखेंगी. यहां से आप 'इमेज' वाले सेक्शन में जाएंगे तो अलग-अलग हज़ारों सोर्सेज़ के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों की तस्वीरें दिखेंगी. तस्वीरों की क्वालिटी, उसमें दिख रहे लोग और उनकी जानकारी अलग-अलग हो सकती है. उनके ड्रेस पर लगे छोटे-छोटे प्रतीक चिह्न भी अलग होते हैं.

इन सभी तस्वीरों में एक चीज़ कॉमन दिखेगी- ड्रेस. हर एस्ट्रोनॉट का कपड़ा या तो सफेद या फ़िर नारंगी (ऑरेन्ज) रंग का होगा. इसे देखते ही मन में सवाल आ सकता है कि ऐसा क्यों? आख़िर अंतरिक्ष यात्री सिर्फ सफेद और नारंगी रंग का ही स्पेस सूट (Space Suit) क्यों पहनते हैं?

अंतरिक्ष की यात्रा पर जाना किसी बाज़ार की यात्रा जैसा नहीं होता है. अंतरिक्ष में पृथ्वी (Earth) से अलग कायदे-कानून चलते हैं, जो कि प्रकृति के होते हैं. वहां गुरुत्वाकर्षण अलग है, रंग अलग है और कई चीज़ें जो धरती पर हैं, वो हैं ही नहीं. जैसे कि हवा, पानी.

एस्ट्रोनॉट्स के लिए वैज्ञानिकों ने तमाम रिसर्च के बाद दो तरह के ड्रेस डिजाइन किए- Advanced Crew Escape Suit (ACES) और Extravehicular Activity (EVA) Suit. नारंगी रंग वाले ड्रेस को एडवांस क्रू एस्केप सूट और सफेद वाले को एक्स्ट्रावेहिक्यूलर एक्टिविटी सूट कहते हैं.

धरती से जब किसी वैज्ञानिक को अंतरिक्ष में भेजा जाता है तो कपड़ों के आधार पर इस यात्रा के दो स्टेज होते हैं. पहला स्टेज है- धरती से लॉन्च और दूसरा स्टेज है- अंतरिक्ष में दाखिल होने के बाद की यात्रा.

भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा (आरेन्ज ड्रेस) और अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग (व्हाइट ड्रेस)
भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा (आरेन्ज ड्रेस) और अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग (व्हाइट ड्रेस)

लॉन्चिंग के वक़्त एस्ट्रोनॉट ऑरेन्ज सूट पहने हुए रहते हैं. दरअसल लॉन्चिंग पैड किसी न किसी द्वीप पर स्थित होता है. हर तरफ झील, नदी या समुद्र रहता है. उदाहरण के लिए भारत में श्रीहरिकोटा को ही देखिए. ये बंगाली की खाड़ी में स्थित बाधा द्वीप पर मौजूद है. लौटते हैं लॉन्चिंग के प्रोसेस पर. लॉन्चिंग के दौरान स्पेसक्राफ्ट समुद्र के ऊपर से गुजर रहा होता है. ऐसे में स्पेसक्राफ्ट के बैकग्राउंड में जो परिदृश्य बनता है उसका रंग नीला होता है. इस नीले रंग के लैंडस्केप में नारंगी रंग सबसे आसानी और क्लैरिटी के साथ दिखता है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि नारंगी रंग किसी भी लैंडस्केप में साफ-साफ दिखता है इसलिए लॉन्च के वक़्त एस्ट्रोनॉट्स को इसी रंग का ड्रेस पहनाते हैं. ताकि किसी हादसे के दौरान अगर एस्ट्रोनॉट गिरता है तो उसे आसानी से देखा जा सके और बचाया जा सके.

अब बात सफेद स्पेस सूट की. अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद बैकग्राउंड हो जाता है काला. सूरज जैसे तारे होने के बावजूद हमें अंतरिक्ष का रंग काला ही दिखता है क्योंकि अंतरिक्ष से होकर लाइट हमारी आंखों तक नहीं पहुंच पाती. सफेद रंग इस सूरज की वजह से ही इस्तेमाल की जाती है. अंतरिक्ष में पहुंचा यात्री सूरज की रोशनी के ज़्यादा करीब होता है, पृथ्वी की तुलना में. सफेद रंग लाइट को रिफ्लेक्ट करती है ऐसा हमने कक्षा-6 की विज्ञान की किताबों में पढ़ ही रखा है.

लाइट को रिफ्लेक्ट करे और गर्मी कम लगे इसीलिए तो सलाह दी जाती है कि घर की बाहरी दीवारों को सफेद चूने से रंगवाएं. ख़ैर, तो सफेद स्पेस सूट की दो वजहें हैं. पहली कि ये लाइट को रिफ्लेक्ट करता है और दूसरा की अंतरिक्ष के ब्लैक लैंडस्केप में सफेद रंग आसानी से देखा-पहचाना जा सकता है.

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