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कौन हैं बिहार के सुमन झा जो तेलुगु सिनेमा से लेकर हॉलीवुड तक एक्टिंग में झंडा गाड़ रहे!

दिसंबर की 13 तारीख को रिलीज हो रही तेलुगू वेब सीरीज 'हरिकथा' में अहम किरदार निभा रहे बिहार के सुमन झा इससे पहले कुछ हॉलीवुड प्रोजेक्ट से जुड़ चुके हैं. उनसे बातचीत

(बाएं) हरिकथा में अपने किरदार में सुमन झा, (दाएं) दीपा मेहता के साथ
(बाएं) हरिकथा में अपने किरदार में सुमन झा, (दाएं) दीपा मेहता के साथ
अपडेटेड 5 दिसंबर , 2024

इन दिनों तेलगू फिल्म इंडस्ट्री में एक वेबसीरीज की काफी चर्चा में है. बाहुबली, पुष्पा और आरआरआर जैसी ओवर-दि-टॉप फिल्मों के मुकाबले हरिकथा अलग तरह की कहानी के लिए दर्शकों और समीक्षकों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है.

दक्षिण भारत में रामलीला की तरह चर्चित सांस्कृतिक आयोजन हरिकथा को आधार बनाकर इस वेबसीरीज में निर्देशक मैगी 90 के दशक के एक दलित लड़के की कहानी कहते नजर आ रहे हैं, जिसे मंदिर में प्रवेश करने की क्रूर सजा मिलती है, फिर वह लोगों से इसका बदला लेता है.

यह एक मर्डर मिस्ट्री है. 13 दिसंबर को रिलीज हो रही इस वेबसीरीज में केंद्रीय किरदार हरि का रोल बिहार के सुमन झा निभा रहे हैं और रिलीज से पहले ही 31 साल का यह युवा अभिनेता खूब सुर्खियां बटोर रहा है. वे पहले भी मशहूर फिल्म निर्देशक दीपा मेहता के साथ 'एनाटॉमी ऑफ वायलेंस' में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. इंडिया टुडे के विशेष संवाददाता पुष्यमित्र ने उनके अब तक के करियर और इस तेलुगू सीरीज पर विस्तार से बात की है. इस बातचीत के संपादित अंश :

हरिकथा अपने बोल्ड सब्जेक्ट को लेकर काफी चर्चा में है. आखिर क्या है इसकी कहानी?

डिज्नी हॉटस्टार पर आ रही यह वेबसीरीज हिंदी सहित सात अलग-अलग भाषाओं में आ रही है. रिलीज के पहले कहानी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकता. हालांकि यह एक माइथोलॉजिकल थ्रिलर है और इसकी कहानी 90 के दशक की है. दलितों को मंदिर में न घुसने देना, उनके साथ बुरा व्यवहार, ये सब सीरीज की पृष्ठभूमि में शामिल हैं और इस दौरान जो कॉन्फ्लिक्ट उभरते हैं, उन्हें ही कहानी में दिलचस्प ढंग से गूंथा गया है. यह आंध्र प्रदेश के अरकू वैली की कहानी है.

दरअसल दक्षिण भारत में हरिकथा काफी फेमस है, उत्तर भारत में रामलीला की तरह. उसी को नए अंदाज में पेश किया गया है. इसके कहानीकार सुरेश जय हैं. संजय लीला भंसाली के असिस्टेंट रह चुके मैगी इसके डॉयरेक्टर हैं. वे इससे पहले थ्री रोजेज नाम की वेबसीरीज बना चुके हैं. उनकी खास बात है कि वे एक्टर्स को इम्प्रोवाइज करने की काफी आजादी और मौका देते हैं. इस समय जो देश का माहौल है, उस लिहाज यह काफी महत्वपूर्ण फिल्म है.

आप हिंदी भाषी हैं, बिहार के रहने वाले. ऐसे में एक तेलुगू वेबसीरीज में काम करने का मौका कैसे मिला?

मैं उन दिनों मुंबई में था. मेरे पास ऑडिशन का कॉल आया. कुछ डायलॉग हिंदी में थे, उन्हें बोलकर मैंने भेजा, जो उन्हें पसंद आया. फिर कहा गया कि क्या आप इसे तेलुगू में बोल सकते हैं? मैंने उसका अभ्यास करके भी भेजा, वह भी उन्हें ठीक लगा. फिर मेरा सिलेक्शन हो गया. मैं वहां गया, एक नई भाषा सीखी. काफी अच्छा अनुभव रहा. वह अलग तरह की इंडस्ट्री है. वहां परफेक्शन पर काफी जोर दिया जाता है. कहानी शानदार चुनते हैं, फिर उसे हूबहू जमीन पर उतारते हैं. अलग-अलग आर्ट फॉर्म का इस्तेमाल करते हैं. जुनून की तरह काम करते हैं.

शूटिंग के दौरान मुझे कई दफा चोटें आईं, मगर जोश में कुछ समझ नहीं आता था. पथरीले इलाके में नंगे पांव दौड़ना, असली हथोड़े से चेन को तोड़ना. डॉयरेक्टर चाहते थे, सबकुछ रीयल लगे. एक बार शूटिंग में रात दो बजे ऐसा सीन था कि मेरे आंखों से आंसू निकलने थे. मगर सेट पर उस रोज बदकिस्मती से ग्लिसरीन नहीं थी. लंबा सीन था. मैंने कहा, मैं कोशिश करता हूं और हो भी गया. खुद आंसू निकल आए. मेरे को-स्टार तेलुगू के मशहूर एक्टर श्रीराम सर ने कहा, तेलुगू इंडस्ट्री को एक हिडन जेम मिल गया है. यह मेरे लिए जबरदस्त कॉम्प्लीमेंट था.

इस वेबसीरीज में दलितों का उत्पीड़न एक अहम पहलू है. आप बिहार और मिथिला के इलाके के रहने वाले हैं, क्या आपके पास भी दलितों के उत्पीड़न को लेकर कोई किस्से हैं?

इस वेबसीरीज की कहानी 1990 में बेस्ड है. उस वक्त काफी दिक्कतें रही होंगी, ऐसा मुझे लगता है. आज दलितों के साथ उतना भेदभाव तो नहीं है, मगर मुझे लगता है कि सवर्ण जाति के लोगों के सबकॉन्सस में अभी भी यह भेदभाव है, जो कहीं न कहीं उभरकर आ जाता है. जैसे बनारस में हमारे साथ हुआ. मेरा एक दोस्त डोम जाति का था. बनारस के तो राजा ही डोम परिवार के हैं, वह भी उसी परिवार का था. एक होटल में उसके साथ जब भेदभाव हुआ तो मैंने इसके खिलाफ स्टैंड लिया. यह सब बहुत दुखद है, पता नहीं कब अपने देश से जाएगा.

मिथिला में तो राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र ने ही सवाल उठा दिया था कि जिस ईश्वर ने सबको शरीर दिया है, उस ईश्वर को मानने वाले लोग कैसे किसी पर सवाल उठा सकते हैं. दुखद है कि ईश्वर को मानने वाले ऐसा भेदभाव करते हैं. मुझे लगता है कि कॉमन स्कूलिंग और दोस्ती में इसका समाधान छिपा है. मेरे हर तरह के दोस्त हैं, दलित भी हैं और उनसे पक्की दोस्ती है. वैसे सिर्फ दलितों के साथ ही नहीं, हमारे देश में माइनॉरिटी और आदिवासियों के साथ भी काफी बुरा हो रहा है. इस वेबसीरीज में ऐसे तमाम लोगों के सवाल हैं. मैंने जो अपने आसपास देखा, उसी को महसूस कर, उस अपमान को अपने कैरेक्टर में उतारने की कोशिश की है. एक्टिंग की अपनी पढ़ाई के साथ इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग का मुझे इस दौरान काफी फायदा मिला.

तो आपने एक्टिंग कहां सीखी?

मैं चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ इंडियन थियेटर का स्टूडेंट रहा हूं. अनुपम खेर इस डिपार्टमेंट के पहले बैच के एल्युमिनी रह चुके हैं. इस इंस्टीट्यूट से बॉलीवुड के कई अभिनेता, राइटर और डॉयरेक्टर निकले हैं. जैसे सुनील ग्रोवर, यशपाल शर्मा. यहां हमारी ट्रेनिंग बेहतरीन रही. हमें 18-18 घंटे की ट्रेनिंग दी जाती थी, जो इस फिल्म में काम आई. देश-विदेश से कई विशेषज्ञ हमें पढ़ाने आते थे. नीलम मानसिंह हमें पढ़ाती थीं. दिल्ली, मुबंई के पृथ्वी थियेटर और गोवा में हमें ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता था. वह अच्छी जर्नी रही. मैं वहां 2013-15 बैच में था.

बिहार से पंजाब यूनिवर्सिटी तक कैसे पहुंचे?

मेरी पैदाइश मधुबनी जिले के बलिया गांव की है. सातवीं कक्षा तक मेरी पढ़ाई वहीं हुई. मेरे पिता बनारस में पोस्टेड थे, इसलिए उसके बाद हमारा परिवार बनारस आ गया. वहां से मैं थियेटर की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ आ गया. हमारे गांव में थियेटर होता था. हालांकि मैं जिस समाज से आता हूं, वहां रंगकर्म को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता. लोग यह भी कहते हैं कि इसमें गुजर-बसर मुश्किल है.

ऐसे में मैंने घरवालों से छिपकर बनारस में थियेटर करना शुरू किया. वहां के थियेटर समूहों से जुड़ा. बारहवीं तक आते-आते मुझे समझ आ गया था कि मुझे यही करना है. बनारस में ही एनएसडी की ट्रेनिंग में भाग लेने का मौका मिला. वहां 15-16 नाटकों में काम किया. नागरी नाटक मंडली में, वहीं से आत्मविश्वास बढ़ा. चंडीगढ़ गया तो घरवालों से झूठ बोलकर यह कोर्स किया. घरवालों को यह बताकर आया था कि मैं एमए लिटरेचर करने जा रहा हूं. इस झूठ को सच में बदलने के लिए मैंने वहां काफी मेहनत की.

डिपार्टमेंट से निकलते ही आपको तुरंत दीपा मेहता जैसी मशहूर निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिल गया, यह कैसे हुआ?

मैं 2015 में पासआउट हुआ. 2016 में दीपा जी निर्भया हत्याकांड पर फिल्म बनाने की योजना लेकर चंडीगढ़ आई थीं. फिल्म का नाम था, एनाटॉमी ऑफ वायलेंस. यह एक्सपेरिमेंटल फिल्म थी. इसके जरिये यह समझने की कोशिश की गई थी कि आखिर हमारे समाज में इतने घृणित अपराध क्यों होते हैं. 20 के दिन वर्कशॉप में हम कलाकारों के इंप्रोवाजेशन से यह फिल्म शूट हुई. वे चंडीगढ़ में ऑडिशन कर रही थीं, मुझे पता चला तो मैं वहां गया और काम मिल गया.

पास होते ही इस तरह के बेहतरीन प्रोजेक्ट का हिस्सा बनना बहुत ही अद्भुत बात थी. फिर मुझे कनाडा से मैसेज आया कि मुझे टोरेंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल होना है. यह मेरे लिए बड़ा मौका था. मैं झूठ बोलकर घर से थिएटर सीखने आया था. बिहार के छोटे से गांव का लड़का था, काम की वजह से मुझे कनाडा से बुलावा आया. वहां मुझे काफी अच्छा लगा. फिल्म की स्क्रीनिंग हुई, काफी इंटरव्यूज हुए. पासआउट होते ही अच्छा मौका मिल गया. बेहतरीन स्टार्ट था, पैसे भी मिले.

इसके वेबसीरीज के बाद आगे क्या करने जा रहे हैं?

'एनाटॉमी ऑफ वायलेंस' के बाद कनाडा से दो फिल्मों का प्रोपोजल मिला था, इनके अलावा हॉलीवुड की एक फिल्म मिली. बीच में कोविड की वजह से कनाडा के प्रोजेक्ट टल गए. वहां के एक प्रोजेक्ट पर अभी काम शुरू होना है. हॉलीवुड की फिल्म जिसके डायरेक्टर न्यूयार्क के हैं, वह एक इंडियन स्टूटेंड की कहानी है, अगले साल जून में इसका काम शुरू होगा. भारत में बॉलीवुड से कुछ काम मिला है. एक तमिल डायरेक्टर ने हरिकथा के बाद काम ऑफर किया है. हरिकथा सीजन टू भी शायद बने, उसमें मेरा कैरेक्टर और बड़ा हो सकता है.

आप मिथिला के रहने वाले हैं और तेलुगू सिनेमा कर रहे हैं, क्या कभी मैथिली सिनेमा के बारे में सोचा?

मेरे कई दोस्त मैथिली सिनेमा में हैं. कई अच्छे डायरेक्टर आ रहे हैं. मगर इनवेस्टर नहीं हैं. अभी 'पोखर के दुनूपार' फिल्म आई, उसे ढंग का रिलीज नहीं मिला. मैं भी अपनी मातृभाषा में काम करना चाहता हूं. कहानियों की कमी नहीं, प्रतिभा की कमी नहीं, मगर कोई अभी पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं है.

मगर 'पुष्पा-2' का ट्रेलर लॉच करने अल्लू अर्जुन पटना आए थे?

यहां बाजार है. जब अपनी भाषा की फिल्में नहीं बनेंगी तो दूसरे लोग फायदा उठायेंगे. अभी बिहार में नई फिल्म पॉलिसी आई है, इसका नए लोग लाभ उठा सकते हैं.

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